रौशनलाल मेहरा बलिदान दिवस
1 मई 1933 का दिन था।
मद्रास के रायपुरम समुद्र तट एक जोरदार धमाका हुआ और देखते-देखते पूरा शहर धुएं के
बादलों से भर गया। ब्रिटिश अधिकारियों में खलबली मच गई। जब पुलिस दल विस्फोट की
आवाज़ के दिशा में भागता हा पहुंचा तो वहां गंभीर रूप से घायल एक क्रांतिकारी
नौजवान मिला। बम की चपेट में आकर उसका एक हाथ उड़ चुका था और वह बुरी तरह झुलस
चुका था। जाहिर था कि वही बम लेकर आया था और उसी के हाथ से छूटकर बम विस्फोट कर
गया था। पुलिस उन्हें अस्पताल ले गई। उनसे बहुत पूछताछ की लेकिन उन्होंने कोई
जानकारी नहीं दी। वे तीन घंटे तक जीवित रहे फिर दम तोड़ दिया।
स्वतंत्रता संग्राम में अपने प्राणों की आहुति देने वाले उस क्रांतिवीर का नाम था रौशनलाल मेहरा। वे बम बनाने में दक्ष थे। एक विशेष क्रातिकारी अभियान के लिए उन्हें शक्तिशाली बम बनाने का जिम्मा दिया गया था। उन्होंने उपलब्ध सामग्री से बम बना लिया था और उस दिन समुद्र तट पर उसका परीक्षण करने गए थे। दुर्भाग्य से समुद्र तट पर उनका पांव फिसल गया और बम उनके हाथ से गिरकर विस्फोट कर गया। वे बम की चपेट में आ गए और उनका एक हाथ उड़ गया।
रौशनलाल मेहरा उस
क्रांतिकारी दल में शामिल थे जिसने मद्रास और बंगाल के गवर्नरों का सफाया करने के
लिए मद्रास में डेरा डाल रखा था। हजारा सिंह और सीताराम नामक टीम के सदस्यों के
साथ वे 1932 में ही मद्रास पहुंच चुके थे और उन्होंने मध्य मद्रास के तंबू चट्टी
स्ट्रीट में एक किराए का मकान लेकर अपना गुप्त ठिकाना बना रखा था।
इस ऑपरेशन की पृष्ठभूमि
लाहौर जेल में तैयार हुई थी। उस समय लाहौर जेल में उत्तराखंड के विख्यात
क्रांतिकारी इंद्र सिंह गढ़वाली और उनके मित्र शंभुनाथ आजाद बंद थे। एक दिन उन्होंने
दो अंग्रेजी अखबारों में खबर पढ़ी जिसमें मद्रास के गवर्नर का एक भाषण छपा था। उस
भाषण में गवर्नर ने शेखी बघारते हुए दावा किया था कि मद्रास में कोई क्रांतिकारी
गतिविधि नहीं है और जबतक राज्य की कमान उनके हाथ में है कोई क्रांतिकारी गतिविधि
नहीं पनप सकती। सिविल एंड मिलिट्री गजट में भी उनका यह भाषण छपा हुआ था। दोनों
क्रांतिकारी दोस्तों ने उनके दावे को चुनौती के रूप में लिया और जेल से छूटने के
बाद उन्होंने संगठन के साथियों से इसपर चर्चा की। चर्चा के बाद संगठन ने मद्रास और
बंगाल के गवर्नरों की हत्या करने तथा मद्रास में क्रांति भड़काने की योजना बनाई।
पंजाब के क्रांतिकारियों ने इसपर काम करना शुरू कर दिया।
इंद्र सिंह गढ़वाली और
शंभुनाथ आजाद 1933 में रिहा हुए जबकि हजारा सिंह, सीतानाथ और रौशन लाल मेहरा को
1932 में ही मद्रास भेजा जा चुका था। जेल से छूटने के बाद इंद्र सिंह गढ़वाली उनसे
आ मिले और उसी कार्यालय में रहने लगे। उन्होंने साधू का वेश बना लिया और प्रेम
प्रकाश मुनि का छद्म नाम धारण कर लिया था। इसके तुरंत बाद खुशीराम मेहता, शंभुनाथ
आजाद, नित्यानंद, हजारा सिंह उर्फ बंता सिंह आदि भी मद्रास पहुंच गए।
गवर्नरों के खिलाफ क्रांतिकारी
कार्रवाई के लिए 29 अप्रैल का दिन तय किया गया था। उस दिन मद्रास में ग्रीष्मकालीन
दरबार लगना था जिसमें मद्रास और बंगाल के गवर्नरों के साथ जनरल एडरसन को शामिल
होना था। जनरल एडरसन को आयरलैंड से खासतौर पर भारत के क्रांतिकारी आंदोलन को
कुचलने के लिए बुलाया गया था। ब्रिटिश सरकार के यह तीनों लोग क्रांतिकारियों की
हिट लिस्ट में थे और 29 अप्रैल को तीनों के एक साथ सफाए का अवसर मिलने वाला था।
इस बीच लाहौर में रामविलास
शर्मा के आवास से अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क के दो क्रांतिकारी गिरफ्तार किए गए।
मद्रास अभियान के लिए धन उन्हीं के मार्फत आना था। उनके पास से सारी धनराशि जब्त
कर ली गई और पुलिस प्रताड़ना से टूटकर वे मुखबिर बन गए। नतीजतन मद्रास अभियान में
लगी टीम के लोग गंभीर आर्थिक संकट में आ गए। उन्हें 29 अप्रैल तक टिके रहना था और
अभियान की तैयारी भी करनी थी। इसके लिए काफी पैसों की जरूरत थी। ऐसे में उनलोगों
ने तय किया कि वे ऊटी बैंक को लूटकर धन का इंतजाम करेंगे और जो भी सामग्री उपलब्ध
है उससे शक्तिशाली बम बनाएंगे। रौशन लाल मेहरा को लूटकांड से अलग रखा गया था और
उन्हें बम बनाने के काम में ध्यान केंद्रित रखने को कहा गया था।
उस समय तक सरदार भगत सिंह
की फांसी हो चुकी थी और चंद्रशेखर आजाद ब्रिटिश पुलिस के साथ मुठभेड़ में अपना
बलिदान दे चुके थे। ब्रिटिश सरकार बौखलाई हुई थी और पूरे देश में क्रांतिकारियों
की गिरफ्तारी का अभियान चल रहा था।
28 अप्रैल 1933 को उनकी टीम
ने ऊटी बैंक पर धावा बोला और उसके सभी अधिकारियों, कर्मचारियों को बंधक बना लिया।
इसके बाद स्ट्रांग रूम से नोट समेटकर बाहर खड़ी कार में डालने लगे। बच्चूलाल को
बैंक के गेट पर निगरानी के लिए तैनात किया गया था। बाकी लोग अंदर लूटकांड को अंजाम
देने में लगे थे। दो लोग टैक्सी में बैठे थे। इसी बीच दो सिपाही बच्चूलाल के पास
आकर पूछताछ करने लगे। उन्होंने खतरे की सीटी बजा दी। उस समय तक 70 हजार रुपये
टैक्सी में डाले जा चुके थे। क्रांतिकारी टीम उतनी ही राशि लेकर टैक्सी से उड़न-छू
हो गई। पुलिस नें उनका पीछा किया। वे भेष बदल-बदलकर पुलिस को चकमा देते रहे। जाहिर
तौर पर वे 29 अप्रैल के हमले के कार्यक्रम को अंजाम देने की स्थिति में नहीं रहे।
इस बीच 30 अप्रैल 1933 को
टीम के दो सदस्य खुशीराम मेहता और नित्यानंद ब्रिटिश पुलिस की गिरफ्त में आ गए। पुलिस
ने नित्यानंद को अमानवीय यातनाएं देकर पूछताछ की। वे पुलिस की यातना से टूट गए और
सारी योजनाओं का भंडाफोड़ कर दिया। यहां तक कि ग्रीष्मकालीन दरबार में गवर्नरों और
जनरल पर क्रांतिकारी हमले की योजना के बारे में भी बता दिया। क्रांतिकारियों के गुप्त
ठिकाने का पता भी बता दिया। ब्रिटिश पुलिस बैंक लूट के आरोपियों की तलाश में जुट
गई। इसी बीच बम विस्फोट की घटना हुई जिसमें रौशनलाल मेहरा शहीद हो गए।
बौखलाई पुलिस ने नित्यानंद
से मिली जानकारी के आधार पर 4 मई को तंबू चट्टी स्ट्रीट स्थित उनके ठिकाने को घेर
लिया। इंद्र सिंह गढ़वाली ने जब पुलिस की घेराबंदी देखी तो सबसे पहले संगठन से
संबंधित सभी दस्तावेज़ जला डाले और अपने साथियों के साथ मकान की छत पर जाकर मोर्चा
ले लिया। पांच घंटे तक उनके बीच गोलियां चलती रहीं। इस मुठभेड़ में गोविंदलाल बहल
शहीद हो गए। बाद में जब गोलियां खत्म हो गईं तो इंद्र सिंह गढ़वाली और शंभूनाथ
आजाद समेत तीन लोग गिरफ्तार कर लिए गए।
हालांकि ग्रीष्मकालीन दरबार
पर हमले का क्रांतिकारी अभियान पूरा नहीं हो पाया लेकिन स्वतंत्रता संग्राम के
इतिहास में इसे मद्रास बमकांड और ऊटी बैंक लूटकांड के रूप में याद किया जाता है।
बमकांड के अकेले किरदार रौशनलाल मेहरा थे।
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