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मंगलवार, 26 मार्च 2024

बांग्लादेशी मॉडल की ओर बढ़ता देश

 हाल में बांग्लादेश का चुनाव एकदम नए तरीके से हुआ। पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के नेतृत्व वाली मुख्य विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी सहित 15 दलों ने चुनाव का बहिष्कार कर दिया। मैदान में सिर्फ शेख हसीना के नेतृत्व वाली सत्ताधारी पार्टी अवामी लीग और उसके सहयोगी दल रहे। उसका मुकाबला निर्दलीय प्रत्याशियों से हुआ। उसमें भी बहुत से प्रत्याशी अवामी लीग के ही टिकटससे वंचित कार्यकर्ता थे। नतीजतन 300 सीटों वाली लोकसभा में से सत्ताधारी दल को 222 सीटों पर जीत मिली अर्थात तीन चौथाई बहुमत। इसे चुनाव कहने की जगह जनता की जबरिया सहमति कहा जा सकता है क्योंकि उसके सामने कोई विकल्प था ही नहीं। हालांकि इसका मकसद कट्टरपंथियों और आतंवाद के पोषकों को सत्ता से बाहर रखना था।

इधर भारत में चुनाव की घोषणा से पूर्व मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के सारे अकाउंट फ्रिज कर दिए गए हैं। दो मुख्यमंत्रियों सहित कई विपक्षी नेता बिना किसी सबूत के आरोपी करार देकर जेलों में बंद किए जा चुके हैं। एक-एक कर सभी मुख्य विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी के कयास लगाए जा रहे हैं। जांच एजेंसियां ताबड़तोड़ छापेमारी कर रही हैं। इस बीच इलेक्टोरल बांड का खुलासा होने के बाद सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ भ्रष्टाचार के बहुत सारे मामलों का दस्तावेज़ी प्रमाण सामने आ चुका है। लेकिन उन मामलो पर जांच एजेंसियां मौन हैं। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है लेकिन चुनाव के पहले क्या आदेश पारित होंगे कहना कठिन है।

ऐसे में प्रतीत होता है कि कहीं भारत में भी बांग्लादेश की तर्ज पर चुनाव कराने की तैयारी तो नहीं चल रही है? अर्थात सत्ताधारी दल खाली मैदान में बल्लेबाजी करती हुई जीत की ट्राफी आराम से उठा ले जाए। हालांकि भारत के विपक्षी दलों ने चुनाव का बहिष्कार करने जैसा कोई आत्मघाती निर्णय नहीं लिया है। वे जेल में रहकर भी चुनाव लड़ने को तैयार हैं। हालांकि उन्हें एक-एक पैसे को मोहताज बनाकर ऐसी स्थिति बनाने का प्रयासचल रहा है जिसमें वे चुनाव लड़ने की स्थिति में ही नहीं आ सकें।

तो क्या सत्तारूढ़ भाजपा भारत में लोकतंत्र को पूरी तरह खत्म करना चाहती है? जवाब है हां। इसलिए नहीं कि उसे सत्ता का बहुत ज्यादा लोभ है। ऐसा इसलिए कि वह भारत को हिंदूराष्ट्र बनाने के एजेंडे पर काम कर रही है और लोकतांत्रिक व्यवस्था में धर्म आधारित राष्ट्र की स्थापना नहीं हो सकती। भारतीय संविधान के लागू रहते तो यह असंभव है। हिंदूराष्ट्र का गठन तानाशाही या राजशाही की व्यवस्था में ही संभव है। इसके लिए मौजूदा संविधान को निरस्त कर नया संविधान बनाने की जरूरत पड़ेगी। नई संविधान सभा का गठन करना होगा। नया संविधान बनेगा तभी यह संभव है। इसके लिए तीन चौथाई बहुमत और लोकतंत्र की विचारधारा को पूरी बेदर्दी से कुचल देने की जरूरत पड़ेगी। इसीलिए एक तरफ नैतिक, अनैतिक तरीके से अकूत धन इकट्ठा किया जा रहा है दूसरी तरफ देश को विदेशी कर्ज में आकंठ डुबोया जा रहा है। ताकि जब अपने एजेंडे की व्यवस्था लागू हो जाएगी तो जमा किए हुए धन से देश को विदेशी कर्ज से मुक्ति दिला दी जाए और तब जनता का ध्यान रखने की भी कोशिश होगी।

अटल बिहारी बाजपेयी के कार्यकाल में इसके लिए अनुकूल स्थिति नहीं थी। वह गठबंधन की बैसाखियों पर टिकी हुई सरकार थी। नरेंद्र मोदी का कार्यकाल इसके लिए सर्वथा अनुकूल है क्योंकि सरकार के पास प्रचंड बहुमत है और विपक्ष कमजोर है। सरकार विपक्षी दलों को पंगु बना देने की ताकत रखती है। भारत में एकतरफा चुनाव कराने का मकसद धार्मिक कट्टरता की जड़ों को फैलाना और मजबूत करना है।

चुनाव में विपक्ष सत्ता के हथकंडों के सामने मजबूती से खड़ा रह पाएगा या नहीं कहना कठिन है। अब देश की जनता को ही तय करना होगा कि वह लोकशाही में रहना चाहती है या राजशाही में।

-देवेंद्र गौतम

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