हास्य-व्यंग्य
हमारे आदरणीय गृहमंत्री आदरणीय अमित शाह जी दूरबीन के शौकीन है। उसका बखूबी इस्तेमाल करते हैं। अपने बंगले की छत पर जाकर देश के विभिन्न राज्यों की तरफ दूरबीन घुमा-घुमाकर स्थितियों का जायजा लेते रहते हैं। लेकिन पता नहीं उन्होंने किस कंपनी की दूरबीन खरीद रखी है कि उसमें दूर तो दूर सामने की चीज भी नज़र नहीं आती। अभी उनकी दूरबीन से देश के किसी चुनाव क्षेत्र में कांग्रेस या इंडिया गठबंधन नहीं दिखाई दे रहा है। चारों तरफ भाजपा का पताका लहराता दिख रहा है। 400 पार की जीत दिखाई दे रही है।
दो-तीन साल पहले बहुत खोजने पर भी उनकी दूरबीन बहुत खोजने के बाद भी उत्तर
प्रदेश में किसी माफिया या बाहुबली को नहीं दिखा पा रही थी। उनका कहना था कि
लड़कियां देर रात को गहनों से लदी स्कूटी पर बिना किसी डर-भय के कहीं भी निकल सकती
हैं। विधि व्यवस्था इतनी चाक चौबंद है।
सवाल है कि अगर उत्तर प्रदेश में माफिया या बाहुबली नहीं दिख रहे थे तो अतीक
अहमद और अशरफ अहमद कौन थे जिनकी पुलिस सुरक्षा घेरे में अस्पताल ले जाते समय गोली
मारकर हत्या कर दी गई। तो फिर मुख्तार अंसारी कौन थे जिनकी जेल में जहर देकर हत्या
कर देने का आरोप लगा। तो फिर जौनपुर वाले धनंजय सिंह कौन हैं जिनके जमानत पर जेल
से बाहर आने से भाजपा में बेचैनी हैं। तो फिर अफजाल अहमद कौन हैं जिनके चुनाव
लड़ने पर अदालत से रोक लगने की आशंका है। तो फिर ब्रजेश सिंह कौन हैं जो भाजपा में
हैं और जिन्हें पूर्वांचल का सबसे बड़ा डॉन कहा जाता है। जिनकी मुख्तार अंसारी के
साथ लंबे समय से गैंगवार की चर्चा गरम रही है। शाह साहब की दूरबीन में यह तमाम लोग
क्यों नज़र नहीं आ रहे थे। आखिर किस ब्रांड की दूरबीन शाह साहब के पास है।
अगर चुनाव में कांग्रेस और विपक्षी दल शाह साहब की दूरबीन के रेंज में नहीं आ
रहे हैं तो हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री को एक दिन में तीन-तीन रोड शो और जनसभाएं
क्यों करनी पड़ रही हैं। इतना झूठ क्यों बोलना पड़ रहा है। स्वयं शाह साहब देर रात
तक बैठकें कर राजनीतिक दांव-पेंच तैयार करने में क्यों लगे हुए हैं। जब सारे
मतदाता उनकी पार्टी को एकतरफा वोट दे ही रहे हैं तो परेशानी किस बात की। आराम से
चादर तानकर सो जाना चाहिए और अगले शपथ ग्रहण की तैयारी में लग जाना चाहिए।
शाह साहब बखूबी जानते हैं कि उनकी दूरबीन सच नहीं दिखा रही है। वह वही दिखा
रही है जो वे देखना चाहते हैं। जिसे देखने के लिए किसी दूरबीन या चश्मे की जरूरत
नहीं है। वह दृश्य जो उनके मन के अंदर से उङरते हैं। अगर दूरबीन जो दिखा रही है वह
सच नहीं है तो इसका मतलब है कि या तो दूरबीन गड़बड़ है या फिर उनकी आंखों में दोष
है। ऐसे दूरबीन को कूड़ेदान में फेंक देना चाहिए। झोला भर-भरकर चंदा मिला है फिर
पार्टी क्या अपने चाणक्य को एक बढ़िया दूरबीन नहीं दिला सकती।
-देवेंद्र गौतम
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