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शुक्रवार, 9 अगस्त 2019

पर्यावरण का एकमात्र रक्षक है आदिवासी समाजः डॉ रमेश पांडे


डॉ. बीरेन्द्र कुमार महतो
रांची। आज दिनांक 9 अगस्त दिन शुक्रवार को जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग रांची विश्वविद्यालय रांची में आदिवासी दिवस के मौके पर आयोजित संगोष्ठी में अपने विचार व्यक्त करते हुए कार्यक्रम के मुख्य अतिथि रांची विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ रमेश कुमार पांडे ने कहा कि आज पूरे विश्व में यदि पर्यावरण की रक्षा अगर कोई करता है तो वह है आदिवासी समाज। आदिवासी समाज ही एक ऐसा समाज है जो सभ्य समाज को जीने का सलीका सिखाया। आज पर्यावरण में, वातावरण में जो भी गड़बड़ियां पैदा हो रही हैं वह पर्यावरण के दूषित होने से हो रही है। उन्होंने कहा कि सभ्य समाज के द्वारा अपनाई गई तौर तरीके के चलते ही आज पर्यावरण संकट गहराया है। उन्होंने जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग की सराहना करते हुए कहा कि टीआरएल विभाग जनजातीय भाषा और संस्कृति का हमेशा से संरक्षक रहा है। इस विभाग से कई आंदोलनों को बल मिला है। कई आंदोलनों की अगुवाई की है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में सभी 9 भाषाओं में अब अलग-अलग डिग्रियां दी जाएंगी ताकि भविष्य में छात्रों को किसी भी तरह की कोई कठिनाइयों का सामना ना करना पड़े।
रांची विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ अमर कुमार चौधरी ने कहा कि आज पूरी दुनिया बची है, हमारी प्रकृति बची है, हमारी संस्कृति बची है, तो इसे बचाए रखने में दुनिया के आदिवासियों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। हमें उनके इस योगदान को भूलना नहीं चाहिए। विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर हमें आदिवासियों की संस्कृति, उनकी भाषा, उनके अस्तित्व की रक्षा, उनमें अशिक्षा कैसे दूर हो, इन तमाम बातों पर गहन मंथन, चिंतन करने की आवश्यकता है।
कार्यक्रम में आए अतिथियों का स्वागत करते हुए जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के विभागाध्यक्ष डॉक्टर त्रिवेणी नाथ साहू ने कहा कि विश्व आदिवासी दिवस ऐतिहासिक दिवस है। यह दिवस आदिवासियों के विकास और उत्थान के लिए शुरू किया गया, साथ ही आदिवासियों के पिछड़ेपन को दूर कर उन्हें आगे बढ़ाने का संकल्प लेने का यह दिन है। हमें उन्हें समाज के मुख्यधारा में जोड़ने का प्रयत्न करना चाहिए। उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज में शिक्षा का अपना तौर तरीका है। उनकी अपनी सामाजिक संस्थाएं, जिसके माध्यम से उन्हें शिक्षित किया जाता है। जिसे मुख्यधारा का समाज दरकिनार कर दिया है। हम आदिवासियों को हेय दृष्टि से देखते हैं परंतु हमें यह कतई नहीं भूलना चाहिए कि आज हमारी प्रकृति, संस्कृति बची हुई है, तो इसमें आदिवासियों का बहुत बड़ा योगदान है।
विषय प्रवेश कराते हुए जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के प्राध्यापक डॉ उमेश नन्द तिवारी ने कहा कि आदिवासी दिवस सही मायने में आदिवासियों के उत्थान और उनके अस्तित्व की रक्षा हेतु मनाया जाता है। आदिवासी में विकास नहीं हो पाया है इसलिए उनके चहुमुखी विकास को केंद्र में रखकर उनका उत्थान और संरक्षण की दिशा में पहल करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि आदिवासी कोई एक धर्म में बंधे हुए नहीं है। यह सभी धर्म एवं जाति में पाए जाते हैं। पूरे दुनिया के आदिवासियों को एक सूत्र में बांधने के ख्याल से यह दिवस मनाया जाता है।
 इस मौके पर जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ अशोक कुमार बड़ाईक ने स्वागत गान प्रस्तुत किया तथा विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ अंजू कुमारी साहू, दिनेश कुमार दिनमणि, कर्म सिंह मुंडा आदि ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए। मंच संचालन डॉक्टर सरस्वती गगराई ने किया। इस अवसर पर मुख्य रूप से डॉक्टर हरी उरांव, डॉक्टर राकेश किरण, डॉ बीरेन्द्र कुमार महतो, डॉक्टर निरंजन कुमार, सुबास साहु, शकुंतला बेसरा, अमित आशीष तिग्गा, योगेश कुमार महतो, किशोर सुरिन, संतोष कुमार भगत, विजय कुमार साहु के अलावा बड़ी संख्या में विभाग के सहायक प्राध्यापक, शोधार्थी एवं छात्र छात्राएं मौजूद थे।

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