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सोमवार, 19 नवंबर 2018

स्वस्थ समाज के लिए सकारात्मक सोच जरूरी : आदित्य विक्रम



 * सामाजिक समरसता के लिए समर्पित
 स्वस्थ समाज के लिए सकारात्मक सोच जरूरी है।समाज के नवनिर्माण के लिए युवाओं को आगे आने की आवश्यकता है। इसके हिमायती हैं राजधानी के लालपुर निवासी समाजसेवी आदित्य विक्रम जायसवाल। वह कहते हैं कि युवाओं के कंधे पर देश का भविष्य टिका है। राष्ट्र के नवनिर्माण में युवाओं की महत्वपूर्ण भूमिका है। युवाओं की सहभागिता से ही समाज व देश सशक्त होता है। अक्सर राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्रों में यह बातें सुनने को मिलती है। इसे साकार कर रहे हैं युवा उद्यमी आदित्य विक्रम जायसवाल। आदित्य की राजनीतिक व सामाजिक पृष्ठभूमि रही है। उनके दादा और परदादा एकीकृत बिहार के समय दिग्गज राजनेता के साथ साथ लोकप्रिय समाजसेवी भी थे। अपने दादा रांची नगर निगम के पूर्व मेयर स्व.शिवनारायण जायसवाल व पिता मनोरंजन जायसवाल से प्रेरित होकर आदित्य भी राजनीति व  समाजसेवा के क्षेत्र में आगे बढ़ने लगे। तकरीबन पांच पुश्तों से कांग्रेस पार्टी के  झंडाबरदार रहे जायसवाल परिवार की लोकप्रियता सभी समुदायों के बीच है। उनकी राजनीति व समाजसेवा में रुचि और सक्रियता देखकर कांग्रेस पार्टी ने उन्हें सचिव की जिम्मेदारी सौंपी। जिसे उन्होंने बखूबी निभाया। पार्टी के बैनर तले समाज को स्वस्थ रखने का अभियान चलाया। शहर के विभिन्न मुहल्ले में राजीव गांधी मेगा हेल्थ कैंप का आयोजन कर स्वास्थ्य के प्रति लोगों को जागरूक किया जा रहा है। वह  इंपावर झारखंड नामक सामाजिक संस्था का गठन कर युवाओं को अपने साथ जोड़कर सामाजिक समरसता और सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल पेश कर रहे हैं। पेशे से व्यवसायी आदित्य समाजसेवा को सर्वोपरि मानते हैं। उनका मानना है कि स्वच्छ और स्वस्थ समाज निर्माण में युवाओं की सहभागिता से सफलता संभव है। युवाओं को समाज की मुख्य धारा से जुड़कर राष्ट्र निर्माण में जुटे रहने की आवश्यकता है। आदित्य में टीम लीडरशिप की अद्भुत क्षमता है। वह शहर की कई सामाजिक संगठनों से भी जुड़े हैं। शहर की सामाजिक और धार्मिक गतिविधियों में सक्रियता से भाग लेते हैं। उनका कहना है कि दलगत राजनीति से ऊपर उठकर समाजसेवा का भाव रखना सबों का कर्तव्य है। राजनीति और समाजसेवा दोनों को अलग अलग रखना चाहिए। युवाओं के लिए वह प्रेरणास्रोत हैं। आदित्य बताते हैं कि समाज के सभी वर्गों के लोगों को साथ लेकर सामाजिक विकास के लिए प्रयासरत रहना चाहिए।इससे देश के सशक्तिकरण को बढ़ावा मिलेगा।

शुक्रवार, 16 नवंबर 2018

युवाओं का भविष्य संवार रहे निरूप कुमार प्रधान



* परोपकार में समर्पित किया जीवन

अपने भविष्य की चिंता छोड़ गरीब व मेघावी छात्रों के जीवन को संवारने का बीड़ा उठाना महानता कहलाता है। प्रतिभाशाली छात्रों के सुनहरे भविष्य निर्माण में अपना सबकुछ न्योछावर कर देना आसान नहीं है। लेकिन इसे सच कर दिखाया है चक्रधरपुर निवासी युवाओं के मार्गदर्शक व प्रेरणास्रोत निरूप कुमार प्रधान ने। श्री प्रधान का लक्ष्य गरीब और आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को नि:शुल्क शिक्षा देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाना है। उनकी प्रारंभिक शिक्षा चक्रधरपुर स्थित कारमेल हाई स्कूल से हुई। वहीं के आरपीएस कॉलेज से इंटर पास किया। ग्रैजुएशन जेएलएन कॉलेज से किया। वह पढ़ने में काफी तेज रहे। मैट्रिक से लेकर ग्रैजुएशन तक कक्षा मे अव्वल रहे। मैट्रिक की परीक्षा में स्कूल टॉपर का खिताब हासिल किया। उन्होंने पढ़ाई के बाद निजी व सरकारी नौकरियों में ज्वाइन किया, लेकिन नौकरी उन्हें रास नहीं आई। बैंक, रेलवे सहित कई नौकरियों को तिलांजलि दे दी। बचपन से ही उनमें गरीबों के प्रति दया का भाव रहा। उनके पिता बंशीधर प्रधान रेलवे में काम करते हैं। गृहस्थ परिवार से आते हैं। उन्होंने गरीब व मेघावी छात्रों को पैसे के अभाव में आगे पढ़ाई नहीं कर पाने की समस्या से अवगत होते हुए चक्रधरपुर में शिक्षा कोचिंग सेंटर की स्थापना की है। यहां वह गरीब छात्रों को न सिर्फ कोचिंग देते हैं, बल्कि उन्हें नौकरी दिलाने में भी हरसंभव सहयोग करते हैं। वह कहते हैं कि बेरोजगारी का दंश झेलना अधिकतर युवाओं की पीड़ा है। गरीबी व अभावग्रस्त युवाओं को सही मार्गदर्शन देना व उन्हें रोजगार से जोड़ना श्री प्रधान का लक्ष्य है। वह बताते हैं कि गरीबी के कारण कई छात्र अपना भविष्य संवारने में सफल नहीं हो पाते हैं। उन्हें किसी सहारे की जरूरत होती है। ऐसे में परोपकार की भावना से ओतप्रोत होकर जरूरतमंद लोगों की मदद करना चाहिए। वह कहते हैं कि गरीब होना गुनाह नहीं, गरीबी में जीना गुनाह है। वर्ष 2014 में स्थापित उनके कोचिंग सेंटर से  प्रशिक्षित छात्रों में से अबतक भारतीय सेना में 170, सीआरपीएफ में 60, एस एस बी में 6 छात्र नौकरी कर रहे हैं। फिलवक्त तकरीबन 300 गरीब व मेधावी छात्र उनके कोचिंग सेंटर में विभिन्न पाठ्यक्रमों की शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। युवाओं के सुनहरे सपने को साकार करने में निरूप प्रधान ने अपनी सारी ऊर्जा लगा दी है। गरीब और मेधावी युवा उन्हें अपना मसीहा मानते हैं। उनके कोचिंग सेंटर में झारखंड के अलावा पड़ोसी राज्यों के भी गरीब, प्रतिभाशाली छात्र प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। श्री प्रधान कहते हैं कि सक्षम की सहायता सब करते हैं, कोई असहाय व बेसहारों की सहायता कर उनके जीवन संवारने में समय दे, तो महानता है।
(रांची से प्रकाशित हिन्दी सांध्य दैनिक मेट्रो रेज से साभार)

सोमवार, 17 सितंबर 2018

इंसानियत को सबसे बड़ा मजहब मानते हैं मौलाना हसन रिजवी



* अनजान शहर में बनाई विशिष्ट पहचान

रांची। दिल में लगन और कुछ करने का जज्बा हो तो कोई काम मुश्किल नहीं है। मेहनत और ईमानदारी के बलबूते अनजान जगह मे भी अपनी विशिष्ट पहचान बनाने मे सफल हो सकते हैं। इसे चरितार्थ कर दिखाया है रांची शहर के मस्जिद जाफरिया के इमाम व खतीब मौलाना हाजी सैय्यद तहजिबुल हसन रिजवी ने। श्री रिजवी ने महज 45 साल की उम्र में जो मुकाम हासिल कर लिया है, वह सभी समुदाय के लोगों के लिए एक मिसाल है। धार्मिक, आध्यात्मिक और सामाजिक क्षेत्र में उन्होंने काफी कम समय में जो पहचान बनाई है, अनुकरणीय है, प्रेरणास्रोत है। देश के प्रख्यात समाजसेवी बनारस (उत्तर प्रदेश ) निवासी और पेशे से सरकारी अमीन सैयद कबीर हसन (अब स्व.) के सुपुत्र तहजिबुल हसन रिजवी के सिर से मां का साया महज 6 दिन में ही उठ गया। उनकी परवरिश उनके मौसा-मौसी ने की। मौसा मोलवी थे। घर में धार्मिक माहौल था। रिजवी उसी माहौल में पले, बढ़े, पढ़े। यहीं से धर्म के प्रति रुझान बढ़ा। वहीं के मदरसा से मौलवी (आलिम-फाजिल ) की डिग्री ली। उत्तर प्रदेश के मऊ स्थित मदरसा हुसैनिया में प्राचार्य के पद पर रहे। इसी बीच रांची के एक धर्मानुरागी और समाजसेवी  स्व.अनवर साहब के पुत्र खुर्शीद अनवर से नवम्बर 1999 में भागलपुर में मुलाकात हुवी,वह तहजिबुल हसन रिजवी के धार्मिक ज्ञान और धर्म के प्रति आस्था से काफी प्रभावित हुए। उन्होंने रिजवी साहब को रांची स्थित उनके पैतृक आवास स्थान, मेन रोड स्थित विश्वकर्मा मंदिर लेन मेंं ही शिया समुदाय के मुसलमानों को नमाज पढ़ाने के लिए आमंत्रित किया।मौलाना रांची आये जहा एडवोकेट यावर हुसैन ने उनका स्वागत किया। बताते हैं कि उस समय शिया समुदाय का एक भी मस्जिद या इमामबाड़ा (नमाज स्थल) रांची में नहीं था। अलबत्ता कर्बला चौक के समीप अंसार नगर में शिया समुदाय के कुछ लोगों के प्रयास से मस्जिद निर्माण के लिए जमीन खरीद ली गई थी। श्री रिजवी बताते हैं कि उनकी पहल पर 25 दिसंबर 1999 को मस्जिद निर्माण की बुनियाद रखी गई। उस साल ईद के मौके पर वहां अस्थायी शेड निर्माण कर शिया समुदाय की ओर से पहली नमाज अदा की गई। यह सिलसिला तकरीबन छह साल तक चलता रहा। इस बीच शिया समुदाय के अलावा मुस्लिम धर्मावलंबियों के अन्य समुदायों (सुन्नी, बरेलवी, वोहरा जमात, देवबंदी, अहले हदीस आदि ) को श्री रिजवी ने एकजुट किया। उनके इस मुहिम में स्थानीय समाजसेवियों ने सहयोग किया। इसका परिणाम यह हुआ कि अंसार नगर में भव्य धार्मिक स्थल मस्जिद का निर्माण संभव हो सका। तत्कालीन राज्यपाल सैय्यद सिब्ते रजी व राज्य अल्पसंख्यक आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष कमाल खान के हाथों 7 फरवरी 2006 को मस्जिद का उद्घाटन हुआ। वह अद्भुत व अनोखा दृश्य था,जब मुस्लिम धर्मावलंबियों के सभी वर्ग व समुदाय के लोगों ने एकजुट होकर दिये जलाकर मस्जिद के उद्घाटन समारोह में शिरकत किया। इसकी पहल रिजवी साहब ने की थी। लोग उनकी व्यवहार कुशलता के कायल रहे। सांप्रदायिक सौहार्द्र बनाए रखने में उनका कोई सानी नहीं। धर्म के प्रति उनकी आस्था देखें कि वह मात्र 45 साल की उम्र में ही अब तक 12 बार हज यात्रा कर चुके हैं। इस्लामिक इतिहास का अध्ययन करने के उद्देश्य से ईरान, ईराक, सीरिया, बहरीन, कुवैत, दुबई, शारजाह, बंगला देश की यात्रा कर चुके हैं। उनकी देखरेख में विभिन्न जगहों पर 43 मस्जिदें और गरीबों के लिए 22 आशियाने का निर्माण किया जा चुका है। जनसहयोग से अब तक विभिन्न जगहों पर लगभग पांच हजार चापानल लगवा चुके हैं। सभी समुदायों के धार्मिक आयोजनों में बढ़चढ़कर हिस्सा लेना और सांप्रदायिक सौहार्द्र बनाए रखने में उनकी अहम भूमिका रहती है। वह कहते हैं कि मजहब से भी बड़ा इंसानियत होता है। जिसके भीतर इंसानियत होती है, वही धर्म के प्रति भी वफादार होता है।  भेदभाव मजहबी देन नहीं, बल्कि विचारों की देन है।

स्वर्ण जयंती वर्ष का झारखंड : समृद्ध धरती, बदहाल झारखंडी

  झारखंड स्थापना दिवस पर विशेष स्वप्न और सच्चाई के बीच विस्थापन, पलायन, लूट और भ्रष्टाचार की लाइलाज बीमारी  काशीनाथ केवट  15 नवम्बर 2000 -वी...