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सोमवार, 17 सितंबर 2018

इंसानियत को सबसे बड़ा मजहब मानते हैं मौलाना हसन रिजवी



* अनजान शहर में बनाई विशिष्ट पहचान

रांची। दिल में लगन और कुछ करने का जज्बा हो तो कोई काम मुश्किल नहीं है। मेहनत और ईमानदारी के बलबूते अनजान जगह मे भी अपनी विशिष्ट पहचान बनाने मे सफल हो सकते हैं। इसे चरितार्थ कर दिखाया है रांची शहर के मस्जिद जाफरिया के इमाम व खतीब मौलाना हाजी सैय्यद तहजिबुल हसन रिजवी ने। श्री रिजवी ने महज 45 साल की उम्र में जो मुकाम हासिल कर लिया है, वह सभी समुदाय के लोगों के लिए एक मिसाल है। धार्मिक, आध्यात्मिक और सामाजिक क्षेत्र में उन्होंने काफी कम समय में जो पहचान बनाई है, अनुकरणीय है, प्रेरणास्रोत है। देश के प्रख्यात समाजसेवी बनारस (उत्तर प्रदेश ) निवासी और पेशे से सरकारी अमीन सैयद कबीर हसन (अब स्व.) के सुपुत्र तहजिबुल हसन रिजवी के सिर से मां का साया महज 6 दिन में ही उठ गया। उनकी परवरिश उनके मौसा-मौसी ने की। मौसा मोलवी थे। घर में धार्मिक माहौल था। रिजवी उसी माहौल में पले, बढ़े, पढ़े। यहीं से धर्म के प्रति रुझान बढ़ा। वहीं के मदरसा से मौलवी (आलिम-फाजिल ) की डिग्री ली। उत्तर प्रदेश के मऊ स्थित मदरसा हुसैनिया में प्राचार्य के पद पर रहे। इसी बीच रांची के एक धर्मानुरागी और समाजसेवी  स्व.अनवर साहब के पुत्र खुर्शीद अनवर से नवम्बर 1999 में भागलपुर में मुलाकात हुवी,वह तहजिबुल हसन रिजवी के धार्मिक ज्ञान और धर्म के प्रति आस्था से काफी प्रभावित हुए। उन्होंने रिजवी साहब को रांची स्थित उनके पैतृक आवास स्थान, मेन रोड स्थित विश्वकर्मा मंदिर लेन मेंं ही शिया समुदाय के मुसलमानों को नमाज पढ़ाने के लिए आमंत्रित किया।मौलाना रांची आये जहा एडवोकेट यावर हुसैन ने उनका स्वागत किया। बताते हैं कि उस समय शिया समुदाय का एक भी मस्जिद या इमामबाड़ा (नमाज स्थल) रांची में नहीं था। अलबत्ता कर्बला चौक के समीप अंसार नगर में शिया समुदाय के कुछ लोगों के प्रयास से मस्जिद निर्माण के लिए जमीन खरीद ली गई थी। श्री रिजवी बताते हैं कि उनकी पहल पर 25 दिसंबर 1999 को मस्जिद निर्माण की बुनियाद रखी गई। उस साल ईद के मौके पर वहां अस्थायी शेड निर्माण कर शिया समुदाय की ओर से पहली नमाज अदा की गई। यह सिलसिला तकरीबन छह साल तक चलता रहा। इस बीच शिया समुदाय के अलावा मुस्लिम धर्मावलंबियों के अन्य समुदायों (सुन्नी, बरेलवी, वोहरा जमात, देवबंदी, अहले हदीस आदि ) को श्री रिजवी ने एकजुट किया। उनके इस मुहिम में स्थानीय समाजसेवियों ने सहयोग किया। इसका परिणाम यह हुआ कि अंसार नगर में भव्य धार्मिक स्थल मस्जिद का निर्माण संभव हो सका। तत्कालीन राज्यपाल सैय्यद सिब्ते रजी व राज्य अल्पसंख्यक आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष कमाल खान के हाथों 7 फरवरी 2006 को मस्जिद का उद्घाटन हुआ। वह अद्भुत व अनोखा दृश्य था,जब मुस्लिम धर्मावलंबियों के सभी वर्ग व समुदाय के लोगों ने एकजुट होकर दिये जलाकर मस्जिद के उद्घाटन समारोह में शिरकत किया। इसकी पहल रिजवी साहब ने की थी। लोग उनकी व्यवहार कुशलता के कायल रहे। सांप्रदायिक सौहार्द्र बनाए रखने में उनका कोई सानी नहीं। धर्म के प्रति उनकी आस्था देखें कि वह मात्र 45 साल की उम्र में ही अब तक 12 बार हज यात्रा कर चुके हैं। इस्लामिक इतिहास का अध्ययन करने के उद्देश्य से ईरान, ईराक, सीरिया, बहरीन, कुवैत, दुबई, शारजाह, बंगला देश की यात्रा कर चुके हैं। उनकी देखरेख में विभिन्न जगहों पर 43 मस्जिदें और गरीबों के लिए 22 आशियाने का निर्माण किया जा चुका है। जनसहयोग से अब तक विभिन्न जगहों पर लगभग पांच हजार चापानल लगवा चुके हैं। सभी समुदायों के धार्मिक आयोजनों में बढ़चढ़कर हिस्सा लेना और सांप्रदायिक सौहार्द्र बनाए रखने में उनकी अहम भूमिका रहती है। वह कहते हैं कि मजहब से भी बड़ा इंसानियत होता है। जिसके भीतर इंसानियत होती है, वही धर्म के प्रति भी वफादार होता है।  भेदभाव मजहबी देन नहीं, बल्कि विचारों की देन है।

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