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शनिवार, 10 नवंबर 2018

.....तो सदानों को भी मिलेगा न्यायःराजेंद्र प्रसाद


रांची।मुख्यमंत्री रघुवर दास के द्वारा घाघरा के बदरी गांव में स्व कार्तिक उरांव जतरा में स्व कार्तिक उरांव के सपनों के झारखण्ड बनाने की बात कहे जाने पर सदान मोर्चा के केन्द्रीय अध्यक्ष राजेन्द्र प्रसाद ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा यदि मुख्यमंत्री रघुवर दास ऐसा झारखण्ड बनाते हैं तो सदानों को भी न्याय मिलेगा और सदानों को भी खुशी होगी। मोर्चा अध्यक्ष राजेन्द्र प्रसाद ने कहा कार्तिक उरांव ने जनजाति और सदानों के बीच कभी भी भेद भाव नहीं किया। प्रसाद ने कहा स्व कार्तिक उरांव जनजाति और सदान को एक दृष्टिकोण से देखते थे और दोनों वर्गों की समुचित विकास की चिन्ता उन्हें रहती थी। प्रसाद ने यह भी कहा स्व कार्तिक उरांव भ्रष्टाचार के भी शक्त खिलाफ थे और वे अपने निजी जीवन में भी इस बात का ख्याल रखा। प्रसाद ने कहा आज कार्तिक उरांव जीवित होते तो सदानों की झारखण्ड में उपेक्षा नहीं होती। प्रसाद ने यह भी कहा झारखण्ड बनने के बाद जिस तरह से सदानों की उपेक्षा हुई है। इससे देखकर कार्तिक उरांव की आत्मा रोती होगी।

चित्रगुप्त विसर्जन शोभा यात्रा में शामिल हुए सुबोधकांत

पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय तीन राज्यों के चुनाव प्रभारी होने के नाते अति व्यस्त हैं। इसके बावजूद वे समय निकाल कर चित्रगुप्त भगवान की प्रतिमाओं के विसर्जन के दौरान आयोजित शोभा यात्रा में शामिल हुए और समाज के लोगों को एकजुट किया। उनके निर्देश पर रांची के सभी चित्रगुप्त पूजा समितियों के सदस्यों ने एकजुट होकर सामूहिक रूप से शोभायात्रा निकाली।



श्री चित्रगुप्त भगवान के प्रतिमाओं का सामूहिक विसर्जन के दौरान राजेन्द्र चौक डोरंडा राँची में।



अब राज्य में ही होगा कैंसर का बेहतर इलाजः रघुवर दास



मुख्यमंत्री ने टाटा ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज के चेयरमैन रतन टाटा के साथ सुकुरहुट्टू में किया रांची कैंसर हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर का शिलान्यास
टाटा ट्रस्ट 23.5 एकड़ जमीन लीज पर लेकर करेगी हॉस्पिटल का निर्माण
 राज्य सरकार और टाटा ट्रस्ट का सामूहिक उपक्रम होगा यह अस्पताल
302 बेड वाले अस्पताल में 50 सीट राज्य के लोगों हेतु आरक्षित होगा, 14 ऑपरेशन थिएटर, 28 बेड का ICU बेड और ब्लड बैंक भी
स्वास्थ्य सचिव और मैनेजिंग ट्रस्टी टाटा ट्रस्ट आर वेंकतरमनं के बीच हुआ एमओयू
           
रांची। झारखंड की राजधानी रांची में शनिवार 10 नवंबर को रांची कैंसर अस्पताल एंड रिसर्च सेंटर निर्माण की आधारशिला रखी गई। इस मौके पर मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा कि टाटा ट्रस्ट ने मोमेंटम झारखण्ड के दौरान कैंसर अस्पताल स्थापित करने की मांग को पूरा किया। आनेवाले दो वर्षों बाद राज्य के कैंसर पीड़ितों को इलाज के लिए कहीं बाहर नहीं जाना पडेगा। श्री दास ने कांके सुकुरहुट्टू में शिलान्यास समारोह में कहा कि अन्य राज्य जाने पर लोगों को होने वाली परेशानियों से अवगत थे। यही वजह रही कि मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही मैंने स्वास्थ्य सुविधाओं हेतु कार्य शुरू किया। 4 साल में 6 मेडिकल कॉलेज, एम्स निर्माण कार्य प्रारंभ करवाया। आज कैंसर अस्पताल निर्माण कार्य का शुभारंभ कर दबी हुई कसक भी समाप्त हो गई।

*80% लाभांश जनकल्याण में होता है खर्च*
सीएम रघुवर दास ने कहा कि टाटा समूह द्वारा अपने लाभांश का 80%राशि जनहित के कल्याण में खर्च किया जाता है। यह परंपरा 100 वर्ष पुरानी है। क्योंकि जमशेदजी टाटा ने संदेश दिया था कि जो भी धन हम अर्जित कर रहें हैं वह समाज से प्राप्त किया हुआ है। इस लाभांश का हिस्सा समाज के उत्थान में लगाना चाहिए। उस परंपरा का निर्वहन आज भी हो रहा है। अन्य औद्योगिक घरानों को भी प्रेरणा लेना चाहिए। श्री दास ने बताया कि स्वाधीनता से बहुत पहले ही भारत में स्टील उत्पादन करने हेतु कंपनी ने कार्य प्रारंभ किया। आजाद भारत के बाद जमशेदजी ने राष्ट्र और राज्य की समृद्धि हेतु प्रयास प्रारम्भ कर दिये। हर क्षेत्र में समूह द्वारा काम हो रहा है।

*टाटा ट्रस्ट ग्रामीण विकास में भी सहायक बनें*
मुख्यमंत्री ने कहा कि जिस तरह मेरे अनुरोध को टाटा समूह ने कैंसर अस्पताल का शिलान्यास कर पूरा किया। उस तरह झारखण्ड के ग्रामीण क्षेत्र के सर्वांगीण विकास में सहायक बनें। राज्य के 1 हजार पंचायत के गांव को विकसित करने, कोल्हान क्षेत्र में स्ट्रीट लाइट का अधिष्ठान करने में मदद करे। राज्य सरकार खर्च होने वाली राशि का 50 % ट्रस्ट को देगी। सरकार, जनता और कारपोरेट शक्ति मिलकर राज्य की गरीबी समाप्त करने की सार्थक पहल करे।

चिकित्सक ईमानदारी से कार्य करें, आपको भगवान ने चिकित्सक बनाया
मुख्यमंत्री ने कहा कि जल सहिया बहनों के अथक प्रयास से राज्य में शिशु और मातृ मृत्यु दर में कमी दर्ज की गई है। राज्य के चिकित्सक भी ईमानदारी से कार्य करें। आपको भगवान ने चिकित्सक बनाया है। आप सदर अस्पताल और रिम्स नहीं जाना चाहते और मरीज आपकी बाट जोहते हैं। आप समाज के लिए कुछ करें। जीवन एक बार प्राप्त होता है इसका अंश परोपकार में भी लगाएं। सदर अस्पताल और रिम्स नहीं जाना यह ठीक नहीं है। अप्रैल से OPD का कार्य शुरू होगा

स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी* ने कहा कि आज स्वर्णिम दिन है। कैंसर पीड़ितों के लिए टाटा ट्रस्ट ने नेक कार्य किया है। अस्पताल की सफलता को देख कर सीटों को बढ़ाया जाएगा। पड़ोसी राज्य के लोग भी इस अस्पताल से लाभान्वित होंगे। आने वाले दिनों में कैंसर का आधुनिक इलाज सुनिश्चित हुआ। देवघर में बन रहे एम्स का कार्य द्रुतगति से हो रहा है। अप्रैल माह से OPD का शुभारंभ होगा।

*कैंसर अस्पताल लोगों के लिए संजीवनी साबित होगा--रतन एन टाटा*
इस अवसर पर *पदम विभूषण रतन एन टाटा ने कहा कि राज्य के मुख्यमंत्री का प्रयास रंग लाया।* मुख्यमंत्री ने मोमेंटम झारखण्ड के दौरान कैंसर अस्पताल प्रारंभ करने की बात कही थी। डेढ़ साल बाद दूरदर्शी मुख्यमंत्री का प्रयास सफल हुआ। यह अस्पताल नार्थ ईस्ट के लोगों के लिए संजीवनी साबित होगा। रांची आकर इस कार्य को सम्पन कर मैं खुश हूं। हर वर्ष लाखों लोग इस बीमारी से मर रहें हैं। हमारी कोशिश है कि आने वाले वर्षों में कैंसर से मरने वाले लोगों की संख्या में कमी की जाए। इस निमित कार्य और अनुसंधान हो रहें हैं।

इस अवसर पर सांसद रामटहल चौधरी, राज्यसभा सांसद महेश पोद्दार, मुख्य सचिव सुधीर त्रिपाठी, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव डॉ सुनील कुमार वर्णवाल, प्रधान सचिव, स्वास्थ्य नितिन मदन कुलकर्णी, प्रबंध निदेशक टाटा समूह टी नरेंद्रन, मैनेजिंग ट्रस्टी आर वेंकतरामन समेत टाटा समूह व टाटा स्टील के पदाधिकारी मौजूद थे।

इतनी मीडिया विरोधी क्यों है मोदी सरकार






 ढाई लाख से अधिक अखबारों के टाइटिल रद्द
804 अखबार डीएवीपी की विज्ञापन सूची के बाहर

नरेंद्र मोदी की सरकार ने 2016-17 के दौरान आरएनआई और डीएवीपी के नियमों में बदलाव के जरिए छोटे-मंझोले अखबारों को बंदी के कगार पर पहुंचा दिया साथ ही इलेक्ट्रोनिक और डिजिटल मीडिया के अनुकूलन की पूरी व्यवस्था कर ली। यह कोई नई बात नहीं है। केंद्र में जब भी पूर्ण बहुमत की सरकार बनती है तो वह स्वयं को अपराजेय समझने लगती है। उसका पहला हमला मीडिया पर होता है। 1980 में जब इंदिरा गांधी की सरकार शर्मनाक हार के बाद पूरे दम-खम के साथ वापस लौटी तो वे जनता सरकार के ढाई वर्षों के दौरान अखबारों की भूमिका से बेहद खार खाई हुई थीं। उन्होंने अखबारों को सबक सिखाने के लिए कई उपाय किए। एक तो न्यूजप्रिंट का मामला अधर में लटकाये रखा। दूसरे टीवी के अधिकतम विस्तार की नीति अपनाई ताकि प्रिंट मीडिया का महत्व घटे। उन्होंने यह कोशिश नहीं की कि अखबारी कागज देश में बन कर सस्ता मिले या विदेशों से आयातित न्यूजप्रिंट का दाम कम हो। गरीब और मध्यमवर्गीय जनता को अखबार और पत्र पत्रिकाएं सस्ते दामों पर मिलें। उन्होंने ऐसी नीति अपनाई कि अखबारों और पत्र-पत्रिकाओं के दाम बेहिसाब बढ़ते चले गए। उधर जनहित के नाम पर कलर टीवी और इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों पर रियायतें दी गईं जो पूरी तरह सरकार के नियंत्रण में था।
         
नरेंद्र मोदी सरकार मीडिया से खार तो नहीं खाई हुई थी लेकिन संभवतः वे किसी किस्म की आलोचना सुनने के आदी नहीं थे। या मीडिया उनके एजेंडे में बाधा डाल सकता था। उन्होंने ऐसी सख्ती बरती कि छोटे-मंझोले अखबारों का संचालन मुश्किल हो गया। इससे आमजन की आवाज बुलंद करने वाली पत्र-पत्रिकाएं बंद होने लगीं उनसे जुड़े लाखों लोग बेरोजगार हो गए। बड़े मीडिया घरानों से सरकार को परेशानी नहीं थी क्योंकि वे पूरी तरह कारपोरेट के चंगुल में आ चुके थे। जनता के मुद्दों को दरकिनार कर वे रागदरबारी गाने लगे थे। सरकार को उन छोटे-मंझोले अखबारों से परेशानी थी जो अपने सरकारी तंत्र के अंदर की गड़बड़ियों का पर्दाफाश करते थे। जरूर उनके बीच ऐसे तत्व भी थे जो अखबारों पत्रिकाओं की आड़ में सिर्फ और सिर्फ सरकारी विज्ञापन हासिल करने की जुगत में लगे रहते थे। जिनका पत्रकारिता से दूर-दूर तक कुछ लेना-देना नहीं रहता था। जो ब्लैकमेलिंग और उगाही के धंधे में भी लिप्त थे। लेकिन घुन का सफाया करने के नाम पर गेहूं के गोदाम में जहर का छिड़काव कर दिया गया।

मोदी सरकार के नए नियमों के बाद आरएनआई और डीएवीपी काफी सख्त हो गए। समाचार पत्र के संचालन में जरा भी नियमों की अवहेलना होने पर आरएनआई समाचार पत्र के टाईटल पर रोक लगाने लगा। उधर, डीएवीपी विज्ञापन देने पर प्रतिबंध लगाने को तत्पर हुआ। देश के इतिहास में पहली बार लगभग 269,556 समाचार पत्रों के टाइटल निरस्त कर दिए गए और 804 अखबारों को डीएवीपी ने अपनी विज्ञापन सूची से बाहर निकाल दिया गया। आरएनआई ने समाचार पत्रों के टाइटल की समीक्षा में समाचार पत्रों की विसंगतियां तलाश कर प्रथम चरण में  प्रिवेंशन ऑफ प्रापर यूज एक्ट 1950 के तहत देश के 269,556 समाचार पत्रों के टाइटल निरस्त कर दिए। इसमें सबसे ज्यादा महाराष्ट्र के 59703, और फिर उत्तर प्रदेश के 36822 पत्र-पत्रिकाएं शामिल थीं। इसके अलावा बिहार के 4796, उत्तराखंड के 1860, गुजरात के 11970, हरियाणा के 5613, हिमाचल प्रदेश के 1055, छत्तीसगढ़ के 2249, झारखंड के 478, कर्नाटक के 23931, केरल के 15754, गोआ के 655, मध्य प्रदेश के 21371, मणिपुर के 790, मेघालय के 173, मिजोरम के 872, नागालैंड के 49, उड़ीसा के 7649, पंजाब के 7457, चंडीगढ़ के 1560, राजस्थान के 12591, सिक्किम के 108, तमिलनाडु के 16001, त्रिपुरा के 230, पश्चिम बंगाल के 16579, अरुणाचल प्रदेश के 52, असम के 1854, लक्षद्वीप के 6, दिल्ली के 3170 और पुडुचेरी के 523 पत्र-पत्रिकाओं के टाइटिल रद्द किए गए।

अब पांच विधानसभा और लोकसभा के चुनाव सामने हैं। भारी संख्या में जनता की आवाज़ उठाने वाले छोटे-मंझोले अखबार बंद हो चुके हैं लेकिन उनकी बंदी से बेरोजगार हुए पत्रकार किसी न किसी माध्यम से अपनी कलम चलाते रहे हैं। कुछ अखबार उल्टी सांस लेते हुए भी जीवित बच गए हैं। मोदी की अपराजेय होने की खुशफहमी कई मौकों पर भंग हो चुकी है। दामन पर कई दाग भी लग चुके हैं। जिन्हें जनता देख रही है। अपने मीडिया विरोधी चेहरे को लेकर यह सरकार चुनाव में कौन सा चमत्कार दिखा पाती है, यही देखना है।



डीएवीपी विज्ञापन नीति पर लीपा का पत्र

(इसे 25 अगस्त 2016 को जारी किया गया था। )



मेरे साथियों,
पिछले दो महीने से डीएवीपी एड पॉलिसी को लेकर हम सभी परेशान हैं और इस पॉलिसी के विरोध में लीपा द्वारा अनेक कोशिश की गयी बल्कि हम सबने अपने अपने स्तर पर कोशिश की। लेकिन आज मैं आपसे कुछ ऐसे बिन्दुओं पर बात करने जा रहा हूँ जो शायद बहुत से साथियों को ना पसंद आये और कई लोग लीपा पर अनर्गल आरोप लगाने लगें, मेरे खिलाफ अभियान चलायें, मेरा पुतला फूकें और ना जाने क्या क्या हो..
लेकिन मैं पूछना चाहता हूँ कि डीएवीपी की नई एड पॉलिसी आखिर किसके खिलाफ है? क्या यह वाकई स्माल और मीडियम अख़बारों के खिलाफ है? क्या वास्तव में 25000 से ज्यादा कॉपी छापने वाले अखबारों को सरकार के सामने गिड़गिड़ाने की जरुरत है या सरकार को इन अख़बारों के सामने घुटने टेकने की जरुरत है? (लेकिन 25000 छपे तो सही) अब सवाल है ऐसी पॉलिसी आखिर आई क्यूँ, और क्या हम इस नीति पर सरकार, किसी मंत्री, सिस्टम या डीएवीपी को गाली देकर अपने आप को संतुष्ट कर सकते हैं? इन सवालों पर सबको सोचने की जरुरत है लेकिन उससे पहले मैं बताना चाहता हूँ लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन को बनाने का हमारा उद्देश्य है कि रीजनल मीडिया में कार्य करने वाले अपने वरिष्ठ साथियों के सम्मान को पुन: स्थापित करें, उनकी आर्थिक समृद्धि के लिये कोई वैकल्पिक व्यवस्था को विकसित कर सकें।
लेकिन समस्या यह है कि आज प्रकाशक और अखबार मालिक के तौर पर हमारे बीच कुछ ऐसे दलाल किस्म के लोग आ गये जिन्होंने रीजनल मीडिया के गौरवशाली इतिहास को धूमिल कर दिया है। ऐसे लोगों का पत्रकारिता या अखबार के प्रकाशन से कोई लेना देना नहीं है उनका मकसद सिर्फ पैसा या अपना रूतबा कायम करना है। ऐसे लोग उन प्रकाशकों को बदनाम कर रहे हैं जो पत्रकारिता को मिशन मानते हैं और अपने अखबार के माध्यम से जनता को न्याय दिलाने का काम करते हैं। ऐसे ही दलाल किस्म के लोगों की वजह से आज यह स्थिति आई है।
वो यह नहीं समझते कि डीएवीपी के कुछ भ्रष्ट अफसर ही पूरा राजतंत्र नहीं है और ना ही फर्जी सर्कुलेशन को चेक करना नामुमकिन है। ये तो एक उघड़ा हुआ सत्य है, जब ऐसे 50 कॉपी छापने वाले अखबार 50 और 75 हजार सर्कुलेशन दिखाते हैं तो वो ये भूल जाते हैं कि सरकार में बैठे लोग ये देख रहे हैं कि एक प्रिंटिंग प्रेस जिसकी क्षमता कम है फिर भी उसी की डिकलेरेशन के साथ 100-100 अखबार इतना बड़ा सर्कुलेशन दिखाने का दावा कर रहे हैं। मैं ऐसे लोगों को व्यक्तिगत रूप से जानता हूँ जो अपने अखबार के माध्यम से लोगो की वर्षों से सेवा कर रहे हैं, उनके क्षेत्र में उनका अखबार आम लोगों की सशक्त आवाज़ बना हुआ है।
ऐसे प्रेरक प्रकाशक संपादक भी यदि अपने अखबार को लेकर डीएवीपी या किसी मंत्रालय में जाते है तो उनको हेय दृष्टि से देखा जाता है क्यूंकि हमारे बीच कई ऐसे लोग आ गये है जिन्हें ठीक से बोलना और पढ़ना नहीं आता फिर भी उन्होंने किसी तरह से अखबार का पंजीकरण करा लिया और एक ही लक्ष्य बना लिया कि अब डीएवीपी पैनल कराना है, और वो डीएवीपी के कुछ भ्रष्ट अधिकारियों से अवैध गठजोड़ कर अखबार को पैनल करा लेते हैं और फिर शुरू होता एक के बाद एक एडिशन का खेल और उन अख़बारों का हक मारते रहते है जो ईमानदारी से छप रहे है। और सही सर्कुलेशन दिखा रहे हैं। डीएवीपी की नई नीति उन लोगों के खिलाफ है जो फर्जीवाडा करते हैं डीएवीपी विज्ञापन नीति उन समूहो के खिलाफ है जो ये समझते हैं कि मैं अपने अखबार के अगर 10 या15 ऐडिशन निकाल दूं तो15 विज्ञापन मिलेंगें, उनका काम ही है जुगाड़ करना।
लीपा ऐसी किसी भी नीति का पुरजोर समर्थन करती है जिससे ऐसे फर्जी पब्लिशर्स खत्म हो और रीजनल मीडिया की विश्वसनीयता फिर से बरकरार हो। इतना ही नहीं वर्तमान में हम देख रहें है कि नीति को पूरा समझे बिना कई लोगों ने अनर्गल प्रलाप शुरू कर दिया। यही वो लोग है जो पॉलिसी के रोल बैक की बातें कर रहें हैं। उन्हें समझना होगा कि सीना तानकर झूठ नहीं बोला जाता। मेरा हाथ जोड कर निवेदन है कि तर्कहीन आन्दोलन और अर्थहीन भूख हड़ताल (जिसे शाम होते ही तोड़ना पड़े) करके इस विषय को कमजोर मत बनाइये। अव्यवस्थित आंदोलनों और भूख हडतालों से रीजनल मीडिया की विश्वसनीयता ही कम होती है। हमारी ताकत है अखबार और इसी के माध्यम से अपनी ताकत दिखानी चाहिए। क्योंकि जब आन्दोलन होते हैं तो अखबर में ही छपते हैं।
हमने 25 जून की बैठक में प्रस्ताव रखा था कि हम क्यों ना हम खुद सरकार को कहें कि आप हमारे अख़बारों का सर्कुलेशन जाँच करें हम आरएनआई और सरकार को चैलेंज करे कि आइये हमारा सर्कुलेशन चेक कीजिये, और जाँच के बाद हमारा जितना भी सर्कुलेशन हो उसके आधार पर हमें विज्ञापन के लिये सूचिबद्ध करें। लीपा इस शक्ति के साथ सरकार पर दबाव बनायेगी कि जब एक अखबार ईमानदारी से चल रहा है और आपने उसका सर्कुलेशन चेक कर लिया तब आप उस अखबार को बिना किसी अनावश्यक कागजी कार्यवाही के डीएवीपी में सूचिबद्ध किजिये, अच्छा विज्ञापन रेट दिजिये, दलालों को खत्म कीजिये। परन्तु साथियों ऐसा भी नहीं है कि सरकार इस मामले में बिल्कुल पाक-साफ है इस नीति के अंदर दो-तीन खामियां ऐसी है जिससे साफ पता चलता है कि सरकार और सरकार में बैठे लोगों ने रीजनल मीडिया को सिर्फ एक ही नजरिये से देखकर इस नीति को बनाया है। उन्होंने ये मान लिया है कि रीजनल मीडिया में जितने भी अखबार छपते हैं वो सभी फर्जी है और ये मान कर इस नीति को बनाया है। नई नीति के दो-तीन बिन्दुओं से ये साफ पता चलता है कि ऐसे लोग इस विषय पर कितने अज्ञानी है, अव्यवहारिक है।
मसलन विविधता से भरे इस देश में क्या हम सिर्फ 3 न्यूज एजेन्सी के भरोसे अखबारों को चला सकते हैं? क्या हम किसी अखबार को बाध्य कर सकते की उसको फ़लां न्यूज एजेन्सी से ही खबर लेनी होगी। ये सरकार की अज्ञानता, अव्यवहारिकता दिखाती है। दूसरा बिन्दू, सबके लिए प्रिंटिंग मशीन होना अनिवार्य कर दिया गया लेकिन यदि मेरा सर्कुलेशन 45000 है और मेरी मासिक पत्रिका है या मेरा 35 हजार सर्कुलेशन है और मेरा अखबार पाक्षिक है तो मुझे क्या जरूरत है प्रिंटिंग मशीन की? सरकार ने बिना समझे प्रिंटिंग मशीन को सबके लिये आधार बना दिया। तीसरा विरोध का घोर का बिन्दू है कि एक अखबार को सूचीबद्ध कराने के लिए अब 36 महीने का इंतजार करना होगा। पहले भी यही अवधि थी लेकिन पिछली सरकार ने इसे घटाकर 18 महीने किया था।
मुझे समझ नहीं आया कि इस अवधि को बढ़ा कर 36 महीने करने का क्या तर्क है? क्या सरकार चाहती है कि एक अखबार पहले अपने घरबार को गिरवी रखकर चले और चल कर खत्म हो जाए। सब जानते हैं कि एक अखबार का बिना व्यवसायिक घराने की सपोर्ट या सरकारी विज्ञापन के इतने लंबे समय चलना बेहद कठिन कार्य है। अगर आपके मापदंड पूरे करते हुए एक अखबार ने ये 18 महीने पूरे कर लिए तो आप उसको क्यू नहीं सूचीबद्ध कर सकते? उसको 36 महीने तक मरने के लिए क्यों छोड रहे हैं? क्या सरकार क्षेत्रीय समाचारपत्रों की हत्या करना चाहती है? क्या सरकार मीडिया को मैनेज करना चाहती है? कुल मिलाकर के लीपा का स्पष्ट रूख है विज्ञापन नीति के अंदर जो खामियां है उसको लीपा बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करगी।
नई नीति के इन बिन्दुओं का लीपा घोर विरोध करती है और ये पूरे साहस के साथ कहती है कि जब तक विज्ञापन नीति की यह कमियां ठीक नहीं होंगी लीपा चैन से नहीं बैठेगी। हो सकता है कि मेरा लेख पढ़ने के बाद आप लीपा के बारे आपकी सोच नकारात्मक हो जाये, लेकिन मेरे साथी मैं आपको आश्वस्त करना चाहता हूं कि “लीड इंडिया ग्रुप” के अखबार ने आज तक सरकार से एक भी विज्ञापन नहीं लिया है, हमने अपने हित को त्याग कर अपने ऑफिस और एसोसिएशन को चलाने का संकल्प लिया। हम आज ऑनलाइन मीडियम और लिमिटेड प्रिंट से यह सब कर रहे है। ऑनलाइन मीडियम के माध्यम से हमने वहां अपनी ताकत से बड़ॆ-बड़े लोगो से लड़कर कर दिखाया है।
आप भी यह कर सकते हैं एक बार उस दिशा में देखें तो सही। अंत में आप सबसे कहना चाहूँगा कि पॉइंट सिस्टम को लेकर फार्म भरने की जो अंतिम तरीख है उससे डरने कि जरुरत नहीं है आप30 अगस्त तक इंतजार करें उसके पहले घोषणा होने की सम्भावना है अन्यथा अंतिम तारीख फिर बढ़ाई जायेगी और इतना आपको पूरे दृढ संकल्प के साथ आश्वस्त करना चाहूँगा कि इस पॉलिसी में जो अन्यायपूर्ण और मूर्खतापूर्ण बातें है उनको हटाने के लिये लीपा हर स्तर पर संघर्ष करेगी।
आपका साथी
सुभाष सिंह
राष्ट्रीय अध्यक्षलीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन


देश के 91 प्रमुख जलाशयों का जलस्तर 67 प्रतिशत रहा

नई दिल्ली। 08 नवंबर2018 को समाप्त सप्ताह के दौरान देश के 91 प्रमुख जलाशयों में 107.883 बीसीएम (अरब घन मीटर) जल संग्रह हुआ। यह इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 67 प्रतिशत है। 01 नवंबर2018 को समाप्‍त सप्ताह में जल संग्रह समान स्तर पर था। 08 नवंबर2018 को समाप्त सप्ताह में यह संग्रहण पिछले वर्ष की इसी अवधि के कुल संग्रहण का 102 प्रतिशत तथा पिछले दस वर्षों के औसत जल संग्रहण का 98  प्रतिशत है।
इन 91 जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता 161.993 बीसीएम हैजो समग्र रूप से देश की अनुमानित कुल जल संग्रहण क्षमता 257.812 बीसीएम का लगभग 63 प्रतिशत है। इन 91 जलाशयों में से 37 जलाशय ऐसे हैं जो 60 मेगावाट से अधिक की स्थापित क्षमता के साथ पनबिजली लाभ देते हैं।
क्षेत्रवार संग्रहण स्थिति : -
उत्तरी क्षेत्र
उत्तरी क्षेत्र में हिमाचल प्रदेशपंजाब तथा राजस्थान आते हैं। इस क्षेत्र में 18.01 बीसीएम की कुल संग्रहण क्षमता वाले छह जलाशय हैंजो केन्द्रीय जल आयोग (सीडब्यूसी) की निगरानी में हैं। इन जलाशयों में कुल उपलब्ध संग्रहण 15.35 बीसीएम हैजो इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 85 प्रतिशत है। पिछले वर्ष की इसी अवधि में इन जलाशयों की संग्रहण स्थिति 71 प्रतिशत थी। पिछले दस वर्षों का औसत संग्रहण इसी अवधि में इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 74 प्रतिशत था। इस तरह पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में चालू वर्ष में संग्रहण बेहतर है और यह पिछले दस वर्षों की इसी अवधि के दौरान रहे औसत संग्रहण से भी बेहतर है।
पूर्वी क्षेत्र
पूर्वी क्षेत्र में झारखंडओडिशापश्चिम बंगाल एवं त्रिपुरा आते हैं। इस क्षेत्र में 18.83 बीसीएम की कुल संग्रहण क्षमता वाले 15 जलाशय हैंजो सीडब्ल्यूसी की निगरानी में हैं। इन जलाशयों में कुल उपलब्ध संग्रहण 13.22 बीसीएम हैजो इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 70 प्रतिशत है। पिछले वर्ष की इसी अवधि में इन जलाशयों की संग्रहण स्थिति 79 प्रतिशत थी। पिछले दस वर्षों का औसत संग्रहण इसी अवधि में इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 74 प्रतिशत था। इस तरह पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में चालू वर्ष में संग्रहण कम है और यह पिछले दस वर्षों की इसी अवधि के दौरान रहे औसत संग्रहण से भी कम है।
पश्चिमी क्षेत्र
पश्चिमी क्षेत्र में गुजरात तथा महाराष्ट्र आते हैं। इस क्षेत्र में 31.26 बीसीएम की कुल संग्रहण क्षमता वाले 27 जलाशय हैंजो सीडब्ल्यूसी की निगरानी में हैं। इन जलाशयों में कुल उपलब्ध संग्रहण 16.52 बीसीएम हैजो इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 53 प्रतिशत है। पिछले वर्ष की इसी अवधि में इन जलाशयों की संग्रहण स्थिति 69 प्रतिशत थी। पिछले दस वर्षों का औसत संग्रहण इसी अवधि में इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 66 प्रतिशत था। इस तरह पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में चालू वर्ष में संग्रहण कम है और यह पिछले दस वर्षों की इसी अवधि के दौरान रहे औसत संग्रहण से भी कम है।
मध्य क्षेत्र
मध्य क्षेत्र में उत्तर प्रदेशउत्तराखंडमध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ आते हैं। इस क्षेत्र में 42.30 बीसीएम की कुल संग्रहण क्षमता वाले 12 जलाशय हैंजो सीडब्ल्यूसी की निगरानी में हैं। इन जलाशयों में कुल उपलब्ध संग्रहण 31.47 बीसीएम हैजो इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 74 प्रतिशत है। पिछले वर्ष की इसी अवधि में इन जलाशयों की संग्रहण स्थिति 57 प्रतिशत थी। पिछले दस वर्षों का औसत संग्रहण इसी अवधि में इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 68 प्रतिशत था। इस तरह पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में चालू वर्ष में संग्रहण बेहतर है और यह पिछले दस वर्षों की इसी अवधि के दौरान रहे औसत संग्रहण से भी बेहतर है।
दक्षिणी क्षेत्र
दक्षिणी क्षेत्र में आंध्र प्रदेशतेलंगाना एपी एवं टीजी (दोनों राज्यों में दो संयुक्त परियोजनाएं)कर्नाटककेरल एवं तमिलनाडु आते हैं। इस क्षेत्र में 51.59 बीसीएम की कुल संग्रहण क्षमता वाले 31 जलाशय हैंजो सीडब्ल्यूसी की निगरानी में हैं। इन जलाशयों में कुल उपलब्ध संग्रहण 31.33 बीसीएम हैजो इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 61 प्रतिशत है। पिछले वर्ष की इसी अवधि में इन जलाशयों की संग्रहण स्थिति 64 प्रतिशत थी। पिछले दस वर्षों का औसत संग्रहण इसी अवधि में इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 65 प्रतिशत था। इस तरह चालू वर्ष में संग्रहण पिछले वर्ष की इसी अवधि में हुए संग्रहण से कम है और यह पिछले दस वर्षों की इसी अवधि के दौरान रहे औसत संग्रहण से भी कम है।
पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में जिन राज्यों में जल संग्रहण बेहतर है उनमें हिमाचल प्रदेशपंजाब,राजस्‍थानउत्तर प्रदेशउत्‍तराखंडमध्य प्रदेशछत्तीसगढ़कर्नाटककेरल और तमिलनाडु शामिल हैं। पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में जिन राज्यों में जल संग्रहण कम है उनमें झारखंड, ओडिशा पश्चिम बंगालत्रिपुरागुजरात और महाराष्‍ट्र, एपी एवं टीजी (दोनों राज्यों में दो संयुक्त परियोजनाएं)आंध्र प्रदेश और तेलंगाना शामिल हैं।

शुक्रवार, 9 नवंबर 2018

पूर्वी सिंहभूम में मत्स्य बीजों का वितरण


जिला मत्स्य कार्यालय का रंडी जमशेदपुर द्वारा माह सितंबर अंतर्गत निजी क्षेत्र तथा सरकारी तालाब बंदोबस्ती लिए हुए किसानों के बीच अनुदानित दर पर विभिन्न मत्स्य क्षेत्र से मत्स्य बीज का वितरण किया गया पूर्वी सिंहभूम जिला के विभिन्न प्रखंडों से मत्स्य कृषकों वैज्ञानिक पद्धति से उन्नत मत्स्य पालन हेतु दिनांक 69 2018 तथा 17 नो 2018 को विभाग की राखी स्थित राज्य स्तरीय मत्स्य प्रशिक्षण केंद्र में पांच दिवसीय आवासीय प्रशिक्षण कराया गया इसके अतिरिक्त ग्राम स्तर पर मत्स्य मित्र के माध्यम से एकदिवसीय गोष्टी आयोजित करते हुए मत्स्य कृषकों को मत्स्य पालन की जानकारी दी गई माह अक्टूबर अंतर्गत जिला मत्स्य कार्यालय करंडी जमशेदपुर द्वारा 1.20 लॉक प्रति इकाई लागत से बनने वाले वेदव्यास आवास निर्माण हेतु पंचानवे गरीब मछुआरों का चयन उपायुक्त महोदय की अध्यक्षता में गठित समिति द्वारा किया गया पूर्वी सिंहभूम जिला के विभिन्न प्रखंडों से मत्स्य कृषकों को वैज्ञानिक पद्धति से उन्नत मत्स्य पालन हेतु दिनांक 2:10 2018 तथा 2210 2018 को विभाग की रांची स्थित राज्य स्तरीय मत्स्य प्रशिक्षण केंद्र में पांच दिवसीय आवासीय प्रशिक्षण कराया गया साथ ही ग्राम स्तर पर मत्स्य मित्र के माध्यम से एकदिवसीय गोष्ठी आयोजित करते हुए मत्स्य कृषकों को मत्स्य पालन की जानकारी दी गई

स्वर्ण जयंती वर्ष का झारखंड : समृद्ध धरती, बदहाल झारखंडी

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