(इसे 25 अगस्त 2016 को जारी किया गया था। )
मेरे साथियों,
पिछले दो महीने से डीएवीपी एड पॉलिसी को लेकर हम सभी परेशान हैं और इस
पॉलिसी के विरोध में लीपा द्वारा अनेक कोशिश की गयी बल्कि हम सबने अपने अपने स्तर
पर कोशिश की। लेकिन आज मैं आपसे कुछ ऐसे बिन्दुओं पर बात करने जा रहा हूँ जो शायद
बहुत से साथियों को ना पसंद आये और कई लोग लीपा पर अनर्गल आरोप लगाने लगें,
मेरे खिलाफ अभियान
चलायें, मेरा
पुतला फूकें और ना जाने क्या क्या हो..
लेकिन मैं पूछना चाहता हूँ कि डीएवीपी की नई एड पॉलिसी आखिर किसके
खिलाफ है? क्या यह
वाकई स्माल और मीडियम अख़बारों के खिलाफ है? क्या वास्तव में 25000 से ज्यादा कॉपी
छापने वाले अखबारों को सरकार के सामने गिड़गिड़ाने की जरुरत है या सरकार को इन
अख़बारों के सामने घुटने टेकने की जरुरत है? (लेकिन 25000 छपे तो सही) अब सवाल है ऐसी पॉलिसी आखिर
आई क्यूँ, और क्या
हम इस नीति पर सरकार, किसी मंत्री, सिस्टम या डीएवीपी को गाली देकर अपने आप को
संतुष्ट कर सकते हैं? इन सवालों पर सबको सोचने की जरुरत है लेकिन उससे पहले मैं बताना चाहता
हूँ लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन को बनाने का हमारा उद्देश्य है कि रीजनल मीडिया
में कार्य करने वाले अपने वरिष्ठ साथियों के सम्मान को पुन: स्थापित करें, उनकी आर्थिक समृद्धि
के लिये कोई वैकल्पिक व्यवस्था को विकसित कर सकें।
लेकिन समस्या यह है कि आज प्रकाशक और अखबार मालिक के तौर पर हमारे बीच
कुछ ऐसे दलाल किस्म के लोग आ गये जिन्होंने रीजनल मीडिया के गौरवशाली इतिहास को
धूमिल कर दिया है। ऐसे लोगों का पत्रकारिता या अखबार के प्रकाशन से कोई लेना देना
नहीं है उनका मकसद सिर्फ पैसा या अपना रूतबा कायम करना है। ऐसे लोग उन प्रकाशकों
को बदनाम कर रहे हैं जो पत्रकारिता को मिशन मानते हैं और अपने अखबार के माध्यम से
जनता को न्याय दिलाने का काम करते हैं। ऐसे ही दलाल किस्म के लोगों की वजह से आज
यह स्थिति आई है।
वो यह नहीं समझते कि डीएवीपी के कुछ भ्रष्ट अफसर ही पूरा राजतंत्र
नहीं है और ना ही फर्जी सर्कुलेशन को चेक करना नामुमकिन है। ये तो एक उघड़ा हुआ
सत्य है, जब ऐसे 50
कॉपी छापने वाले
अखबार 50 और 75
हजार सर्कुलेशन
दिखाते हैं तो वो ये भूल जाते हैं कि सरकार में बैठे लोग ये देख रहे हैं कि एक
प्रिंटिंग प्रेस जिसकी क्षमता कम है फिर भी उसी की डिकलेरेशन के साथ 100-100
अखबार इतना बड़ा
सर्कुलेशन दिखाने का दावा कर रहे हैं। मैं ऐसे लोगों को व्यक्तिगत रूप से जानता
हूँ जो अपने अखबार के माध्यम से लोगो की वर्षों से सेवा कर रहे हैं, उनके क्षेत्र में
उनका अखबार आम लोगों की सशक्त आवाज़ बना हुआ है।
ऐसे प्रेरक प्रकाशक संपादक भी यदि अपने अखबार को लेकर डीएवीपी या किसी
मंत्रालय में जाते है तो उनको हेय दृष्टि से देखा जाता है क्यूंकि हमारे बीच कई
ऐसे लोग आ गये है जिन्हें ठीक से बोलना और पढ़ना नहीं आता फिर भी उन्होंने किसी तरह
से अखबार का पंजीकरण करा लिया और एक ही लक्ष्य बना लिया कि अब डीएवीपी पैनल कराना
है, और वो
डीएवीपी के कुछ भ्रष्ट अधिकारियों से अवैध गठजोड़ कर अखबार को पैनल करा लेते हैं और
फिर शुरू होता एक के बाद एक एडिशन का खेल और उन अख़बारों का हक मारते रहते है जो
ईमानदारी से छप रहे है। और सही सर्कुलेशन दिखा रहे हैं। डीएवीपी की नई नीति उन
लोगों के खिलाफ है जो फर्जीवाडा करते हैं डीएवीपी विज्ञापन नीति उन समूहो के खिलाफ
है जो ये समझते हैं कि मैं अपने अखबार के अगर 10 या15 ऐडिशन निकाल दूं तो15 विज्ञापन मिलेंगें,
उनका काम ही है
जुगाड़ करना।
लीपा ऐसी किसी भी नीति का पुरजोर समर्थन करती है जिससे ऐसे फर्जी
पब्लिशर्स खत्म हो और रीजनल मीडिया की विश्वसनीयता फिर से बरकरार हो। इतना ही नहीं
वर्तमान में हम देख रहें है कि नीति को पूरा समझे बिना कई लोगों ने अनर्गल प्रलाप
शुरू कर दिया। यही वो लोग है जो पॉलिसी के रोल बैक की बातें कर रहें हैं। उन्हें
समझना होगा कि सीना तानकर झूठ नहीं बोला जाता। मेरा हाथ जोड कर निवेदन है कि
तर्कहीन आन्दोलन और अर्थहीन भूख हड़ताल (जिसे शाम होते ही तोड़ना पड़े) करके इस विषय
को कमजोर मत बनाइये। अव्यवस्थित आंदोलनों और भूख हडतालों से रीजनल मीडिया की विश्वसनीयता
ही कम होती है। हमारी ताकत है अखबार और इसी के माध्यम से अपनी ताकत दिखानी चाहिए।
क्योंकि जब आन्दोलन होते हैं तो अखबर में ही छपते हैं।
हमने 25 जून की बैठक में प्रस्ताव रखा था कि हम क्यों ना हम खुद सरकार को कहें
कि आप हमारे अख़बारों का सर्कुलेशन जाँच करें हम आरएनआई और सरकार को चैलेंज करे कि
आइये हमारा सर्कुलेशन चेक कीजिये, और जाँच के बाद हमारा जितना भी सर्कुलेशन हो उसके
आधार पर हमें विज्ञापन के लिये सूचिबद्ध करें। लीपा इस शक्ति के साथ सरकार पर दबाव
बनायेगी कि जब एक अखबार ईमानदारी से चल रहा है और आपने उसका सर्कुलेशन चेक कर लिया
तब आप उस अखबार को बिना किसी अनावश्यक कागजी कार्यवाही के डीएवीपी में सूचिबद्ध
किजिये, अच्छा
विज्ञापन रेट दिजिये, दलालों को खत्म कीजिये। परन्तु साथियों ऐसा भी नहीं है कि सरकार इस
मामले में बिल्कुल पाक-साफ है इस नीति के अंदर दो-तीन खामियां ऐसी है जिससे साफ
पता चलता है कि सरकार और सरकार में बैठे लोगों ने रीजनल मीडिया को सिर्फ एक ही
नजरिये से देखकर इस नीति को बनाया है। उन्होंने ये मान लिया है कि रीजनल मीडिया
में जितने भी अखबार छपते हैं वो सभी फर्जी है और ये मान कर इस नीति को बनाया है। नई
नीति के दो-तीन बिन्दुओं से ये साफ पता चलता है कि ऐसे लोग इस विषय पर कितने
अज्ञानी है, अव्यवहारिक है।
मसलन विविधता से भरे इस देश में क्या हम सिर्फ 3 न्यूज एजेन्सी के
भरोसे अखबारों को चला सकते हैं? क्या हम किसी अखबार को बाध्य कर सकते की उसको
फ़लां न्यूज एजेन्सी से ही खबर लेनी होगी। ये सरकार की अज्ञानता, अव्यवहारिकता दिखाती
है। दूसरा बिन्दू, सबके लिए प्रिंटिंग मशीन होना अनिवार्य कर दिया गया लेकिन यदि मेरा
सर्कुलेशन 45000 है और मेरी मासिक पत्रिका है या मेरा 35 हजार सर्कुलेशन है और मेरा अखबार पाक्षिक
है तो मुझे क्या जरूरत है प्रिंटिंग मशीन की? सरकार ने बिना समझे प्रिंटिंग मशीन को
सबके लिये आधार बना दिया। तीसरा विरोध का घोर का बिन्दू है कि एक अखबार को
सूचीबद्ध कराने के लिए अब 36 महीने का इंतजार करना होगा। पहले भी यही अवधि थी
लेकिन पिछली सरकार ने इसे घटाकर 18 महीने किया था।
मुझे समझ नहीं आया कि इस अवधि को बढ़ा कर 36 महीने करने का क्या तर्क है? क्या सरकार चाहती है
कि एक अखबार पहले अपने घरबार को गिरवी रखकर चले और चल कर खत्म हो जाए। सब जानते
हैं कि एक अखबार का बिना व्यवसायिक घराने की सपोर्ट या सरकारी विज्ञापन के इतने लंबे
समय चलना बेहद कठिन कार्य है। अगर आपके मापदंड पूरे करते हुए एक अखबार ने ये 18
महीने पूरे कर लिए
तो आप उसको क्यू नहीं सूचीबद्ध कर सकते? उसको 36 महीने तक मरने के लिए क्यों छोड रहे हैं? क्या सरकार
क्षेत्रीय समाचारपत्रों की हत्या करना चाहती है? क्या सरकार मीडिया को मैनेज करना चाहती है?
कुल मिलाकर के लीपा
का स्पष्ट रूख है विज्ञापन नीति के अंदर जो खामियां है उसको लीपा बिल्कुल बर्दाश्त
नहीं करगी।
नई नीति के इन बिन्दुओं का लीपा घोर विरोध करती है और ये पूरे साहस के
साथ कहती है कि जब तक विज्ञापन नीति की यह कमियां ठीक नहीं होंगी लीपा चैन से नहीं
बैठेगी। हो सकता है कि मेरा लेख पढ़ने के बाद आप लीपा के बारे आपकी सोच नकारात्मक
हो जाये, लेकिन
मेरे साथी मैं आपको आश्वस्त करना चाहता हूं कि “लीड इंडिया ग्रुप” के अखबार ने आज
तक सरकार से एक भी विज्ञापन नहीं लिया है, हमने अपने हित को त्याग कर अपने ऑफिस और एसोसिएशन
को चलाने का संकल्प लिया। हम आज ऑनलाइन मीडियम और लिमिटेड प्रिंट से यह सब कर रहे
है। ऑनलाइन मीडियम के माध्यम से हमने वहां अपनी ताकत से बड़ॆ-बड़े लोगो से लड़कर कर
दिखाया है।
आप भी यह कर सकते हैं एक बार उस दिशा में देखें तो सही। अंत में आप
सबसे कहना चाहूँगा कि पॉइंट सिस्टम को लेकर फार्म भरने की जो अंतिम तरीख है उससे
डरने कि जरुरत नहीं है आप30 अगस्त तक इंतजार करें उसके पहले घोषणा होने की
सम्भावना है अन्यथा अंतिम तारीख फिर बढ़ाई जायेगी और इतना आपको पूरे दृढ संकल्प के
साथ आश्वस्त करना चाहूँगा कि इस पॉलिसी में जो अन्यायपूर्ण और मूर्खतापूर्ण बातें
है उनको हटाने के लिये लीपा हर स्तर पर संघर्ष करेगी।
आपका साथी
सुभाष सिंह
राष्ट्रीय अध्यक्ष, लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन
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