यह ब्लॉग खोजें

गुरुवार, 14 जून 2018

गोड्डा में भीड़ हिंसा को लेकर राजनीति



गोड्डा। झारखंड में मवेशी चोरी के आरोप में दो लोगों की पीट-पीटकर हत्या का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। इस घटना को लेकर राजनीति शुरू हो गई है। भाजपा तो अल्पसंख्यकों को निशाने पर ले रही है लेकिन लेकिन विपक्षी दल किसी समुदाय को नाराज करने से बच रहे हैं। गोड्डा के भाजपा विधायक अमित कुमार मंडल एक संप्रदाय विशेष के लोगों के मवेशी चोरी और तस्करी में लिप्त होने का आरोप लगा रहे हैं तो जामताड़ा के कांग्रेस विधायक इरफान अंसारी जवाबी हमले में आदिवासियों की जगह इस घटना के लिए आरएसएस को दोषी बता रहे हैं। उनके कथनानुसार संघ के लोगों ने आदिवासियों के कंधे पर बंदूक रखकर दागा है।
गोड्डा संताल परगना प्रमंडल का एक जिला है। डुल्लू और वनकट्टा गांव यानी घटनास्थल राज्य की राजधानी रांची से करीब 400 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। भीड़ हिंसा के शिकार 45 वर्षीय सर्फुद्दीन अंसारी उर्फ चरकू और 40 वर्षीय मुर्तजा अंसारी पड़ोस के केरकेटिया और बांजी पंचायत के रहने वाले थे। चरकू मवेशी चोरी के आरोप में पहले भी दो बार जेल की हवा खा चुका था। कुछ माह पूर्व महगामा थाना क्षेत्र में चोरी के आठ मवेशियों के साथ आठ लोग गिरफ्तार किए गए थे। उनमें चरकू शामिल था। यह इलाका पश्चिम बंगाल की सीमा से लगा हुआ है और बांग्लादेश में मवेशी तस्करी के रास्ते में शामिल है। पुलिस का मानना है कि इस अवैध धंधे में जुड़े अधिकांश तस्कर गिरोह अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की बहुलता वाले हैं। भीड़ हिंसा की इस घटना के बाद मृतकों की पंचायतों सहित जिले के अन्य अल्पसंख्यक बहुल गावों और पंचायतों में भय और आतंक का माहौल है। लोग तरह-तरह की आशंकाओं से ग्रसित, डरे और सहमे हुए हैं। घटना को लेकर राजनीति के कारण माहौल और भी तनावपूर्ण होता जा रहा है।
राज्य के मुखिया रघुवर दास इस घटना को लेकर मौन हैं। चुनाव सर पर हैं। ऐसे में समझदार नेता कोई भी बयान बहुत सोच समझकर देते हैं। घटना में भाजपा या संघ को सीधे तौर पर घेरा नहीं जा सकता। कांग्रेस अल्पसंख्यकों के पक्ष में खड़ी होकर उनके बीच अपनी पैठ बढ़ाने और राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश कर रही है। लेकिन आदिवासियों को नाराज भी नहीं कर सकती। इसीलिए वह संघ और भाजपा पर निशाना साध रही है और आदिवासियों को मासूम बताने का प्रयास कर रही है। मुसलिम वोटरों पर झामुमो और कांग्रेस की पकड़ है। घटना दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन समस्या यह है कि इसमें एक तरफ आदिवासी हैं दूसरी तरफ अल्पसंख्यक। राज्य में दोनों की जनसंख्या निर्णायक है। भाजपा के अलावा कोई भी राजनीतिक दल इनमें से किसी समुदाय के वोटरों को नाराज करना नहीं चाहेगा। ध्रुवीकरण की कोशिश की गई तो यह विरोधी दल के लिए संजीवनी साबित हो सकती है। पहले यह वोट झामुमो और भाजपा के बीच विभाजित हो जाते थे लेकिन विपक्षी गठबंधन बनने के बाद उनका साझा उम्मीदवार मैदान में उतरेगा। झारखंड मुक्ति मोर्चा इस घटना को लेकर कोई बयान देने से बच रहा है। दोनो ही समुदायों में उसका आधार है। वह किसी को नाराज नहीं कर सकता। घटना को राजनीतिक रंग देने की कोशिश दिलचस्प परिदृश्य उत्पन्न कर रही है।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

पंकज त्रिपाठी बने "पीपुल्स एक्टर"

  न्यूयॉर्क यात्रा के दौरान असुविधा के बावजूद प्रशंसकों के सेल्फी के अनुरोध को स्वीकार किया   मुंबई(अमरनाथ) बॉलीवुड में "पीपुल्स ...