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रविवार, 11 अगस्त 2019

राष्ट्रहित को स्वहित से ऊपर मानती हैं अनुपमा लोचन



महिलाएं अपनी जुनूनी तेवर और काबिलियत से इतिहास रच रही हैं। रसोई से निकलकर चांद को छूने वाली महिलाएं वर्तमान में नए भारत की तस्वीर गढ़ रही हैं। कई महिलाओं ने हमारे देश को खुद पर गर्व करने का अवसर प्रदान किया है। चूल्हे से चांद तक बढ़ रही महिलाएं देश का गौरव बढ़ा रही हैं। समाज सेवा के क्षेत्र में भी कई महिलाएं परचम लहरा रही हैं। ऐसी ही शख्सियतों में शुमार हैं, राजधानी रांची निवासी लोकप्रिय सामाजिक कार्यकर्ता अनुपमा लोचन। श्रीमती अनुपमा मानवीय मूल्यों से परिपूर्ण एक प्रतिभावान व संवेदनशील महिला हैं। वह मानवता की जीवंत प्रतिमूर्ति हैं। वह राष्ट्रहित और समाज हित को स्वहित से ऊपर मानती हैं। अनुपमा की प्रारंभिक शिक्षा पटना में हुई। वहां उनके पिता बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग में सेवारत थे। अनुपमा ने पटना स्थित संत जोसेफ स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की। जेडी वूमेंस कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की। तत्पश्चात मगध महिला कॉलेज से एम ए की डिग्री ली। समाजसेवा का जज्बा और जुनून उनके अंदर बचपन से ही रहा है। सामाजिक कार्यों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता देखते ही बनती है। समाजसेवा की प्रेरणा उन्हें अपने माता पिता से मिली। वह वर्ष 1992 में वैवाहिक बंधन में बंधी। उनके पति  राजीव लोचन भी बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति हैं। वे  राजधानी रांची स्थित सीएमपीडीआई में शीर्ष अधिकारी हैं। सामाजिक कार्यों के प्रति अनुपमा की अभिरुचि देखते हुए उनके पति राजीव लोचन ने भी उनका साथ देना शुरू किया। हर कदम पर अनुपमा को प्रोत्साहित करते रहे।  वह शहर की विभिन्न सामाजिक संगठनों से भी जुड़ी हैं। वर्तमान में अनुपमा लायंस क्लब ऑफ रांची ईस्ट की वाइस प्रेसिडेंट है। उनका मानना है कि महिलाएं न सिर्फ किचन में मसालों के बैलेंस करना जानती है, बल्कि जिंदगी को बैलेंस करना भी बखूबी जानती है। अब तक यही माना जाता रहा है कि महिलाओं की जगह सिर्फ किचन में होती है और उनका काम सिर्फ भोजन पकाना व घर बच्चों को संभालना है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से देश की महिलाओं ने इस अवधारणा को तोड़ने में सफलता पाई है। महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं। अनुपमा मानव विकास मंत्रालय द्वारा जारी एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताती हैं कि देश के करीब एक तिहाई सरकारी स्कूलों में लड़कियों के लिए शौचालयों की सुविधा नहीं है, इस कारण बड़ी संख्या में लड़कियां स्कूल छोड़ देती हैं, वहीं दूसरी तरफ 22 लाख से भी ज्यादा लड़कियों की शादी कम उम्र में हो कर दी जाती है, जिस वजह से लड़कियों का स्कूल छूटना स्वाभाविक है। वह कहती है कि लड़कियों की शिक्षा और स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देना जरूरी है। वह समाज में महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार देने की पक्षधर हैं। उनका मानना है कि समाज में व्याप्त कुरीतियां सामाजिक विकास में बाधक हैं। इन कुरीतियों और कुप्रथाओं को दूर करने की दिशा में सरकारी व गैर सरकारी स्तर पर सामुहिक प्रयास किया जाना आवश्यक है। समाज में नई सोच और नई जागृति लाने की आवश्यकता है। वह कहती हैं कि ग्रामीण स्तर पर भी महिलाओं को सशक्त बनाने की जरूरत है। ग्रामीण विकास के बिना सर्वांगीण विकास की बातें बेमानी है। अनुपमा अपने घर-परिवार और बच्चों की देखभाल बखूबी करते हुए अपने वर्कफ्रंट के उत्तरदायित्व को भी बेहतर तरीके से संचालित कर रही हैं। सामाजिक कार्यों के प्रति अपने दायित्वों का भी बखूबी निर्वहन कर रही हैं। वह समाज सेवा को सर्वोपरि मानती हैं। अनुपमा गृहिणियों, कामकाजी महिलाओं, युवतियों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। समाज सेवा उनकी दिनचर्या में शुमार है। सामाजिक कार्यों के प्रति उनकी लगन और निष्ठा अनुकरणीय है।
वह कहती हैं कि महिलाओं को सिर्फ रसोई तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि चौखट से बाहर निकल कर अपने अधिकार और दायित्वों के प्रति भी सजग रहने की आवश्यकता है। यह वर्तमान समय की मांग भी है। इससे हमारा देश व समाज सशक्त होगा।

शनिवार, 1 सितंबर 2018

81 की उम्र में 18 का जज्बा



अनुकरणीय है प्लीडर कमिश्नर रमेश चंद्र सरकार का व्यक्तित्व

कुछ करने का जज्बा हो, सोच हो तो उम्र मायने नहीं रखती। आमतौर पर 60 की आयु पार करने के बाद अधिकांश
 लोग स्वयं को बीमार और थका हुआ महसूस करने लगते हैं। लेकिन झारखंड सरकार के प्लीडर कमिश्नर रमेश चंद्र सरकार इसके अपवाद हैं। वे 81 वर्ष के हो चुके है। लेकिन अभी भी पूरी तरह चुस्त-दुरुस्त और सक्रिय सामाजिक जीवन जी रहे हैं। अब नियमित रूप से कोर्ट नहीं जाते। खास मामलों में ही राज्य सरकार का पक्ष रखने के लिए काला कोट धारण करते हैं। ज्यादातर समय घर पर ही रहकर अपने जूनियर वकीलों का मार्गदर्शन करते हैं और स्वाध्याय अथवा सामाजिक कार्यों में व्यस्त रहते हैं। धर्म और अध्यात्म की चर्चा के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। समाजसेवियों का उनके पास आना-जाना लगा रहता है। उम्र के इस पड़ाव पर भी उनकी चुस्ती और ऊर्जा को देखकर युवाओं को ईर्ष्या हो सकती है। उन्होंने रांची के सिंहमोड़ के पास विकास नगर रोड नं-2 स्थित अपने घर पर फिटनेश के लिए जिम के सारे उपकरण रखे हैं और नियमित व्यायाम करते हैं।

रमेश सरकार ने एमबीए, डिप्लोमा इंजीनियरिंग (विद्युत), एलएलबी के अलावा राजनीति शास्त्र तथा लेबर एंड सोशल वेलफेयर विषय में एमए किया है। वे एचइसी में मैनेजर के पद पर कार्यरत थे। 1991 में वीआरएस लेने के बाद हाई कोर्ट में वकालत शुरू की। वे सिविल के विशेषज्ञ बने। एक अधिवक्ता के रूप में भी उन्होंने समाज सेवा का धर्म अपनाया। गरीबों का केस वे मुफ्त लड़ते थे। बल्कि अक्सरहां अपनी जेब के पैसे भी उनपर खर्च कर डालते थे। वकालत उनके लिए कभी भी कमाई का माध्यम नहीं रहा।
पढ़ने-लिखने में इतनी दिलचस्पी है कि उनकी व्यक्तिगत लाइब्रेरी में हिन्दी, अंग्रेजी और बांग्ला भाषा की पुस्तकों का विशाल भंडार है। इनमें कानून की किताबें तो हैं ही साहित्य और धर्म तथा अध्यात्म की हजारों पुस्तकें शामिल हैं। उनके पास वेद, उपनिषद, ब्राह्मण, अरण्यक, स्मृति और पुराणों से लेकर गीता, महाभारत और रामायण के लगभग तमाम संस्करण तीनों भाषाओं में मौजूद हैं। शायद ही धर्मशास्त्र की कोई पुस्तक हो जो उनके पास नहीं हो। फुर्सत के समय वे इनके अध्ययन में लीन हो जाते हैं। अध्यात्म के प्रति अपने लगाव के कारण वे रामकृष्ण मिशन, योगदा सत्संग और चिन्मया मिशन से जुड़े रहे हैं। वे सामाजिक संस्था अपंजन बंगाली मिशन के अध्यक्ष हैं। सके कार्यक्रमों में नियमित भागीदारी करते हैं। वे अपने दो पुत्रों और एक पुत्री को पढ़ा-लिखाकर उच्च पदों पर आसीन करा चुके हैं। पत्नी के देहांत के बीस वर्ष गुजर चुके हैं। उन्होंने अपने परिवार, समाज, धर्म और पेशागत दायित्यों का कुशलता पूर्वक निर्वहन किया है। उनकी जीवन शैली किसी भी आयु के व्यक्ति के लिए, किसी भी समाज के लिए अनुकरणीय है।
उम्र के इस पड़ाव पर आकर अब वे अपने संचित ज्ञान और अनुभव का लाभ नई पीढ़ी को प्रदान करने का प्रयास कर रहे हैं। उनके जूनियर भी उनके मार्गदर्शन में उन्हीं की तरह कुशलता से अपना कार्य करते हुए बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं।  

स्वर्ण जयंती वर्ष का झारखंड : समृद्ध धरती, बदहाल झारखंडी

  झारखंड स्थापना दिवस पर विशेष स्वप्न और सच्चाई के बीच विस्थापन, पलायन, लूट और भ्रष्टाचार की लाइलाज बीमारी  काशीनाथ केवट  15 नवम्बर 2000 -वी...