महिलाएं अपनी जुनूनी तेवर और काबिलियत से इतिहास रच रही हैं। रसोई से निकलकर चांद को छूने वाली महिलाएं वर्तमान में नए भारत की तस्वीर गढ़ रही हैं। कई महिलाओं ने हमारे देश को खुद पर गर्व करने का अवसर प्रदान किया है। चूल्हे से चांद तक बढ़ रही महिलाएं देश का गौरव बढ़ा रही हैं। समाज सेवा के क्षेत्र में भी कई महिलाएं परचम लहरा रही हैं। ऐसी ही शख्सियतों में शुमार हैं, राजधानी रांची निवासी लोकप्रिय सामाजिक कार्यकर्ता अनुपमा लोचन। श्रीमती अनुपमा मानवीय मूल्यों से परिपूर्ण एक प्रतिभावान व संवेदनशील महिला हैं। वह मानवता की जीवंत प्रतिमूर्ति हैं। वह राष्ट्रहित और समाज हित को स्वहित से ऊपर मानती हैं। अनुपमा की प्रारंभिक शिक्षा पटना में हुई। वहां उनके पिता बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग में सेवारत थे। अनुपमा ने पटना स्थित संत जोसेफ स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की। जेडी वूमेंस कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की। तत्पश्चात मगध महिला कॉलेज से एम ए की डिग्री ली। समाजसेवा का जज्बा और जुनून उनके अंदर बचपन से ही रहा है। सामाजिक कार्यों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता देखते ही बनती है। समाजसेवा की प्रेरणा उन्हें अपने माता पिता से मिली। वह वर्ष 1992 में वैवाहिक बंधन में बंधी। उनके पति राजीव लोचन भी बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति हैं। वे राजधानी रांची स्थित सीएमपीडीआई में शीर्ष अधिकारी हैं। सामाजिक कार्यों के प्रति अनुपमा की अभिरुचि देखते हुए उनके पति राजीव लोचन ने भी उनका साथ देना शुरू किया। हर कदम पर अनुपमा को प्रोत्साहित करते रहे। वह शहर की विभिन्न सामाजिक संगठनों से भी जुड़ी हैं। वर्तमान में अनुपमा लायंस क्लब ऑफ रांची ईस्ट की वाइस प्रेसिडेंट है। उनका मानना है कि महिलाएं न सिर्फ किचन में मसालों के बैलेंस करना जानती है, बल्कि जिंदगी को बैलेंस करना भी बखूबी जानती है। अब तक यही माना जाता रहा है कि महिलाओं की जगह सिर्फ किचन में होती है और उनका काम सिर्फ भोजन पकाना व घर बच्चों को संभालना है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से देश की महिलाओं ने इस अवधारणा को तोड़ने में सफलता पाई है। महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं। अनुपमा मानव विकास मंत्रालय द्वारा जारी एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताती हैं कि देश के करीब एक तिहाई सरकारी स्कूलों में लड़कियों के लिए शौचालयों की सुविधा नहीं है, इस कारण बड़ी संख्या में लड़कियां स्कूल छोड़ देती हैं, वहीं दूसरी तरफ 22 लाख से भी ज्यादा लड़कियों की शादी कम उम्र में हो कर दी जाती है, जिस वजह से लड़कियों का स्कूल छूटना स्वाभाविक है। वह कहती है कि लड़कियों की शिक्षा और स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देना जरूरी है। वह समाज में महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार देने की पक्षधर हैं। उनका मानना है कि समाज में व्याप्त कुरीतियां सामाजिक विकास में बाधक हैं। इन कुरीतियों और कुप्रथाओं को दूर करने की दिशा में सरकारी व गैर सरकारी स्तर पर सामुहिक प्रयास किया जाना आवश्यक है। समाज में नई सोच और नई जागृति लाने की आवश्यकता है। वह कहती हैं कि ग्रामीण स्तर पर भी महिलाओं को सशक्त बनाने की जरूरत है। ग्रामीण विकास के बिना सर्वांगीण विकास की बातें बेमानी है। अनुपमा अपने घर-परिवार और बच्चों की देखभाल बखूबी करते हुए अपने वर्कफ्रंट के उत्तरदायित्व को भी बेहतर तरीके से संचालित कर रही हैं। सामाजिक कार्यों के प्रति अपने दायित्वों का भी बखूबी निर्वहन कर रही हैं। वह समाज सेवा को सर्वोपरि मानती हैं। अनुपमा गृहिणियों, कामकाजी महिलाओं, युवतियों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। समाज सेवा उनकी दिनचर्या में शुमार है। सामाजिक कार्यों के प्रति उनकी लगन और निष्ठा अनुकरणीय है।
वह कहती हैं कि महिलाओं को सिर्फ रसोई तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि चौखट से बाहर निकल कर अपने अधिकार और दायित्वों के प्रति भी सजग रहने की आवश्यकता है। यह वर्तमान समय की मांग भी है। इससे हमारा देश व समाज सशक्त होगा।
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