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शनिवार, 1 सितंबर 2018

81 की उम्र में 18 का जज्बा



अनुकरणीय है प्लीडर कमिश्नर रमेश चंद्र सरकार का व्यक्तित्व

कुछ करने का जज्बा हो, सोच हो तो उम्र मायने नहीं रखती। आमतौर पर 60 की आयु पार करने के बाद अधिकांश
 लोग स्वयं को बीमार और थका हुआ महसूस करने लगते हैं। लेकिन झारखंड सरकार के प्लीडर कमिश्नर रमेश चंद्र सरकार इसके अपवाद हैं। वे 81 वर्ष के हो चुके है। लेकिन अभी भी पूरी तरह चुस्त-दुरुस्त और सक्रिय सामाजिक जीवन जी रहे हैं। अब नियमित रूप से कोर्ट नहीं जाते। खास मामलों में ही राज्य सरकार का पक्ष रखने के लिए काला कोट धारण करते हैं। ज्यादातर समय घर पर ही रहकर अपने जूनियर वकीलों का मार्गदर्शन करते हैं और स्वाध्याय अथवा सामाजिक कार्यों में व्यस्त रहते हैं। धर्म और अध्यात्म की चर्चा के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। समाजसेवियों का उनके पास आना-जाना लगा रहता है। उम्र के इस पड़ाव पर भी उनकी चुस्ती और ऊर्जा को देखकर युवाओं को ईर्ष्या हो सकती है। उन्होंने रांची के सिंहमोड़ के पास विकास नगर रोड नं-2 स्थित अपने घर पर फिटनेश के लिए जिम के सारे उपकरण रखे हैं और नियमित व्यायाम करते हैं।

रमेश सरकार ने एमबीए, डिप्लोमा इंजीनियरिंग (विद्युत), एलएलबी के अलावा राजनीति शास्त्र तथा लेबर एंड सोशल वेलफेयर विषय में एमए किया है। वे एचइसी में मैनेजर के पद पर कार्यरत थे। 1991 में वीआरएस लेने के बाद हाई कोर्ट में वकालत शुरू की। वे सिविल के विशेषज्ञ बने। एक अधिवक्ता के रूप में भी उन्होंने समाज सेवा का धर्म अपनाया। गरीबों का केस वे मुफ्त लड़ते थे। बल्कि अक्सरहां अपनी जेब के पैसे भी उनपर खर्च कर डालते थे। वकालत उनके लिए कभी भी कमाई का माध्यम नहीं रहा।
पढ़ने-लिखने में इतनी दिलचस्पी है कि उनकी व्यक्तिगत लाइब्रेरी में हिन्दी, अंग्रेजी और बांग्ला भाषा की पुस्तकों का विशाल भंडार है। इनमें कानून की किताबें तो हैं ही साहित्य और धर्म तथा अध्यात्म की हजारों पुस्तकें शामिल हैं। उनके पास वेद, उपनिषद, ब्राह्मण, अरण्यक, स्मृति और पुराणों से लेकर गीता, महाभारत और रामायण के लगभग तमाम संस्करण तीनों भाषाओं में मौजूद हैं। शायद ही धर्मशास्त्र की कोई पुस्तक हो जो उनके पास नहीं हो। फुर्सत के समय वे इनके अध्ययन में लीन हो जाते हैं। अध्यात्म के प्रति अपने लगाव के कारण वे रामकृष्ण मिशन, योगदा सत्संग और चिन्मया मिशन से जुड़े रहे हैं। वे सामाजिक संस्था अपंजन बंगाली मिशन के अध्यक्ष हैं। सके कार्यक्रमों में नियमित भागीदारी करते हैं। वे अपने दो पुत्रों और एक पुत्री को पढ़ा-लिखाकर उच्च पदों पर आसीन करा चुके हैं। पत्नी के देहांत के बीस वर्ष गुजर चुके हैं। उन्होंने अपने परिवार, समाज, धर्म और पेशागत दायित्यों का कुशलता पूर्वक निर्वहन किया है। उनकी जीवन शैली किसी भी आयु के व्यक्ति के लिए, किसी भी समाज के लिए अनुकरणीय है।
उम्र के इस पड़ाव पर आकर अब वे अपने संचित ज्ञान और अनुभव का लाभ नई पीढ़ी को प्रदान करने का प्रयास कर रहे हैं। उनके जूनियर भी उनके मार्गदर्शन में उन्हीं की तरह कुशलता से अपना कार्य करते हुए बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं।  

2 टिप्‍पणियां:

  1. Very inspiring jouney and commendable work for society at large . We are indeed proud to be your children . May you keep inspiring us in years to come with your indomitable spirit and never say die attitude .Madhumita Sinha

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