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रविवार, 11 अगस्त 2019

पुलिस-पब्लिक समन्वय की जीवंत मिसाल हैं डीएसपी विमलेश त्रिपाठी


मनोहरपुर। पुलिस और पब्लिक के बीच बेहतर समन्वय कायम करना समय की मांग है। लेकिन कम ही अधिकारी यह समायोजन कर पाते हैं। लेकिन सजग और कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी इसका सफलतापूर्वक निर्वहन करते हैं। वे अपनी प्रतिभा का परचम लहराते रहते हैं। अपनी बेहतरीन कार्यशैली प्रदर्शित कर काफी कम समय में ही लोकप्रियता हासिल करने में सफल हो जाते हैं। अपने कर्तव्यों के प्रति सजग होकर विभागीय कार्यों का त्वरित निष्पादन भी करते हैं। ऐसी ही एक शख्सियत हैं चाईबासा जिले के मनोहरपुर में पदस्थापित पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) विमलेश कुमार त्रिपाठी। श्री त्रिपाठी ने काफी कम समय में ही अपनी उत्कृष्ट कार्यशैली से पुलिस महकमे में तो अपनी एक विशेष पहचान बना ही ली है, नागरिकों के बीच भी उन्होंने खासी लोकप्रियता अर्जित करने में सफलता प्राप्त की है। श्री त्रिपाठी की कार्यशैली और कर्तव्यनिष्ठा की चर्चा चहुंओर हो रही है। उत्तर प्रदेश के देवरिया जिला अंतर्गत नोनापार गांव के निवासी और प्रख्यात समाजसेवी स्वर्गीय विश्वंभर तिवारी के पुत्र विमलेश त्रिपाठी की प्रारंभिक शिक्षा तो गांव में हुई, लेकिन इसके बाद वह झारखंड राज्य के हजारीबाग आ गए और वहां से उन्होंने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई की। इंटरमीडिएट की परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने वाराणसी से स्नातक और स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की। गोरखपुर से उन्होंने बीएड भी किया। इसके बाद श्री त्रिपाठी ने हजारीबाग स्थित एक उच्च विद्यालय में शिक्षण का कार्य प्रारंभ किया। बतौर शिक्षक श्री त्रिपाठी ने बखूबी अपनी भूमिका निभाई और छात्रों के बीच काफी लोकप्रिय हुए। बहुमुखी प्रतिभा के धनी श्री त्रिपाठी छात्रों और स्कूल के अन्य शिक्षकों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गए। आज भी उनसे शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्र उन्हें याद कर उनका सम्मान करते हैं। उनकी प्रतिभा के कायल हैं। कुछ दिनों तक शिक्षण कार्य करने के बाद श्री त्रिपाठी झारखंड लोक सेवा आयोग की परीक्षा में सम्मिलित हुए और सफल रहे। उनकी नियुक्ति पुलिस उपाधीक्षक के पद पर हुई। पलामू में वह प्रोबेशन पर रहे। वहां प्रशिक्षण प्राप्त किया। तत्पश्चात उनका पहला पदस्थापन मनोहरपुर में हुआ। श्री त्रिपाठी अपने कार्यों के प्रति काफी लगन शील रहते हैं। जनता के बीच पुलिस की छवि बेहतर बनाने और पुलिस को पब्लिक फ्रेंडली बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। अमन पसंद लोगों के बीच श्री त्रिपाठी खासे लोकप्रिय हैं। शहर में विधि व्यवस्था बनाए रखने और शहर को अपराध मुक्त करने में वह सदैव तत्पर रहते हैं। अपने शीर्ष अधिकारियों का मार्गदर्शन प्राप्त कर अपने मातहत कर्मियों को यथोचित दिशा निर्देश देते हुए अपने कार्यों के प्रति वफादारी निभाने में वह सदैव सक्रिय रहते हैं। अपराध और नक्सल गतिविधियों पर काबू पाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। उनका मानना है कि शहर को अपराध मुक्त करने से ही अमन चैन बरकरार रहेगा। असामाजिक तत्वों के लिए वह कहर बनकर बरसते हैं, वही अमन पसंद लोगों के बीच वह एक बेहतरीन इंसान और उनके हमसफर की भूमिका में रहते हैं। श्री त्रिपाठी मृदुभाषी जांबाज और नेक दिल इंसान हैं। आम जनता के बीच उनकी छवि एक कर्मठ पुलिस अधिकारी के रूप में तो है ही, लोग एक अच्छे समाजसेवी के रूप में भी उन्हें सम्मान देते हैं। जन समस्याओं के समाधान के प्रति तत्पर रहना उनकी दिनचर्या में शुमार है। सर्व धर्म समभाव की भावना रखते हुए वह सभी धर्मों का समान आदर करते हैं। वह कहते हैं कि पुलिस अधिकारी जनता और पुलिस विभाग के बीच एक सेतु के रूप में होते हैं। उन्हें आम जनता के साथ समन्वय बनाकर शहर को अमन जैन बरकरार रखने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए। इससे हमारा देश व समाज सशक्त होगा।
 * प्रस्तुति : विनय मिश्रा

राष्ट्रहित को स्वहित से ऊपर मानती हैं अनुपमा लोचन



महिलाएं अपनी जुनूनी तेवर और काबिलियत से इतिहास रच रही हैं। रसोई से निकलकर चांद को छूने वाली महिलाएं वर्तमान में नए भारत की तस्वीर गढ़ रही हैं। कई महिलाओं ने हमारे देश को खुद पर गर्व करने का अवसर प्रदान किया है। चूल्हे से चांद तक बढ़ रही महिलाएं देश का गौरव बढ़ा रही हैं। समाज सेवा के क्षेत्र में भी कई महिलाएं परचम लहरा रही हैं। ऐसी ही शख्सियतों में शुमार हैं, राजधानी रांची निवासी लोकप्रिय सामाजिक कार्यकर्ता अनुपमा लोचन। श्रीमती अनुपमा मानवीय मूल्यों से परिपूर्ण एक प्रतिभावान व संवेदनशील महिला हैं। वह मानवता की जीवंत प्रतिमूर्ति हैं। वह राष्ट्रहित और समाज हित को स्वहित से ऊपर मानती हैं। अनुपमा की प्रारंभिक शिक्षा पटना में हुई। वहां उनके पिता बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग में सेवारत थे। अनुपमा ने पटना स्थित संत जोसेफ स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की। जेडी वूमेंस कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की। तत्पश्चात मगध महिला कॉलेज से एम ए की डिग्री ली। समाजसेवा का जज्बा और जुनून उनके अंदर बचपन से ही रहा है। सामाजिक कार्यों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता देखते ही बनती है। समाजसेवा की प्रेरणा उन्हें अपने माता पिता से मिली। वह वर्ष 1992 में वैवाहिक बंधन में बंधी। उनके पति  राजीव लोचन भी बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति हैं। वे  राजधानी रांची स्थित सीएमपीडीआई में शीर्ष अधिकारी हैं। सामाजिक कार्यों के प्रति अनुपमा की अभिरुचि देखते हुए उनके पति राजीव लोचन ने भी उनका साथ देना शुरू किया। हर कदम पर अनुपमा को प्रोत्साहित करते रहे।  वह शहर की विभिन्न सामाजिक संगठनों से भी जुड़ी हैं। वर्तमान में अनुपमा लायंस क्लब ऑफ रांची ईस्ट की वाइस प्रेसिडेंट है। उनका मानना है कि महिलाएं न सिर्फ किचन में मसालों के बैलेंस करना जानती है, बल्कि जिंदगी को बैलेंस करना भी बखूबी जानती है। अब तक यही माना जाता रहा है कि महिलाओं की जगह सिर्फ किचन में होती है और उनका काम सिर्फ भोजन पकाना व घर बच्चों को संभालना है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से देश की महिलाओं ने इस अवधारणा को तोड़ने में सफलता पाई है। महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं। अनुपमा मानव विकास मंत्रालय द्वारा जारी एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताती हैं कि देश के करीब एक तिहाई सरकारी स्कूलों में लड़कियों के लिए शौचालयों की सुविधा नहीं है, इस कारण बड़ी संख्या में लड़कियां स्कूल छोड़ देती हैं, वहीं दूसरी तरफ 22 लाख से भी ज्यादा लड़कियों की शादी कम उम्र में हो कर दी जाती है, जिस वजह से लड़कियों का स्कूल छूटना स्वाभाविक है। वह कहती है कि लड़कियों की शिक्षा और स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देना जरूरी है। वह समाज में महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार देने की पक्षधर हैं। उनका मानना है कि समाज में व्याप्त कुरीतियां सामाजिक विकास में बाधक हैं। इन कुरीतियों और कुप्रथाओं को दूर करने की दिशा में सरकारी व गैर सरकारी स्तर पर सामुहिक प्रयास किया जाना आवश्यक है। समाज में नई सोच और नई जागृति लाने की आवश्यकता है। वह कहती हैं कि ग्रामीण स्तर पर भी महिलाओं को सशक्त बनाने की जरूरत है। ग्रामीण विकास के बिना सर्वांगीण विकास की बातें बेमानी है। अनुपमा अपने घर-परिवार और बच्चों की देखभाल बखूबी करते हुए अपने वर्कफ्रंट के उत्तरदायित्व को भी बेहतर तरीके से संचालित कर रही हैं। सामाजिक कार्यों के प्रति अपने दायित्वों का भी बखूबी निर्वहन कर रही हैं। वह समाज सेवा को सर्वोपरि मानती हैं। अनुपमा गृहिणियों, कामकाजी महिलाओं, युवतियों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। समाज सेवा उनकी दिनचर्या में शुमार है। सामाजिक कार्यों के प्रति उनकी लगन और निष्ठा अनुकरणीय है।
वह कहती हैं कि महिलाओं को सिर्फ रसोई तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि चौखट से बाहर निकल कर अपने अधिकार और दायित्वों के प्रति भी सजग रहने की आवश्यकता है। यह वर्तमान समय की मांग भी है। इससे हमारा देश व समाज सशक्त होगा।

शुक्रवार, 9 अगस्त 2019

चक्रधरपुर में गरीबों के "निरुप"




चक्रधरपुर। कम ही लोग होते हैं जो अपने नाम के शाब्दिक अर्थ को हकीकत में भी सार्थक बनाते हैं. चक्रधरपुर में एक ऐसा ही नाम है निरुप प्रधान ...
"निरुप" अर्थात "भगवान्" ...

जी हाँ चक्रधरपुर का निरुप प्रधान आज हर उस गरीब शख्स के लिए सहारा है जो गरीबी से उबरकर एक बेहतर जिंदगी जीने की सोच रखता है. वह उस गरीब के लिए भगवान् है जो अपनी क़ाबलियत के बलबूते जीवन से संघर्ष कर शिखर तक पहुँचने का माद्दा रखता है. वह उस गरीब परिवार के लिए मददगार है जिसकी तमन्ना है की उसके परिवार का एक संतान सरकारी रोजगार प्राप्त कर पुरे परिवार को खुशहाल करे.

महज पांच साल में तक़रीबन 700 से अधिक युवाओं को फ्री कोचिंग देकर सरकारी नौकरी दिला चुके निरुप प्रधान ने चक्रधरपुर नगर परिषद् के कुद्लीबाड़ी और हरिजन बस्ती जैसे अति पिछड़े मोहल्ले के युवक युवतियों को मुफ्त में प्रतियोगिता परीक्षा के लिए तैयार करने का संकल्प लिया है. निरुप ने इसके लिए इन स्लम बस्तियों में जाकर गरीब प्रतिभावान युवाओं का चयन किया है.

दस लाख पॅकेज की नौकरी छोड़ने वाला रेलवे खलासी का बेटा निरुप प्रधान ने बताया की इन युवाओं को वे तबतक प्रतियोगिता परीक्षा की कोचिंग देते रहेंगे जबतक इन्हें कोई सरकारी नौकरी नहीं मिल जाती. निरुप का कहना है की एक गरीब परिवार का एक भी संतान अगर सरकारी नौकरी में जाता है तो पूरा परिवार गरीबी दंश से बच जाता है.

बता दें की चक्रधरपुर के खपरैल झोंपड़े में शिक्षा कोचिंग चलाने वाला निरुप प्रधान एनआईटी का छात्र रहा है. उसने प्रतिष्ठित संसथान में लाखों के पॅकेज की नौकरी बस इसलिए छोड़ दी क्योंकि निरुप ने गरीबों को गरीबी से उबारने का संकल्प लिया है. इस निरुप ने वाकई अपने नाम के साथ न्याय किया है. भगवान् धरती पर भले ही ना आ सकें लेकिन उपरवाले से गुजारिश होगी की ऐसे निरुप और भेजें.

गुरुवार, 17 जनवरी 2019

समाजसेवा के प्रति समर्पित हैं सैयद हसनैन जैदी


* सही मायने में वही समाजसेवी समाज के प्रति समर्पित हैं जो नेकी कर दरिया में डाल के सिद्धांतों पर चलते हैं। अपना कर्म करते रहें, फल की चिंता न करें। इन सिद्धांतों के हिमायती रहे हैं राजधानी के हिंदपीढ़ी स्थित ग्वालाटोली निवासी लोकप्रिय सामाजिक कार्यकर्ता सैयद हसनैन जैदी। वह पीड़ितों व गरीबों के सहायतार्थ सदैव तत्पर रहते हैं। परोपकार करना उनकी दिनचर्या में शुमार है। हसनैन जैदी की प्रारंभिक शिक्षा पलामू जिले के बरवाडीह से हुई। राजधानी रांची स्थित मौलाना आजद कॉलेज से उन्होंने इंटरमीडिएट किया। स्नातक की पढ़ाई के लिए पटना गए, लेकिन कतिपय कारणों से आगे की पढ़ाई जारी नहीं रख सके। उनके पिता स्व. सैयद तौकीर हुसैन जैदी रेलकर्मी  थे। वह भी सेवानिवृति के बाद सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया करते थे। हसनैन जैदी को समाजसेवा की प्रेरणा अपने पिता से मिली। जीविकोपार्जन के लिए उन्होंने व्यवसाय शुरु किया। पेशे से व्यवसायी हसनैन बचपन से ही दयालु प्रवृति के रहे हैं। किसी की पीड़ा देखकर द्रवित हो जाना और उसकी सहायता में  जुट जाना उनकी आदतों में शुमार है। वह समाजसेवा को सर्वोपरि समझते हैं। सभी धर्मों को समान आदर देना, विभिन्न धर्मों के धार्मिक आयोजनों के अवसर पर  सेवा शिविर लगाकर सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल पेश करना उनकी खासियत है। हर साल वह हज के समय आजमीने हज की सुविधा के लिए मक्का-मदीना में सेवा शिविर का आयोजन करते हैं। यह धर्म के प्रति उनकी आस्था का प्रतीक है। पूरे विश्व से आनेवाले हजयात्रियों को किसी प्रकार की परेशानी न हो, इसका वह ध्यान रखते हुए शिविर लगाते हैं। मुख्य रूप से उनका सामाजिक व राजनीतिक कार्यक्षेत्र यूं तो उनके पैतृक निवास स्थान झारखंड के हुसैनाबाद प्रखंड अंतर्गत है, लेकिन समाजसेवा के क्षेत्र में उनका बृहत दायरा है। जाड़े के दिनों में वह अपने वाहन में कंबल व अन्य गर्म वस्त्र साथ लेकर चलते हैं। कहीं भी ठंढ से ठिठुरते गरीब पर नजर पड़ी तो उन्हें कंबल व अन्य गर्म वस्त्र दानस्वरूप दे देते हैं। वह एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल से भी जुड़े हैं। उनका राजनीतिक कार्यक्षेत्र हुसैनाबाद प्रखंड है। वह समाजसेवा को सर्वोपरि मानते हैं। हसनैन जैदी कहते हैं कि दलगत राजनीति से ऊपर उठकर समाजसेवा करनी चाहिए। राजनीतिक क्षेत्र में रहते हुए समाज को लाभान्वित करने से राजनीति का मकसद पूरा हो जाता है। वह दानवीर भी हैं। रांची के ओरमांझी प्रखंड अंतर्गत कुच्चू गांव में कब्रिस्तान के लिए कम पड़ रही जमीन के बारे में उन्हें जब जानकारी मिली तो उन्होंने अपनी पुश्तैनी जमीन सहित अन्य जमीन क्रय कर कब्रिस्तान निर्माण के लिए तकरीबन 50 डिसमिल जमीन दान में दी। वह कहते हैं कि जनता के बीच समाजसेवी के रूप में कार्य कर रहा हूं। जनता ने जनप्रतिनिधि बनने का अवसर दिया तो उनकी आकांक्षाओं के अनुरूप राजनीति में भी सक्रिय भूमिका निभाएंगे। समाज के प्रति अपने संदेश में वह कहते हैं कि सभी जाति, धर्म व संप्रदाय के लोगों को देश की एकजुटता व अखंडता के लिए प्रयासरत रहने की आवश्यकता है। इससे राष्ट्र सशक्त होता है।
प्रस्तुति : नवल किशोर सिंह

बुधवार, 14 नवंबर 2018

अनुकरणीय :मानवसेवा की प्रतिमूर्ति हैं विनोद भगेरिया

* समाज के लिए समर्पित व्यक्तित्व

रांची। कुछ लोगों के लिए निज हित नहीं, समाज हित सर्वोपरि होता है। ऐसे व्यक्ति समाज के लिए जीते और मरते हैं। व्यक्तिगत स्वार्थ से परे हटकर पीड़ित मानवता की सेवा में अपने जीवन की आहुति दे देते हैं। ऐसी ही एक शख्सियत हैं झारखंड के चक्रधरपुर (सीकेपी) निवासी लोकप्रिय सामाजिक कार्यकर्ता विनोद कुमार भगेरिया। श्री भगेरिया किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। बचपन से ही शालीन और मृदुभाषी विनोद मिलनसार प्रवृत्ति के हैं। स्थानीय लोगों के सुख दुख मे शामिल होना उनकी आदतों में शुमार है। अपने पारिवारिक दायित्वों और व्यावसायिक कार्यों को बखूबी निभाते हुए सामाजिक गतिविधियों में बढ़चढ़कर हिस्सा लेते हैं। समाजसेवा के कार्यों को धरातल पर उतारने के लिए उन्होंने स्वयंसेवी संस्था भगेरिया फाउंडेशन का गठन किया है। पेशे से व्यवसायी श्री भगेरिया रोटरी क्लब, रेडक्रॉस सोसाइटी सहित विभिन्न सामाजिक व धार्मिक संगठनों से भी जुड़े हैं। उन्होंने अपने कुछ सहयोगियों को साथ लेकर मिशन एक प्रयास कार्यक्रम की शुरुआत की है। इसके तहत शहर की मलीन बस्तियों में गरीब व हाशिए पर रहने को विवश लोगों की सहायता की जाती है। चक्रधरपुर के स्लम बस्तियों में रहनेवाले लोग उन्हें अपना मसीहा मानते हैं। झुग्गी झोपड़ी में बुनियादी सुविधाओं से वंचित लोगों को हरसंभव मदद करना, उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल आदि की सुविधाएं उपलब्ध कराने के प्रति उनकी सक्रियता की वजह से लोग उन्हें श्रद्धा और सम्मान देते हैं। प्रत्येक वर्ष नियमित रूप से नववर्ष के अवसर पर आदिम जनजाति के बच्चों के बीच वस्त्र और अन्य सामग्री का वितरण करना उनका शौक है। बिरहोर व अन्य आदिम जनजाति समुदाय के लोग उन्हें मसीहा के तौर पर सम्मान देते हैं। यही नहीं, वह पीड़ित मानवता की सेवा के प्रति भी समर्पित रहते हैं। गरीबों को नि:शुल्क शिक्षा दिलाना, स्वास्थ्य शिविर का आयोजन, रक्तदान शिविर लगाना, गरीबों के बीच कंबल वितरण आदि सामाजिक कार्यों को बखूबी अंजाम देने में जुटे रहते हैं। उनके इस पुनीत कार्य में उनकी संस्था के सहयोगी व अन्य सामाजिक संस्थाओं का सहयोग मिलता है। भूखे प्यासे लोगों को रोटी व उनके निवाले का इंतजाम करना उनकी महानता का परिचायक है। प्रत्येक शनिवार को श्री भगेरिया सामाजिक संस्था जननायक समिति को सहयोग करते हुए चक्रधरपुर रेलवे स्टेशन पर गरीबो को रोटी- सब्जी मुहैया कराते हैं। उनकी संस्था समय- समय पर रक्तदान शिविर का भी आयोजन करती है। आगामी माह 2 दिसंबर को चक्रधरपुर में उनकी संस्था का 9 वां रक्तदान शिविर का आयोजन निर्धारित किया गया है। वह बताते हैं कि मानवता की सेवा सबसे बड़ा मानव धर्म है। गरीबों की सेवा से सुखद अनुभूति मिलती है। श्री भगेरिया कहते हैं कि अपने जीवन को धन्य बनाना है तो मानवसेवा को अपना मिशन बनाएं। जीवन सार्थक होगा।
(रांची से प्रकाशित हिन्दी सांध्य दैनिक मेट्रो रेज से साभार )

शुक्रवार, 5 अक्टूबर 2018

बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं अर्चित आनंद


* जल, पर्यावरण संरक्षण और खेल के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए मिला सम्मान

रांची।सामाजिक,धार्मिक व आध्यात्मिक गतिविधियों के साथ-साथ मानव हित के लिए आवश्यक तत्वों के संरक्षण के प्रति सक्रियता बहुमुखी प्रतिभा का परिचायक है। राजधानी रांची में ऐसी ही एक शख्सियत हैं अर्चित आनंद (अनु जी) । इनका जन्म पलामू में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा- दीक्षा पटना में हुई। उच्च शिक्षा के लिए इन्होंने दिल्ली का रुख किया। दिल्ली विश्वविद्यालय से डिग्री लेकर समाजसेवा के क्षेत्र में काम करने का मन बनाया। अर्चित के पिता बिहार सरकार के  अधिकारी रह चुके हैं। उनसे प्रेरित होकर रांची को उन्होंने अपना कार्यक्षेत्र चुना। समाजसेवा के क्षेत्र में उनके जज्बे   ने ऐसा रंग दिखाया कि काफी कम समय में ही उनकी पहचान एक सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में पूरे झारखंड में स्थापित हो गई। अलग झारखंड राज्य गठन के बाद से ही उन्होंने रांची को अपना कार्यक्षेत्र बना लिया। स्वयंसेवी संस्था "पेटसी" के माध्यम से झारखंड के अलावा बिहार के सीतामढ़ी व सिवान जिले में जल संरक्षण व पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में जन जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। उनका मानना है कि जन, जंगल, जमीन, जल व जानवर, इन पांचों के बीच समन्वय स्थापित करना जरूरी है। पर्यावरण व जल संरक्षण की दिशा में अपनी संस्था के माध्यम से लोगों को जागरूक करने में जुटे हैं। झारखंड राज्य जलछाजन मिशन के सहयोग से धनबाद जिले के 82 गांवों में जल संरक्षण का कार्य किया जा रहा है। उनका कहना है कि जिस तरह आज लोगों को बोतलबंद पानी पीना पड़ रहा है, यदि समय रहते हम नहीं चेते, तो आनेवाले समय में बोतलबंद ऑक्सीजन लेकर चलना पड़ेगा। उन्होंने इस दिशा में सरकारी व गैर सरकारी स्तर पर प्रयास किए जाने पर बल दिया। वह कहते हैं कि सरकार को जल संरक्षण के लिए अलग से मंत्रालय बनाने की आवश्यकता है। अर्चित आनंद को पर्यावरण व जल संरक्षण के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए लायंस क्लब द्वारा पर्यावरण संरक्षण सम्मान, गांधी आश्रम द्वारा गांधी सेवा सम्मान, दिव्य प्रेम सेवा मिशन, हरिद्वार द्वारा पर्यावरण मित्र सम्मान सहित अन्य संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है। वह अब तक करीब पांच लाख पौधरोपण कर चुके हैं। अर्चित अनु जी की रुचि खेलों के प्रति भी बचपन से ही रही है। क्रिकेट के जिला व राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में भी शामिल हो चुके हैं। रांची में अपनी माता जी के नाम पर दीदी नीलम आनंद क्रिकेट टूर्नामेंट का आयोजन कर खेल प्रतिभाओं को आगे लाने और उन्हें समुचित सुविधाएं मुहैया कराने के लिए उनके प्रयासों की चहुंओर सराहना की जाती है। इस टूर्नामेंट की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसमें झारखंड के अलावा विभिन्न राज्यों के खिलाड़ी भी शिरकत करते हैं। खेल के प्रति इनके समर्पण को देखते हुए हाल ही में इन्हें झारखंड कबड्डी एसोसिएशन का चेयरमेन मनोनीत किया गया है। राजधानी रांची में रॉकमेन्स क्रिकेट एकेडमी का भी संचालन अर्चित करते हैं। इसमें क्रिकेट के खिलाड़ियों को प्रशिक्षित कर उन्हें समुचित सुविधाएं दी जाती है। वह कई खेल संगठनों से भी जुड़े हैं। पावर लिफ्टिंग एसोसिएशन में भी सक्रिय सदस्य हैं। अर्चित आनंद के अंदर साहित्यिक क्षमता भी है। वह धार्मिक मासिक पत्रिका " महागुरू महादेव " का प्रकाशन भी करते हैं। जिसका संपादन साहित्यकार व समाजसेवी अनुनीता जी करती हैं। अर्चित 'अनु ' बताते हैं कि धार्मिक पत्रिका महागुरू महादेव की 52 हजार प्रतियां प्रति माह बिक्री होती है। उनका मानना है कि समाज के हर धर्म के लोगों को समान आदर दिया जाना चाहिए। धार्मिक व आध्यात्मिक आयोजनों से सामाजिक वातावरण में शुद्धता आती है। वह कहते हैं कि लोगों को अपनी ऊर्जा सकारात्मक कार्यों में लगाने की आवश्यकता है। इससे समाज और देश सशक्त होगा।

बुधवार, 19 सितंबर 2018

संगठन के प्रति समर्पण की मिसाल हैं शशिभूषण

:
साफ-सुथरी छवि के बलबूते बनी पहचान 

रांची। समाज में आपकी छवि साफ-सुथरी है, तो हर जगह सम्मान पाएंगे। सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक सहित किसी भी संगठन से जुड़ें तो समर्पण भाव से। तभी जीवन की सार्थकता है। इसे सच साबित कर दिखाया है राजधानी के चुटिया मुहल्ला निवासी सामाजिक व राजनीतिक कार्यकर्ता शशिभूषण राय ने। संगठन के प्रति समर्पण कोई उनसे सीखे। श्री राय की प्रारंभिक शिक्षा शहर के प्रतिष्ठित संत पॉल स्कूल से हुई। रांची कॉलेज से उन्होंने स्नातक की डिग्री हासिल की। अपनी व्यवहार कुशलता से छात्र जीवन में ही सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में विशिष्ट पहचान बनाई। साथियों के सुख- दुख में शामिल होना उनकी दिनचर्या में शुमार हो गया। पढ़ाई के अलावा समाज के लिए कुछ सकारात्मक कार्य करने के उनके जज्बे और जुनून देखकर कांग्रेस पार्टी की छात्र इकाई भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन (एनएसयूआई ) के तत्कालीन छात्र नेताओं ने उन्हें संगठन से जुड़ने की सलाह दी। उन दिनों रांची विश्वविद्यालय में छात्र संगठन एनएसयूआई काफी सक्रिय भूमिका में छात्र हित के लिए संघर्षरत रहा करता था। श्री राय एनएसयूआई से जुड़े और छात्र हित के लिए आंदोलन में अहम भूमिका निभाने लगे। संगठन के प्रति उनका समर्पण और उनकी कर्तव्यनिष्ठा देखकर वर्ष 1980 के दशक में उन्हें रांची जिला युवा कांग्रेस के अध्यक्ष का पदभार दिया गया। सात वर्षों तक श्री राय यूथ कांग्रेस के प्रेसिडेंट पद का बखूबी निर्वहन करते रहे। इसके बाद प्रदेश कांग्रेस कमेटी में सचिव मनोनीत किए गए। कांग्रेस के प्रवक्ता पद पर रहे। उनकी सांगठनिक क्षमता  और राजनीतिक दूरदर्शिता को देखते हुए कांग्रेस पार्टी ने फिलवक्त उन्हें झारखंड के पाकुड़ जिले का प्रभारी बनाया है।
  गौरतलब है कि शशिभूषण राय के घर का माहौल भी पूर्व से ही सामाजिक और राजनीतिक रहा है। उनके पिता स्व. प्रह्लाद राय बिहार- झारखंड के जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता थे। उनके घर उन दिनों देश के दिग्गज राजनेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं का आना-जाना लगा रहता था। बता दें कि उनका घर संयुक्त परिवार की मिसाल है। भाइयों व परिवार के अन्य सदस्यों के विपरीत राजनीतिक विचारधारा के बीच पारिवारिक सामंजस्य की बानगी देखनी हो, तो शशिभूषण राय के घर में देखें । कोई भाजपा के समर्थक हैं, तो कोई अन्य राजनीतिक- सामाजिक संगठनों के। फुरसत के क्षण में घर व प्रतिष्ठान में भी राजनीतिक हालातों पर इनके भाइयों व अन्य सदस्यों के बीच खुलकर चर्चा होती है। वहीं पारिवारिक माहौल को राजनीति से बिल्कुल दूर रखा जाता है। सभी व्यवसाय जगत से जुड़े हैं। राजनीतिक व व्यावसायिक गतिविधियों के अलावा शशिभूषण सामाजिक संस्था "आयाम " से जुड़े हैं। इसके माध्यम से गरीब बच्चों की शिक्षा, उनके स्वास्थ्य ,पोषण आदि के कार्यों में भी बढ़चढ़कर हिस्सा लेते हैं। श्री राय कहते हैं कि ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा और समर्पण के बलबूते ही सफलता की सीढ़ियां चढ़ सकते हैं। मुकाम हासिल कर सकते हैं।

शनिवार, 1 सितंबर 2018

81 की उम्र में 18 का जज्बा



अनुकरणीय है प्लीडर कमिश्नर रमेश चंद्र सरकार का व्यक्तित्व

कुछ करने का जज्बा हो, सोच हो तो उम्र मायने नहीं रखती। आमतौर पर 60 की आयु पार करने के बाद अधिकांश
 लोग स्वयं को बीमार और थका हुआ महसूस करने लगते हैं। लेकिन झारखंड सरकार के प्लीडर कमिश्नर रमेश चंद्र सरकार इसके अपवाद हैं। वे 81 वर्ष के हो चुके है। लेकिन अभी भी पूरी तरह चुस्त-दुरुस्त और सक्रिय सामाजिक जीवन जी रहे हैं। अब नियमित रूप से कोर्ट नहीं जाते। खास मामलों में ही राज्य सरकार का पक्ष रखने के लिए काला कोट धारण करते हैं। ज्यादातर समय घर पर ही रहकर अपने जूनियर वकीलों का मार्गदर्शन करते हैं और स्वाध्याय अथवा सामाजिक कार्यों में व्यस्त रहते हैं। धर्म और अध्यात्म की चर्चा के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। समाजसेवियों का उनके पास आना-जाना लगा रहता है। उम्र के इस पड़ाव पर भी उनकी चुस्ती और ऊर्जा को देखकर युवाओं को ईर्ष्या हो सकती है। उन्होंने रांची के सिंहमोड़ के पास विकास नगर रोड नं-2 स्थित अपने घर पर फिटनेश के लिए जिम के सारे उपकरण रखे हैं और नियमित व्यायाम करते हैं।

रमेश सरकार ने एमबीए, डिप्लोमा इंजीनियरिंग (विद्युत), एलएलबी के अलावा राजनीति शास्त्र तथा लेबर एंड सोशल वेलफेयर विषय में एमए किया है। वे एचइसी में मैनेजर के पद पर कार्यरत थे। 1991 में वीआरएस लेने के बाद हाई कोर्ट में वकालत शुरू की। वे सिविल के विशेषज्ञ बने। एक अधिवक्ता के रूप में भी उन्होंने समाज सेवा का धर्म अपनाया। गरीबों का केस वे मुफ्त लड़ते थे। बल्कि अक्सरहां अपनी जेब के पैसे भी उनपर खर्च कर डालते थे। वकालत उनके लिए कभी भी कमाई का माध्यम नहीं रहा।
पढ़ने-लिखने में इतनी दिलचस्पी है कि उनकी व्यक्तिगत लाइब्रेरी में हिन्दी, अंग्रेजी और बांग्ला भाषा की पुस्तकों का विशाल भंडार है। इनमें कानून की किताबें तो हैं ही साहित्य और धर्म तथा अध्यात्म की हजारों पुस्तकें शामिल हैं। उनके पास वेद, उपनिषद, ब्राह्मण, अरण्यक, स्मृति और पुराणों से लेकर गीता, महाभारत और रामायण के लगभग तमाम संस्करण तीनों भाषाओं में मौजूद हैं। शायद ही धर्मशास्त्र की कोई पुस्तक हो जो उनके पास नहीं हो। फुर्सत के समय वे इनके अध्ययन में लीन हो जाते हैं। अध्यात्म के प्रति अपने लगाव के कारण वे रामकृष्ण मिशन, योगदा सत्संग और चिन्मया मिशन से जुड़े रहे हैं। वे सामाजिक संस्था अपंजन बंगाली मिशन के अध्यक्ष हैं। सके कार्यक्रमों में नियमित भागीदारी करते हैं। वे अपने दो पुत्रों और एक पुत्री को पढ़ा-लिखाकर उच्च पदों पर आसीन करा चुके हैं। पत्नी के देहांत के बीस वर्ष गुजर चुके हैं। उन्होंने अपने परिवार, समाज, धर्म और पेशागत दायित्यों का कुशलता पूर्वक निर्वहन किया है। उनकी जीवन शैली किसी भी आयु के व्यक्ति के लिए, किसी भी समाज के लिए अनुकरणीय है।
उम्र के इस पड़ाव पर आकर अब वे अपने संचित ज्ञान और अनुभव का लाभ नई पीढ़ी को प्रदान करने का प्रयास कर रहे हैं। उनके जूनियर भी उनके मार्गदर्शन में उन्हीं की तरह कुशलता से अपना कार्य करते हुए बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं।  

शनिवार, 21 जुलाई 2018

कुशल गृहणी और प्रतिबद्ध समाजसेविका हैं रांची की किरण सिंह



* शराबबंदी के साथ उपभोक्ता जागरण का चला रही अभियान.


रांची। कहते हैं दिल में जोश, जज्बा और जूनून हो तो कोई काम असंभव नहीं है।  इसे चरितार्थ कर रही हैं राजधानी स्थित निवारणपुर मुहल्ले की निवासी लोकप्रिय समाजसेवी किरण सिंह। समाजसेवा का जुनून उनके सिर चढ़कर बोलता है। साधारण परिवार में जन्मी, पली-बढ़ी किरण की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा जमशेदपुर मे हुई। वहीं ग्रेजुएट कालेज से उन्होंने स्नातक की परीक्षा पास की। बचपन से ही किरण को समाजसेवा का शौक था। वह अपने आसपास पीड़ितों को देखकर परोपकार की भावना से ओतप्रोत हो जाती थी। स्नातक डिग्री लेने के बाद उनके भीतर छिपे समाजसेवा की भावना हिलोरें मारने लगी।
इसी बीच उनका विवाह हुआ। संयोग कहें या विधि का विधान, उनके पति राकेश कुमार सिंह  भी अपनी पत्नी की भावनाओं की कद्र करते हुए समाजसेवा के क्षेत्र में उनका हाथ बंटाने लगे। गरीबों, असहायों, निर्बल व पीड़ितों की सेवा करना सिंह दंपती की दिनचर्या में शुमार हो गया। उनके दो संतान हैं। एक बेटा और एक बेटी। घर की दिनचर्चा संभालते हुए समाज के सुख-दुख में शामिल होना उनकी आदत बन गई है। किरण शराब और किसी भी तरह के नशापान की विरोधी हैं। समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने के प्रति भी संकल्पित हैं। सिटीजन एक्शन ग्रुप, (कार्यालय-अशोकनगर, रांची) सामाजिक संगठन बनाकर लोगों को समाज में फैली बुराईयों को दूर करने के काम को बखूबी अंजाम दे रही हैं। किरण बताती हैं कि वह निरंतर झारखंड में शराबबंदी लागू करने की मांग कर रही हैं। वहीं विशेष रूप से उनकी संस्था उपभोक्ताओं को जागरूक करने में जुटी है। इसके लिए शहरी क्षेत्रों के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों में भी लगातार अभियान चलाया जा रहा है। इस कार्य में उनके  पति भी कंधे से कंधा मिलाकर सहयोग करते हैं। समाज सेवा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य से प्रभावित होकर उनके पति राकेश सिंह को राज्य सरकार ने झारखंड राज्य उपभोक्ता संरक्षण परिषद का सदस्य मनोनीत किया है। वहीं किरण लगभग प्रत्येक दिन अपने घर के कामकाज को निबटा कर  अपनी संस्था की सदस्यों को साथ लेकर विभिन्न मुहल्लों में उपभोक्ताओं को जागरूक करने निकल पड़ती हैं। इस दौरान लोगों  से सामाजिक कुरीतियों को दूर करने में सहयोग की अपील भी करती हैं । किरण सिंह के इस कार्य से प्रेरित होकर कई गृहणियां समय निकालकर उन्हें सहयोग करने लगी हैं। वह कहती हैं कि सामाजिक स्वच्छता के लिए उपभोक्ता जागरूकता जरूरी है।

स्वर्ण जयंती वर्ष का झारखंड : समृद्ध धरती, बदहाल झारखंडी

  झारखंड स्थापना दिवस पर विशेष स्वप्न और सच्चाई के बीच विस्थापन, पलायन, लूट और भ्रष्टाचार की लाइलाज बीमारी  काशीनाथ केवट  15 नवम्बर 2000 -वी...