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बुधवार, 31 जुलाई 2019

कर्तव्यनिष्ठा की प्रतिमूर्ति रहे हैं सेवानिवृत्त आइजी मनोज मिश्र



विनय मिश्र

चक्रधरपुर। भारतीय पुलिस सेवा के विशिष्ट कार्यशैली व कर्तव्यनिष्ठा के जरिए महकमे व जनता के बीच खासी लोकप्रियता हासिल करने वाले ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ व लगनशील पुलिस अधिकारियों में मनोज कुमार मिश्र का नाम शुमार है। श्री मिश्र भारतीय पुलिस सेवा के वर्ष 1991 बैच के अधिकारी (अब सेवानिवृत) हैं। वह उत्तरी छोटानागपुर के पुलिस महानिरीक्षक के पद से सेवानिवृत हुए हैं। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई ऐसी उपलब्धियां हासिल की हैं, जो मील का पत्थर साबित हुई हैं। बिहार के मोतिहारी जिले के चकिया गांव में जन्मे श्री मिश्रा का बचपन ग्रामीण परिवेश में बीता। उनकी शिक्षा-दीक्षा गांव में ही हुई। चकिया स्थित हाई स्कूल से उन्होंने  मैट्रिक की परीक्षा पास की। उच्च शिक्षा के लिए पटना आ गए। बीएन कॉलेज से उन्होंने स्नातक की डिग्री हासिल की। इसके पश्चात  बिहार पब्लिक सर्विस कमीशन (बीपीएससी 24 बैच)  की परीक्षा में सफल रहे। उनका पहला पदस्थापन बतौर पुलिस उपाधीक्षक बिहार के भभुआ में हुआ। भभुआ में उन्होंने अपनी प्रतिभा का बेहतरीन प्रदर्शन कर जनता के बीच लोकप्रियता हासिल की। एक कर्तव्यनिष्ठ पुलिस अधिकारी के रूप में उन्होंने कम समय में ही पहचान बना ली। इसके बाद उनका पदस्थापन समस्तीपुर में एसडीपीओ के रूप में हुआ। वहां उन्होंने अपनी कार्यशैली से जनता का दिल जीत लिया। पब्लिक फ्रेंडली पुलिस अधिकारी के रूप में उनकी पहचान स्थापित हो गई। वहां विधि-व्यवस्था बनाए रखने और शहर को अपराधमुक्त करने में उनकी अहम भूमिका रही। जनता के कार्यों का त्वरित गति से निष्पादन करना दिनचर्या में शुमार रहा। उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब समस्तीपुर से उनका तबादला हुआ, तो जनता उनका स्थानांतरण रुकवाने को लेकर सड़कों पर उतर आई। उनके तबादले का अमनपसंद लोगों ने पुरजोर विरोध किया। अपराध नियंत्रण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती थी। श्री मिश्र झारखंड के कोडरमा व बेरमो में भी एसडीपीओ के पद पर अपनी सेवाएं दे चुके हैं। वहां भी अपनी प्रतिभा का परचम लहराने में सफल रहे। पुलिस विभाग में अन्य अधिकारी व कर्मी भी उनकी उत्कृष्ट कार्यशैली के मुरीद रहे हैं। चाईबासा और कोडरमा में पुलिस अधीक्षक के रूप में उन्होंने जनहित में कई ऐसे उल्लेखनीय कार्य किए हैं, जो आज भी चर्चा में हैं। अपराधियों के लिए वे कहर बनकर बरपते थे। जनता को अपराधमुक्त शहर देने के प्रति उनकी प्रतिबद्धता देखते ही बनती थी। शहर में सामाजिक समरसता बनाए रखने में भी उनकी भूमिका सराहनीय रहती थी। वह डीआईजी (मानवाधिकार) के पद पर भी रहे। मानवाधिकार के उल्लंघन के मामलों में सदैव सक्रिय रहे। श्री मिश्र उत्तरी छोटानागपुर के आईजी पद से सेवानिवृत हुए। सेवानिवृति के बाद भी वह जनसेवा में जुटे हैं। समाजसेवा को भी उतना ही अहमियत देते हैं जितना कि वह अपने सेवाकाल में सरकारी कार्यों को देते रहे। फिलवक्त श्री मिश्र समाजसेवा के कार्यों में भी बढचढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। उनका मानना है कि हर क्षेत्र में कर्तव्यनिष्ठा व ईमानदारी जरूरी है, तभी स्वस्थ और स्वच्छ भारत का सपना साकार हो सकता है।
                                                        प्रस्तुति : विनय मिश्रा

सोमवार, 22 अक्टूबर 2018

शिक्षित समाज से होगा विकासः बिनोद कुमार



बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं वरीय अधिवक्ता

कुछ लोग महज डिग्री हासिल कर पैसे कमाने को हीं जीवन का लक्ष्य मानते है। वहीं समाज में एैसे भी लोग है जो विभिन्न क्षेत्रो में डिग्री हासिल कर उसका सदुपयोग परोपकार के लिए भी करते हैं एैसी हीं एक शख्सियत में शामिल है राजधानी के बरियातू स्थित रामेश्वरम काॅलोनी निवासी वरीय अधिवक्ता बिनोद कुमार। बिहार के औरंगाबाद जिले के अम्बा कुटुम्बा गाँव के स्थायी निवासी बिनोद कुमार की प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा उनके पैतृक गांव में ही हुई। वहीं से उन्होंने मैट्रिक पास किया। तत्पश्चात् आगे के शिक्षा के लिए रांची आ गये। यहां से इण्टरमीडिएट और ग्रेजुएशन किया। उनके घर का माहौल समाजिक, शैक्षणिक और धार्मिक था। उनके पिता स्व0 चंद्रदेव सिंह जाने माने समाजिक कार्यकत्र्ता थे। वह आजीवन अपने गांव के मुखिया रहे। वहीं उनकी माता तिलेश्वरी कुंवर धार्मिक प्रवृति की महिला हैं। समाज सेवा से भी इनका गहरा तालुक्कात रहा है। घर में समाजिक वातावरण रहनें के कारण बिनोद कुमार भी इससे प्रभावित हुए। पढ़ाई के दौरान समाज सेवा में भी जुटे रहे। स्नातक की डिग्री लेने के बाद यु.पी.एस.सी की तैयारी के लिए दिल्ली की ओर रूख किया। वहीं से लाॅ की डिग्री ली इसके बाद पटना लौट आये। पटना विश्वविद्यालय से मनोविज्ञान में एम.ए. किया। इस क्रम में देश के दिग्गज विधि विशेषज्ञों के संपर्क में आये और उनसे प्रेरित होकर वर्ष 2001 में पटना हाई कोर्ट में वकालत शुरू की। वर्ष 2003 तक पटना हाई कोर्ट में अधिवक्ता के रूप में काम करते रहे इसके बाद इनको पटना भी रास नहीं आया और रांची चले आये। वर्ष 2004 से झारखण्ड हाई कोर्ट में बतौर वरीय अधिवक्ता कार्यरत हैं। इन्होंने अपने पुत्र व पुत्री को इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करा कर सक्षम बनाया है। बिनोद कुमार की पत्नी नीता सिंह एक कुशल गृहणी के साथ साथ एक समाजिक कार्यकत्र्ता भी हैं वह अपने पति के समाजिक कार्यों में भी सहभागिता निभाती हैं। फिलवक्त बिनोद कुमार लाॅ फर्म ग्लोबल लीगल साॅल्युशन के संचालक हैं। वह बताते है, कि इसके माध्यम से सक्षम लोगों को कानूनी सेवाएं मुहैया कराने के अलावा गरीब तबके के लोगों को मुफ्त कानूनी सहायता भी उपलब्ध कराते हैं। अपने पेशे के प्रति समर्पण का भाव रखते हुए उनकी अभिरूचि राजनीति में भी रहीं है। इसी वजह से राजनीति में भी रूझान रहा है। नतीजतन हाल हीं में उन्होंने प्रख्यात समाजवादी नेता लोकनायक जय प्रकाश नारायण से प्रेरित होकर राष्ट्रीय राजनीतिक संगठन जय प्रकाश जनता दल के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में पद भार संभाला है उनका मानना है कि शिक्षित समाज और साफ सुथरे राजनीतिक संगठन से हीं देश व राज्य समृद्ध हो सकता है वह राजनीति में जय प्रकाश नारायन को अपना प्रेरणास्रोत मानते हैं वहीं शैक्षणिक योग्यताएँ हासिल करने के लिए अपने गुरू पटना विश्वविद्यालय के विख्यात शिक्षाविद लाला निखिलेश कुमार सिन्हा को श्रेय देते हैं। बिनोद कुमार का मानना है कि शिक्षित समाज से हीं देश का विकास संभव है।

जन-जागरण के प्रति समर्पित समाजसेवी नंदकिशोर यादव

 :

अपने लिए तो हर कोई जीता है। परोपकार की भावना लिए समाज के लिए जीना महानता कहलाता है। इसे चरितार्थ कर रहे हैं एच ई सी आवासीय परिसर स्थित सीडी 659, सेक्टर टू निवासी समाजसेवी नंद किशोर यादव। श्री यादव ने वर्ष 2014 में एच ई सी से रिटायर होने के बाद समाजसेवा को अपना मुख्य लक्ष्य बना लिया। अपने लगन और परिश्रम के बलबूते इन्होंने इस क्षेत्र में सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में अपनी पहचान स्थापित की है। श्री यादव अपनी पत्नी रांची नगर निगम की पार्षद उर्मिला यादव को प्रेरणास्रोत मानते हैं। वह कहते हैं कि यूं तो सामाजिक कार्यों के प्रति अभिरुचि बचपन से ही रही, लेकिन समाजसेवा की प्रेरणा वास्तव में पत्नी से ही मिली। श्री यादव की प्रारंभिक शिक्षा बिहार के बांका जिला स्थित मुखाराम डोकानिया उच्च विद्यालय से हुई। वर्ष 1971 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की। वर्ष 1973 में कटिहार से आईटीआई किया। इसके बाद नौकरी की तलाश में जुट गए। इसी क्रम में रांची आए। एच ई सी के सीटीआई से दो साल तक अप्रेंटिस का कोर्स किया। तत्पश्चात वर्ष 1978 में एच ई सी में नियुक्त हुए। तकरीबन 35 वर्षों तक एच ई सी में सेवारत रहे। इस बीच अपने कार्यों के अलावा एच ई सी के श्रमिकों की समस्याओं के प्रति भी मुखर रहे। एच ई सी कर्मियों के बीच श्री यादव की छवि एक मृदुभाषी व सरल हृदय व्यक्ति की रही। सहकर्मियों के सुख-दुख में शामिल होना उनकी दिनचर्या में शुमार रहता था। अपने कार्यकाल के दौरान ही उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग में (अंशकालिक) डिप्लोमा कोर्स  किया। श्री यादव 31 जुलाई 2014 को सहायक प्रबंधक के पद से सेवानिवृत्त हुए।    बता दें कि श्री यादव कविता प्रेमी भी हैं। जब एच ई सी के स्वर्णिम दिन थे, उस समय प्रबंधन की ओर से हर साल शहीद मैदान, धुर्वा में कवि सम्मेलन का आयोजन होता था। इसमें देश के नामचीन कवि शामिल होते थे। श्री यादव वहां पहुंचते और कवि सम्मेलन का लुत्फ उठाते। यहीं से  कविताओं के प्रति उनकी दिलचस्पी बढ़ी। कवियों से प्रेरित होकर स्वयं कविताओं की रचना करने लगे। काम से फुरसत निकालकर कविता लेखन की ओर उन्मुख हुए। वह अब तक 30 कविताओं की रचना कर चुके हैं। अपनी कविता संग्रह को अब पुस्तक का रूप देने के लिए प्रयासरत हैं। इसी बीच समाजसेवा के प्रति समर्पित श्री यादव की पत्नी उर्मिला यादव एच ई सी क्षेत्र से नगर निगम की पार्षद चुनी गई। वह अपनी पत्नी के कार्यों में सहयोग करने लगे। अपने वार्ड अंतर्गत जनसमस्याओं के समाधान के लिए सुबह से शाम तक प्रयासरत रहना यादव दंपति की दिनचर्या है। समाजसेवा के प्रति यादव दम्पति के समर्पण का ही प्रतिफल है कि क्षेत्र की जनता ने श्रीमती उर्मिला यादव को लगातार तीसरी बार अपना जनप्रतिनिधि चुना। नंदकिशोर जी कहते हैं कि समाज में साफ- सुथरी छवि बहुत मायने रखती है। दूसरों के सुख और दुख का ख्याल रखेंगे तो ऊपरवाले की कृपा आप पर होगी। वह यह भी कहते हैं कि समाजसेवा के लिए उम्र कोई मायने नहीं रखता। सकारात्मक सोच से आप अपनी बढ़ती उम्र पर ब्रेक लगा सकते हैं।  समाज के लिए कुछ बेहतर करने का जज्बा, जोश और जुनून हो तो उम्र को पीछे धकेलकर इससे आगे निकलने की ख्वाहिशें पूरी हो सकती है। वह कहते हैं कि सेवानिवृत्ति के बाद भी उम्रदराज लोग अपने अनुभवों के आधार पर सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में सहभागिता निभा सकते हैं। साठ की उम्र पार करने के बाद भी जोश- खरोश और आत्मविश्वास से लबरेज रह सकते हैं। जरूरत है लगातार गतिशील रहने की।
* ( मेट्रो रेज, हिन्दी सांध्य दैनिक से साभार)

बुधवार, 10 अक्टूबर 2018

गरीबों की सेवा से होती है सुखद अनुभूति : रामाशंकर



* समाजसेवा को बनाया मिशन

रांची। अपने पेशे और परिवार के प्रति जिम्मेदारी निभाते हुए समाजसेवा   के लिए समय निकालना मनुष्य की महानता का परिचायक है। पीड़ित मानवता की सेवा के लिए तत्पर रहना और गरीबों के प्रति हमदर्दी रखना मानवसेवा की पहचान है। ऐसे ही सदगुणों से परिपूर्ण व्यक्तित्व के धनी शख्सियत हैं राजधानी के हटिया स्टेशन रोड स्थित बिरसा नगर निवासी समाजसेवी रामाशंकर। पेशे से होटल व्यवसायी रामाशंकर बचपन से ही गरीबों के प्रति हमदर्दी रखते आ रहे हैं। उनके पिता स्व. लक्ष्मण प्रसाद व माता स्व. अशर्फी देवी ने भी गरीबी को काफी करीब से देखा था। वह गरीबों के दुख दर्द और उनकी पीड़ा को समझते थे। रामाशंकर भी अपने माता पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए गरीबों की सेवा के प्रति समर्पण का भाव लिए तत्पर रहते हैं। अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों और होटल व्यवसाय के कामकाज निपटा कर सामाजिक और धार्मिक गतिविधियों मे हिस्सा लेते हैं। अपने पिता स्व. लक्षमण प्रसाद व अपनी माता स्व. अशर्फी देवी की स्मृति में प्रत्येक साल जाड़े के मौसम में ठंड से ठिठुरते गरीबों को कंबल प्रदान करते हैं। यह सिलसिला पिछले छह साल से अनवरत जारी है। हर वर्ग व हर समुदाय के गरीबों के बीच कंबल वितरण की प्रेरणा उन्हें अपने माता पिता से मिली है। वह बताते हैं कि जगन्नाथपुर मंदिर, काली मंदिर, हटिया व रांची स्टेशन, चर्च, मस्जिद आदि जगहों पर गरीबों के बीच कंबल बांटना, खाद्य सामग्री बांटने से उन्हें सुखद अनुभूति होती है। उन्होंने गरीबी को काफी करीब से देखा है, इसलिए गरीबों की पीड़ा को समझते हैं। समाजसेवा रामाशंकर का शौक है। वह हटिया क्षेत्र की विभिन्न सामाजिक व धार्मिक संगठनों से भी जुड़े हैं। वह कहते हैं कि समाजसेवा सर्वोपरि है। अपने लिए हर कोई जीता है, समाज के लिए जीना महानता है। युवाओं के प्रति अपने संदेश में रामाशंकर कहते हैं कि समाज की मुख्य धारा से जुड़कर युवाओं को सकारात्मक कार्यों में अपनी ऊर्जा का इस्तेमाल करना चाहिए। व्यक्ति को अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए सामाजिक दायित्वों के प्रति भी सक्रियता से लगे रहना चाहिए। इससे समाज सशक्त होगा, जो देश के मजबूत होने में सहायक होगा।

गुरुवार, 4 अक्टूबर 2018

महिला सशक्तीकरण को समर्पित नम्रता भारती यादव



* सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ संघर्षरत व्यक्तित्व

रांची। राजधानी रांची में पली, बढ़ी नम्रता भारती यादव झारखंड के आदिवासी बहुल क्षेत्र दुमका के पोड़ैयाहाट विधानसभा क्षेत्र में महिला सशक्तीकरण के लिए जन जागरुकता अभियान चला रही हैं। महिलाओं को स्वावलंबी बनाने की दिशा में उनका प्रयास रंग ला रहा है। नम्रता का जन्म 24 अगस्त 1988 को रांची में हुआ। प्रारंभिक और माध्यमिक शिक्षा एचइसी परिसर स्थित कैरेली स्कूल में हुई। डोरंडा के निर्मला कालेज से इंटरमीडिएट और डोरंडा कालेज से स्नातक किया। उन्होंने अंग्रेजी में एमए किया है। उनका विवाह दुमका के जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता विनोद यादव से हुआ। विवाह के बाद नम्रता ने भी दुमका को अपना कार्यक्षेत्र बनाया। वहां नवजीवन महिला जागृति केंद्र नामक स्वयंसेवी संस्था बनाकर सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने लगीं। इसके माध्यम से गरीब, दिव्यांग व समाज के दबे कुचले वर्ग के बच्चों और महिलाओं के उत्थान के लिए प्रयासरत रहने लगी। महिला सशक्तीकरण के तहत महिलाओं को स्वावलंबी बनाने की दिशा में प्रयास शुरू किया। सामाजिक कुरीतियों को वह समाज के लिए अभिशाप मानती हैं। उनका कहना है कि कुप्रथाओं और अंधविश्वास के कारण ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं का विकास बाधित होता है। उन्होंने सामाजिक कार्यों के तहत ग्रामीण विद्युतीकरण, महिला सशक्तीकरण, शिक्षा स्वास्थ्य और बुनियादी सुविधाओं के लिए कई उल्लेखनीय कार्य किए हैं। राजनीति के क्षेत्र में भी वे सक्रिय हैं। भाजपा से जुड़ी हैं। पार्टी के प्रति इनके समर्पण को देखते हुए भाजपा महिला मोर्चा में प्रदेश अध्यक्ष ऊषा पांडे के नेतृत्व में गठित प्रदेश कार्यसमिति में इन्हें सदस्य मनोनीत किया गया। पार्टी ने वर्ष 2016 में पिछड़ी जाति मोर्चा का प्रदेश उपाध्यक्ष मनोनीत किया। इनका गृह क्षेत्र दुमका जिले के पोड़ैया हाट विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत सरैया हाट है। उनका मानना है कि संगठन में जो भी दायित्व मिले उसे पूरी निष्ठा और लगन से पूरा करना चाहिए। वह अपना आदर्श प. दीन दयाल उपाध्याय, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, अटल बिहारी बाजपेयी और नरेंद्र मोदी को मानती हैं।। उनके पति विनोद यादव भी भाजपा से जुड़े हैं। नम्रता की माता उर्मिला देवी से उन्हें सामाजिक कार्यों की प्रेरणा मिली है, जो वर्तमान में रांची नगर निगम की पार्षद हैं। नम्रता के पिता नंदकिशोर यादव भी सामाजिक कार्यकर्ता हैं। नम्रता यादव समाज में महिलाओं को समुचित सम्मान दिया जाना जरूरी समझती हैं।

स्वर्ण जयंती वर्ष का झारखंड : समृद्ध धरती, बदहाल झारखंडी

  झारखंड स्थापना दिवस पर विशेष स्वप्न और सच्चाई के बीच विस्थापन, पलायन, लूट और भ्रष्टाचार की लाइलाज बीमारी  काशीनाथ केवट  15 नवम्बर 2000 -वी...