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बुधवार, 17 जुलाई 2019

व्यवसायी के खाते से उड़ाए 40 हजार



रांची। रांची के व्यवसायी के रांची के व्यसायी जयदीप चड्ढा साइबर ठगी का शिकार हो गए। उनके स्टेट बैंक एकाउंट से 19999+19999 अर्थात 39998 रुपये निकाल लिए गए। उनके पास स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के हेड ऑफिस का अधिकारी होने का दावा करने वाले एक शख्स ने फोन किया और कहा कि उनका एटीएम ब्लॉक किया जा रहा है। उसे चालू रखने के लिए एटीएम का नंबर पूछा। श्री चड्ढा ने भोलेपन में नंबर बता दिया। इसके कुछ ही सेकेंड के बाद मोबाइल पर मैसेज आया कि उनके एकाउंट से 19999 रु. कट गए हैं। कुछ ही देर बाद इतनी ही रकम दुबारा ट्रांसफर कर ली गई। वे भागे-भागे बैंक गए और अपना एकाउंट फ्रीज करा दिया। इसके बाद लालपुर थाना में ठगी की शिकायत दर्ज कराई। झारखंड पुलिस का साइबर सेल मामले की जांच कर रहा है।
झारखंड में साइबर अपराधी बेहद सक्रिय हैं। आए दिन लोग उनका शिकार बन रहे हैं। राज्य के दुमका जिले को जामताड़ा अनुमंडल और गिरिडीह जिला साइबर अपराधियों का अंतर्राष्ट्रीय केंद्र बन चुका है। केंद्र और विभिन्न राज्यों की पुलिस के हत्थे इन इलाकों के दर्जनों साइबर अपराधी पकड़े जा चुके हैं। राज्य के पूर्व डीजीपी डीके पांडे ने एक वर्ष के अंदर साइबर अपराध को पूर्णतः समाप्त कर देने का दावा किया था। वे सेवानिवृत्त भी हो गए लेकिन साइबर अपराध कम होने की जगह और बढ़ता ही जा रहा है।

मंगलवार, 14 अगस्त 2018

जन जागरुकता से ही रुकेंगे साइबर अपराध



रांची। झारखंड के डीजीपी डीके पांडेय ने 2018 के अंत तक राज्य को साइबर अपराध से मुक्त बनाने का संकल्प ले चुके हैं। इस दिशा में कारगर रणनीति के आधार पर काम भी हो रहा है। सीसीए और गुंडा एक्ट के प्रयोग के साथ साइबर थानों का विस्तार भी किया जा रहा है। उनके जज़्बे को सलाम। लेकिन इसमें पूर्ण सफलता के लिए प्रशासनिक पहलकदमी के साथ जन जागरुकता भी जरूरी है। आमलोगों के बीच साइबर अपराधियों की कार्यशैली की जानकारी और अज्ञात नंबरों से आए फोन को रिसीव करने में सावधानी के प्रति भी सचेष्ट करने की जरूरत है। यह काम सिर्फ सरकार या प्रशासन का नहीं समाज के जागरुक लोगों का भी है। डीजीपी ने जन जागरुकता अभियान की क्या योजना बनाई है इसकी जानकारी नहीं है लेकिन झारखंड को देश और दुनिया के बीच बदनाम करने वाले हाइटेक अपराधियों के खिलाफ हर मोर्चे को खोला जाना चाहिए। वे जिस भी बिल में छुपे हों उन्हें बाहर निकाल लाने की जरूरत है।
झारखंड के डीजीपी डीके पांडे
पिछली कई शताब्दियों से नाइजेरिया को साइबर अपराध का गढ़ माना जाता था। भारत में इसका प्रचलन हाल के वर्षों में बढ़ा है और झारखंड के दुमका जिले के जामताड़ा अनुमंडल का एक छोटा सा आदिवासी बहुल गांव इसका गढ़ बन गया है। अपराध की नई शाखा होने के कारण ही भारतीय दंड संहिता में इसके लिए कड़े प्रावधान नहीं बन पाए हैं। वर्ना राजकुमार मंडल जैसे कुख्यात साइबर सरगना जिसे 26 राज्यों की पुलिस तलाश कर रही थी, जामताड़ा कोर्ट से मात्र डेढ़ साल की सजा पाता और जमानत पर रिहा कैसे हो सकता था। केंद्र और राज्य सरकारों को साइबर अपराधियों की नकेल कसने के लिए इंडियन पेनल कोड में संशोधन करना चाहिए।
 हाल में कौन बनेगा करोड़पति का फर्जी सर्टिफिकेट जारी कर जामताड़ा में जिस तरह एक महिला के जेवर बिकवाकर 24 हजार की ठगी की गई उससे स्पष्ट है कि साइबर अपराधी रोज नए-नए तरीके ईजाद कर लोगों को झांसे में ले रहे हैं। पुलिस डाल-डाल ढूंढ रही है तो वे पात-पात चलने की कोशिश कर रहे हैं। जामताड़ा का साइबर अपराधियों का सरगना दिल्ली पुलिस की हिरासत में है लेकिन उसके गुर्गे पूरी तरह सक्रिय होकर पुलिस-प्रशासन को चुनौती देते हुए भोले-भाले लोगों की मेहनत की कमाई पर डाका डाल रहे हैं। अभी मेरे एयरटेल नंबर पर एक फोन आया। बताया गया कि एसबीआई के हेड आफिस से बोल रहे हैं और मेरा एटीएम बंद होने वाला है उसे बंद होने देना है या चालू रहने देना है। उन्होंने कहा कि बैंक खाते का डिटेल नहीं मांगता लेकिन एटीएम की वैलेडिटी का डेट बतला दें। जब मैंने पूछा कि अभी आप कहां हैं तो बतलाया हटिया में। मैंने पूछा कि एसबीआई का हेडआफिस हटिया कब से चला गया तो कहने लगे कि वे सिर्फ एटीएम डील करते हैं। उन्होंने कहा कि अपने बैंक ब्रांच में जाएंगे तो पैसे कट जाएंगे। फोन करने वाले को यह पता नहीं था कि उन्होंने मेरे जिस नंबर पर पोन किया है वह मेरे एकाउंट से जुड़ा हा नहीं है। बाद में मेरे पास एक एसएमएस आया कि मेरे एकाउंट से 6200 रुपये काट लिए गए हैं। यह मैसेज एक मोबाइल नंबर से आया था। किस एकाउंट से काटे गए हैं इसका हवाला नहीं दिया गया था। कहने का मतलब है कि इस तरह की झांसापट्टी देकर लोगों को शिकार बनाने का प्रयास किया जा रहा है। अगर लोग चौकस न रहें तो वे किसी के भी खाते में सेंध लगा सकते हैं। मोदी सरकार ने सारे बैंक खातों को मोबाइल और आधार कार्ड से जुड़वाकर खातेदारों के संकट को और बढ़ा दिया है साथ ही साइबर अपराधियों का रास्ता आसान कर दिया है। सरकार लाख आधार कार्ड की सूचनाओं को सुरक्षित बताए लेकिन आंकड़े बताते हैं कि नोटबंदी और सके बाद किए गए आर्थिक प्रयोगों के बाद साइबर अपराधों में बेतहाशा तेजी आई है। सरकारें आता-जाती रहती हैं लेकिन पुलिस प्रशासन को अपने समक्ष पेश आने वाली चुनौतियों का निरंतर सामना करते रहना होता है। डीजीपी के संकल्प को पूरा करने के लिए जागरुक लोगों को पूरा सहयोग करना चाहिए।

सोमवार, 13 अगस्त 2018

नाइजेरिया से आगे निकल गया जामताड़ा



दिल्ली पुलिस की हिरासत में गिरोह का सरगना राजकुमार मंडल और ठेकेदार सुरेंद्र
देवेंद्र गौतम

रांची। साइबर अपराधियों ने कौन बनेगा करोड़पति के माध्यम से 25 लाख ईनाम जीतने का झांसा देकर जामताड़ा की पूजा चौरसिया नामक एक महिला से 25 हजार रुपयों की ठगी कर ली। साइबर पुलिस मामले की पड़ताल कर रही है। झारखंड में यह कोई नई घटना नहीं है। यहां तरह-तरह के तरीके ईजाद कर बैंक खातों में सेंध लगाई जाती रही है। संताल परगना के जामताड़ा से साइबर अपराधियों का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कुख्यात गिरोह संचालित हो रहा है। आए दिन दिल्ली सहित अन्य राज्यों की पुलिस अपराधियों की तलाश में जामताड़ा पहुंचती है। झारखंड के डीजीपी डीके पांडेय ने इसे गंभीरता से लिया है। उन्होंने इस वर्ष झारखंड को साइबर अपराध से मुक्त करने का संकल्प लिया है। साइबर अपराधियों पर सीसीए और गुंडा एक्ट के तहत कार्रवाई करने का निर्णय लिया जा चुका है। लेकिन फिर भी झारखंड का यह छोटा सा इलाका साइबर अपराध का पूरी दुनिया का सबसे बड़ा केंद्र बन चुका है। इस मामले में नाइजेरिया के साइबर अपराधियों को इसने बहुत पीछे छोड़ दिया है।
साइबर अपराध के मानचित्र में जामताड़ा और गिरिडीह का नाम पिछले 7-8 वर्षों के अंदर जुड़ा है। जिस तरह एक सड़ा आम पूरी टोकरी को सड़ा देता है उसी तरह एक युवक ने साइबर अपराधियों का इतना बड़ा जाल बिछाया है । दुमका जिले के जामताड़ा अनुमंडल के एक छोटे से गांव करमाटांड़ का रहनेवाले राजकुमार उर्फ सीताराम मंडल ने अपराधियों की यह फौज खड़ी कर दी जिसके सदस्य देश के विभिन्न राज्यों में फैले हुए है। उसके गिरोह में 12 वर्ष से 25 वर्ष आयुवर्ग के 1000 से भी अधिक नवयुवक शामिल हैं। वह बाजाप्ता साइबर अपराध का ट्रेनिंग स्कूल चलाता रहा है। उसका पाठ्यक्रम मात्र चार दिनों का है। चार दिनों के प्रशिक्षण में वह प्रशिक्षु को मोबाइल फोन हैक करने से लेकर बैंक एकाउंट में सेंध लगाने तक का प्रशिक्षण देता था। इसके एवज में 7 से 10 हजार तक की फीस लेता था। देश के 26 राज्यों की पुलिस को उसकी तलाश थी। उसने अपने गांव में शानदार कोठी बनवा रखी थी। गांव के लोगों के लिए वह राबिनहुड की भूमिका में था। हर जरूरतमंद को आर्थिक मदद करता था। इसलिए गांव के लोगों का उसे जबर्दस्त समर्थन प्राप्त था। माओवादियों से भी उसके अच्छे संबंध थे। उनके सूचना तंत्र के जरिए उसे पुलिस की गतिविधियों की पूरी जानकारी रहती थी। पुलिस के इलाके में प्रवेश करते ही उसे खबर मिल जाती थी और वह बंगाल या बिहार भाग जाता था। पुलिस ने बहुत कोशिश की लेकिन वह हाथ नहीं आया। 2016 में एकबार वह किसी तरह पुलिस के हत्थे चढ़ा। जामताड़ा कोर्ट में उसके खिलाफ मुकदमा चला। इस वर्ष जनवरी में उसे डेढ़ साल की सजा सुनाई गई। लेकिन साइबर अपराध में दंड का प्रावधान कम होने के कारण उसे जमानत मिल गई। रिहा होकर वह दिल्ली गया और आनंद विहार की एक वृद्धा के एकाउंट में सेंध लगाकर उससे दो लाख रुपये निकाल लिए। फिलहाल वह इस ठगी के आरोप में दिल्ली पुलिस की हिरासत में है। उसके नेटवर्क की जानकारी धीरे-धीरे मिल रही है।
दिल्ली पुलिस के उस तक पहुंचने और गिरफ्तार करने की दिलचस्प कहानी है। वृद्धा की शिकायत ट्रांसफर होने के बाद जब साइबर पुलिस ने जांच शुरू की तो पता चला कि पैसे अलग-अलग वालेट में ट्रांसफर किए गए हैं। उनके सर्विस प्रोवाइडर से बात करने पर 40 हजार रुपयों की तो तुरंत बरामदगी हो गई लेकिन शेष रकम से अलग-अलग लोगों के बिजली बिलों का भुगतान किया जा चुका था। जिनके बिल भरे गए थे उनकी जांच करने पर उनके पते राजस्थान के जोधपुर के निकले। पता चला कि सारे बिलों का भुगतान सुरेंद्र नामक एक ठेकेदार ने किया है। सुरेंद्र को दबोचा गया तो पता चला कि उसने शाबिर के कहने पर यह काम किया है। इस तरह कड़ियां जुड़ती गईं और पुलिस इस निष्कर्ष पर पहुंची कि गिरोह का मास्टर माइंड राजकुमार मंडल है जो जामताड़ा से पूरा नेटवर्क चलाता है। दिल्ली पुलिस को यह भी पता चल गया कि किसी वाहन से जाने पर उसे खबर मिल जाएगी और वह फरार हो जाएगा। सावधानी के तौर पर स्थानीय पुलिस को भी भरोसे में नहीं लिया। दिल्ली पुलिस की टीम पूरी गोपनीयता बरतते हुए अलग-अलग रास्ते से जामताड़ा पहुंची और सार्वजनिक सवारी के जरिए गांव के बाहर तक गई। फिर छोटी-छोटी टुकड़ियों में बंटकर पैदल उसकी कोठी तक पहुंचकर अचानक धावा बोला। तब कहीं जाकर वह पकड़ में आया।
साइबर अपराध के मामले में जामताड़ा को नाइडेरिया से भी आगे निकाल ले जाने वाला यह शातिर अपराधी एक साधारण किसान का बेटा है। उसने अपनी पढ़ाई भी पूरी नहीं की और पिता के साथ खेतीबाड़ी में लग गया। 2011 में वह मुंबई चला गया। वहां एक मोबाइल दुकान में काम करने लगा। वहीं उसने मोबाइल हैक करने की तकनीक सीखी। फिर बैंक खातों में सेंध लगाने की कला सीखी। साइबर अपराध की शुरुआत वहीं से कर दी। फिर उसने अपने गांव से ही ठगी का संचालन करने की ठानी और वापस लौट आया। उसके रहन-सहन और शाहखर्ची से गांव के नवयुवक आकर्षित हुए। उसने वहीं अपना गिरोह खड़ा करना शुरू किया। वह युवकों को प्रशिक्षण देता था और अपने साथ मिला लेता था। गिरोह के लोग उसे हैलो मास्टर कहकर संबोधित करते थे। धीरे-धीरे उसके गिरोह का नेटवर्क अंतर्राज्यीय हो गया। ठगी के पैसों के जरिए उसने आलीशान कोठी बनवाई और व्यापक जन-समर्थन प्राप्त कर लिया। कई बार पुलिस के आने पर गांव के हजारों लोग सके समर्थन में खड़े हो गए और पुलिस को बैरंग वापस लौटना पड़ा।
अभी तक पुलिस सिर्फ करमाटांड़ और नारायणपुर गांव में सौ से अधिक साइबर अपराधियों को हिरासत में ले चुकी है। लेकिन उसका जाल इतना फैल चुका है कि उसे पूरी तरह काटना और झारखंड को साइबर अपराध से मुक्त करना एक बड़ी चुनौती है। झारखंड पुलिस को इसके लिए अन्य राज्यों की पुलिस से संपर्क कर एक अंतर्राज्यीय साइबर पुलिस टीम बनानी होगी और बहुत सतर्कता बरतनी होगी। डीजीपी डीके पांडेय झारखंड को नक्सल और साइबर अपराध मुक्त राज्य बनाने की घोषणा कर चुके हैं अगर वे इन संकल्पों को सफलतापूर्वक पूरी कर पाए तो वे झारखंड में एक इतिहास रच जाएंगे। लेकिन यह आसान नहीं है।


स्वर्ण जयंती वर्ष का झारखंड : समृद्ध धरती, बदहाल झारखंडी

  झारखंड स्थापना दिवस पर विशेष स्वप्न और सच्चाई के बीच विस्थापन, पलायन, लूट और भ्रष्टाचार की लाइलाज बीमारी  काशीनाथ केवट  15 नवम्बर 2000 -वी...