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शनिवार, 23 मार्च 2024

हैदराबाद का हुसैन सागर

हाल के वर्षों में जन्म दिवस की पूर्व रात्रि में 12 बजे के बाद केक काटने का प्रचलन बढ़ा है। आमतौर पर लोग यह आयोजन अपने घर में करीबी पारिवारिक मित्रों के साथ करते हैं। हैदराबाद-सिकंदराबाद के लोग प्रायः यह आयोजन घर पर करने की जगह टैंकबंड रोड में करते हैं। टैंकबंड रोड हुसैन सागर के चारों तरफ निर्मित है। हुसैन सागर झील पुराने शहर हैदराबाद और नए शहर सिकंदराबाद के बीच एक कड़ी का काम करती है। झील के चारों तरफ करीब चार फुट की रेलिंग है। झील के चारों तरफ करीब दस फुट का प्लेटफार्म बना हुआ है। इसमें 10-20 फुट की दूरी पर सीमेंटेड बेंच और कहीं-कहीं मंडप बने हुए हैं। झील के चारों तरफ रेलिंग है।



टैंक बंड रोड के निकट एक अन्य मुख्य मार्ग है, जो नेकलस रोड के रूप में लोकप्रिय है। इस सड़क के दोनों तरफ सुंदर उद्यान होने से शाम के समय में अक्सर आगंतुकों की भीड़ जमा होती है। हुसैन सागर झील आगंतुकों के मनोरंजन के लिए कई गतिविधियों का केंद्र भी है। यहां के प्रमुख आकर्षणों में लुम्बिनी पार्क में बुद्ध की प्रतिमा, जहाज पर भोजन की सुविधा, स्पीड बोट पर परिभ्रमण और निवास सांस्कृतिक विभागों द्वारा उपयोग की जाने वाली सांस्कृतिक गतिविधियां शामिल हैं।

हुसैन सागर मध्यकाल में निर्मित देश की संभवतः सबसे विशाल झील है। इसके बीचोबीच भगवान बुद्ध की एक ही पत्थर से बनी 40 फुट ऊंची विशाल मूर्ति है जो दूर से ही नज़र आती है जो शहर के सौंदर्य में चार चांद लगाता है। वहीं लुम्बिनी पार्क बना हुआ है। इस झील में मिसी नदी से पानी की आपूर्ति होती है और इसका जल कभी नहीं सूखता। उनका मकसद पेयजल आपूर्ति और बाढ़ से बचाव था। 1575 ई. में सुल्तान इब्राहिम कुतुब शाह नें ढाई लाख रुपये की लागत से जब इसका निर्माण किया था तो इसका रकबा 550 हेक्टेयर था। अब निजी और सरकारी संस्थाओं ने इसके 40 प्रतिशत हिस्से का अतिक्रमण कर लिया है। अब इसका रकबा 349 हेक्टेयर रह गया है।

अतिक्रमण के अलावा झील कई वर्षों से अनुपचारित घरेलू सीवेज और जहरीले औद्योगिक रसायनों के निरंतर निर्वहन के कारण प्रदूषण की समस्या का भी सामना कर रही है। हालांकि प्रदूषण को रोकने के लिए कई केंद्रीय अपशिष्ट उपचार संयंत्र और सीवेज उपचार संयंत्र विकसित किए गए हैं, फिर भी झील में काफी मात्रा में सीवेज प्रवाहित होता है।



हुसैन सागर सार्वजनिक हित याचिका पहली बार वर्ष 1995 में
'झील बचाओ अभियान' के संयोजक केएल व्यास द्वारा दायर की गई है। हैदराबाद में 170 झीलों की सुरक्षा की मांग करते हुए आंध्र प्रदेश सरकार के खिलाफ आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय (एचसी) में जनहित याचिका दायर की गई थी। जबकि जनहित याचिका में उन सभी झीलों को शामिल किया गया था जो खतरे में थीं, इसका ध्यान सरूरनगर झील पर केंद्रित था जो अपने जलग्रहण क्षेत्र पर बड़े पैमाने पर अतिक्रमण और प्रदूषण के टैंकखतरनाक स्तर के कारण गंभीर तनाव में थी। जनहित याचिका पर फैसले में आंध्र प्रदेश राज्य के सभी जल निकायों की सुरक्षा शामिल थी।

हैदराबाद शहरी विकास प्राधिकरण (हुडा) ने हैदराबाद और उसके आसपास की झीलों की सुरक्षा के लिए 2000 में एक अधिसूचना जारी की। ऐसी अधिसूचना के बावजूद, हुडा द्वारा झील के किनारे आवासीय कॉलोनियों के लिए अनुमति दिए जाने के कई उदाहरण हैं। हुसैन सागर के आसपास हुडा (बुद्ध पूर्णिमा परियोजना विकास प्राधिकरण के तत्वावधान में) द्वारा किए गए कई पर्यटन-संबंधी सौंदर्यीकरण कार्यों को इसकी अपनी अधिसूचना का गंभीर उल्लंघन माना जा सकता है।

हुसैन सागर झील को बचाने के लिए फोरम ने 2001 से आंध्र प्रदेश के उच्च न्यायालय में कई जनहित याचिकाएं दायर कीं। आखिरी जनहित याचिका 2004 में उच्च न्यायालय में दायर की गई थी और फैसला अभी भी लंबित है। वर्ष 2005 में एक अन्य पर्यावरणविद् डॉ. हरगोपाल द्वारा भी सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका के तहत जनहित याचिका दायर की गई थी। पर्यावरणविद् राधा बाई ने भी झील में प्रदूषण को रोकने के लिए वर्ष 2006 में एक नई जनहित याचिका दायर की थी। झील के पुनरुद्धार के लिए करोड़ों रुपये स्वीकृत किए गए हैं लेकिन झील अभी भी बहुत खराब स्थिति में है। हुडा ने 2010 तक झील को प्रदूषण मुक्त बनाने का वादा किया है।

तमाम समस्याओं के बावजूद हुसैन सागर सिकंदराबाद-हैदराबाद का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। यहां पर्यटकों के लिए नौका-विहार की व्यवस्था है। पर्यटक नौका पर बैठकर बुद्धमूर्ति के टीले तक जाते हैं और कुछ समय बिताने के बाद वापस लौटते हैं।

-देवेंद्र गौतम

 


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