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शुक्रवार, 6 दिसंबर 2019

पर्यावरण और जल संरक्षण के लिए नीतीश कुमार की पहल सराहनीय : भारती सत्येंद्र देव


* झारखंड में भी नीतीश मॉडल अपनाने से तेजी से होगा विकास
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रांची / पटना : जल और पर्यावरण संरक्षण के प्रति बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा की गई पहल की चहुंओर सराहना की जा रही है। उन्होंने जल, जीवन और हरियाली मिशन के तहत राज्य में पर्यावरण और जल संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक करने का जो बीड़ा उठाया है, उसके लिए उनकी प्रशंसा की जानी चाहिए। उक्त बातें बिहार के पटना जिलांतर्गत करनौती ग्राम निवासी जाने-माने समाजसेवी भारती सत्येंद्र देव ने कही। श्री भारती एक निजी समारोह में शामिल होने रांची पहुंचे थे। उन्होंने कहा कि जल और हरियाली के बिना जीवन की परिकल्पना बेमानी है। इस दिशा में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महत्वाकांक्षी परियोजना की ओर जो कदम बढ़ाया है, इसका सकारात्मक परिणाम जल्द ही सामने आएगा। उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार के विजन का अनुकरण देश के अन्य राज्यों में किया जाता है। उन्होंने बिहार में शराबबंदी लागू किया, इससे पूरे राज्य में सामाजिक परिवर्तन की बयार बहने लगी। विकास के क्षेत्र में उनकी दूरदर्शी सोच और सक्रियता का देश के अन्य राज्य भी अनुकरण करने लगे हैं। नीतीश माॅडल अपनाने लगे हैं। श्री भारती ने कहा कि बिहार में पीने के पानी के लिए "हर घर नल का जल" परियोजना शुरू करने का निर्णय नीतीश कुमार की दृढ़ इच्छाशक्ति और समाज के प्रति उनके समर्पण का परिचायक है। सौर ऊर्जा को बढ़ावा दिए जाने की दिशा में भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पहल की है। जल, जीवन और हरियाली के प्रति व्यापक पैमाने पर जनसमर्थन प्राप्त करने के लिए उन्होंने अगले वर्ष 19 जनवरी को विशाल मानव श्रृंखला बनाने में सहयोग की जनता से अपील की है।
 श्री भारती ने कहा कि झारखंड में भी नीतीश मॉडल अपनाने से यहां विकास की गति तेज होगी। विकास के क्षेत्र में नीतीश कुमार ने बिहार में कई ऐसे महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय कार्य किए हैं, जो मील का पत्थर साबित हुए हैं। इसीलिए उन्हें विकास पुरुष भी कहा जाता है। जल और पर्यावरण के गहराते संकट के इस दौर में नीतीश कुमार ने चिंता जताते हुए इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया है, यह राजनीतिक नहीं, उनकी सामाजिक प्रतिबद्धता का परिचायक है। उनके इस प्रयास की जितनी भी सराहना की जाए, कम होगी।

रविवार, 23 जून 2019

राष्ट्रीय नेता बनेंगे नीतीश, राष्ट्रीय दल बनेगा जदयू




देवेंद्र गौतम
विपक्षी दलों में सर्वमान्य नेतृत्व के संकट को देखते हुए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राजनीतिक उड़ान भरने की तैयारी कर ली है। उन्होंने एनडीए के साथ अपने संबंध भी बनाए रखे और इसकी सीमा भी तय कर दी है। वे सिर्फ बिहार में एनडे के साथ हैं। बिहार के बाहर जदयू एनडीए का हिस्सा नहीं रहेगा। अपने निर्णय स्वयं लेगा। कुछ महीने बाद चार राज्यों के चुनावों में और 2020 में होने वाले चुनावों में वह अकेले अपने प्रत्याशी खड़े करेगा। केंद्र सरकार में शामिल नहीं होगा। लेकिन बाहर से समर्थन करेगा।
पिछले दिनों जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में यह तमाम बातें साफ हो गई हैं। पीके द्वारा ममता के चुनावी कमान संभालने के सवाल पर बैठक में कोई खास चर्चा नहीं हुई। लेकिन पार्टी प्रवक्ता केसी त्यागी ने संकेत दिया कि पीके की कंपनी से जदयू का कुछ लेना-देना नहीं है। वह जदयू का हिस्सा नहीं है। वह अपने व्यावसायिक क्रियाकलाप के लिए स्वतंत्र है। उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव में वाइसीआर कांग्रेस के चुनाव अभियान की कमान संभाली तो कोई सवाल नहीं उठा। प्रशांत किशोर की जदयू के प्रति उनकी निष्ठा असंदिग्ध है। कुल मिलाकर जदयू ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि भाजपा उसपर किसी तरह का दबाव नहीं बना सकती। विधानसभा चुनाव में नीतीश का निर्णय ही सर्वमान्य होगा। राजद में बिखराव के बाद नीतीश वैसे भी बिहार की सबसे ताकतवर राजनीतिक हस्ती बन चुके हैं।
निश्चित रूप से भाजपा के पास इस रणनीति की कोई काट नहीं है। बिहार में नीतीश का साथ उसकी विवशता है। भाजपा के पास उनकी कद-काठी का कोई चेहरा नहीं है। नीतीश कुमार ने ऐसी नीति अपनाई कि उनकी और उनकी पार्टी जदयू की धर्म निरपेक्ष तथा समाजवादी छवि भी बरकरार रहेगी और बिहार के बाहर अन्य राज्यों के विधानसभा चुनावों में भागीदारी कर वे पार्टी का विस्तार भी कर सकेंगे। उनमें जीत हासिल हो न हो लेकिन वोटों के प्रतिशत में बढ़ोत्तरी होगी। इस बहाने संगठन का विस्तार होगा और जदयू क्षेत्रीय दल की हैसियत से उठकर राष्ट्रीय दल बनने की ओर बढ़ेगा। आने वाले समय में भाजपा उनकी मजबूरी नहीं होगी बल्कि वे भाजपा की मजबूरी होंगे। इतना नपा तुला कदम नीतीश और पीके जैसे रणनीतिकार ही उठा सकते हैं।

सोमवार, 10 जून 2019

वाह नीतीश जी! रिंद के रिंद रहे, हाथ में जन्नत भी रही




देवेंद्र गौतम

शब को मय खूब सी पी, सुब्ह को तौबा कर ली.
रिंद के रिंद रहे हाथ से ज़न्नत न गई।

मानिक जलालपुरी का यह शेर वर्तमान राजनीति परिदृश्य में जदयू सुप्रीमो सह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर सटीक बैठती है। उन्होंने ऐसी रणनीति अपनाई जिसकी तोड़ न भाजपा के पास है न एनडीए के पास और न विपक्षी महागठबंधन के पास। उनका एनडीए के साथ रिश्ता बिहार से शुरू होकर बिहार पर ही खत्म हो जाएगा। देश के अन्य राज्यों में वे अपने प्रत्याशी स्वयं खड़े करेंगे। जदयू के निर्णयों पर एनडीए का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा। बिहार विधानसभा के चुनाव में वे एनडीए के साथ होंगे। लेकिन इसी वर्ष कुछ महीने बाद प्रस्तावित चार राज्यों के चुनावों में अकेले दम पर लड़ेंगे। यानी एनडीए के साथ हैं लेकिन भाजपा की उन नीतियों के साथ नहीं जो उनकी समाजवादी और धर्म निरपेक्ष छवि पर आघात करती हों।
नीतीश कुमार राजनीति के चाणक्य समझे जाते हैं। ऊपर से प्रशांत किशोर जैसे चुनावी रणनीतिकार उनके साथ हैं। उनकी हर चाल बहुत नपी-तुली होती है। वे कब क्या करेंगे उनके अलावा कोई नहीं जान सकता।
लोकसभा चुनाव में राजद के शून्य पर आउट हो जाने के बाद वे बिहार के सबसे बड़े जन नेता बन गए हैं। बिहार में सिर्फ लालू प्रसाद उनके समतुल्य थे। अभी वे जेल में हैं और गंभीर रूप से बीमार हैं। वे जमानत पर छूटे भी तो पहले की तरह सक्रिय राजनीति में शायद ही उतर पाएं। लालू स्वयं तो सज़ायाफ्ता होने के कारण चुनाव नहीं लड़ सकते लेकिन राजनीति के मैदान में उनकी मौजूदगी चुनाव की हवा बदल सकती है। उनके दोनों पुत्र उनका उत्तराधिकार नहीं संभाल पा रहे। माई समीकरण की हवा निकल चुकी है। बिहार के यादवों का एक हिस्सा राजद का दामन छोड़ चुका है। ऐसे में नीतीश की सोशल इंजीनियरिंग बहुत प्रभावी हो सकती है। बिहार में भाजपा या कांग्रेस के अंदर उनके टक्कर का कोई नेता नहीं है। आज की तारीख में वे जिस भी खेमे में जाएंगे उसकी जीत सुनिश्चित हो जाएगी।
नीति कहती है कि जब घर मजबूत हो तो बाहर पांव पसारना चाहिए। नीतीश जी यही कर रहे हैं। यह अपनी पार्टी को राष्ट्रीय और स्वयं को पीएम एलीमेंट साबित करने का अनुकूल समय है।

स्वर्ण जयंती वर्ष का झारखंड : समृद्ध धरती, बदहाल झारखंडी

  झारखंड स्थापना दिवस पर विशेष स्वप्न और सच्चाई के बीच विस्थापन, पलायन, लूट और भ्रष्टाचार की लाइलाज बीमारी  काशीनाथ केवट  15 नवम्बर 2000 -वी...