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रविवार, 23 जून 2019

राष्ट्रीय नेता बनेंगे नीतीश, राष्ट्रीय दल बनेगा जदयू




देवेंद्र गौतम
विपक्षी दलों में सर्वमान्य नेतृत्व के संकट को देखते हुए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राजनीतिक उड़ान भरने की तैयारी कर ली है। उन्होंने एनडीए के साथ अपने संबंध भी बनाए रखे और इसकी सीमा भी तय कर दी है। वे सिर्फ बिहार में एनडे के साथ हैं। बिहार के बाहर जदयू एनडीए का हिस्सा नहीं रहेगा। अपने निर्णय स्वयं लेगा। कुछ महीने बाद चार राज्यों के चुनावों में और 2020 में होने वाले चुनावों में वह अकेले अपने प्रत्याशी खड़े करेगा। केंद्र सरकार में शामिल नहीं होगा। लेकिन बाहर से समर्थन करेगा।
पिछले दिनों जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में यह तमाम बातें साफ हो गई हैं। पीके द्वारा ममता के चुनावी कमान संभालने के सवाल पर बैठक में कोई खास चर्चा नहीं हुई। लेकिन पार्टी प्रवक्ता केसी त्यागी ने संकेत दिया कि पीके की कंपनी से जदयू का कुछ लेना-देना नहीं है। वह जदयू का हिस्सा नहीं है। वह अपने व्यावसायिक क्रियाकलाप के लिए स्वतंत्र है। उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव में वाइसीआर कांग्रेस के चुनाव अभियान की कमान संभाली तो कोई सवाल नहीं उठा। प्रशांत किशोर की जदयू के प्रति उनकी निष्ठा असंदिग्ध है। कुल मिलाकर जदयू ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि भाजपा उसपर किसी तरह का दबाव नहीं बना सकती। विधानसभा चुनाव में नीतीश का निर्णय ही सर्वमान्य होगा। राजद में बिखराव के बाद नीतीश वैसे भी बिहार की सबसे ताकतवर राजनीतिक हस्ती बन चुके हैं।
निश्चित रूप से भाजपा के पास इस रणनीति की कोई काट नहीं है। बिहार में नीतीश का साथ उसकी विवशता है। भाजपा के पास उनकी कद-काठी का कोई चेहरा नहीं है। नीतीश कुमार ने ऐसी नीति अपनाई कि उनकी और उनकी पार्टी जदयू की धर्म निरपेक्ष तथा समाजवादी छवि भी बरकरार रहेगी और बिहार के बाहर अन्य राज्यों के विधानसभा चुनावों में भागीदारी कर वे पार्टी का विस्तार भी कर सकेंगे। उनमें जीत हासिल हो न हो लेकिन वोटों के प्रतिशत में बढ़ोत्तरी होगी। इस बहाने संगठन का विस्तार होगा और जदयू क्षेत्रीय दल की हैसियत से उठकर राष्ट्रीय दल बनने की ओर बढ़ेगा। आने वाले समय में भाजपा उनकी मजबूरी नहीं होगी बल्कि वे भाजपा की मजबूरी होंगे। इतना नपा तुला कदम नीतीश और पीके जैसे रणनीतिकार ही उठा सकते हैं।

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