झारखंड जंगली हाथियों की गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए जीपीएस युक्त
रेडियो कालर लगाने का काम शुरू हो चुका है। इसके लिए कोलकाता से विशेषज्ञों की
टीमें बांकुड़ा और मिदनापुर के लिए रवाना की जा चुकी हैं। बेंगलुरु स्थित एशियन
नेचर कंजर्वेशन फाउंडेशन के वैज्ञानिक इस अभियान में बंगाल वन विभाग के साथ शमिल
हैं। उनके दो वैज्ञानिकों के साथ बेहोशी की दवा देने के विशेषज्ञ भी मोर्चे पर आ
जुटे हैं।
झारखंड के दलमा पहाड़ पर हाथी परियोजना से हाथियों के दो झुंड अभी
बांकुड़ा और मिदनापुर के जंगलों में हैं। उन्होंने आसपास के गांवों में आतंक मचा
रखा है। दलमा के हाथी हर वर्ष गर्मियों में पश्चिम बंगाल के जंगलों का रुख करते
हैं और बरसात के मौसम में वापस लौट आते हैं। हाथियों की टोली का नेतृत्व हमेशा
मादा हथिनी करती है। वन्य जीवन के विशेषज्ञों का मानना है कि यदि झुंड की मुखिया को
जीपीएस युक्त रेडियो कालर लगा दिया जाए तो उसकी टोली की गतिविधियों पर नज़र रखा जा
सकता है। इसके कारण मानव बस्तियों में उनके उपद्रव को भी काफी हद तक रोका जा
सकेगा। हर वर्ष होने वाले नुकसान को कम किया जा सकेगा।
जैसे ही हाथियों के किसी झुंड के मानव बस्ती के करीब होने की जानकारी
मिलेगी पालतू हाथी और ग्रामीणों की हल्ला पार्टी को जुटाकर उन्हें जंगल में वापस
खदेड़ दिया जाएगा। जीपीएस युक्त रेडियो कालर लगाने के लिए दिलचस्प तकनीक अपनाई
जाती है। सबसे पहले झुंड के लोकेशन का पता किया जाता है इसके बाद झुंड के नेता की
पहचान की जाती है और सकी गतिविधियों की निगरानी की जाती है। उनकी पहचान कोई
मुश्किल काम नहीं। आम तौर पर झुंड की मुखिया सबसे ऊंचे कद की और तगड़े शरीर की
होती है। उसकी पहचान और सके स्वभाव के अध्ययन के बाद हल्ला पार्टी को जुटाकर झुंड
में भगदड़ मचा दी जाती है। जब झुंड की मुखिया थोड़ा अकेले हो जाती है तो से जाइलाजिन
नामक नशीली दवा से युक्त गोली से प्रहार किया जाता है। इसके कारण हथनी आधे घंटे के
लिए बेहोश जाती है। गोली लगने के बाद वह शुरुआती दस मिनट वह नशे में रहती है फिर
20 मिनट तक अचेत हो जाती है। उसी बीस मिनट के अंदर उसे जीपीएस रेडियो कालर से
युक्त कर दिया जाता है। होश आने पर वह अपनी टोली को एकत्र कर लेती है। जानकारी के
मुताबिक अभी दलमा पहाड़ी के 30 हाथी दो टोलियों में बंटकर मिदनापुर और बांकुड़ा
में मौजूद हैं। वन विभाग के अधिकारियों को उनके लोकेशन की जानकारी है। वे उनके जंगल
के छोर पर किसी मानव बस्ती तक पहुंचने का इंतजार कर रहे हैं।
-देवेंद्र गौतम
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