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सोमवार, 30 जुलाई 2018

बारूदी धमाकों के बीच कैसे रहेंगे बाघ


रांची। 30 जुलाई को वर्ल्ड टाइगर डे के मौके पर झारखंड की राजधानी रांची में बाघ विशेषज्ञों की कार्यशाला आयोजित हुई। इसमें झारखंड में बागों के एकमात्र पनाहगाह पलामू टाइगर प्रोजेक्ट पर मुख्य रूप से चर्चा की गई। पूरे देश में बाघों की जनसंख्या बढ़ी है लेकिन झारखंड में तेजी से घटी है। 2010 में जहां देश में 1706 बाघ थे वह 2014 की गणना में 2226 तक पहुंच गए। 2014 में पलामू टाइगर रिजर्व में मात्र छह बाघ पाए गे थे लेकिन इस वर्ष फरवरी माह के बाद किसी बाघ को देखे जाने की पुष्टि नहीं हुई है। विशेषज्ञों का मानना है कि अभयारण्य के आसपास की मानव आबादी और गौपालकों के मवेशियों के कारण बाघों का विकास बाधित हो रहा है। फिलहाल वन विभाग ने कोर एरिया के 8 गावों को हटाने और अन्यत्र बसाने का प्रस्ताव तैयार किया है। अभ्यारण्य के बफर एरिया के 189 गावों को भी परियोजना के लिए नुकसानदेह बताया जा रहा हैं।
कार्यशाला में सभी बिंदुओं पर तो चर्चा की गी लेकिन नक्सलियों के कारण वन्य जीवन पर पड़ते दुष्प्रभाव पर कोई चर्चा नहीं की गई। जहां आ दिन सुरक्षा बलों और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ चलती हो, जहां आए दिन लैंड माइन विस्फोट होते हों वहां वन्य जीवन कैसे सुरक्षित रह सकता है। बाघ मांसाहारी जीव अवश्य होता है लेकिन वह शांत माहौल में रहना पसंद करता है। शोर-शर्राबे और रात-दिन बारूदी धमाकों के बीच वह नहीं रह सकता। यदि 2014 में छह बाघ थे तो वे शोर-हंगामे के कारण किसी और इलाके में चले गए होंगे। नक्सलियों के आतंक के कारण वन विभाग के लोग और वन्य जीवन के विशेषज्ञ अभ्यारण्य में काम नहीं कर पाते। निगरानी के लिए लगाए गए कैमरे सुरक्षित नहीं रह पाते। क्योंकि वे वन्यजीवों के साथ नक्सलियों की गतिविधियों को भी रिकार्ड करते हैं। लिहाजा नक्सली उन्हें तोड़ डालते हैं। व्यावहारिक बात यह है कि सिर्फ मानव बस्तियों को हटा देने या गौपालकों के मवेशियों को अलग स्थान पर ले जाने भर से बाघों के विकास की गारंटी नहीं की जा सकती। 1130 वर्ग किलोमीटर में फैले स अभ्यारण्य में वन विभाग से कहीं ज्यादा पहुंच नक्सलियों की है। वे सुरक्षा बलों से लड़ने की तैयारी में रहते हैं। सुरक्षा बलों के साथ बाघों के खतरे को बनाए रखने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं हो सकती। पलामू टाइगर रिजर्व की सुरक्षा के लिए ग्रामीणों से अधिक खतरनाक नक्सलियों की मौजूदगी है। वे दूसरे इलाकों में चले जाएं तभी वहां का वन्य जीवन आबाद हो सकेगा।

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