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शनिवार, 9 जून 2018

हजारीबाग में धू-धू कर जलीं दो लग्जरी बसें

मनीष कुमार
हजारीबाग। पम्मी बस की दो बसों  में फिर  लगी आग । सरकारी बस डिपो में खड़ी थी बस । आज लगातार दूसरे दिन लगी एक ही बस कंपनी में आग । दमकल की दो गाड़ीयां आगे भुझाने में लगी । मौके पर हजारीबाग एसपी सदर एसडीओ मौजूद । 

सुबोधकांत से मिले हरमू फलाईओवर निर्माण से प्रभावित लोग



पूर्व केन्द्रीय मंत्री ने की नगर विकास सचिव से बात,
कहा, जोर-जबरदस्ती न करे सरकार

रांची । कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय ने झारखंड सरकार को चेतावनी देते हुए कहा है कि राज्य सरकार फलाईओवर निर्माण और सडक चौडीकरण के नाम पर रैयतों के साथ जोर जबरदस्ती न करे। जमीन अधिग्रहण करने से पूर्व उच्च स्तरीय कमिटी बनाकर स्थानीय लोगों के साथ बैठक कर जनहित में निर्णय लें। उन्होंने कहा कि रघुवर सरकार लाठी-गोली के बल पर जमीन अधिग्रहण करने की मंशा छोड, आपसी सहमति बनाकर स्थानीय लोगों के साथ मिल बैठकर बात करने के बाद ही कोई निर्णय ले। जबरन जमीन अधिग्रहण या मकान तोडने से जनाक्रोश बढेगा। उन्होंने कहा कि रांची शहर के मास्टर प्लान में भी भविष्य में हरमू में फलाईओवर निर्माण का जिक्र नहीं था। श्री सहाय से शनिवार को हरमू फलाईओवर निर्माण से प्रभावित होनेवाले हरमू निवासियों का एक प्रतिधिमंडल राजकुमार तिवारी के नेतृत्व में मिला। प्रतिनिधिमंडल ने श्री सहाय को बताया कि हरमू रोड में प्रस्तावित फलाईओवर निर्माण एवं भूमि अधिग्रहण गैर जरूरी योजना है। इसके पूर्व भी हरमू निवासी रैयतों से सडक चौडीकरण के लिए एकीकृत बिहार के समय वर्ष 1987-88 में जमीन ली गई थी। अब फलाईओवर के नाम पर सरकार जमीन छीनने की साजिश कर रही है। प्रतिनिधिमंडल ने हरमू रोड में प्रस्तावित फलाईओवर निर्माण योजना रदद कराने की मांग की। स्थानीय लोगों को की समस्याओं को सुनने के बाद श्री सहाय ने राज्य के नगर विकास विभाग के सचिव अजय कुमार सिंह से दूरभाष पर बात की। कहा कि प्रभावित लोगों की सहमति के बिना सरकार इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाए, अन्यथा व्यापक जनांदोलन और जनाक्रोश का सरकार को सामना करना पडेगा। कांग्रेस पार्टी रघुवर सरकार के इस जनविरोधी निर्णय का पुरजोर विरोध करेगी। प्रतिनिधिमंडल में मनीष आनंद, रमण शर्मा, ज्ञान प्रकाश, विकास कुमार, ओमप्रकाश, आशीश कुमार गुप्ता, हीरालाल चौरसिया, ओमप्रकाश लाल, राजाराम चौरसिया, मेहुल कुमार, संतोष कुमार गुप्ता, राजकुमार गुप्ता, संतोष चौधरी, राजेश कुमार, मनीष आनंद सहित आनंद सहित अन्य शामिल थे।

शुक्रवार, 8 जून 2018

मोदी जी. कल किसने देखा है



देवेंद्र गौतम

पीएम मोदी के अंध समर्थक दलील दे रहे हैं कि देश को उनके प्रयोगों का दूरगामी लाभ मिलेगा। दूरगामी लाभ तभी मिलता है जब दूरदर्शिता के साथ कोई यत्न किया गया हो। जब प्रयोग बिना होमवर्क के अति उत्साह में लोगों को चौंकाने की नीयत से किए गए हों और जिनका तात्कालिक असर जानलेवा दिखा हो तो उनके दूरगामी लाभ की उम्मीद नहीं की जा सकती है। दूरदर्शिता का आलम यह है कि मोदी ने जब नोटबंदी लागू की थी तो उन्हें यह भी पता नहीं था कि जो वैकल्पिक करेंसी छापी जा रही है वह एटीएम के खांचे में नहीं आएगी। उनके वित्तमंत्री जेटली भी नहीं जानते थे कि एटीएम मशीनों के कैलिब्रेट करना पड़ेगा। इसमें कितना समय लगेगा अंदाजा नहीं था। जब मामला फंस गया तो कैशलेस इकोनोमी की बात की जाने लगी। यह सलाह देते समय भी पता नहीं था कि भारत में इंटरनेट का स्पीड इतना नहीं कि डिजिटलाइजेशन का बोझ उठा सके। नोटबंदी की घोषणा करते वक्त मोदी जी ने कहा था कि दो दिनों बाद एटीएम से दो हजार रुपये प्रति सप्ताह निकाले जा सकेंगे। आतंकवाद का सफाया हो जाएगा। काला धन खत्म हो जाएगा। जाली नोटों का धंधा बंद हो जाएगा। नए नोट विशेष सतर्कता से तैयार के गए हैं। इनकी नकल नहीं की जा सकेगी। लेकिन उनके बयान के दूसरे-तीसरे दिन ही नोएडा के छात्रों ने दो हजार के नकली नोट बना लिए थे और बाजार में चलाने की कोशिश की थी। वे कोई जाली नोटों का धंधा करने वाले अपराधी नहीं थे। नोटों की उपलब्धता का आलम यह था कि आमलोग बैंकों के सामने कतारों में खड़े थे और कश्मीर में मारे गए आतंकी की जेब से नए नोट बरामद हो रहे थे। लाखों के नए नोटों का भुगतान कर रेल दुर्घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा था। नोटबंदी का प्रयोग पूरी तरह फ्लाप हो गया लेकिन आज भी न सरकार इसे मानने को तैयार है न उनके भक्त। अब लीपापोती के लिए दूरगामी लाभ की बात की जा रही है। कांग्रेस के 60 वर्षों के शासन से तुलना नहीं करने की बात की जा रही है। मोदी जी हाड़ मांस के मानव हैं। कोई अजर अमर नहीं। अपनी उम्र को देखते हुए अंदाजा लगाएं कि कितने वर्ष सक्रिय राजनीति में रह सकेंगे। यदि वे अच्छे दिन लाने में लंबा समय लगाने वाले हैं तो इतना इंतजार न उनका शरीर करेगा न भारत की जनता। जिन कम्युनिस्टों को भाजपा के लोग गाली देते हैं उन्होंने जरूर ऐतिहासिक गलतियां की हैं लेकिन उनमें इतनी ईमानदारी तो है कि अपनी गलतियों को स्वीकार करते हैं। यहां तो अपनी विफलताओं पर भी दूरगामी लाभ का मुलम्मा चढ़ाया जा रहा है। जनता ने मोदी जी को बड़े विश्वास और भरोसे के साथ पांच वर्षों के लिए चुना था तो उन्हें पांच वर्ष में लाभ देने वाले प्रयोग ही करने चाहिए थे। अपने चुनावी वादों में उन्होंने कभी यह नहीं कहा था कि उनके कार्यों का लाभ लंबे अंतराल के बाद होगा। इसमें समय लगेगा। बार-बार गद्दी सौंपिए और इंतजार कीजिए। मोदी जी, कल किसने देखा है। जो आज है वही सच है और सच यही है आपने देशवासियों उम्मीदों पर पानी फेरा है। भरोसे को तोड़ा है। अगर इत्तेफाक से एक मौका और मिल गया तो इसे अपना चमत्कार या शाह की प्रबंधन क्षमता नहीं बल्कि भारतीय जनता की उदारता और एहसान समझिएगा।

दलमा की गुफाओं में बैठकर करें वन्यजीवन का नजारा



देवेंद्र गौतम

रांची। वन्य जीवन में दिलचस्पी रखने वाले पर्यटकों के लिए खुशखबरी है। अब वे दलमा पहाड़ की गुफा में बैठकर जंगली हाथियों का नजारा कर सकेंगे। जमशेदपुर से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित 192 वर्ग किलोमीटर में फैले इस अभयारण्य में वन विभाग ने मंझला बांध, बड़का बांध और राजोहा बांध के पास तीन गुफाएं निर्मित कर पर्यटकों के लिए खोल दी हैं। अभयारण्य के प्रवेश द्वार से 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इन गुफाओं पर डेढ़-ढेढ़ लाख खर्च किया गया है। 17 गुना 13 फुट आकार की इन गुफाओं में खिड़कियां बनाई गई हैं जिनसे जलस्रोतों के पास आने वाले हाथियों और दूसरे वन्यजीवों की गतिविधियों का पर्यटक आराम से आनंद उठा सकेंगे। इनके निर्माण में पूरे छह महीने का समय लगा है। यह 300 करोड़ के इको टूरिज्म परियोजना का हिस्सा है।
अभी अभयारण्य में 20 हाथी मौजूद हैं लेकिन प. बंगाल के मिदनापुर और बांकुड़ा के जंगलों से हाथियों की वापसी का मौसम आ रहा है। उनके आने पर हाथियों का संख्या बढ़ जाएगी। उन्लेख्य है कि यहां वर्ष 2001 में हाथी परियोजना के तहत इस अभयारण्य की शुरुआत की गई थी। यहां हर वर्ष हजारों की संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक आते हैं। झारखंड सरकार पर्यटकों की सुविधा के लिए आधारभूत संरचना का विकास कर रही है। यहां वातानुकूलित काटेज भी बने हुए हैं। लेकिन बिजली के अभाव के कारण उन्हें खोला नहीं जा पा रहा है। निर्वाध विद्युत आपूर्ति के लिए झारखंड राज्य विद्युत निगम के अधिकारियों से बात चल रही है। उनके खुलने पर पर्यटकों की संख्या में और जाफा होने की उम्मीद है।

अपने व्यक्तित्व का लोहा मनवा गए प्रणब दा


 देवेंद्र गौतम
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के आरएसएस मुख्यालय, नागपुर का आमंत्रण स्वीकार करने को लेकर जो लोग आपत्ति व्यक्त कर रहे थे, परामर्श दे रहे थे, उन्हें अब समझ में आ गया होगा कि प्रणब दा के व्यक्तित्व के सामने वे कितने बौने और कितने नासमझ थे। प्रणब दा ने कांग्रेसियों के तमाम सुझावों और अटकलबाजियों का उस वक्त कोई जवाब नहीं दिया था। सिर्फ यही कहा था कि उन्हें जो भी कहना है नागपुर में कहेंगे। अब उनके भाषण से कहीं ऐसा नहीं लगता कि वे संघ के विचारों से संक्रमित या प्रभावित हुए हैं। उन्होंने संघ के मंच से अपनी बातें रखीं। उन्होंने वही सब कहा जो नेहरू की विरासत है उनका पूरा भाषण गांधी और नेहरू के राजनीतिक दर्शन का निचोड़ था जिसके सामने आरएसएस और बीजेपी कभी पटेल, तो कभी बोस को खड़ा करने की कोशिश करते रहे हैं।
अपने ज़ोरदार भाषण में प्रणब मुखर्जी ने जिस देश के इतिहास, संस्कृति और पहचान पर रोशनी डाली वह नेहरू की किताब डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया वाला भारत है, यहां तक कि उनके भाषण का प्रवाह भी वही था जो नेहरू की किताब में है। उन्होंने कहा कि राष्ट्र, राष्ट्रवाद और देशभक्ति ये तीनों सब एक दूसरे से जुड़े हैं इन्हें अलग नहीं किया जा सकता।-
उन्होंने शब्दकोश से पढ़कर नेशन की परिभाषा पढ़कर बताई। उन्होंने भाषण की शुरुआत महाजनपदों के दौर से यानी ईसा पूर्व छठी सदी से की, ये भारत का ठोस, तथ्यों पर आधारित और तार्किक इतिहास है।
यह संघ की अवधारणा वाला इतिहास नहीं था। संघ जिस इतिहास को स्थापित करना चाहता है वह हिंदू मिथकों से भरा काल्पनिक इतिहास है जिसमें देश की तामा गड़बड़ियों की शुरुआत गैर हिन्दू शासकों के आगमन के साथ माना जाता है। उस इतिहास में संसार का समस्त ज्ञान, वैभव और विज्ञान है। तकनीकी ज्ञान है। उसमें पुष्पक विमान उड़ते हैंप्लास्टिक सर्जरी होती हैइंटरनेट होता है।
प्रणब मुखर्जी ने बताया कि ईसा से 400 साल पहले ग्रीक यात्री मेगास्थनीज़ आया तो उसने महाजनपदों वाला भारत देखा, उसके बाद उन्होंने चीनी यात्री ह्वेन सांग का ज़िक्र किया जिसने बताया कि सातवीं सदी का भारत कैसा था, उन्होंने बताया कि तक्षशिला और नालंदा जैसे विश्वविद्यालय पूरी दुनिया की प्रतिभाओं को आकर्षित कर रहे थे। इन सबका ज़िक्र नेहरू ने ठीक इसी तरह अपनी किताब में किया है
प्रणब दा ने बताया कि उदारता से भरे वातावरण में रचनात्मकता पली-बढ़ी, कला-संस्कृति का विकास हुआ और भारत में राष्ट्र की अवधारणा यूरोप से भी पुरानी और उससे अलग है। उन्होंने कहा कि यूरोप का राष्ट्र एक धर्म, एक भाषा, एक नस्ल और एक साझा शत्रु की अवधारणा पर टिका है, जबकि भारत राष्ट्र की पहचान सदियों से विविधता और सहिष्णुता से रही है।
उन्होंने संघ का नाम लिए बिना उसकी नीतियों की ओर इशारा करते हे कहा कि धर्म, नफ़रत और भेदभाव के आधार पर राष्ट्र की पहचान गढ़ने की कोशिश हमारे राष्ट्र की मूल भावना को ही कमज़ोर करेगी।
मुखर्जी के भाषण को लेकर कई तरह की शंकाएं व्यक्त की जा रही थीं। उनकी वैचारिक प्रतिबद्धता पर सवाल उठाने की बचकानी कोशिश की जा रही थी। लेकिन उन्होंने मौर्य वंश के अशोक को सबसे महान राजा बताया जिसने जीत के शोर में, विजय के नगाड़ों की गूंज के बीच शांति और प्रेम की आवाज़ को सुना, संसार को बंधुत्व का संदेश दिया। पंडित नेहरू भी यही मानते थे इसीलिए अशोक स्तंभ को राष्ट्रीय चिन्ह के रूप में स्वीकार किया था।
संघ का हमेशा से भारत को महान सनानत धर्म का मंदिर बताता रहा है। हिन्दू धर्म को भारत का मूल आधार घोषित करता रहा है। उसके मुताबिक इस देश को हिंदू शास्त्रों, रीतियों और नीतियों से चलाया जाना चाहिए लेकिन इसके प्रणव दा ने स्पष्ट कहा कि एक भाषा, एक धर्म, एक पहचान हमारा राष्ट्रवाद नहीं है।
उन्होंने गांधी के वक्तव्य का हवाला देते हुए कहा कि भारत का राष्ट्रवाद आक्रामक और विभेदकारी नहीं हो सकता, वह समन्वय पर ही चल सकता है। उन्होंने सेकुलरिज्म के प्रति आस्था व्यक्त करते हुए कहा कि भारत में संविधान के अनुरूप देशभक्ति ही सच्ची देशभक्ति हो सकती है।
उन्होंने हिंदुत्व की संस्कृति की जगह साझा संस्कृति की बात की। बहस में हिंसा ख़त्म करने की जरूरत पर बस दिया।  देश में ग़ुस्सा और नफ़रत को कम करने और प्रेम तथा सहिष्णुता को बढ़ाने का आह्वान किया।
उनका पूरा भाषण उदार, लोकतांत्रिक, प्रगतिशील, संविधान सम्मत, मानवतावादी भारत की की ओर केंद्रित था। जो गांधी-नेहरू का मिला-जुला राजनीतिक दर्शन है।
प्रणब मुखर्जी ने संकीर्ण मानसिकता वाले लोगों को यह संदेश दिया कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक अस्पृश्यता के लिए कोई जगह नहीं होती। अपने विचारों को शालीनता के साथ रखना ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उद्देश्य है। वैचारिक मतभेद के कारण वाद-विवाद से परहेज नहीं करना चाहिए।


गुरुवार, 7 जून 2018

निष्पक्ष न्याय प्रणाली का यक्ष प्रश्न



-देवेंद्र गौतम

झारखंड के सिमडेगा में एक 70 वर्षीय बुजुर्ग को शराब की लत के कारण जान गंवानी पड़ी। उन्हें उनकी बहुओं ने ही पीट-पीटकर मार डाला। चार जून की घटना है। जलधर बेहरा नामक बुजुर्ग अपनी दो बहुओं से शराब पीने के लिए पैसे मांग रहा था। उनके पैसा देने से इनकार करने पर वह उग्र हो उठा और टांगी लेकर उन्हें मारने को दौड़ा। बहुओं ने लाठी से मुकाबला किया और उसकी पिटाई करने लगीं। पिटाई के कारण जलधर वेहरा की मौत हो गई। घटना की सूचना मिलने पर पुलिस पहुंची और दोनों बहुओं को गिरफ्तार कर लिया। उनपर हत्या का मुकदमा चलेगा। न्यायालय क्या फैसला देगा यह भविष्य के गर्भ में है। लेकिन इतना तय है कि यह मामला न्यायिक प्रक्रिया में लंबी दूरी तक नहीं जाएगा। निचली अदालतों के फैसले को चुनौती देने के लिए ऊपरी अदालतों में अपील करने के लिए न उनके पास धन है न जानकारी। वे महंगे वकीलों की सेवा नहीं ले सकतीं।  दूसरी तरफ पेशेवर अपराधी जघन्य अपराध करने के बाद भी पैसों के बल पर बड़े-बड़े वकीलों की सेवा लेते हैं। वर्षों कानूनी लड़ाई लड़ते रहते हैं और फिर साक्ष्य के अभाव में छूट भी जाते हैं। भारतीय समाज इसे न्यायिक व्यवस्था की मजबूरी और न्याय प्रणाली की विडंबना मानता है। अमीर लोग कानून की बिल्कुल परवाह नहीं करते। उन्हें अपने धनबल पर भरोसा रहता है। इन महिलाओं के पास धनबल नहीं है। उनके साथ कोई जनबल भी नहीं आएगा। धन होता तो ससुर को शराब के लिए पैसे मांगने की जरूरत ही नहीं पड़ती। उन्होंने परिस्थितिवश अपने बचाव में हत्या की है। वे कोई पेशेवर अपराधी नहीं थीं। भारतीय समाज दबंगों के साक्ष्य के अभाव में छूटने पर कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाता है लेकिन सजा होने पर भी इन महिलाओं को कभी दोषी नहीं मानेगा। यदि वे प्रतिरोध नहीं करतीं तो ससुर की टांगी का निशाना बनतीं। यहां निष्पक्ष न्याय प्रणाली की सीमाओं को समझने की जरूरत है। क्या कानूनी लड़ाई में धनबल की भूमिका खत्म करने या कम करने की कोई प्रणाली विकसित नहीं की जा सकती...। यह मौजूदा व्यवस्था का एक यक्ष प्रश्न है।

बुधवार, 6 जून 2018

सोने की चमक से दमकता झारखंड

देवेंद्र गौतम


झारखंड में सोने की दो खानें पहले से चल रही हैं लेकिन नए स्वर्ण भंडारों का पता लगने के बाद यह कर्नाटक के बाद सोने की मौजूदगी के मामले में देश का दूसरा सबसे बड़ा राज्य बन चुका है।
देवेंद्र गौतम
रांची। रांची से मात्र 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है तमाड़ प्रखंड का परासी गांव। इस नक्सल प्रभावित आदिवासी बहुल गांव में सोने की खदान खुल रही है। जल्द ही वहां की धरती सचमुच का सोना उगलने लगेगी। 1 नवंबर को ग्लोबल माइंस समिट के मौके पर निजी क्षेत्र की खनन कंपनी रुंगटा माइंस को राज्य सरकार ने इसके लिए 69.24 एकड़ का भूखंड आवंटित किया। इसके साथ ही झारखंड कर्नाटक के बाद स्वर्ण खदान आवंटित करने वाला देश का दूसरा सबसे बड़ा राज्य बन गया। पिछले दो वर्षों से इस इस स्वर्ण ब्लाक की नीलामी की प्रक्रिया चल रही थी। सिर्फ तीन कंपनियां इसके लिए आगे आई थीं। बाद में रुंगटा माइंस और वेदांता कंपनी ही नीलामी में शामिल हुईं। रुंगटा कंपनी इसमें सफल रही। उसे गोल्ड ब्लाक मिल गया।
कुछ वर्ष पूर्व परासी के किसान जब खेत जोतते थे तो उन्हें मिट्टी के अंदर सोने के कण मिलते थे। ग्रामी लोग इसे दैवी आशीर्वाद समझते थे। बाद में जब जियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया ने सर्वेक्षण किया तो पता चला कि वहां जमीन के अंदर 80 लाख टन स्वर्ण खनिज का भंडार है। यह सोना अत्यंत उच्च गुणवत्ता का है। झारखंड सरकार को इस खदान से 1280 करोड़ रुपयों की आय की उम्मीद है। जियोलाजिकल सर्वे ने अपने सर्वेक्षण में पाया कि झारखंड में इसके अतिरिक्त पांच और सोने के भंडार हैं। इनमें तीन तमाड़ में और दो जमशेदपुर में हैं। सिंहभूम के दलमा पर्वतमाला में ज्वालामुखी फटने से यह सोना ऊपर आया है। जियोलाजिकल सर्वे के अधिकारी पिछले 15 वर्षों से इसपर काम कर रहे थे। इस तरह रांची जिले में कुबासाल, सोना पेट, जारगो और सेरेंगडीह तथा खरसावां के जियलगेड़ा में स्वर्ण भंडारों की मौजूदगी की प्रारंभिक पुष्टि हो चुकी है। चट्टानों के ऊपरी नमूनों की जांच से स्वर्ण भंडारों की ठोस संभावना बनी है। जियोलाजिकल सर्वे ने केंद्र सरकार को इनके गहन सर्वेक्षण का प्रस्ताव भेजा है। यह सारे कोल ब्लाक रांची टाटा रोड के आसपास के इलाकों में हैं। केंद्र सरकार जब प्रस्ताव को मंजूरी दे देगी तो सबसे पहले चिन्हित स्थलों की केमिकल मैपिंग होगी। इससे सोने की मात्रा का पता चलेगा। साथ ही उसके खनन की तकनीक का अंदाजा लगाया जा सकेगा। इसके बाद थिमेटिक मैपिंग होगी। इससे पता चलेगा स्वर्ण भंडार कितनी गहराई में है। उसकी मात्रा क्या है और गुणवत्ता कैसी है। सरकार की मंजूरी के बाद जियोलाजिकल सर्वे को इस कार्य में कम से कम दो साल लग जाएंगे। इसके बाद इनकी नीलामी की प्रक्रिया शुरू होगी।
झारखंड में सोने की दो पुरानी खदानें जमशेदपुर के कुंदरकोचा और लावा में हैं। इनमें खनन कार्य चल रहा है। सरायकेला-खरसावां के पड़डीहा और रांची के परासी माइंस की नीलामी हो चुकी है। इनमें खनन कार्य शुरू करने की जोर-शोर से तैयारी चल रही है। जमशेदपुर के भितरडाही माइंस की पहले ही खोज हो चुकी है। इसके अलावा घाटशिला की पहाड़ियों में, स्वर्णरेखा नदी की रेत में सोना मौजूद है लेकिन उनका उत्खनन काफी खर्चीला है। उनमें कमर्शियल माइमिंग संभव नहीं है। कुछ ग्रामीण इसके कणों को इकट्ठा कर रोजी-रोटी का जुगाड़ कर लेते हैं।
आमतौर पर एक टन खनिज से एक ग्राम शुद्ध सोना प्राप्त होता है। इससे अधिक मात्रा भी हो सकती है। इतना तय है कि सभी स्वर्ण ब्लाकों में उत्खनन कार्य शुरू हो जाएगा तो कोई हैरत नहीं अगर स्वर्ण उत्पादन के मामले में झारखंड देश का अग्रणी राज्य बन जाए।

स्वर्ण जयंती वर्ष का झारखंड : समृद्ध धरती, बदहाल झारखंडी

  झारखंड स्थापना दिवस पर विशेष स्वप्न और सच्चाई के बीच विस्थापन, पलायन, लूट और भ्रष्टाचार की लाइलाज बीमारी  काशीनाथ केवट  15 नवम्बर 2000 -वी...