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गुरुवार, 7 जून 2018

निष्पक्ष न्याय प्रणाली का यक्ष प्रश्न



-देवेंद्र गौतम

झारखंड के सिमडेगा में एक 70 वर्षीय बुजुर्ग को शराब की लत के कारण जान गंवानी पड़ी। उन्हें उनकी बहुओं ने ही पीट-पीटकर मार डाला। चार जून की घटना है। जलधर बेहरा नामक बुजुर्ग अपनी दो बहुओं से शराब पीने के लिए पैसे मांग रहा था। उनके पैसा देने से इनकार करने पर वह उग्र हो उठा और टांगी लेकर उन्हें मारने को दौड़ा। बहुओं ने लाठी से मुकाबला किया और उसकी पिटाई करने लगीं। पिटाई के कारण जलधर वेहरा की मौत हो गई। घटना की सूचना मिलने पर पुलिस पहुंची और दोनों बहुओं को गिरफ्तार कर लिया। उनपर हत्या का मुकदमा चलेगा। न्यायालय क्या फैसला देगा यह भविष्य के गर्भ में है। लेकिन इतना तय है कि यह मामला न्यायिक प्रक्रिया में लंबी दूरी तक नहीं जाएगा। निचली अदालतों के फैसले को चुनौती देने के लिए ऊपरी अदालतों में अपील करने के लिए न उनके पास धन है न जानकारी। वे महंगे वकीलों की सेवा नहीं ले सकतीं।  दूसरी तरफ पेशेवर अपराधी जघन्य अपराध करने के बाद भी पैसों के बल पर बड़े-बड़े वकीलों की सेवा लेते हैं। वर्षों कानूनी लड़ाई लड़ते रहते हैं और फिर साक्ष्य के अभाव में छूट भी जाते हैं। भारतीय समाज इसे न्यायिक व्यवस्था की मजबूरी और न्याय प्रणाली की विडंबना मानता है। अमीर लोग कानून की बिल्कुल परवाह नहीं करते। उन्हें अपने धनबल पर भरोसा रहता है। इन महिलाओं के पास धनबल नहीं है। उनके साथ कोई जनबल भी नहीं आएगा। धन होता तो ससुर को शराब के लिए पैसे मांगने की जरूरत ही नहीं पड़ती। उन्होंने परिस्थितिवश अपने बचाव में हत्या की है। वे कोई पेशेवर अपराधी नहीं थीं। भारतीय समाज दबंगों के साक्ष्य के अभाव में छूटने पर कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाता है लेकिन सजा होने पर भी इन महिलाओं को कभी दोषी नहीं मानेगा। यदि वे प्रतिरोध नहीं करतीं तो ससुर की टांगी का निशाना बनतीं। यहां निष्पक्ष न्याय प्रणाली की सीमाओं को समझने की जरूरत है। क्या कानूनी लड़ाई में धनबल की भूमिका खत्म करने या कम करने की कोई प्रणाली विकसित नहीं की जा सकती...। यह मौजूदा व्यवस्था का एक यक्ष प्रश्न है।

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