देवेंद्र गौतम
झारखंड में सोने की दो खानें पहले से चल रही हैं लेकिन नए स्वर्ण
भंडारों का पता लगने के बाद यह कर्नाटक के बाद सोने की मौजूदगी के मामले में देश
का दूसरा सबसे बड़ा राज्य बन चुका है।
देवेंद्र गौतम
रांची। रांची से मात्र 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है तमाड़ प्रखंड
का परासी गांव। इस नक्सल प्रभावित आदिवासी बहुल गांव में सोने की खदान खुल रही है।
जल्द ही वहां की धरती सचमुच का सोना उगलने लगेगी। 1 नवंबर को ग्लोबल माइंस समिट के
मौके पर निजी क्षेत्र की खनन कंपनी रुंगटा माइंस को राज्य सरकार ने इसके लिए 69.24
एकड़ का भूखंड आवंटित किया। इसके साथ ही झारखंड कर्नाटक के बाद स्वर्ण खदान आवंटित
करने वाला देश का दूसरा सबसे बड़ा राज्य बन गया। पिछले दो वर्षों से इस इस स्वर्ण
ब्लाक की नीलामी की प्रक्रिया चल रही थी। सिर्फ तीन कंपनियां इसके लिए आगे आई थीं।
बाद में रुंगटा माइंस और वेदांता कंपनी ही नीलामी में शामिल हुईं। रुंगटा कंपनी
इसमें सफल रही। उसे गोल्ड ब्लाक मिल गया।
कुछ वर्ष पूर्व परासी के किसान जब खेत जोतते थे तो उन्हें मिट्टी के
अंदर सोने के कण मिलते थे। ग्रामी लोग इसे दैवी आशीर्वाद समझते थे। बाद में जब
जियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया ने सर्वेक्षण किया तो पता चला कि वहां जमीन के अंदर 80
लाख टन स्वर्ण खनिज का भंडार है। यह सोना अत्यंत उच्च गुणवत्ता का है। झारखंड
सरकार को इस खदान से 1280 करोड़ रुपयों की आय की उम्मीद है। जियोलाजिकल सर्वे ने
अपने सर्वेक्षण में पाया कि झारखंड में इसके अतिरिक्त पांच और सोने के भंडार हैं।
इनमें तीन तमाड़ में और दो जमशेदपुर में हैं। सिंहभूम के दलमा पर्वतमाला में
ज्वालामुखी फटने से यह सोना ऊपर आया है। जियोलाजिकल सर्वे के अधिकारी पिछले 15
वर्षों से इसपर काम कर रहे थे। इस तरह रांची जिले में कुबासाल, सोना पेट, जारगो और
सेरेंगडीह तथा खरसावां के जियलगेड़ा में स्वर्ण भंडारों की मौजूदगी की प्रारंभिक
पुष्टि हो चुकी है। चट्टानों के ऊपरी नमूनों की जांच से स्वर्ण भंडारों की ठोस
संभावना बनी है। जियोलाजिकल सर्वे ने केंद्र सरकार को इनके गहन सर्वेक्षण का
प्रस्ताव भेजा है। यह सारे कोल ब्लाक रांची टाटा रोड के आसपास के इलाकों में हैं।
केंद्र सरकार जब प्रस्ताव को मंजूरी दे देगी तो सबसे पहले चिन्हित स्थलों की
केमिकल मैपिंग होगी। इससे सोने की मात्रा का पता चलेगा। साथ ही उसके खनन की तकनीक
का अंदाजा लगाया जा सकेगा। इसके बाद थिमेटिक मैपिंग होगी। इससे पता चलेगा स्वर्ण
भंडार कितनी गहराई में है। उसकी मात्रा क्या है और गुणवत्ता कैसी है। सरकार की
मंजूरी के बाद जियोलाजिकल सर्वे को इस कार्य में कम से कम दो साल लग जाएंगे। इसके
बाद इनकी नीलामी की प्रक्रिया शुरू होगी।
झारखंड में सोने की दो पुरानी खदानें जमशेदपुर के कुंदरकोचा और लावा
में हैं। इनमें खनन कार्य चल रहा है। सरायकेला-खरसावां के पड़डीहा और रांची के
परासी माइंस की नीलामी हो चुकी है। इनमें खनन कार्य शुरू करने की जोर-शोर से
तैयारी चल रही है। जमशेदपुर के भितरडाही माइंस की पहले ही खोज हो चुकी है। इसके
अलावा घाटशिला की पहाड़ियों में, स्वर्णरेखा नदी की रेत में सोना मौजूद है लेकिन
उनका उत्खनन काफी खर्चीला है। उनमें कमर्शियल माइमिंग संभव नहीं है। कुछ ग्रामीण
इसके कणों को इकट्ठा कर रोजी-रोटी का जुगाड़ कर लेते हैं।
आमतौर पर एक टन खनिज से एक ग्राम शुद्ध सोना प्राप्त होता है। इससे
अधिक मात्रा भी हो सकती है। इतना तय है कि सभी स्वर्ण ब्लाकों में उत्खनन कार्य
शुरू हो जाएगा तो कोई हैरत नहीं अगर स्वर्ण उत्पादन के मामले में झारखंड देश का
अग्रणी राज्य बन जाए।
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