देवेंद्र गौतम
पीएम मोदी के अंध समर्थक
दलील दे रहे हैं कि देश को उनके प्रयोगों का दूरगामी लाभ मिलेगा। दूरगामी लाभ तभी
मिलता है जब दूरदर्शिता के साथ कोई यत्न किया गया हो। जब प्रयोग बिना होमवर्क के अति
उत्साह में लोगों को चौंकाने की नीयत से किए गए हों और जिनका तात्कालिक असर
जानलेवा दिखा हो तो उनके दूरगामी लाभ की उम्मीद नहीं की जा सकती है। दूरदर्शिता का
आलम यह है कि मोदी ने जब नोटबंदी लागू की थी तो उन्हें यह भी पता नहीं था कि जो
वैकल्पिक करेंसी छापी जा रही है वह एटीएम के खांचे में नहीं आएगी। उनके
वित्तमंत्री जेटली भी नहीं जानते थे कि एटीएम मशीनों के कैलिब्रेट करना पड़ेगा। इसमें
कितना समय लगेगा अंदाजा नहीं था। जब मामला फंस गया तो कैशलेस इकोनोमी की बात की
जाने लगी। यह सलाह देते समय भी पता नहीं था कि भारत में इंटरनेट का स्पीड इतना
नहीं कि डिजिटलाइजेशन का बोझ उठा सके। नोटबंदी की घोषणा करते वक्त मोदी जी ने कहा
था कि दो दिनों बाद एटीएम से दो हजार रुपये प्रति सप्ताह निकाले जा सकेंगे। आतंकवाद
का सफाया हो जाएगा। काला धन खत्म हो जाएगा। जाली नोटों का धंधा बंद हो जाएगा। नए
नोट विशेष सतर्कता से तैयार के गए हैं। इनकी नकल नहीं की जा सकेगी। लेकिन उनके
बयान के दूसरे-तीसरे दिन ही नोएडा के छात्रों ने दो हजार के नकली नोट बना लिए थे
और बाजार में चलाने की कोशिश की थी। वे कोई जाली नोटों का धंधा करने वाले अपराधी
नहीं थे। नोटों की उपलब्धता का आलम यह था कि आमलोग बैंकों के सामने कतारों में
खड़े थे और कश्मीर में मारे गए आतंकी की जेब से नए नोट बरामद हो रहे थे। लाखों के
नए नोटों का भुगतान कर रेल दुर्घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा था। नोटबंदी का प्रयोग
पूरी तरह फ्लाप हो गया लेकिन आज भी न सरकार इसे मानने को तैयार है न उनके भक्त। अब
लीपापोती के लिए दूरगामी लाभ की बात की जा रही है। कांग्रेस के 60 वर्षों के शासन
से तुलना नहीं करने की बात की जा रही है। मोदी जी हाड़ मांस के मानव हैं। कोई अजर
अमर नहीं। अपनी उम्र को देखते हुए अंदाजा लगाएं कि कितने वर्ष सक्रिय राजनीति में
रह सकेंगे। यदि वे अच्छे दिन लाने में लंबा समय लगाने वाले हैं तो इतना इंतजार न
उनका शरीर करेगा न भारत की जनता। जिन कम्युनिस्टों को भाजपा के लोग गाली देते हैं
उन्होंने जरूर ऐतिहासिक गलतियां की हैं लेकिन उनमें इतनी ईमानदारी तो है कि अपनी
गलतियों को स्वीकार करते हैं। यहां तो अपनी विफलताओं पर भी दूरगामी लाभ का मुलम्मा
चढ़ाया जा रहा है। जनता ने मोदी जी को बड़े विश्वास और भरोसे के साथ पांच वर्षों
के लिए चुना था तो उन्हें पांच वर्ष में लाभ देने वाले प्रयोग ही करने चाहिए थे। अपने
चुनावी वादों में उन्होंने कभी यह नहीं कहा था कि उनके कार्यों का लाभ लंबे अंतराल
के बाद होगा। इसमें समय लगेगा। बार-बार गद्दी सौंपिए और इंतजार कीजिए। मोदी जी, कल
किसने देखा है। जो आज है वही सच है और सच यही है आपने देशवासियों उम्मीदों पर पानी
फेरा है। भरोसे को तोड़ा है। अगर इत्तेफाक से एक मौका और मिल गया तो इसे अपना
चमत्कार या शाह की प्रबंधन क्षमता नहीं बल्कि भारतीय जनता की उदारता और एहसान
समझिएगा।
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