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शुक्रवार, 22 मार्च 2024

लॉटरी किंग ने निकाली राजनीतिक दलों की लॉटरी

 

राजनीतिक दलों को सबसे ज्यादा चंदा फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विसेज़ ने दिया। सबसे ज्यादा इलेक्टोरल बॉन्ड 1368 करोड़ की खरीदारी भी इसी कंपनी ने की। यह खरीदारी 2019 से 2024 के बीच की। कंपनी ने सर्वाधिक 542 करोड़ रुपयों का बॉंड तृणमूल कांग्रेस को और स्टॉलीन के नेतृत्व वाली डीएमके को 502 करोड़ के बॉंड दिए। वाइसीआर कांग्रेस को 154 करोड़, भाजपा को 100 करोड़ और कांग्रेस को 50 करोड़ दिए। इस कंपनी के चेयरमैन का नाम सैंटियागो मार्टिन हैं जिन्हें 'लॉटरी किंग' भी कहा जाता है। वे किसी जमाने में म्यांमार के यांगून में मजदूरी कर अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे। आज लॉटरी के धंधे में खरबों में खेलते हैं।

 इस कंपनी की सबसे हालिया ख़रीद इस साल जनवरी में की गई जब उसने 63 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदे। फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विसेज़ प्राइवेट लिमिटेड को 30 दिसंबर 1991 में बनाया गया था.

 इस कंपनी का रजिस्टर्ड पता तमिलनाड के कोयम्बटूर में है, लेकिन इसका वो पता जहां से खाते का संचालन किया जाता है कोलकता में है। यह कंपनी स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड नहीं है लेकिन देश के सर्वाधिक करदाताओं में शामिल है।

 कंपनी की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक़ फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड को पहले मार्टिन लॉटरी एजेंसीज लिमिटेड के नाम से जाना जाता था।

यह दो अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक के कारोबार के साथ भारत के लॉटरी उद्योग में अग्रणी खिलाड़ी है।

 कंपनी की वेबसाइट के मुताबिक़ 1991 में अपनी स्थापना के बाद से फ्यूचर गेमिंग विभिन्न राज्य सरकारों की पारंपरिक पेपर लॉटरी के वितरण में तेज़ गति से बढ़ रहा है। कंपनी के मुताबिक़ सैटियागो मार्टिन ने लॉटरी उद्योग में 13 साल की उम्र में क़दम रखा था और पूरे भारत में लॉटरी के ख़रीदारों और विक्रेताओं का एक विशाल नेटवर्क बना लिया। वे कई बार देश में सबसे ज्यादा आयकरदाता घोषित किए गए।

 

अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए मामूली वेतन कमाते थे। बाद में, वह भारत वापस आ गए, जहां उन्होंने 1988 में तमिलनाडु में अपना लॉटरी व्यवसाय शुरू किया. धीरे-धीरे कर्नाटक और केरल की ओर विस्तार किया।

   

भारी पड़ सकती है केजरीवाल की गिरफ्तारी

 ईडी ने जिन आरोपों के आधार पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार किया है उनकी पुष्टि के लिए अभी तक न्यायपालिका के समक्ष कोई प्रमाण पेश नहीं कर पाई है। व्यावसायिक लाभ देकर चंदा प्राप्त करने का उनपर 100 करोड़ का आरोप एक सरकारी गवाह के बयान के आधार पर है जबकि भाजपा पर दर्जनों कंपनियों को जांच एजेंसियों द्वारा डरा-धमकाकर हजारों करोड़ का इलेक्टोरल बांड प्राप्त करने के सारे सबूत मौजूद सामने आ चुके हैं। चुनाव आयोग उन्हें अपनी वेबसाइट पर डाल चुका है। मामला पब्लिक डोमेन में आ चुका है। तो क्या उनके आधार पर दर्ज होने वाली याचिकाओं पर भी ईडी कार्रवाई करेगी? सत्ता के शीर्ष पदों पर बैठे हुए भाजपा के नेताओं को भी गिरफ्तार करेगी?

सवाल है कि यदि आम आदमी पार्टी द्वारा शराब कंपनियों को लाभ पहुचाने के बाद चंदा लेने की बात सत्य भी है (फिलहाल सरकारी गवाह के बयान के अलावा कोई साक्ष्य नहीं है) तो किसी को डरा-धमकाकर जबरन चंदा वसूल करना तो इससे कहीं बड़ा अपराध है। सरकारी संस्थाएं जिस तरह सरकार के हाथों की कठपुतली बनी दिखाई देती हैं उसमें वह क्या करेंगी कहना कठिन है। सुप्रीम कोर्ट भी इस तरह की मनमानी पर कितना अंकुश लगा सकेगी भविष्य के गर्भ में है। लेकिन इतना निश्चित है कि दिल्ली, पंजाब और गुजरात समेत पूरे देश की जनता सरकार की तिकड़मों के च्छी तरह समझ रही है और उसका फैसला चुनाव में सामने आएगा।

ऐसा प्रतीत होता है कि भारतीय जनता पार्टी अभी तक जनता के मिजाज को समझ नहीं पाई है। उसे भेड़ बकरियों का दर्जा देती है जिसे जब जिधर चाहे घुमा लेगी। पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान शाहीनबाग़ आंदोलन के बहाने दिल्ली की जनता के सांप्रदायीकरण की कोशिशों में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी गई। भाजपा नेताओं के बीच जहरीले बयानबाजियों की होड़ सी लग गई। लेकिन नतीजा क्या निकला? आम आदमी पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ तीसरी बार सत्ता में वापस लौट आई। दिल्ली के मतदाताओं ने भाजपा नेताओं के भगवाकरण के प्रयासों को धत्ता बता दिया।

दिल्ली की जनता इतनी जागरुक है कि विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को वोट दिया और लोकसभा चुनाव में जीत का तोहफा भाजपा की झोली में डाल दिया। उसका मानना है कि लोकसभा में कुछ सीटें लेकर भी केजरीवाल क्या कर पाएंगे। फिर भाजपा लोकसभा चुनाव के मौके पर आम आदमी पार्टी से इतना भयभीत क्यों हो गई कि उसके सभी प्रमुख नेताओं को बिना किसी पुख्ता प्रमाण के जेल में डलवा दिया और अब एक जनता के चुने हुए मुख्यमंत्री को पकड़ लिया? क्या आप और कांग्रेस का गठबंधन उसके लिए इतना भारी पड़ रहा था? या इसलिए कि उस समय के मुकाबले आम आदमी पार्टी का ज्यादा विस्तार हो चुका है? अब वह तीन-चार राज्यों में प्रभाव डालने की स्थिति में आ चुकी है? क्या इन्हीं तिकड़मों के जरिए भाजपा चार सौ पार करना चाहती है?

फिलहाल भाजपा सरकार की मनमानी और तिकड़मबाजी पर सुप्रीम कोर्ट अंकुश लगाएगी या भारत की 142 करोड़ जनता या फिर सबकुछ इसी तरह चलता रहेगा आने वाला समय बताएगा।

-देवेंद्र गौतम

मंगलवार, 2 जनवरी 2024

दिल्ली की स्लम बस्तियों में सांस्कृतिक चेतना का संचार

 नई दिल्ली। 2023 के अंतिम और 2024 के प्रथम सप्ताह में चंद्रावती देवी समाज कल्याण सोसाइटी के तत्वावधान में दिल्ली के जीटीवी नगर और जहांगीरपुरी इलाके की स्लम बस्तियों के बच्चों के बीच दस दिवसीय सांस्कृतिक प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसके तहत बच्चों को अभिनय कला का प्रशिक्षण दिया गया और उनके जरिए नुक्कड़ नाटक का प्रदर्शन किया गया। इसके अंतर्गत राकेश राय द्वारा लिखित महिला सशक्तीकरण पर आधारित नाटक जागृति समेत तीन नाटकों का सफल मंचन किया गया। दूसरा जन नाट्य मंच का चर्चित नाटक कुत्ते मंचित हुआ जो भ्रष्ट होती नौकरशाली पर केंद्रित था। कार्यक्रम के अंतिम दिन भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा लिखित नाटक अंधेर नगरी चौपट राजा का मंचन किया गया। सभी नाटकों का निर्देशन राकेश राय ने किया। प्रशिक्षण के बाद अपने अभिनय कौशल का बेहतरीन प्रदर्शन कर दर्शकों की तालियां बटोरनने वाले कलाकारों में रवि, पूजा, आशुतोष, आशीष, विरम, पियूष, अमित,शेखर, लता आदि प्रमुख थे।




कार्यक्रम के संयोजक सिने अभिनेता, रंगकर्मी एवं निर्देशक राकेश राय ने इस अवसर पर अपना उद्गार प्रकट करते हे कहा कि चंद्रावती देवी समाज कल्याण सोसाइटी का उद्देश्य नई प्रतिभाओं की खोज कर उन्हें प्रशिक्षित करना और मंच प्रदान करना है।











कार्यक्रम में पस्थित प्रसिद्ध ग़ज़लकार एवं पत्रकार देवेंद्र गौतम ने कहा कि प्रतिभाएं महलों की मोहताज़ नहीं होतीं। अगर मंच मिला तो इन्हीं स्लम बस्तियों से राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय स्तर के कलाकार निकलेंगे। चंद्रावती देवी समाज कल्याण सोसाइटी गुदड़ी के लाल तलाश रही है और उन्हें तराश रही है। साहित्य और संस्कृति का इतिहास गढ़ रही है। इस तरह के आयोजन निरंतर चलते रहने चाहिए।  

गुरुवार, 15 सितंबर 2022

भाजपा को भारी पड़ सकती है स्मृति ईरानी की बौखलाहट

 


-देवेंद्र गौतम

स्मृति ईरानी बौखलाई हुई हैं। गोवा के सिली रेस्टोरेंट पर उनकी झूठ दस्तावेज़ी सबूतों की भेंट चढ़ गई है। यह साफ हो चुका है कि उस रेस्टोरेंट का संचालन उनका परिवार करता है। उसमें 70 प्रतिशत हिस्सेदारी उनके पतिदेव की है। जिस बेटी को वे कॉलेज की छात्रा बता रही थीं उसके वीडियो से और स्वयं मैडम के पूर्व बयानों से ज्ञात होता है कि उनकी बेटी रेस्टोरेंट की प्रबंधकीय व्यवस्था देखती है। होटल चलाने में कोई समस्या नहीं है।

समस्या वहां गोमांस और सुअर का मांस परोसे जाने को लेकर है। वे जिस पार्टी में हैं उसके मुखिया इतने ताकतवर हैं कि अपने अपने लोगों के बचाव में किसी हद तक जा सकते हैं। लेकिन वे कट्टर हिंदूवाद की राजनीति करते हैं। गोरक्षा की बात करते हैं। गोमांस के आरोप में कितने ही लोगों पर गाज गिर चुकी है। अब जब उनकी अपनी केंद्रीय मंत्री के रेस्टोरेंट में ही बीफ परोसे जाने की बात सामने आ रही है तो इसका बचाव कैसे करें। पार्टी अपने एजेंडे से पीछे कैसे हटे। पार्टी किसी की परवाह नहीं करती। अपने लोगों के सात खून को माफ कर देती है। पार्टी ने खाड़ी देशों की नाराजगी की कीमत पर अपनी प्रवक्ता नुपूर शर्मा और नवीन जिंदल का बचाव किया। दिखावे के तौर पर पार्टी के बाहर का रास्ता दिखाया लेकिन गिरफ्तारी नहीं होने दी। पुलिस सुरक्षा प्रदान की। यदि बीफ का मामला नहीं होता तो स्मृति ईरानी को भी सीधे संकट से निकाल लाती। अब उन्हें परोक्ष रूप से ही मदद की जा सकती है। वैसे स्मृति ईरानी के रहने से या नहीं रहने से भाजपा की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता। वे किस धर्म से संबंध रखती हैं न उनसे किसी ने पूछा न उन्होंने बताया। लेकिन उन्हें एक एसी पार्टी ने लगातार मंत्री बनाया जो भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करना चाहती है। जो मुसलमानों के प्रति नफरत के भाव को बढ़ावा देने की नीति पर ध़ड़ल्ले से चलती है। ऐसी पार्टी में होने के नाते उन्हें ऐसे व्यवसाय में नहीं पड़ना चाहिए था जिसमें बीफ परोसना पड़े।

सिली सोल का मामला उजागर होने के बाद उनकी बौखलाहट इतनी बढ़ गी है कि वे क्या कर रही हैं क्या बोल रही हैं इसका जरा भी होश नहीं है। इसी बौखलाहट में वे लोकसभा में अनावश्यक चिल्ला-चिल्लाहट के बाद सोनिया गांधी से सिर लड़ा बैठीं। इस बौखलाहट के कारण ही वह यह जानकारी नहीं ले सकीं कि भारत जोड़ो यात्रा शुरू करने से पूर्व राहुल गांधी स्वामी विवेकानंद को श्रद्धा सुमन अर्पित करने गए थे या नहीं और सार्वजनिक रूप से आरोपों की बौछार कर मजाक का पात्र बन गईं। वैसे भी अब राजनीति करवट ले रही है और आने वाले समय में ईरानी और नुपूर शर्मा जैसे जहरीले बयानवीरों की क्या उपयोगिता रहेगी कहना कठिन है। फिलहाल स्मृति जी की बौखलाहट उनसे क्या-क्या बयान दिलवाएगी, कितना मखौल उड़वाएगी कहना कठिन है।      

गुरुवार, 9 जून 2022

मिस इंडिया ने किया एथनिक वियर के स्टोर का उद्घाटन

 


पटना। 05 जून। एथनिक वियर के क्षेत्र में देश के प्रतिष्ठित ब्रांड स्वयंवर ने रविवार को पटना के फ्रेजर रोड स्थित महाराजा कामेश्वर कॉम्प्लेक्स में अपने नए स्टोर का शुभारंभ किया। इस स्टोर का उद्घाटन मुख्य अतिथि अभिनेत्री व पूर्व मिस इंडिया इंटरनेशनल सुप्रिया आयशा ऐमन एवं  स्टोर के ओनर अंजनी कुमार व सोनी सिंह ने संयुक्त रूप से फीता काटकर किया।शुभांरभ के पश्चात मुख्य अतिथि सुप्रिया आयशा ऐमन ने स्वयंवर की टीम को अपनी शुभकामनाएं दी और कहा कि यह स्टोर लोगों के एथनिक कपड़ों के खरीददारी के लिए बेहतर स्थान साबित होगा। उन्होंने कहा कि बिहार फैशन के क्षेत्र में बहुत आगे बढ़ गया है जिस कारण देश के बड़े-बड़े ब्रांड बिहार की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। सुप्रिया ने कहा कि मेंस एथनिक वियर के मामले में स्वयंवर ग्राहकों की पहली पसंद बना हुआ है। वहीं अपने संबोधन में स्टोर के ओनर अंजनी कुमार ने बताया कि  इस नए स्टोर में मेंस एथनिक वियर एवं वेडिंग वियर कि विस्तृत श्रृंखला मौजूद है। जिसमें शेरवानी,इंडो वेस्टर्न,कुर्ता,धोती,बंडी,जैकेट सहित अन्य एक्सेसरीज शामिल हैं। उन्होंने बताया कि हमारे स्टोर में दूल्हे के लिए इंगेजमेंट वियर, वेडिंग वियर और रिसेप्शन वियर के खास कलेक्शंस उपलब्ध हैं।स्टोर के दूसरी ओनर सोनी सिंह ने बताया कि स्वयंवर शादी एवं अन्य महत्वपूर्ण अवसरों पर परिवार के सभी पुरुषों के लिए खरीददारी करने का उपयुक्त स्थान है। यहाँ अच्छी रेंज में मेंस एथनिक कपड़ों की ढेर सारी वैराइटीज एवं नए कलेक्शंस मौजूद हैं।

सोमवार, 6 जून 2022

लक्ष्मण रेखाओं के पार

 

-देवेंद्र गौतम

सीता ने लक्ष्मण रेखा को पार किया तो रावण ने उनका हरण कर लिया। अभिव्यक्ति की आजादी की भी कुछ सीमाएं कुछ लक्ष्मण रेखाएं होती हैं। चाहे वह दृश्य हों अथवा अदृश्य। उन्हें पार करने पर नुकसान उठाना पड़ता है। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता नुपूर शर्मा और नवीन जिंदल ने स रेखा को पार कर लिया था। इस कारण उन्हें पार्टी से छह वर्षों के लिए निलंबित कर दिया गया। लेकिन यह फैसला लेने में ज्यादा समय लग गया। उनके अमर्यादित बयानों के कारण एक शहर में दंगा हो गया कई शहरों में इसका माहौल बनने लगा। खाड़ी के कुछ देशों में भारतीय उत्पादों का बहिष्कार होने लगा। वहां काम कर रहे भारतीयों को नौकरी से निकाला जाने लगा। राजदूत तलब के जाने लगे। इतना कुछ हो जाने के बाद भाजपा सरकार ने कार्रवाई कर सर्वधर्म समभाव के प्रति अपनी निष्ठा का ऐलान किया। इस बीच विवाद के तूल पकड़ने का इंतजार किया जाता रहा।

 

इसमें कोई दो राय नहीं कि भाजपा कट्टर हिंदुत्ववाद की राजनीति करती है और एलानिया करती है। बाजपेयी के कार्यकाल में ऐसा संभव नहीं था क्योंकि सरकार कई दलों के समर्थन पर टिकी थी। अब प्रचंड बहुमत है। अब खुलकर ध्रुवीकरण क राजनीति कर सकती है और कर रही है। इससे उसके वोटों में इजाफा होता है। गद्दी को मजबूती मिलती है। यह कोई लुकी छिपी बात नहीं है। सत्ता संरक्षित संगठनों के जरिए एक समुदाय को टारगेट करने का सिलसिला तो पिछले आठ वर्षों से जारी है। जहरीले बयान तो लंबे समय से दिए जा रहे हैं। सर्वधर्म समभाव की याद अब आ रही है जब नफरती बयानों का निशाना सारी सीमाओं को लांघकर पैगंबर मोहम्मद तक जा पहुंचा है। इन बयानों को लेकर मुस्लिम देशों में खासी नाराजगी उत्पन्न हुई। पांच मुस्लिम देशों ने इन बयानों को लेकर भारत के सामने आधिकारिक विरोध दर्ज करवाया। कतर, ईरान और कुवैत ने विवादित टिप्पणियों को लेकर भारतीय राजदूतों को तलब किया। खाड़ी के महत्वपूर्ण देशों ने इन टिप्पणियों की निंदा करते हुए अपनी कड़ी आपत्ति दर्ज कराई। वहीं, सऊदी अरब और अफगानिस्तान ने भी आपत्ति जाहिर की है।

 

राष्ट्रीय प्रवक्ता किसी भी पार्टी की नीतियों के उद्घोषक होते हैं। उन्हें अपनी सीमाओं का ध्यान रखना होता है। कम से कम ऐसी बात नहीं बोलनी चाहे जिससे पार्टी के साथ-साथ देश की रुसवाई हो। सवाल है कि एक राष्ट्रीय चैनल पर प्रवक्ता ने जो बात कही क्या वह पार्टी के स्टैंड का हिस्सा थी। अगर नहीं तो पार्टी ने तत्काल उन्हें इसके लिए फटकार क्यों नहीं लगाई? अगर उनका बयान पार्टी नीतियों के अनुरूप थी तो फिर कार्रवाई क्यों की? उसपर अड़े रहना था। सवाल है कि क्या भाजपा ने अपने बयानवीरों के लिए कभी कोई लक्ष्मण रेखा खींची थी। अभी तक तो कट्टर हिंदूवादी संगठनों की हर हरकत पर मौन साधा जाता रहा। खुलेआम लिंचिंग की जाती रही। बुलडोजर चलाए जाते रहे। जगह-जगह शिवलिंग ढूंढने और विवादित स्थलों पर पूजा-पाठ करने की अनुमति मांगने का सिलसिला चलता रहा। खुलेआम दूसरे संप्रदाय के लोगों को मारने-काटने का आह्वान किया जाता रहा। प्रशासन ने अति होने पर कार्रवाई की अन्यथा उनका सात खून माफ रहा। यह विवाद भी अगर तूल नहीं पकड़ता तो संभवतः कार्रवाई नहीं होती।

 

मामला सिर्फ भाजपा का नहीं है। जो भी पार्टी सत्ता में प्रचंड बहुमत के साथ होती है उसके समर्थक बेलगाम हो जाते हैं। पार्टी उनका भरसक बचाव करती है। कांग्रेस जब सत्ता में थी तो राबर्ट वाड्रा के ज़मीन घोटाले में आरोप के बचाव के लिए एक ईमानदार आईएएस अधिकारी का तबादला कर दिया था। उत्तर भारत में जातीय हिंसा की जड़ में सत्ता की राजनीति ही रही है।

 

अब कम से कम विषैले वक्तव्यों से अपना नंबर बढ़ाने के चक्कर में लगे लोगों को स्वयं अपनी लक्ष्मण रेखा खींचनी होगी अन्यथा जब उनके कारण सत्ता को संकट का सामना करना पड़ेगा तो पार्टी उनका बचाव नहीं करेगी। वे नुपूर शर्मा और नवीन जिंदल की तरह दूध की मक्खी जैसा निकाल फेंके जाएंगे।

सोमवार, 30 मई 2022

कपूत


 

-हलो!

-जी कहिए।

-मैं अस्पताल से बोल रहा हूं।

-जी…।

-आपकी माता जी का देहांत हो गया है। एक्सीडेंट केस था। पोस्टमार्टम कराना होगा। आप आ रहे हैं क्या?

-मैं तो मुंबई आ गया हूं। बहुत व्यस्त हूं। आप पोस्टमार्टम कराइए।

-आपके परिवार का कोई मौजूद नहीं हैं।

-तीन लोग हैं। सब एक्सीडेंट में घायल हो गए थे। इलाज के बाद घर मे पड़े हैं। आने की हालत में नहीं हैं।

-जी…आप आ जाते तो अच्छा रहता। अंतिम संस्कार भी तो करना होगा।

-मैं बहुत व्यस्त हूं। फिर भी देखता हूं। रिजर्वेशन मिल जाए तो आ जाउंगा।

अगले दिन अस्पताल से फिर फोन गया।

-हलो!

-जी कहिए।

-आपकी माताजी का पोस्टमार्टम हो गया। बॉडी ले जाइए।

-रिजर्वेशन नहीं मिल पा रहा है। काम भी बहुत है। अभी निकलने पर बहुत बड़ा कांट्रैक्ट हाथ से निकल जाएगा। आप बॉडी को रोक के रखिए।

तीन दिन गुजर गए। बॉडी लेने कोई नहीं आया। अस्पताल के रिशेप्सनिस्ट ने सीएमओ से परामर्श के बाद फिर फोन किया।

-हलो!

-जी…।

-आपकी माताजी की बॉडी तीन दिन से पड़ी है उसे ले जाकर अंतिम संस्कार कर दीजिए।

-अरे भाई! रिजर्वेशन मिल नहीं रहा है और कांट्रैक्ट भी फाइनल स्टेज में है। क्या करूं समझ में नहीं आता।

-आप कल तक नहीं आते तो हम बॉडी को पुलिस के हवाले कर देंगे। वह लावारिश लाश की तरह अंतिम संस्कार कर देगी।

-यही ठीक रहेगा। जाने वाला तो चला गया। कोई अंतिम संस्कार करे क्या फर्क पड़ता है।

स्वर्ण जयंती वर्ष का झारखंड : समृद्ध धरती, बदहाल झारखंडी

  झारखंड स्थापना दिवस पर विशेष स्वप्न और सच्चाई के बीच विस्थापन, पलायन, लूट और भ्रष्टाचार की लाइलाज बीमारी  काशीनाथ केवट  15 नवम्बर 2000 -वी...