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मंगलवार, 13 नवंबर 2018

श्री श्याम जन्मोत्सव 19 नवम्बर को

 हरमू रोड,निज मंदिर खाटु श्याम जी में

रांची। हरमू रोड स्थित निज मंदिर खाटु श्याम जी में श्री श्याम जन्मोत्सव बडे ही धूम धाम से 19 नवम्बर,सोमवार को मनाया जाएगा।
प्रबोधिनी एकादशी के पावन दिन श्री श्याम भक्तों के लिए बडा ही महत्व रखता है इस दिन बाबा श्री श्याम का जन्मोंत्सव सम्पूर्ण श्याम जगत में मनाया जाता है।हरमू रोड निज मंदिर में भी श्री श्याम जन्मोंत्सव की तैयारियाँ श्री श्याम मित्र मण्डल के अध्यक्ष के नेतृत्व में प्रारंभ हो चुकी है।बाबा के जन्म दिन के पावन पुनीत अवसर पर विशेष रूप से वस्त्र (बागा)बनवाया गया है साथ ही देश के प्रमुख स्थानों से फूल मगाया जाएगा।बाहर से आए पुष्पों से निर्मित गजरों(मालाओं) से बाबा श्री श्याम प्रभु का श्रृंगार किया जाएगा।जन्मोंत्सव पर बाबा को छप्पन भोग प्रसाद के साथ ही नाना प्रकार के फल मेवों का भी भोग लगाया जाएगा।सम्पूर्ण मंदिर परिसर को रंग बिरंगे लाइट से दुल्हन की तरह सजाया गया है।
बाबा को अपने भजनों से रिझाने मुम्बई से सुरेश शर्मा एवं कोलकाता से ऋतु सिंह आ रही है।
19 नवम्बर,सोमवार को सुमधुर भजनों का कार्यक्रम रात्रि 10 बजे से प्रारंभ हो कर रात्रि 3.55 तक चलेगा।प्रातः 4 बजे बाबा श्री श्याम जी की महाआरती के साथ ही श्री श्याम जयन्ती का समापन होगा।महामंत्री श्री आनंद शर्मा ने बताया कि बाबा को भोग अर्पित करने के बाद से निरन्तर प्रसाद वितरण किया जाएगा।श्री शर्मा ने सभी धर्मप्रेमी श्याम भक्तों से पूरी श्रद्धाभाव के साथ श्री श्याम जन्मोंत्सव कार्यक्रम में शामिल हो बाबा को रिझाने एवं अपने परिवारजनों के लिए मंगलकामना श्री श्याम मित्र मण्डल परिवार संग करने का आग्रह किया।


छठ गीतों के एलबम का लोकार्पण

भोजपुरी युवा विकास मंच एवं  ए डी राज फ़िल्म एंड म्यूजिक डीविज़न की ओर से आस्था के इस पावन पर्व के शुभ अवसर पर  उगी है दीनानाथ छट गीत  एलबम का विमोचन  भोजपुरी युवा विकास मंच के अध्यक्ष आशुतोष द्विवेदी,ए डी राज फ़िल्म एंड म्यूजिक डीविज़न के शुभांशु द्विवेदी,समाजसेवी राजीव रंजन, अवदेश ठाकुर   ने  संयुक्त रूप से कचहरी कोर्ट कंपाउंड स्थित द्विवेदी टॉवर में किया गया। इस एल्बम में कुल 5 गाने हैं।जिसमें जय जय छठी मैया, अर्ग देवी हमहु छट गाठ ये ननदो काफी लोगप्रिय होगा।इस अवसर  गायक शत्रुघ्न सावरिया ने अपनी आवाज दी है।निर्माता एस के द्विवेदी,निर्देशक शैलेश परदेसी,गीत विकास पांडेय,हैं।यह जानकारी आशुतोष द्विवेदी ने दी।

छठवर्तियों के बीच फल वितरित


रांची। सामाजिक संस्था दाधिचि परिषद और व्यावसायिक प्रतिष्ठान रामा इंटरप्राइजेज के संयुक्त तत्वावधान में कटहल मोड़ व कोकर में छठव्रतियों के बीच फलों का वितरण किया गया। शहर के जाने माने व्यवसायी व समाजसेवी आदित्य शर्मा के नेतृत्व में दीपक शर्मा, हेमंत शर्मा, पार्थ शर्मा, ऋषभ शर्मा, सुरेन्द्र शर्मा, महेश यादव, उपेन्द्र सिंह, पप्पू सिंह सहित अन्य श्रद्धालुओं ने इस पुनीत कार्य में सहयोग किया।

छठ घाटों का निरीक्षण करने निकला रांची जिला प्रशासन

उपायुक्त राय महिमापत रे, एसडीओ गरिमा सिंह, एसएसपी अनीश गुप्ता सहित छठ पूजा समिति के सदस्य गणों के साथ छठ घाटों का निरीक्षण करने रांची के आस पास के डैम व छठ घाटों में पहुंचे । जिसमे धुर्वा डैम बड़ा तालाब नक्षत्र वन रॉक गार्डन स्थित बैंक का निरीक्षण किया गया

श्री केड सती दादी मां मंगल पाठ का आयोजन 18 नवंबर को

रांची। श्री केडिया सभा के तत्वावधान में श्री केड सती दादी मां मंगल पाठ का आयोजन 18 नवंबर दिन रविवार को किया गया है। कार्यक्रम बरियातू रोड स्थित श्री सज्जन-प्रतिमा छावछरिया के निवास स्थान पार्वती एनक्लेव में 3:00 बजे से 6:00 बजे तक होगा। इस दौरान दादी मां की पावन ज्योति प्रज्वलित कर उनका मंगल पाठ एवं भजन कीर्तन होगा। इसके उपरांत दादी मां की महाआरती कर भक्तों के बीच प्रसाद वितरण होगा। सभा के महामंत्री श्री ललित केडिया ने सभी भक्तों से आग्रह किया है कि सभी भक्त सपरिवार मित्रों एवं अपने सगे संबंधियों के साथ पधार कर मंगल पाठ का श्रवण करें एवं भजनों का आनंद उठाएं और पुण्य के भागी बने।
इस पावन कार्य हेतु केडिया सभा अपने सभी सहयोगियों एवं दादी मां के भक्तों का सदैव आभारी रहेगा। यह जानकारी मीडिया प्रभारी मधु केडिया ने दी।

वामपंथी बनाम दक्षिणपंथी रूढ़िवाद



देवेंद्र गौतम

सोशल मीडिया के इस जमाने में हर पर्व त्योहार या धार्मिक आयोजन के मौके पर कोई न कोई कथित वामपंथी विद्वान उसे ढोंग, ढकोसला, अंधविश्वास आदि करार दे ही देता है। फिर दक्षिणपंथी खेमे से इसके जवाबी पोस्ट आने लगते हैं। इस क्रम में भाषा की मर्यादा तक ताक़ पर रख दी जाती है। सच्चाई यह है कि दोनो ही अपने-अपने ढंग के रूढ़िवाद से ग्रसित हैं। अपने कालखंड की विशिष्टताओं, ज्ञान-विज्ञान से पूरी तरह के कटे हुए। लकीर के फकीर। वामपंथ चीजों को वैज्ञानिक नजरिए से देखने और तार्किक तरीके से विश्लेषण करने की प्रेरणा देता है। लेकिन वामपंथी अपने पूर्वजों यानी मार्क्स, लेनिन, माओ आदि की कही बातों के आधार पर अपनी धारणा बनाते हैं और विभिन्न मंचों से व्यक्त करते हैं। इस क्रम में सामयिक घटनाओं और प्रवृतियों का विश्लेषम तो हो जाता है लेकिन धर्म और अध्यात्म के प्रति पूर्वाग्रह से मुक्त नहीं हो पाते। सवाल है कि क्या मार्क्स, एंगेल्स, लेनिन और माओं के देहांत के बाद विज्ञान का विकास रुक गया था? समय का पहिया थम गया था? उनकी प्रस्थापनाओं में कुछ नया जोड़ने की जरूरत नहीं है?
हाल के वर्षों में देशी-निदेशी विश्वविद्यालयों में जो शोध हुए हैं उनसे पता चलता है कि धार्मिक परंपराओं और रीति-रिवाजों के अंदर भी विज्ञान है। आधुनिक विज्ञान परमाणु से विकसित हुआ है तो आध्यात्मिक विज्ञान। विशुद्ध ऊर्जा, महाशून्य, कास्मिक रेज अथवा ब्रह्म से। आधुनिक शोधों से धर्म और विज्ञान के बीच की दूरी निरंतर कम होती जा रही है। माना जा रहा है कि धार्मिक ग्रंथों में वैज्ञानिक बातों को अंधविश्वास की भाषा में कहा गया है। संभवतः यह उस काल के बौद्धिक और सामान्य जन की चेतना के स्तर में अंतर के कारण किया गया हो। ठीक उसी तरह जैसे इतिहास को मिथिहास की भाषा में लिखा गया था। वैज्ञानिक स्वयं स्वीकार करते हैं कि यह भूमंडल और जीवमंडल अरवों-खरबों वर्षों से अस्तित्व में है। तो क्या यह मान लिया जाए कि मानव सभ्यता हड़प्पा, मिश्र और मेसेपोटानिया से पहले नहीं रही रही होगी इसलिए कि हम उससे अवगत नहीं हैं। तो क्या धर्मग्रंथों में जो बातें अंधविश्वास की भाषा में कही गई हैं उन्हें वैज्ञानिक भाषा में नहीं कहा जाना चाहिए? क्योंकि वामपंष के पूर्वजों ने उन्हें सिरे से नकार दिया था? धर्म के प्रति पूर्वाग्रह पूर्ण नकारात्मक धारणा के कारण ही वामपंथ की धारा सिमटती और व्यापक जन समुदाय से कटती जा रही है। भाकपा माले के पूर्व महासचिव विनोद मिश्र ने कहा था कि धर्म व्यक्तिगत आस्था की चीज है, उसे इसी रूप में स्वीकार करना चाहिए। अगर माओ ने धर्म को अफीम करार दिया तो इसका कारण था कि उस समय तक उसके अंदर की वैज्ञानिकता की पड़ताल नहीं की गई थी। अब जब उसका वैज्ञानिक विश्लेषण किया जा रहा है तो क्या इसे इसलिए अस्वीकार कर देना चाहिए कि वामपंथ के पूर्वजों ने स्वीकार नहीं किया था। स्थापित प्रस्थापना को मानने और बनी बनाई लीक पर चलना कत्तई वामपंथ नहीं है। यह एक किस्म का रूढ़िवाद है। हर विचारधारा अपने उदयकाल में सर्वाधिक आधुनिक और प्रासंगिक होती है लेकिन कालांतर में जब वह अपने समय, काल, परिस्थितियों और ज्ञान-विज्ञान के विकास के अनुरूप परिमार्जित नहीं होती तो रूढ़ होने लगती है। वामपंथ का रूढ़िवाद अभी शैशवकाल में है। इससे छुटकारा पाया जा सकता है। दक्षिणपंथ का रूढ़िवाद क्रोनिक है। से दूर करने के लिए वामपंथ को ही आगे आना होगा लेकिन अपने रूढ़िवाद से मुक्त होने के बाद। दक्षिणपंथियों को रूढ़िवादी और ढपोरपंथी क्यों कहा जाता है? इसीलिए न कि वे सदियों से स्थापित प्रस्थापनाओं के अनुरूप आचरण करते हैं। पूर्वजों की हर बात को ब्रह्मवाक्य मानते हैं। अगर वामपंथी भी यही करते रहेंगे तो फिर वामपंथी और दक्षिणपंथी में अंतर क्या है? दोनों अपने-अपने पूर्वजों की कही बातों को ब्रह्मवाक्य मानकर चलते हैं।
दक्षिणपंथियों की समस्या यह है कि वे विज्ञान को अपना शत्रु मानते हैं। ठीक जैसे वामपंथी धर्म को पूरी तरह अवैज्ञानिक मानते हैं। लेकिन यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि हम न तो आदिम युग में जी रहे हैं और न 19 वीं शताब्दी में। यह 21 वीं सदी है। कम से कम अब तो पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर चीजों को नए सिरे से देखने का प्रयास करें। अभी दुर्गा पूजा, दीपावली, छठ आदि पर्वों के मौसम में एक दूसरे पर कटाक्ष करने की जगह अगर इनके अंदर के वैज्ञानिक और अवैज्ञानिक तथ्यों पर स्वस्थ चर्चा करते तो हम सबका बौद्धिक विकास होता। आमलोगों को नए नज़रिए से चीजों को देखने की प्रेरणा मिलती। लेकिन मुझे लगता है कि सारी चीजें अंततः राजनीति पर आकर टिक जाती हैं। नास्तिकता और आस्तिकता के आधार पर जनता को विभाजित करने का मकसद ज्यादा होता है। स्वस्थ बहस और लोक शिक्षण का मकसद कम होता है। यही विडंबना है।

रविवार, 11 नवंबर 2018

ईरान से तेल खरीदने में भारत के लिए 5 फायदे


-अभिमन्यु कोहाड़

अमेरिका द्वारा ईरान पर लगाये गए प्रतिबंध 4 नवम्बर से लागू हो गए हैं। इन प्रतिबंधों के तहत अगर कोई भी देश ईरान के साथ व्यापार करता है तो उस देश की कंपनियों पर अमेरिका कड़ी पाबंदी लगाएगा और वो कंपनियां अमेरिका की आर्थिक व्यवस्था का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगी। अमेरिका द्वारा सभी देशों पर ईरान से तेल न खरीदने का दबाव डाला जा रहा है। भारत ने उस दबाव के सामने झुकने से मना कर दिया है। ईरान पर यह प्रतिबन्ध अमेरिका ने लगाए हैं, संयुक्त राष्ट्र एवम यूरोपियन यूनियन इन प्रतिबंधों का समर्थन नहीं कर रही है। भारत सिर्फ संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों को मानता है इसलिए भारत ने अमेरिका के इन प्रतिबंधों को मानने से मना कर दिया है। कल अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पेओ ने भारत, रूस, चीन व इटली समेत 8 देशों को प्रतिबन्ध से छूट देने का फैसला किया है।

ईरान से तेल खरीदने में भारत को 5 फायदे हैं -

1). भारत ईरान के तेल का भुगतान रुपयों में करेगा जिस से भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अधिक मजबूत होगा।

2). जब हम डॉलर में व्यापार करना बंद कर देंगे तो डॉलर के मुकाबले रुपया और उसके परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था स्वयं मज़बूत हो जाएंगे।

3). विदेश नीति के के लिहाज से ईरान के साथ मजबूत सम्बन्ध रखने के भारत को अनेक फायदे हैं। ईरान के चाबहार बंदरगाह के जरिये भारत अफ़ग़ानिस्तान व मध्य एशिया के अनेक देशों के साथ व्यापार आसानी से कर सकता है।  पाकिस्तान व सऊदी अरब के बढ़ते रिश्तों को ध्यान में रखते हुए ईरान के साथ मज़बूत रिश्ते रखना भारत के लिए सामरिक लिहाज से महत्वपूर्ण हैं।

4). तेल व्यापार में फ्री इंश्योरेंस व शिपिंग जैसी सुविधाएं ईरान द्वारा भारत को दी जाती हैं, तेल का भुगतान करने के लिए ईरान द्वारा भारत को 60 दिन की समयसीमा भी दी जाती है जो अन्य देशों के मुकाबले बहुत अधिक है।

5). दुनिया में अमेरिका के एकाधिकार को चुनौती देने से विश्व-जगत में भारत का मान-सम्मान बढेगा और भारत की पहचान दुनियाभर में ऐसे राष्ट्र के तौर पर बढ़ेगी जो किसी विश्व-शक्ति के दबाव में काम नहीं करता है।

इसलिए भारत को अमेरिकी दबाव के सामने नहीं झुकना चाहिए और ईरान से तेल खरीदना जारी रखना चाहिए।

(लेखक विदेशी मामलों के जानकार व रक्षा विशेषज्ञ हैं)

स्वर्ण जयंती वर्ष का झारखंड : समृद्ध धरती, बदहाल झारखंडी

  झारखंड स्थापना दिवस पर विशेष स्वप्न और सच्चाई के बीच विस्थापन, पलायन, लूट और भ्रष्टाचार की लाइलाज बीमारी  काशीनाथ केवट  15 नवम्बर 2000 -वी...