** सुनील सौरभ
लम्बे अरसे बाद या यूँ कहें पहली यात्रा के लगभग सात साल बाद तीसरी बार जम्मू आया। मकसद तो वही होता है, जिसका अंदाजा कोई भी सहज ही लगा सकता है। सही सोचा आपने-माता वैष्णो देवी का दर्शन। कालांतर में दो बार भी इसी उद्देश्य से जम्मू आया था। लेकिन, ठहराव स्थल अलग था। घूमा तो उस बार भी था, तब जम्मू कश्मीर में धारा 370 था, अब नहीं है। हालांकि इससे जम्मू में मुझे कोई नया अनुभव नहीं हुआ। हाँ, जम्मू के कण-कण में हिंदुस्तान जरूर नजर आया। अपने आवासन स्थल जम्मू रेलवे स्टेशन के पास श्रीमाता वैष्णव देवी श्राइन बोर्ड के वैष्णवी धाम गेट से मैं, पत्नी और बेटी सुरभि निकलने लगे, तो गार्ड पर नजर पड़ी। मैंने उससे कहा-"हमलोगों को जम्मू घूमना है, किसी टैक्सी वाले को बुला दें।" तब गार्ड ने गेट पर से ही टैक्सी चालकों के एक नेता को बुला दिया। बातें हुई और हमलोग एक टैक्सी ड्राइवर के साथ जम्मू की लोकल यात्रा पर निकल पड़े।सबसे पहले रघुनाथ मंदिर से शुरुआत करने की बात ड्राइवर ने कही। हमलोग रघुनाथ मंदिर पर पहुँचे, तो गेट तक लाइन लगी थी। गर्मी भी अधिक। आधे घंटे के बाद गर्भ गृह पहुँचे। भगवान श्रीराम, माता सीता,भ्राता लक्ष्मण और श्री हनुमान जी का दर्शन किया।
रघुनाथ मंदिर से निकलने के बाद सीनियर सिटीजन की उम्र की ओर बढ़ते ड्राइवर ने देश की चर्चा शुरू कर दी। मैं भी 'इंटरेस्ट' लेने लगा। 370 पर पूछा कि जम्मू वासी इसे किस रूप में लेते हैं, तो वो कहने लगा-"मोदी जी ने बहुत अच्छा निर्णय लिया है, यह जम्मू -कश्मीर के हित में है। अब तो पी ओ के भी भारत में आ जायेगा।" मैंने पूछा-यह आप कैसे कहते हो? उसने कहा-मोदी सरकार देश हित में हर फैसला लेकर रहेगा। मोदी है तो मुमकिन है। जम्मू वासी ड्राइवर दिलीप सहगल ने बताया कि कश्मीर के लोग मोटे दिमाग के होते हैं, नेता अपने बच्चों को विदेश में औऱ कश्मीर में रहने वालों को पत्थर बाज बना रहा है, यह बात वहाँ के लोगों को पता नही चलता है। तब तक हमलोग पार्क ( चिड़ियाघर) पहुँच गए। गाड़ी से निकलते ही भीषण गर्मी का एहसास हुआ। लेकिन, पार्क में जाने के बाद कुछ शांति मिली। हाथी को छोड़ बाघ से लेकर हिरण तक छोटे-बड़े कई जानवरो को इस पार्क में देखने का मौका मिला। यहाँ से निकलने का मन नहीं कर रहा था। लेकिन, अन्य जगह जाना था और शाम को वापिस लौटने के लिए तैयारी भी करनी थी, इसलिए पार्क से निकल पड़े। बहुत गर्मी में पार्क में वन विभाग की महिला कर्मी भी परेशान हो एक पेड़ के नीचे बेंच पर बैठ कर हाथ पंखा 'डोला' रहीं थीं।
हमलोगों को अन्य जगह भी घूमना था, इसलिए पार्क से निकल कर गाड़ी में आ गए। गाड़ी में बैठते ही मैंने ड्राइवर से कहा-आप भी सहगल हो, हमलोग तो फिल्मी दुनिया के के.एल. सहगल साहब को जानते हैं। उसने बताया कि उनका घर भी मेरे पास ही है। उनके परिवार के लोग रहते हैं।
पार्क से निकलने के बाद हमलोग बहु फोर्ट गये। इस फोर्ट के अंदर ही जम्मू का सबसे प्राचीन माँ काली का मंदिर है। कड़ी सुरक्षा में यह मंदिर है। भीषण गर्मी और कड़ी धूप में हम सभी मंदिर में प्रवेश कर गए। मंदिर में प्रवेश करते ही अहसास हुआ कि माँ काली का यह मंदिर जागृत है। माँ की पूजा अर्चना करने के बाद हमलोग मेन गेट से निकलने लगे, तो जम्मू कश्मीर पुलिस का दारोगा अपने साथ रहे हथियार बंद एक जवान से कहने लगा कि 'तुम्हारे देश 'बिहार' के बहुत लोग यहाँ आते हैं, तुम्हें बहुत लोगों से भेंट होगी। पता नहीं उस दारोगा ने हम सभी को देखकर कैसे पहचान लिया कि हम बिहार से हैं!
दारोगा की बात पर हम पीछे मुड़े और जवान से पूछा कि कहाँ घर है, उसने बताया कि बेगूसराय। मैं ने पूछा कि बेगूसराय में कहाँ, तो उसने कहा-बलिया। जब मैंने उसे बताया कि मेरा घर बख्तियारपुर है और मैं पत्रकार हूँ, तो वह काफी भावुक हो गया। (बख्तियारपुर और बलिया की दूरी करीब 70-75 किलोमीटर है ) उसने बताया कि मेरे जिले के एक बड़े पत्रकार हैं-अजित अंजुम। मैंने कहा वे मेरे अच्छे मित्र हैं, तब वो और भावुक हो गया और मुझे ऐसा लगा कि खुशी में उसकी आँखें भर आयी है! वह आई.टी.बी.पी.का जवान था और एक दिन पहले ही काली मंदिर में उसकी ड्यूटी लगी थी। मेरे पास समय कम था, इसलिए हम सभी उससे विदा लिए। उसने भावुक मन से अभिवादन किया।
काली मंदिर से बाहर आया, तो ड्राइवर ने कहा कि अभी बहुत समय है, बगल में एक अच्छा पार्क है घूम लें। 25 -25 का तीन टिकट लेकर अंदर गए, तो लगा कहाँ आ गए। लेकिन, अंडरग्राउंड में अद्भुत नजारा था। बड़े बड़े अक्यूरिएम में मछली का पूरा संसार बसा था। बच्चों और मछली पर शोध करने वालों के लिए यह म्यूजियम बहुत काम का है। बेटी सुरभि और पत्नी सुभद्रा को यहाँ बहुत आनन्द आया। बाहर निकले, तो बेहद गर्मी थी।सामने एक कुल्फी वाले पर नजर पड़ी। पत्नी बोली कि 'कुल्फी खाया जाए।' हमलोग ठेले वाले के पास खड़े हो गए। बोल-चाल से लगा कि वह बिहारी है। मैंने पूछा कहाँ घर है? उसने बताया भागलपुर के सुल्तानगंज में। पूछने पर उसने बताया कि हम सभी भाई-बहन यहीं पैदा हुए। गाँव जाते हैं, तो मन नहीं लगता है। मेरा तो कर्म और जन्मभूमि भी यहीं हो गया है। पैसे देने लगा, तो उसने कम पैसे ही लिये और कहा-आपने देश के लोगो के लिए इतना तो कर ही सकता हूँ, मेरा कोई मालिक नहीं है। छोटी सी राशि छोड़े जाने से ही हम उसके अहसान तले आ गये और उसकी भावना का क़द्र किया।
यहाँ से निकलने के बाद हमलोग राजा का महल (राजा गुलाब सिंह, राजा हरि सिंह और यहाँ के वर्तमान उत्तराधिकारी राजा कर्ण सिंह का महल) देखने आ गए।
प्रकृति की गोद में और तवी नदी के किनारे महाराजा गुलाब सिंह, महाराजा हरि सिंह और इस महल के वर्तमान उत्तराधिकारी कर्ण सिंह के महल को देखकर लगा जम्मू कश्मीर के अतीत से रू-ब-रू हो रहा हूँ। महल के बड़े परिसर के पीछे के हिस्से यानी 20 वीं सदी के बने महल को होटल बना दिया गया है। अगले हिस्से यानी पुराने तीन -चार मंजिला महल को पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने अपने कब्जे में लेकर रखा है। इसी महल के एक कमरे में महाराजा का सोने का सिंहासन रखा है, जिसे कड़ी सुरक्षा व्यवस्था में रखा गया है। महल के पार्क में महाराजा गुलाब सिंह की आदमकद मूर्ति लोगों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करती है। इस महल में जम्मू कश्मीर रियासत की स्थापना से लेकर भारत में विलय तक की कहानी सचित्र लगी है। दुर्लभ पेंटिंग भी लगे हैं। जम्मू कश्मीर के ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण क्षणों को भी तस्वीरों के माध्यम से दर्शाया गया है। मैनें यहाँ कार्यरत लोगों से पूछा कि कर्ण सिंह आते हैं कि नहीं ? कर्मचारी ने जवाब दिया कि साल में एक-दो बार आ जाते हैं।
करीब घंटे भर महल परिसर में रहने के जामवंत गुफा आ गए। बाहर से तो मंदिर जैसा रूप है, लेकिन गुफा में पूरी तरह झुक कर अंदर जाना पड़ा। इस गुफे में जामवंत के अलावा भगवान शिव के साथ-साथ अन्य देवी देवताओं की भी मूर्तियां स्थापित हैं। अद्भुत शक्ति का अनुभव हुआ इस गुफा में। जामवंत के संबंध में यह कहा जाता है कि उनका जन्म सतयुग में हुआ था और वे त्रेतायुग तथा द्वापर में भी देखे गए। जामवंत अग्नि पुत्र थे।परशुराम जी और हनुमान जी की तरह जामवंत भी तीनों युगों में देखे गए हैं और कलयुग में भी वे हैं। रावण से युद्ध के समय जामवंत श्री राम की सेना के सेनापति थे। जम्मू के जामवंत गुफा रामायण और महाभारत के अद्भुत शक्ति वाले पात्र जामवंत की युद्ध कौशल, वीरता, विद्वता का आज भी अहसास कराता है।
यहाँ से निकलने के बाद तवी नदी के किनारे स्थित हरकिपौडी पहुँचे। यहाँ हरिद्वार के हरकिपौडी की तरह ही सभी देवी-देवताओं के मंदिर बने हैं। जम्मू के लोग यहाँ बड़ी आस्था के साथ आते हैं। तवी नदी के इसी घाट पर मूर्तियों का विसर्जन होता है। जम्मू दर्शन का यहाँ हमलोगों का अंतिम पड़ाव था।
यहाँ से आवासन स्थल वैष्णवी धाम के लिये निकला, तो बेटा सिद्धार्थ का दोस्त जम्मुवासी शिवांग का फोन आया कि अंकल कहाँ हैं और क्या कार्यक्रम है? मैंने कहा-अभी हमलोग वैष्णवी धाम जा रहे हैं और खाना खा कर स्टेशन जाएंगे, शाम को ट्रेन है।शिवांग बोला हम वहीं आ जाते हैं अंकल। वह अपनी छोटी बहन के साथ स्कूटी से आ गया। दोनों भाई-बहन से मिलने पर लगा कि वर्षो से परिचित हैं। थोड़ी देर में ही दोनों बच्चे हमलोगों से ऐसे घुल मिल गए कि लगा जैसे वर्षों बाद परिवार के सदस्यों से मिला हूँ। दोनों घर चलने की जिद करने लगे। ट्रेन का समय हो जाने के कारण हम शिवांग के घर नहीं जा सके, लेकिन वादा किया कि अगली बार आऊंगा, तो जरूर तुम्हारे घर चलूँगा। दोनों भाई-बहन ने यह भी कहा कि जम्मू से कोई सामान नहीं खरीदें, क्योंकि काफी महंगे और ठगाने की ज्यादा संभावना रहती है। लेकिन, हमलोग प्रसाद खरीदने के दौरान ही अन्य कुछ सामानों की खरीदारी कर ली थी। दोनों को विदा करने के बाद हमलोग जम्मू स्टेशन आ गए अर्चना एक्सप्रेस पकड़ने के लिए।
कुल मिलाकर, तीन दिनों की माता वैष्णोदेवी औऱ जम्मू की यात्रा अच्छी रही। इस दौरान जम्मू से लेकर कटरा तक जो भी मिले, उनमे धारा 370 के हटने की खुशी और पूरे देश से जुड़कर हिंदुस्तानी कहलाने का गर्व था।
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