पीड़ित मानवता की सेवा करने से जो सुकून मिलता है, वह अकूत संपदा के मालिक होने पर भी नहीं प्राप्त हो सकता है। मानव सेवा मनुष्य का सबसे बड़ा धर्म है। इससे सुखद अनुभूति होती है और मानव जीवन सफल हो जाता है। ऐसा मानना है झारखंड के प्रख्यात चिकित्सक डॉ. यदुनंदन प्रसाद सिंह का। डॉ. सिंह झारखंड के जाने-माने फिजीशियन और चर्म रोग विशेषज्ञ हैं। फिलवक्त डॉ. सिंह चक्रधरपुर के वार्ड नंबर 8 में अटल क्लीनिक में लोगों को नि:शुल्क चिकित्सा सेवाएं दे रहे हैं। उन्होंने झारखंड के विभिन्न जिलों में अपनी सेवाकाल के दौरान पदस्थापित रहते हुए चिकित्सा सेवा के क्षेत्र में कई उपलब्धियां हासिल की है। उनका कार्यकाल उत्कृष्ट उपलब्धियों भरा रहा है। डॉ. सिंह गुमला जिले के सुदूरवर्ती वनाच्छादित क्षेत्र घाघरा प्रखंड में लगभग 12 साल तक पदस्थापित रहे। क्षेत्र की जनता को उन्होंने बेहतर चिकित्सा सेवाएं दी। आज भी उस क्षेत्र की जनता उनकी चिकित्सा सेवाओं की सराहना करती है। वर्ष 2000 में झारखंड अलग राज्य बनने के बाद उनका स्थानांतरण चक्रधरपुर अनुमंडल अस्पताल में हुआ। यहां भी वे अपनी बेहतरीन चिकित्सा सेवा से लोगों का दिल जीतने में सफल रहे। वर्ष 2008 में चक्रधरपुर अनुमंडल अस्पताल से उनका तबादला खूंटी हो गया। वहां भी लगभग दो वर्षों तक रहे और अपनी सेवाओं से लोगों को लाभान्वित करते रहे। खूंटी के बाद उनका स्थानांतरण जमशेदपुर हो गया। वहां भी वे तीन साल तक पदस्थापित रहे। वर्ष 2013 में उनका स्थानांतरण लातेहार जिले के चंदवा में हुआ। वर्ष 2016 में लातेहार से उन्हें चाईबासा स्थानांतरित कर दिया गया। चाईबासा में डॉ. सिंह ने चिकित्सा सेवा में कई ऐसे उल्लेखनीय कार्य किए, जिसके कारण जनता आज भी उन्हें ईश्वर का दूसरा रूप मानती है। चाईबासा से डॉक्टर सिंह 19 मार्च 19 को सेवानिवृत्त हुए और सेवानिवृत्ति के बाद चक्रधरपुर स्थित अटल क्लीनिक में नि:शुल्क सेवाएं दे रहे हैं। मरीज उन्हें एक चिकित्सक ही नहीं, बल्कि ईश्वर का दूसरा रूप मानते हैं। डॉक्टर सिंह चिकित्सा सेवा के अतिरिक्त सामाजिक कार्यों में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं। सभी धर्म व संप्रदाय के लोगों के साथ मिलना-जुलना और उनके सुख-दुख में शामिल होना उनकी खासियत है। चिकित्सा के क्षेत्र में उनकी विशेषज्ञता भी अद्भुत है। वह एक फिजीशियन के साथ-साथ चर्म रोग विशेषज्ञ भी हैं। अपने ज्ञान और अनुभवों के आधार पर वह लोगों की सेवा कर रहे हैं। उनका मानना है कि अपने पेशे की व्यस्तता के अलावा मनुष्य को एक सामाजिक प्राणी होने की सार्थकता भी सिद्ध करने की दिशा में अग्रसर रहना चाहिए। सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अपनी सहभागिता सुनिश्चित कराते हुए सामाजिक समरसता की मिसाल पेश करना व्यक्ति की महानता का परिचायक होता है। इस दिशा में भी लोगों को प्रयासरत रहना चाहिए। हमारा देश व समाज सशक्त होगा।
प्रस्तुति : विनय मिश्रा
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