डॉ. राजेंद्र प्रसाद की जयंती पर विशेष
* भारती सत्येंद्र देव
बिहार के सिवान जिला अंतर्गत जीरादेई में 3 दिसंबर 18 84 को जन्मे डॉ. राजेंद्र प्रसाद का देश प्रेम के प्रति जज्बा और जुनून अविस्मरणीय है। आजादी की लड़ाई में उन्होंने काफी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। डॉ.प्रसाद कांग्रेस में शामिल होने वाले बिहार के प्रमुख नेता थे। वकालत में स्नातकोत्तर डिग्री हासिल करने वाले डॉ.प्रसाद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के कट्टर समर्थक रहे।
उन्होंने वर्ष 1931 में सत्याग्रह आंदोलन और 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में गांधीजी की अगुवाई में राष्ट्रप्रेम का अलख जगाया। इस दौरान वे जेल भी गए। वर्ष 1934 से 1935 तक डॉ. प्रसाद कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। वर्ष 1946 में केंद्र सरकार के खाद्य एवं कृषि मंत्री बनाए गए। राष्ट्र के प्रति उनके समर्पण और योगदान को देखते हुए उन्हें भारत रत्न की उपाधि से सम्मानित किया गया। डॉ. प्रसाद कुशाग्र बुद्धि थे। पढ़ाई- लिखाई में बचपन से ही तेज-तर्रार थे। सभी धर्मों के प्रति समान आदर उनकी विशेषता रही। स्कूल-कॉलेज के दिनों में वे तेज-तर्रार छात्र के रूप में जाने जाते थे। कोलकाता विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त करने पर उन्हें छात्रवृत्ति के रूप में ₹30 प्रति महीने प्राप्त होती थी। वर्ष 1902 में उन्होंने कोलकाता स्थित प्रेसिडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया। वह इतने बुद्धिमान थे कि एक बार परीक्षा के दौरान कॉपी चेक करने वाले अध्यापक ने उनकी उत्तर पुस्तिका पर लिख दिया, " परीक्षा देने वाला छात्र परीक्षा लेने वाले से ज्यादा बुद्धिमान है"। वर्ष 1905 में गोपाल कृष्ण गोखले ने उन्हें इंडियन सोसायटी से जुड़ने का प्रस्ताव दिया, लेकिन पढ़ाई की जिम्मेदारियों को देखते हुए उन्होंने इस प्रस्ताव को विनम्रता पूर्वक ठुकरा दिया। वर्ष 1906 में उन्होंने बिहार के छात्रों के लिए स्टूडेंट कॉन्फ्रेंस की स्थापना की। वर्ष 1913 में उन्होंने डॉन सोसायटी और बिहार छात्र सम्मेलन के मुख्य सदस्य के रूप में सहभागिता निभाई। चंपारण आंदोलन में उन्होंने गांधी जी का समर्थन किया। सरल ह्रदय और शालीन व्यक्तित्व के धनी स्व.डॉ.प्रसाद वर्ष 1914 में बंगाल और बिहार में आई बाढ़ के दौरान पीड़ितों के बीच जाकर जो सेवाएं दी ,वह पीड़ित मानवता की सेवा के प्रति उनका समर्पण दर्शाता है। वर्ष 1934 में बिहार भूकंप और बाढ़ की त्रासदी झेल रहा था। उस समय उन्होंने पीड़ितों की जमकर सहायता की और पीड़ित मानवता की सेवा का परिचय दिया। उनके जीवन पर गांधीजी का गहरा प्रभाव था। वह छुआछूत,जाति,पाति के प्रति गांधी जी के नजरिए का पूरा समर्थन किया करते थे। उन्होंने नमक सत्याग्रह में वर्ष 1930 में योगदान दिया और नमक सत्याग्रह का बिहार में नेतृत्व किया। नमक बेचकर आजादी की लड़ाई के लिए धन की व्यवस्था की। इस दौरान अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें कानून व्यवस्था के उल्लंघन करने के आरोप में हिरासत में ले लिया। वे 6 महीना जेल में भी रहे। डॉ. प्रसाद वर्ष 1934 में कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर रहे। वर्ष 1935 में कांग्रेस के मुंबई अधिवेशन का उन्होंने अध्यक्षता किया। वर्ष 1940 में सुभाष चंद्र बोस के बाद उन्होंने जबलपुर में आयोजित कांग्रेस सेशन की अध्यक्षता की। डाॅ. प्रसाद ने महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस के बीच दूरियां कम करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आजादी के बाद वे देश के प्रथम राष्ट्रपति चुने गए। इनकी जयंती पर शत-शत नमन और श्रद्धांजलि।
(लेखक बिहार के पटना जिलांतर्गत करनौती ग्राम निवासी और जाने-माने समाजसेवी हैं)
भारती सत्येंद्र देव |
बिहार के सिवान जिला अंतर्गत जीरादेई में 3 दिसंबर 18 84 को जन्मे डॉ. राजेंद्र प्रसाद का देश प्रेम के प्रति जज्बा और जुनून अविस्मरणीय है। आजादी की लड़ाई में उन्होंने काफी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। डॉ.प्रसाद कांग्रेस में शामिल होने वाले बिहार के प्रमुख नेता थे। वकालत में स्नातकोत्तर डिग्री हासिल करने वाले डॉ.प्रसाद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के कट्टर समर्थक रहे।
उन्होंने वर्ष 1931 में सत्याग्रह आंदोलन और 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में गांधीजी की अगुवाई में राष्ट्रप्रेम का अलख जगाया। इस दौरान वे जेल भी गए। वर्ष 1934 से 1935 तक डॉ. प्रसाद कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। वर्ष 1946 में केंद्र सरकार के खाद्य एवं कृषि मंत्री बनाए गए। राष्ट्र के प्रति उनके समर्पण और योगदान को देखते हुए उन्हें भारत रत्न की उपाधि से सम्मानित किया गया। डॉ. प्रसाद कुशाग्र बुद्धि थे। पढ़ाई- लिखाई में बचपन से ही तेज-तर्रार थे। सभी धर्मों के प्रति समान आदर उनकी विशेषता रही। स्कूल-कॉलेज के दिनों में वे तेज-तर्रार छात्र के रूप में जाने जाते थे। कोलकाता विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त करने पर उन्हें छात्रवृत्ति के रूप में ₹30 प्रति महीने प्राप्त होती थी। वर्ष 1902 में उन्होंने कोलकाता स्थित प्रेसिडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया। वह इतने बुद्धिमान थे कि एक बार परीक्षा के दौरान कॉपी चेक करने वाले अध्यापक ने उनकी उत्तर पुस्तिका पर लिख दिया, " परीक्षा देने वाला छात्र परीक्षा लेने वाले से ज्यादा बुद्धिमान है"। वर्ष 1905 में गोपाल कृष्ण गोखले ने उन्हें इंडियन सोसायटी से जुड़ने का प्रस्ताव दिया, लेकिन पढ़ाई की जिम्मेदारियों को देखते हुए उन्होंने इस प्रस्ताव को विनम्रता पूर्वक ठुकरा दिया। वर्ष 1906 में उन्होंने बिहार के छात्रों के लिए स्टूडेंट कॉन्फ्रेंस की स्थापना की। वर्ष 1913 में उन्होंने डॉन सोसायटी और बिहार छात्र सम्मेलन के मुख्य सदस्य के रूप में सहभागिता निभाई। चंपारण आंदोलन में उन्होंने गांधी जी का समर्थन किया। सरल ह्रदय और शालीन व्यक्तित्व के धनी स्व.डॉ.प्रसाद वर्ष 1914 में बंगाल और बिहार में आई बाढ़ के दौरान पीड़ितों के बीच जाकर जो सेवाएं दी ,वह पीड़ित मानवता की सेवा के प्रति उनका समर्पण दर्शाता है। वर्ष 1934 में बिहार भूकंप और बाढ़ की त्रासदी झेल रहा था। उस समय उन्होंने पीड़ितों की जमकर सहायता की और पीड़ित मानवता की सेवा का परिचय दिया। उनके जीवन पर गांधीजी का गहरा प्रभाव था। वह छुआछूत,जाति,पाति के प्रति गांधी जी के नजरिए का पूरा समर्थन किया करते थे। उन्होंने नमक सत्याग्रह में वर्ष 1930 में योगदान दिया और नमक सत्याग्रह का बिहार में नेतृत्व किया। नमक बेचकर आजादी की लड़ाई के लिए धन की व्यवस्था की। इस दौरान अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें कानून व्यवस्था के उल्लंघन करने के आरोप में हिरासत में ले लिया। वे 6 महीना जेल में भी रहे। डॉ. प्रसाद वर्ष 1934 में कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर रहे। वर्ष 1935 में कांग्रेस के मुंबई अधिवेशन का उन्होंने अध्यक्षता किया। वर्ष 1940 में सुभाष चंद्र बोस के बाद उन्होंने जबलपुर में आयोजित कांग्रेस सेशन की अध्यक्षता की। डाॅ. प्रसाद ने महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस के बीच दूरियां कम करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आजादी के बाद वे देश के प्रथम राष्ट्रपति चुने गए। इनकी जयंती पर शत-शत नमन और श्रद्धांजलि।
(लेखक बिहार के पटना जिलांतर्गत करनौती ग्राम निवासी और जाने-माने समाजसेवी हैं)
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