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रविवार, 15 दिसंबर 2019

जवानों के प्रेरणा स्रोत हैं राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित रामबाबू प्रसाद




पुलिसकर्मियों की वीरता के अनगिनत किस्से हैं। पुलिस विभाग के कई वीर जवान  ड्यूटी के दौरान अदम्य साहस का परिचय देते हुए अपराधियों से लोहा लेते हुए शहीद हुए हैं। वहीं, कई जवानों ने अपनी वीरता का परिचय देते हुए जान की बाजी लगाकर अपराधियों को मौका-ए-वारदात पर धर दबोचने में सफलता हासिल की है। उनकी बहादुरी के किस्से अन्य पुलिसकर्मियों के लिए प्रेरणादायक हैं। ऐसे ही जांबाज जवानों की श्रेणी में शामिल एक शख्सियत हैं राष्ट्रपति पुलिस वीरता पदक पुरस्कार से नवाजे गए हवलदार रामबाबू प्रसाद। उन्होंने ड्यूटी के दौरान अपनी जान की परवाह किए बिना दुर्दांत और इनामी नक्सलियों को हथियारों के साथ धर दबोचा। उनकी इस बहादुरी के किस्से आज भी पुलिस विभाग में चर्चित है। रामबाबू मूल रूप से पटना जिले के बख्तियारपुर थानांतर्गत करनौती ग्राम के निवासी हैं। गांव उनकी वीरता पर गर्व करता है। उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा गांव में ही हुई। वर्ष 1982 में रामबाबू बिहार पुलिस में नियुक्त हुए। तत्पश्चात गया जिला पुलिस बल में उनकी प्रतिनियुक्ति की गई। पुलिस विभाग में बतौर कांस्टेबल वह अपनी ड्यूटी बखूबी निभाते रहे। इस दौरान उनका तबादला तत्कालीन नवसृजित जहानाबाद जिला पुलिस बल में हुआ। वहां वे जहानाबाद के तत्कालीन डीडीसी विजय प्रकाश के अंगरक्षक के रूप में प्रतिनियुक्त किए गए। अपने कर्तव्यों के प्रति विशेष रूप से सजग रहने वाले राम बाबू ने वहां अपनी वीरता का जो परिचय दिया, उसे याद कर आज भी जहानाबाद शहर के निवासी सम्मानपूर्वक इनका नाम लेते हैं। घटना के बारे में रामबाबू बताते हैं कि 12 मई वर्ष 1988 में वे तत्कालीन डीडीसी के बंगले पर बतौर अंगरक्षक तैनात थे। इस दौरान उन्होंने देखा कि स्थानीय बैरागीबाग मुहल्ले की ओर से छह व्यक्ति का गिरोह हाथ में हथियार लेकर भाग रहा है। उसके पीछे कुछ ग्रामीण भी उन अपराधियों को पकड़ने के लिए दौड़ रहे हैं। कोठी के बगल से अपराधियों को हथियार के साथ भागता देख उनसे रहा न गया। उन्होंने कोठी पर मौजूद अपने एक सहकर्मी (पुलिस विभाग के चालक) से कहा कि इन अपराधियों को पकड़ना चाहिए और दौड़ पड़े अपराधियों को दबोचने। इस क्रम में अपराधियों की ओर से उन पर निशाना साध कर फायरिंग की गई। अपराधियों की मंशा भांपते हुए रामबाबू ने सड़क पर बने एक पुलिया की ओट में छिप कर अपने सरकारी रिवाल्वर से जवाबी फायरिंग की। इसमें तीन अपराधियों को गोली लगी और घायल होकर  सभी गिर गए। वहीं, तीन अन्य अपराधी जान बचाकर भागने में सफल रहे। रामबाबू ने पलक झपकते घायल तीनों अपराधियों को धर दबोचा। इस बीच काफी संख्या में घटनास्थल पर ग्रामीण भी पहुंच गए थे। सबों ने रामबाबू की सराहना की और इस वीरतापूर्ण कार्रवाई के लिए उनके प्रति आभार व्यक्त किया। गिरफ्तार अपराधियों की पहचान दुर्दांत और इनामी नक्सली के रूप में हुई। उनसे पूछताछ के क्रम में पता चला कि  सभी अपराधी माओवादी संगठन से जुड़े थे और अपने एक शीर्ष नेता की हत्या कर भाग रहे थे। रामबाबू के
 इस बहादुरी भरे कार्य के लिए पुलिस विभाग की ओर से राष्ट्रपति पुलिस पदक वीरता पुरस्कार के लिए उनके नाम की अनुशंसा की गई। वर्ष 1990 में तत्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरमन की ओर से उन्हें राष्ट्रपति पुलिस पदक वीरता पुरस्कार (पीपीएमजी) प्रदान किया गया। रामबाबू धनबाद में भी पदस्थापित रहे। वहां के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक रणधीर वर्मा (अब मृत) और उनकी पत्नी रीता वर्मा के अंगरक्षक के रूप में भी अपने कर्तव्यों का बखूबी निर्वहन किया। वे चतरा और रांची में भी पदस्थापित रहे। तत्पश्चात इनका तबादला जमशेदपुर रेल थाना में किया गया। इसके बाद वे रांची रेलवे स्टेशन पर जीआरपी थाना में भी बतौर हवलदार पदस्थापित रहे। मार्च 2017 मे रामबाबू प्रसाद हवलदार पद ( सहायक अवर निरीक्षक रैंक ) से सेवानिवृत्त हुए। रामबाबू कहते हैं कि कर्म प्रधान होता है। ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा से हम देश और समाज में एक विशेष पहचान बनाने में सफल होते हैं। इससे हमारा देश व समाज सशक्त होता है।
प्रस्तुति : नवल किशोर सिंह

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