देवेंद्र गौतम
20 लाख करीब ईवीएम मशीनें चुनाव आयोग के कब्जे से बाहर हैं। आरटीआई के
जरिए सका खुलासा हुआ है। मुंबई हाई कोर्ट में ससे जुड़ी जनहित याचिका की सुनवाई चल
रही है। लेकिन न तो सरकार को इसकी चिंता है न चुनाव योग को। मुख्य धारा की मीडिया
के ले भी यह कोई खबर नहीं है। मुंबई के सूचना अधिकार कार्यकर्ता मनोरंजन राय ने 27
मार्च 2018 को मुंबई हात्रकोर्ट में इस मामले को लेकर एक जनहित याचिका दायर की थी।
उनके आग्रह पर हाई कोर्ट ने चुनाव आयोग से ईवीएम मशीनों के स्टाक और इनकी निर्माता
कंपनियों से आपूर्ति का डाटा मांगा था। इसमें बीस लाख ईवीएम मशीनों का कोई लेखा
जोखा नहीं मिल रहा है। कंपनियों ने आपूर्ति की लेकिन चुनाव आयोग तक नहीं पहुंची।
मामले की सुनवाई चल रही है। चुनाव के दौरान कहीं होटल के कमरे से ईवीएम मशीने
बरामद हो रही हैं तो कहीं सड़क पर फेंकी हुई मिल रही हैं। कहीं स्ट्रांग रूम का
ताला खोलकर ईवीएम मशीनें बदले जाने के आरोप लग रहे हैं। कोई हैक करने का दावा कर
रहा है कोई हैकिंग की आशंका व्यक्त कर रहा है। लोकतंत्र के इस महापर्व के दौरान
आखिर यह सब क्या हो रहा है?
सरकार मौन है। कथित मुख्य धारा के मीडिया ने भी टीआरपी बटोरने वाली इन
खबरों को पूरी तरह नज़र-अंदाज़ कर दिया है। सिर्फ फ्रंटलाइन पत्रिका ने इसकी रिपोर्ट
छापी है। यूट्यूब पर कुछ वीडियो पोस्ट हुए। अभी तक किसी राजनीतिक दल ने इसपर कोई
टिप्पणी नहीं की। 20 लाख ईवीएम मशीनें चुनावी हार को जीत में बदल सकती हैं। सवाल
है कि ईसीएल और बीईएल कंपनियों से भेजी गई यह मशीने अगर चुनाव आयोग नहीं पहुंची तो
आखिर गईं कहां। बीईल को तो चुनाव आयोग ने अतिरिक्त भुगतान भी कर दिया है। इसबार के
चुनाव में ईवीएम मशीनें रहस्यों का पिटारा बन चुकी हैं। बैलेट पेपर के जमाने में
बूथ लूट होती थी अब तकनीक का खेल हो रहा है।
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