बेेटे को भी नियुक्ति दिलाने का तलाशा रास्ता
रांची। झारखंड राज्य के गठन के बाद बिहार के कई दाग़ी कर्मी झारखंड कैडर में
अपनी नाम डलवाकर विभाग की आंखों में धूल झोकने में सफल रहे हैं। उनके खिलाफ जांच
तो चलती रही लेकिन उसकी गति धीमी हो गई। झारखंड राज्य अनुसूचित जाति निगम में एक
ऐसा ही मामला प्रकाश में आया है। वहां एक क्षेत्रीय पदाधिकारी हैं सुनील कुमार। 2007-08
में वे बिहार राज्य अनुसूचित जाति निगम में सहायक परियोजना पदाधिकारी के रूप में कार्यरत
थे। उनपर अमानत में ख़यानत और गलत ढंग से बहाली का आरोप गठित हुआ। विभागीय राशि के
गबन फर्जी शैक्षणिक और आयु प्रमाण पत्र के आधार पर नियुक्ति लेने के आरोपों को
लेकर उनके खिलाफ मामला दर्ज किया गया। निगरानी विभाग की जांच शुरू हुई। इस बीच वे
कैडर परिवर्तित कर झारखंड गए। कुछ समय तक
वे कैडर विभाजन की आड़ में बचे रहे। फिर प्रबंध निदेशक से सांठगांठ कर प्रोन्नति
लेकर क्षेक्षीय पदाधिकारी भी बन गए। प्रबंध निदेशक ने प्रोन्नति देने और उनके बेटे
को भी नियुक्ति दिलाने से पूर्व कल्याण विभाग की सचिव हिमानी पांडे की अनुमति लेने
की भ जरूरत नहीं समझी। जब सचिव के संज्ञान में मामला आया तो सबसे पहले सुनील कुमार
के बेटे की रद्द कर दी और सुनील कुमार के खिलाफ अप्रैल 2019 में त्रिस्तरीय जांच
कमेटी गठित कर दी। विभागीय सूत्रों ने बताया कि अब आटसोर्सिंग की आड़ में सुनील
कुमार के बेटे सहित पांच लोगों को परियोजना पदाधिकारी के रूप में बहाल करने की
पूरी तैयारी कर ल गई है। निगरानी विभाग ने उनसे स्पष्टीकरण मांगा। स्पष्टीकरण दिया
भी गया लेकिन मामले को अभी तक न्यायपालिका में नहीं ले जाया गया।
झारखंड भ्रष्टाचार निरोधक मंच के अध्यक्ष कृष्ण कुमार सिंह ने कल्याण
विभाग की सचिव हिमानी पांडे से अनुरोध किया है कि जांच कार्रवी पूरी होने तक सुनील
कुमार का वेतन रोक दिया जाए और अन्य सुविधाओं को रोक दिया जाए।
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