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शनिवार, 25 मई 2019

सांप निकल गया, अब लकीर पीटने से क्या




देवेंद्र गौतम

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग मोर्चा और बहुजन क्रांति दल सहित कई संगठन ईवीएम में धांधली का आरोप लगाते हुए सड़कों पर उतर आए हैं। चुनाव आयोग के खिलाफ धरना प्रदर्शन, पुतला दहन आदि चल रहा हैं। चुनाव आयोग अथवा ईवीएम पर उनका कोई विरोध था तो इसे चुनाव प्रक्रिया के दौरान दर्ज कराना चाहिए था। उस समय यदि सड़कों पर उतरे होते तो इसका कुछ लाभ भी हो सकता था। अब इस तरह का विरोध सांप के गुजरने के बाद लकीर पर लाठी पीटने के समान है। आपत्ति का समय निकल चुका है। अब इससे कोई लाभ नहीं होने वाला। चुनाव आयोग के पास ईवीएम मशीनें सुरक्षित हैं। कभी भी इनकी जांच कर तसल्ली की जा सकती है। लेकिन यह जांच किसी संवैधानिक संस्था के आदेश पर ही हो सकता है। सड़कों पर नारे लगाने से नहीं।
चुनाव हो चुके हैं। मतगणना हो चुकी है। परिणाम आ चुके हैं। मोदी सरकार प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में वापस  चुकी है। यही सत्य है। इस सत्य को अब स्वीकार कर लेना चाहिए। अब अगले पांच साल तक मोदी सरकार को काम करने का मौका देना चाहिए। हो सकता है पिछले कार्यकाल के दौरान जो वायदे पूरे नहीं हो पाए अब हो जाएं। वैसे आम जनता को सरकार के फैसलों और नीतियों से कोई नाराजगी नहीं है। होती तो चुनाव में दिखाई पड़ती। अब देश को किस दिशा में ले जाना है यह मोदी और शाह पर निर्भर है। जो भी फैसले मुनासिब समझेंगे, लेंगे। उनके हर फैसले को हमें स्वीकार करना होगा क्योंकि ईवीएम मशीनों से जो निकलकर आया है वही जनादेश है। लोकतंत्र में जनादेश ही सबकुछ होता है। यदि भोपाल की जनता ने प्रज्ञा ठाकुर को जिताया है तो उसे प्रज्ञा ठाकुर के विचारों का, उनके कामकाज के तरीकों का सम्मान करना होगा। जहां तक बौद्धिक वर्ग का सवाल है मतभिन्नता हो सकती है। लेकिन वैचारिक भिन्नता अपनी जगह है और जनता की इच्छा अपनी जगह। अगर विरोध है तो उसे तबतक शालीनता के साथ व्यक्त करना चाहिए जबतक भारतीय संविधान में अभिव्यक्ति का मौलिक अधिकार मौजूद है।


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