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रविवार, 30 सितंबर 2018

बहुमुखी प्रतिभा के धनी कुमार वृजेंद्र


पूरे देश में रांची और झारखंड का नाम रौशन रौशन करने वाली सख्शियतों में शुमार हैं कुमार वृजेंद्र। अपनी वाणी और लेखनी जरिए वे पूरी हिंदी पट्टी के सांस्कृतिक जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं। अपने गीतों और ग़जलों से वे जन-मानस में एक नई ऊर्जा का संचार तो करते ही रहे हैं मंच संचालन के क्षेत्र में देश के चंद नामों की फेहरिश्त में शामिल रहे हैं। श्रोताओं के मिजाज को पहचानने और से मंच के मिजाज में समाहित कर लेने की उनके अंदर अद्भुत क्षमता है।
7 जनवरी 1955 को कोलकाता में जन्मे और बी. काम (आनर्स) तक शिक्षा प्राप्त कुमार वृजेंद्र 18 जुलाई 1985 को आकाशवाणी रांची में एनाउंसर के रूप में सामाजिक जीवन की शुरुआत की और 31 जनवरी 12015 को सीनियर ग्रेड एनाउंसर के रूप सेवानिवृत हुए। रांची आए तो रांची का ही होकर रह गए। आज पूरे देश में वे रांची के कुमार वृजेंद्र के रूप में जाने जाते हैं।
कुमार वृजेंद्र ने ने स्कूली जीवन से ही लेखन की शुरुआत कर दी थी। जब वे 10 वीं कक्षा में थे तो एक बार उनके विद्यालय में कवि सम्मेलन हुआ जिसमें हरिवंश राय बच्चन शामिल हुए थे। उस मंच से वृजेंद्र जी ने पहली बार अपनी कविता का पाठ किया। 1975-76 के दौरान बाजाप्ता कहानी लिखनी शुरू की जिसमें कई उस काल की साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई। गीत और ग़ज़ल की रचना भी चलती रही। कोलकाता की कई बांग्ला फिल्मों में उन्होंने लेखन और निर्देशन का काम भी किया। भोजपुरी फिल्म टिकुली की लाज की पटकथा लिखी और अभिनय भी किया। कोलकाता के साहित्य जगत में सक्रिय रहते हुए उन्हें निर्मल वर्मा, सुधा अरोड़ा, मधुकर सिंह, अज्ञेय, उपेंद्र नाथ अश्क, राजेंद्र यादव, राजकमल चौधरी, शलभ श्रीराम सिंह जैसे साहित्य क्षेत्र के दिग्गज मनीषियों का सानिध्य प्राप्त हुआ। बाबा नागार्जुन की उनपर विशेष कृपा रही।
सेवानिवृत्ति के बाद वे कविता की वाचिक परंपरा के साथ मुद्रित परंपरा के भी संवाहक बने रहे हैं। हिन्दी कवि सम्मेलनों के मंच पर उनकी उपस्थिति अनिवार्य सी बन चुकी है। वे कवि सम्मेलनों के आयोजन में भी सक्रिय योगदान देते रहे हैं। फिलहाल वे अपनी गज़लों, गीतों, छंदमुक्त कविताओं की पाडुलिपियों को अंतिम रूप देने में लगे हैं। जो जल्द ही किताबी शक्ल में सतहे आम पर उपलब्ध होंगी।

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