रांची। शिव शिष्य हरीन्द्रानन्द फाउंडेशन के तत्त्वावधान
में स्वच्छ भारत,
स्वस्थ भारत, श्रेष्ठ भारत विषयक
संगोष्ठी ‘‘दी कार्निवाल हाल’’, रांची में आयोजित की गई थी। कालखंड के प्रथम
शिव शिष्य हरीन्द्रानन्द जी ने कहा कि शरीर और वातावरण की स्वच्छता की जिम्मेदारी हम
तभी ले सकते हैं जब हमारा मन स्वच्छ और सुंदर होगा। यह तभी हो पाएगा जब दुनियां शिव
की शिष्यता से सुवासित होगी। स्वच्छ और समृद्ध भारत की कल्पना कोरी थोड़े ही है। हमने
ही दुनियां को स्वच्छता का पाठ पढ़ाया है। विश्व की सबसे पुरानी सभ्यता सिंधु घाटी की
सभ्यता में अपनाई गई स्वच्छ पद्धतियां आज पूरी दुनिया में अनुसरण की जा रही हैं। उन्होंने
कहा कि स्वस्थ मन में ही परमात्मा का निवास हो सकता है पर देखिये हमारे गुरू शिव तो
जगत गुरू हैं। उनकी शिष्यता के लिए कुछ नहीं चाहिए, बस भाव और मन चाहिए।
भारत देश की स्वच्छता और श्रेष्ठता पर केंद्रित
इस संगोष्ठी का शुभारंभ राष्ट्रगान से हुआ। देश के विभिन्न हिस्सों से आये हुए लोगों
का स्वागत निहारिका ने किया। स्वच्छता पर जोर देते हुए संगोष्ठी के उद्देश्य को निरूपित
किया। अर्चित आनन्द ने स्वच्छता को मानव सेवा से जोड़ते हुए कहा कि जब तक हम स्वयं अपने
आस पास को स्वच्छ नहीं रखेंगे तब तक देश का क्या निर्माण करेंगे। उन्होंने कहा कि हमारा
दुर्भाग्य है कि इक्कीसवीं सदी में हमारे देश को स्वच्छता अभियान चलाने की और उसपर
कानून बनाने की जरूरत पड़ रही है।
न्यास की अध्यक्ष बरखा सिन्हा ने कहा कि तन
की निर्मलता तो हम साफ कर सकते हैं पर मन और अध्यात्म की निर्मलता केवल महादेव की शिष्यता
ही साफ कर सकती है। प्रोफेसर रामेश्वर मंडल ने कहा कि शिव की शिष्यता से मन निर्मल
किया जा सकता है। पटना से आये डाक्टर अमित कुमार ने स्वास्थ्य को महत्वपूर्ण बताते
हुए कहा कि स्वस्थ लोग ही स्वच्छ और समृद्ध देश बना सकते हैं। दूसरी ओर अभिनव आनन्द
ने कहा कि हमारी चेतना का परिमार्जन हमारे मन और स्वस्थ जीवन से संबंधित है। दोनों
एक दूसरे के बिना अधूरे हैं।
संगोष्ठी में देशभर से लगभग दो हजार लोग आये
थे। आगंतुकों ने भी स्वच्छ भारत पर अपनी बात रखी।
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