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रविवार, 30 दिसंबर 2018

झारखंड नामधारी दलों के एका के निहितार्थ



रांची। झाऱखंड में झारखंड नामधारी दलों के बीच कुछ अलग खिचड़ी पक रही है। राजनीतिक दलों का ऐसा मानना है। हाल में झारखंड विकास मोर्चा के सुप्रीमो पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी और झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकारी अध्यक्ष पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के बीच मुलाकात और वार्ता के बाद यह कयास लगाया जा रहा कि वे सीटों के बंटवारे में कांग्रेस के साथ मनोनुकूल नतीजे नहीं निकलने पर अपना अलग मोर्चा बना सकते हैं। दोनों दल एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी रहे हैं। दोनों का मुख्य जनाधार संताल परगना के इलाकों में है। बाबूलाल शिबू सोरेन के बाद आदिवासियों के दूसरे सबसे बड़े नेता हैं। हेमंत को वे जूनियर मानते रहे हैं। लेकिन वे स्वयं हेमंत सोरेन के आवास पर गए। उनके साथ मंत्रणा की। इससे कई संकेत मिलते हैं। दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों के बीच हमेशा छत्तीस का रिश्ता रहा है। इसके तिरसठ में बदलने के पीछे कोई बड़ा सियासी खेल हो सकता है।
हाल में कोलेबिरा उपचुनाव में झामुमो ने झारखंड पार्टी को समर्थन देकर उसे अपने पक्ष में कर लिया है। आजसू के साथ भी उनकी वार्ता चल रही है। आजसू सुप्रीमो अभी एनडीए में हैं लेकिन भाजपा से उनका मोहभंग हो चला है। लिहाजा वे पाला बदल सकते हैं। झारखंड जनाधार मोर्चा के सालखन सोरेन पहले से ही झारखंड नामधारी दलों का अलग मोर्चा बनाने जरूरत बताते रहे हैं। राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि अगर बाबूलाल, हेमंत और सुदेश अन्य झारखंड नामधारी दलों को लेकर एकजुट हो जाते हैं तो झारखंड में बड़ी चुनौती बन सकते हैं। भाजपा भी यही चाहती है कि चुनाव त्रिकोणीय अथवा बहुकोणीय हो। यह भाजपा के लिए यह लाभदायक होगा। अभी राज्य  में लोकसभा की चौदह सीटों में से बारह पर भाजपा का कब्जा है। आमने सामने की लड़ाई उसे महंगी पड़ सकती है। ज्यादा उम्मीदवार मैदान में हों तो विपक्षी मतों के बिखराव से उसका रास्ता आसान हो सकता है।
जहां तक झारखंडी दलों का सवाल है केंद्र की राजनीति में उनकी खास दिलचस्पी नहीं है। उनका लक्ष्य विधानसभा चुनावों में जीत हासिल कर अपनी सरकार बनाना है। उनका मानना है कि राष्ट्रीय दल क्षेत्रीय मुद्दों को अहमियत नहीं देते। झारखंडी दलों की गोलबंदी के दो अर्थ निकाले जा रहे हैं। पहला यह कि वे कांग्रेस के साथ तालमेल में बेहतर सौदेबादी की भूमिका तैयार कर रहे हैं और दूसरा यह कि जरूरत पड़ने पर अपनी अलग राह भी बना सकते हैं। अगर झारखंड नामधारी दलों का अलग मोर्चा बना तो महागठबंधन में कांग्रेस, राजद और वामपंथी दल ही शेष रह जाएंगे।
हालांकि अभी हेमंत और बाबूलाल महागठबंधन के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त कर रहे हैं लेकिन उनके मन में क्या है कोई नहीं जानता।


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