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शुक्रवार, 16 नवंबर 2018

अंतर्कलह में डूबे तोते से परेशानी क्या !

बकोरिया कांड को लेकर परेशान पुलिस झारखंड सरकार से कर सकती है ऐसी अधिसूचना की मांग

देवेंद्र गौतम

प. बंगाल और कर्नाटक के मुख्यमंत्रियों ने अपने राज्यों में सीबीआई की सीधी दखलअंदाजी पर रोक लगा दी है। इस संबंध में अधिसूचना जारी कर दी है। दिल्ली पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम-1946 में यह प्रावधान है कि केंद्र शासित राज्यों को छोड़कर अन्य राज्यों में कोई कार्रवाई करने के लिए सीबीआई को संबंधित सरकारों से अनुमति लेनी होगी। अभी तक अधिकांश राज्यों में काम करने के लिए सीबीआई को राज्य सरकारों की अनुमति मिली हुई है। पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश की सरकारों ने ऐसा निर्णय चाहे जिन तात्कालिक कारणों से लिया हो लेकिन इसके दूरगामी प्रभाव विपरीत पड़ेंगे। खासतौर पर भ्रष्ट सरकारें हमेशा सीबीआई जांच से भागने का प्रयास करती हैं। उनकी कोशिश होती है कि राज्य के अंदर उनके नियंत्रण वाली एजेंसियां जांच करें और उनके मनोनुकूल रिपोर्ट सौंपें। ताकि मामले की लीपापोती संभव हो सके। लेकिन राज्य सरकारें सीबीआई को जांच करने से तब नहीं रोक सकतीं जब यह आदेश किसी न्यायालय ने दिया हो या केंद्र सरकार ने आदेश दिया हो। उस समय राज्य सरकार ज्यादा से ज्यादा सीबीआई के साथ सहयोग नहीं कर अपना विरोध जता सकती है।

अभी झारखंड में बकोरिया एनकाउंटर को लेकर ऐसी ही स्थिति बनी हुई है। राज्य के डीजीपी डीके पांडे पर सीधे फर्जी मुठभेड़ दिखाकर 12 निर्दोष लोगों को मार गिराए जाने के मामले में संलिप्तता के आरोप लगे हैं। हाई कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए हैं। इसे लेकर पुलिस महकमें में छटपटाहट है। पुलिस चाहती है कि हाई कोर्ट के फैसले  को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाए लेकिन मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव इसके पक्ष में नहीं है। सीबीआई जांच का विरोध करने की चाहत पुलिस की भूमिका को और संदिग्ध बनाएगी। ऐसा सरकार का मानना है। डीजीपी चाहते हैं कि सीआइडी जांच को ही पर्याप्त मान लिया जाए। मामले को यहीं रोक दिया जाए। आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल सरकारों की तर्ज पर डीजीपी झारखंड सरकार से भी इसी तरह की अधिसूचना जारी करने की सलाह दे सकते हैं। लेकिन नियमतः हाई कोर्ट को ऐसा आदेश देने का अधिकार है। राज्य सरकार इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती।

यह अलग बात है कि अभी सीबीआई मुख्यालय में ही तूफान मचा हुआ है। निदेशक और विशेष निदेशक के बीच न्यायिक लड़ाई में सीबीआई की विश्वसनीयता दांव पर लगी हुई है। एक-दूसरे पर रिश्वतखोरी का आरोप लगाकर वे विभाग की भद पिटवा रहे हैं। अभी जो कार्यवाहक निदेशक हैं उनपर कोई नीतिगत फैसला लेने पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा रखा है। सवाल है कि जब देश की इस सबसे बड़ी जांच एजेंसी की स्थिति परकटे परिंदे के समान हो गई है और कोर्ट की अनुमति के बिना वह कोई उड़ान  नहीं भर सकती तो आंध्र प्रदेश और प. बंगाल की सरकारों को ऐसी अधिसूचना जारी करने की जरूरत ही क्यों पड़ी। सीबीआई के पास वैसे भी काम का इतना बोझ है कि अकारण राज्य सरकारों के मामलों में टांग अड़ने की उसे फुर्सत नहीं है। रहा केंद्र सरकार द्वारा ुसके दुरुपयोग की आशंका का सवाल तो फिलहाल केंद्र सरकार स्वयं राफेल मामले को लेकर परेशान है। अभी सीबीआई को अनुकूलित करने का उसका प्रयास ही विफल होता दिख रहा है। 

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