रांची। वर्ल्ड बैंक सेशन में डाॅ॰ चाकिब जिनेन, लीड एग्रीकल्चर इकोनॉमिक्स वर्ल्ड बैंक ने कहा कि किसानों के द्वारा ही खाद्य आपूर्ति सुनिश्चित होती है। किसानों के बिना भोजन की कल्पना नहीं की जा सकती। हम सभी को कृषकों की आवश्यकता है और हम सभी आपके सहयोग के लिए तत्पर हैं। उन्होंने कहा कि भारत में कृषि के क्षेत्र में कई गंभीर मुद्दे हैं जैसे डेमोग्राफी, जलवायु परिवर्तन, कांपलेक्स मूल्यवर्धन श्रंखला, खाद्य सुरक्षा मानक इत्यादि।
डाॅ॰ चाकिब जिनेन ने कहा कि 2030 तक खाद्यान्नों की मांग में 20% बढ़ोत्तरी होगी और निरंतर बढ़ती जनसंख्या के भरण पोषण के लिए अतिरिक्त खाद्यान्न की आवश्यकता होगी। खाद्य सुरक्षा इंडेक्स कई संघटकों से मिलकर बना है, जैसे कि भोजन की उपलब्धता, भोजन तक पहुंच। भारत हाई रिस्क फैक्टर है हमें अधिक खाद्यान्न के उत्पादन की जरूरत है। जबकि निरंतर बढ़ती जनसंख्या के कारण कृषि योग्य भूमि में कमी दर्ज की जा रही है। 70 के दशक के मुकाबले अभी प्रति व्यक्ति भूमि की उपलब्धता 0.25 हेक्टेयर है।
डाॅ॰ चाकिब जिनेन कहा कि जनसंख्या के बढ़ने के कारण प्रति व्यक्ति बोए गए क्षेत्र में भी कमी आई है। भूमि उपलब्धता कम है और जनसंख्या अधिकाधिक बढ़ रही है।
डाॅ॰ चाकिब जिनेन ने कहा कि जल की सीमित उपलब्धता, जलवायवीय उतार-चढ़ाव के कारण जब तक नई तकनीकों और नए उपागमों का समावेशन नहीं होता तब तक कृषि के क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन की अपेक्षा नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि कृषि के साथ गरीबी, स्वास्थ्य पोषण जैसी चीजें भी जुड़ी हुई हैं।
डाॅ॰ चाकिब जिनेन ने कहा कि कृषि क्षेत्र में अतिरिक्त निवेश की आवश्यकता है और सरकारी क्षेत्र से मिलने वाली सहायता इसके लिए पर्याप्त नहीं हैं। कृषि क्षेत्र में निजी क्षेत्र को आकर्षित करने की जरूरत है। पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के द्वारा इस गैप को भरा जा सकता है।
डाॅ॰ चाकिब जिनेन ने कहा कि प्राइवेट सेक्टर को कृषि के क्षेत्र में आकर्षित करने की जरूरत है। भारत फल एवं सब्जी के उत्पादन में विश्व में प्रथम, धान, मत्स्य और गेहूं के उत्पादन में पांचवा और अंडा उत्पादन में तीसरा स्थान है। उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र भूमि और जल के उपयोग का एक बड़ा क्षेत्र है। यदि कृषि से उत्पादकता अधिक नहीं होती है तो जल और भूमि का क्षरण इससे होता है। द्वितीय हरित क्रांति समय की मांग है। उन्होंने कहा कि मूल्य संवर्धन और प्रसंस्करण के क्षेत्र में भी भारत में और झारखंड में बहुत कुछ किए जाने की संभावना है। मूल्य संवर्धन जहां मोरक्को में 35%, चीन में 30% और संयुक्त राज्य अमेरिका में 60% है, वहीं भारत में मात्र 10% मूल्य संवर्धन किया जाता है।
डाॅ॰ चाकिब जिनेन ने कहा कि इसका मूल कारण बैकवर्ड और फॉरवर्ड लिंकेज में कमी है। उन्होंने कहा कि झारखंड में कृषि के क्षेत्र में अत्यधिक संभाव्यता है। इस क्षेत्र में बहुत कुछ किया जाना है। कृषि के क्षेत्र में विकास के लिए विभिन्न विभागों के समन्वय से वांछित परिणाम दिखाई देंगे। उन्होंने कहा कि प्रत्येक विभाग को एक साथ आगे बढ़कर इस दिशा में काम करने की जरूरत है। सटीक नीति निर्णय, बाजार की उपलब्धता, कम लागत जैसे उपायों से कृषि के क्षेत्र में सुधार किया जा सकता है। घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार के अवसर तलाशना, उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ावा देना मूल घटक साबित हो सकते हैं।
महाराष्ट्र के श्री योगेश थोराट, एमडी, एम ए एच ए,- एफ पी सी, महाराष्ट्र ने अपने संबोधन में कहा कि किसानों की इच्छा शक्ति एवं जमीनी स्तर पर पदाधिकारियों की इच्छा शक्ति से कृषि के क्षेत्र में अभूतपूर्व उपलब्धियां हासिल की जा सकती हैं। कॉरपोरेट सेक्टर से भी सहयोग एवं संपर्क की जरूरत है, जिससे कि ऐसे प्रसंस्करण संयंत्र स्थापित किए जा सकें जो कि किसानों के उत्पादन का खेत एवं खलिहान से ही प्रोक्योरमेंट कर ले। प्रोक्योरमेंट पार्टनर के साथ जुड़ने से बहुआयामी बदलाव दिखाई देंगे।
उन्होंने बताया कि लागत को कम करने के लिए कृषि के क्षेत्र में आरएंडी की जरूरत है। उन्होंने एक कृषक के रूप में अपने अनुभवों को साझा किया और बताया कि किस तरह से गांव में जाकर जमीनी स्थल पर मिट्टी के परीक्षण के द्वारा यह पता लगाया कि किस फसल के लिए यह मिट्टी उपयोगी है और इसके प्रसंस्करण के द्वारा किस तरह के प्रसंस्करण से क्या परिणाम प्राप्त होंगे और फसल का भविष्य में क्या अनुप्रयोग संभव है। उन्होंने बताया कि गांव-गांव में हमें मूल्यवर्धन की सुविधा के उपाय करने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि किसानों को एक होकर फार्मर एफपीओ बनाना होगा। कंपनी एक्ट के तहत यदि इस प्रकार का एफपीओ का मूल कंपनी एक्ट के तहत बने तो बेहतर होगा, जिससे कि दिन प्रतिदिन के व्यापार में सरकारी हस्तक्षेप कम से कम हो। इसके लिए वर्ल्ड बैंक ने भी काफी फंडिंग उपलब्ध कराई है। किसानों को आगे आकर सहकारिता और कंपनी बनाकर कृषि के क्षेत्र में विकास करने की जरूरत है। कमोडिटी स्पेसिफिक बीएम बनाएं। जमीनी स्तर पर काम करने वाले लोगों को इसके लिए मॉडल बनना होगा और इससे सहकारिता बनानी होगी और कमोडिटी स्पेसिफिक होकर स्थल को चिन्हित करना होगा। इसके लिए झारखंड में सरकार से आवश्यक सहयोग प्राप्त हो रहा है। किसानों को गांव लेवल पर मूलभूत सुविधाओं को उपलब्ध कराने के लिए आधारिक संरचना सरकार बना सकती है। गांव स्तर पर छोटे छोटे बाजारों को विकसित करके ई मार्केट पर लाएं तो अधिक मुनाफा होगा। फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी को सरकार द्वारा प्रोक्योरमेंट करके सहायता प्रदान की जा सकती है। उन्होंने कहा कि मोरक्को, इजरायल और ट्यूनीशिया जैसे देशों ने कृषि के क्षेत्र से शुरुआत कर के देश में विकास को गति दी है। प्राथमिक क्षेत्र के विकास से द्वितीय और तृतीयक क्षेत्र के विकास को प्राप्त किया है।
श्री मोहम्मद मलिकी, एंबेस्डर, एंबेसी ऑफ मोरक्को ने ग्रीन मोरक्को प्लान के विषय में संक्षेप में जानकारी दी। ग्रीन मोरक्को प्लान वर्ष 2010 से 2020 तक के लिए मोरक्को में कृषि क्षेत्र में लागू किया गया। मोरक्को और झारखंड की जलवायवीय दशायें और जनसंख्या अनुपात समकक्ष होने के कारण इस प्लान को यहां पर प्रक्षेपित किए जाने की बात उन्होंने कही।
जैमल बुजदारिया, डिप्टी चीफ ऑफ मिशन एंबेसी ऑफ ट्यूनीशिया ने बताया कि भूमध्यसागरीय जलवायु में अवस्थित ट्यूनीशिया अफ्रीकी महाद्वीप का भाग है और इसके चारों तरफ वृहद यूरोपीय बाजार उपलब्ध है, जिस वजह से ट्यूनीशिया की कृषि उत्पादों का आसानी से निर्यात हो जाता है। उन्होंने बताया कि विश्व बैंक के सहयोग की विषय वस्तु के बारे में बताया और विभिन्न क्षेत्रों में विश्व बैंक के सहयोग से चलाए जा रहे प्रोजेक्ट और फंडिंग के विषय में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि झारखंड में कृषि के क्षेत्र में अनेक चुनौतियां एवं संभावनाएं विद्यमान हैं। तकनीक के समावेशन से कृषि के क्षेत्र में विकास हो सकता है और विश्व बैंक के अनेक प्रोजेक्ट हैं जो कि किसानों के लिए फायदेमंद साबित होंगे इसके लिए सबसे पहले सोच को बढ़ाएं।
डाॅ॰ चाकिब जिनेन ने कहा कि 2030 तक खाद्यान्नों की मांग में 20% बढ़ोत्तरी होगी और निरंतर बढ़ती जनसंख्या के भरण पोषण के लिए अतिरिक्त खाद्यान्न की आवश्यकता होगी। खाद्य सुरक्षा इंडेक्स कई संघटकों से मिलकर बना है, जैसे कि भोजन की उपलब्धता, भोजन तक पहुंच। भारत हाई रिस्क फैक्टर है हमें अधिक खाद्यान्न के उत्पादन की जरूरत है। जबकि निरंतर बढ़ती जनसंख्या के कारण कृषि योग्य भूमि में कमी दर्ज की जा रही है। 70 के दशक के मुकाबले अभी प्रति व्यक्ति भूमि की उपलब्धता 0.25 हेक्टेयर है।
डाॅ॰ चाकिब जिनेन कहा कि जनसंख्या के बढ़ने के कारण प्रति व्यक्ति बोए गए क्षेत्र में भी कमी आई है। भूमि उपलब्धता कम है और जनसंख्या अधिकाधिक बढ़ रही है।
डाॅ॰ चाकिब जिनेन ने कहा कि जल की सीमित उपलब्धता, जलवायवीय उतार-चढ़ाव के कारण जब तक नई तकनीकों और नए उपागमों का समावेशन नहीं होता तब तक कृषि के क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन की अपेक्षा नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि कृषि के साथ गरीबी, स्वास्थ्य पोषण जैसी चीजें भी जुड़ी हुई हैं।
डाॅ॰ चाकिब जिनेन ने कहा कि कृषि क्षेत्र में अतिरिक्त निवेश की आवश्यकता है और सरकारी क्षेत्र से मिलने वाली सहायता इसके लिए पर्याप्त नहीं हैं। कृषि क्षेत्र में निजी क्षेत्र को आकर्षित करने की जरूरत है। पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के द्वारा इस गैप को भरा जा सकता है।
डाॅ॰ चाकिब जिनेन ने कहा कि प्राइवेट सेक्टर को कृषि के क्षेत्र में आकर्षित करने की जरूरत है। भारत फल एवं सब्जी के उत्पादन में विश्व में प्रथम, धान, मत्स्य और गेहूं के उत्पादन में पांचवा और अंडा उत्पादन में तीसरा स्थान है। उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र भूमि और जल के उपयोग का एक बड़ा क्षेत्र है। यदि कृषि से उत्पादकता अधिक नहीं होती है तो जल और भूमि का क्षरण इससे होता है। द्वितीय हरित क्रांति समय की मांग है। उन्होंने कहा कि मूल्य संवर्धन और प्रसंस्करण के क्षेत्र में भी भारत में और झारखंड में बहुत कुछ किए जाने की संभावना है। मूल्य संवर्धन जहां मोरक्को में 35%, चीन में 30% और संयुक्त राज्य अमेरिका में 60% है, वहीं भारत में मात्र 10% मूल्य संवर्धन किया जाता है।
डाॅ॰ चाकिब जिनेन ने कहा कि इसका मूल कारण बैकवर्ड और फॉरवर्ड लिंकेज में कमी है। उन्होंने कहा कि झारखंड में कृषि के क्षेत्र में अत्यधिक संभाव्यता है। इस क्षेत्र में बहुत कुछ किया जाना है। कृषि के क्षेत्र में विकास के लिए विभिन्न विभागों के समन्वय से वांछित परिणाम दिखाई देंगे। उन्होंने कहा कि प्रत्येक विभाग को एक साथ आगे बढ़कर इस दिशा में काम करने की जरूरत है। सटीक नीति निर्णय, बाजार की उपलब्धता, कम लागत जैसे उपायों से कृषि के क्षेत्र में सुधार किया जा सकता है। घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार के अवसर तलाशना, उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ावा देना मूल घटक साबित हो सकते हैं।
महाराष्ट्र के श्री योगेश थोराट, एमडी, एम ए एच ए,- एफ पी सी, महाराष्ट्र ने अपने संबोधन में कहा कि किसानों की इच्छा शक्ति एवं जमीनी स्तर पर पदाधिकारियों की इच्छा शक्ति से कृषि के क्षेत्र में अभूतपूर्व उपलब्धियां हासिल की जा सकती हैं। कॉरपोरेट सेक्टर से भी सहयोग एवं संपर्क की जरूरत है, जिससे कि ऐसे प्रसंस्करण संयंत्र स्थापित किए जा सकें जो कि किसानों के उत्पादन का खेत एवं खलिहान से ही प्रोक्योरमेंट कर ले। प्रोक्योरमेंट पार्टनर के साथ जुड़ने से बहुआयामी बदलाव दिखाई देंगे।
उन्होंने बताया कि लागत को कम करने के लिए कृषि के क्षेत्र में आरएंडी की जरूरत है। उन्होंने एक कृषक के रूप में अपने अनुभवों को साझा किया और बताया कि किस तरह से गांव में जाकर जमीनी स्थल पर मिट्टी के परीक्षण के द्वारा यह पता लगाया कि किस फसल के लिए यह मिट्टी उपयोगी है और इसके प्रसंस्करण के द्वारा किस तरह के प्रसंस्करण से क्या परिणाम प्राप्त होंगे और फसल का भविष्य में क्या अनुप्रयोग संभव है। उन्होंने बताया कि गांव-गांव में हमें मूल्यवर्धन की सुविधा के उपाय करने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि किसानों को एक होकर फार्मर एफपीओ बनाना होगा। कंपनी एक्ट के तहत यदि इस प्रकार का एफपीओ का मूल कंपनी एक्ट के तहत बने तो बेहतर होगा, जिससे कि दिन प्रतिदिन के व्यापार में सरकारी हस्तक्षेप कम से कम हो। इसके लिए वर्ल्ड बैंक ने भी काफी फंडिंग उपलब्ध कराई है। किसानों को आगे आकर सहकारिता और कंपनी बनाकर कृषि के क्षेत्र में विकास करने की जरूरत है। कमोडिटी स्पेसिफिक बीएम बनाएं। जमीनी स्तर पर काम करने वाले लोगों को इसके लिए मॉडल बनना होगा और इससे सहकारिता बनानी होगी और कमोडिटी स्पेसिफिक होकर स्थल को चिन्हित करना होगा। इसके लिए झारखंड में सरकार से आवश्यक सहयोग प्राप्त हो रहा है। किसानों को गांव लेवल पर मूलभूत सुविधाओं को उपलब्ध कराने के लिए आधारिक संरचना सरकार बना सकती है। गांव स्तर पर छोटे छोटे बाजारों को विकसित करके ई मार्केट पर लाएं तो अधिक मुनाफा होगा। फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी को सरकार द्वारा प्रोक्योरमेंट करके सहायता प्रदान की जा सकती है। उन्होंने कहा कि मोरक्को, इजरायल और ट्यूनीशिया जैसे देशों ने कृषि के क्षेत्र से शुरुआत कर के देश में विकास को गति दी है। प्राथमिक क्षेत्र के विकास से द्वितीय और तृतीयक क्षेत्र के विकास को प्राप्त किया है।
श्री मोहम्मद मलिकी, एंबेस्डर, एंबेसी ऑफ मोरक्को ने ग्रीन मोरक्को प्लान के विषय में संक्षेप में जानकारी दी। ग्रीन मोरक्को प्लान वर्ष 2010 से 2020 तक के लिए मोरक्को में कृषि क्षेत्र में लागू किया गया। मोरक्को और झारखंड की जलवायवीय दशायें और जनसंख्या अनुपात समकक्ष होने के कारण इस प्लान को यहां पर प्रक्षेपित किए जाने की बात उन्होंने कही।
जैमल बुजदारिया, डिप्टी चीफ ऑफ मिशन एंबेसी ऑफ ट्यूनीशिया ने बताया कि भूमध्यसागरीय जलवायु में अवस्थित ट्यूनीशिया अफ्रीकी महाद्वीप का भाग है और इसके चारों तरफ वृहद यूरोपीय बाजार उपलब्ध है, जिस वजह से ट्यूनीशिया की कृषि उत्पादों का आसानी से निर्यात हो जाता है। उन्होंने बताया कि विश्व बैंक के सहयोग की विषय वस्तु के बारे में बताया और विभिन्न क्षेत्रों में विश्व बैंक के सहयोग से चलाए जा रहे प्रोजेक्ट और फंडिंग के विषय में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि झारखंड में कृषि के क्षेत्र में अनेक चुनौतियां एवं संभावनाएं विद्यमान हैं। तकनीक के समावेशन से कृषि के क्षेत्र में विकास हो सकता है और विश्व बैंक के अनेक प्रोजेक्ट हैं जो कि किसानों के लिए फायदेमंद साबित होंगे इसके लिए सबसे पहले सोच को बढ़ाएं।
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