* रामकृष्ण मिशन व अन्य संस्थाओं का मिल रहा सहयोग।
रांची। कुछ लोग अपने जीवन में परोपकार को सर्वोपरि मानते हैं। समाजसेवा में जीवन समर्पित कर देते हैं। इसके पीछे उनका कोई स्वार्थ नहीं होता। ऐसे ही एक शख्स हैं एच ई सी परिसर स्थित जगन्नाथपुर झोपड़ी (स्लम एरिया)क्षेत्र के निवासी डॉ.केपी डे। डॉ.डे वर्ष 1982 में पश्चिम बंगाल के वर्दमान जिला से रांची आए। जगन्नाथपुर क्षेत्र के योगदा सत्संग महाविद्यालय से होमियोपैथी चिकित्सा की डिग्री ली। इसके बाद उसी क्षेत्र में होमियोपैथिक चिकित्सा पद्धति से मरीजों का इलाज करने लगे। कुछ दिनों तक यह सिलसिला चलता रहा। डॉ. साहब की ख्याति उनकी व्यवहारकुशलता और बेहतर इलाज के कारण बढ़ने लगी। जगन्नाथपुर क्षेत्र मे अधिकतर गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोग रहते हैं। स्लम एरिया है। आदिवासी और पिछड़े तबके के लोग अधिक हैं। डॉ. डे ने अत्यंत पिछड़े व गरीबों का इलाज नि:शुल्क करना शुरू किया। इससे उनकी लोकप्रियता बढ़ने लगी। चिकित्सा के क्षेत्र में उनकी सेवा और गरीबों के प्रति उनके दयाभाव की चर्चा चहुंओर होने लगी। इस दौरान उन्होंने देखा कि स्लम एरिया में शिक्षा का अभाव है। बच्चों के अभिभावकों को भी अपने बच्चों को पढ़ाई की तनिक भी चिंता नहीं है। बच्चों के मां-बाप नशापान के आदि हैं। पूरे क्षेत्र में हड़िया-दारू की संस्कृति हावी है। इससे आदिवासी और अन्य पिछड़े समुदाय के लोगों का विकास बाधित हो रहा है। शिक्षा के प्रति जागरूकता नहीं है।
यह सब देखकर उनके मन में इस क्षेत्र के बच्चों को शिक्षित करने की इच्छा जगी। उन्होंने चिकित्सा क्षेत्र की सेवाएं अपने सहयोगी मित्रों के हवाले कर बच्चों को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया। इस क्रम में वर्ष 1992 में जगन्नाथपुर के स्लम एरिया में स्थित एक छोटे से कमरे में बिरसा शिक्षा निकेतन नामक स्कूल की शुरुआत की। शुरुआती दौर में उन्हें अभिभावकों के विरोध का भी सामना करना पड़ा। डॉ. डे सुबह उठकर बच्चों को घर से बुलाकर स्कूल लाया करते, जबकि बच्चों के अभिभावक (माता पिता) नशा का सेवन कर घरों में सोये रहते थे। डॉ. डे ने नशाखोरी के विरुद्ध भी अभियान शुरु किया। नशा मुक्त समाज की परिकल्पना के साथ स्लम एरिया में जागरूकता फैलाने लगे। शुरू में तो उन्हें काफी विरोध और ताने का सामना करना पड़ा। लेकिन इससे बेपरवाह वह अपने मुहिम में लगे रहे। धीरे धीरे उनका प्रयास रंग लाने लगा। क्षेत्र में हड़िया-दारू की संस्कृति पर काफी हद तक लगाम लगा। नशा पान के विरोध में भी लोग जागरूक हो रहे हैं। बिरसा शिक्षा निकेतन में वर्तमान में लगभग सात सौ बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। कक्षा एक से पांच तक के बच्चों को संस्कार युक्त शिक्षा देने में डॉ. डे प्रयासरत हैं। स्कूल की प्राचार्या रीता संध्या टोप्पो व अन्य शिक्षक काफी परिश्रमी हैं। उनकी लगन व परिश्रम से स्कूल के बच्चे शिक्षित हो रहे हैं। इस स्कूल से पढ़कर निकले कई बच्चे रांची के प्रतिष्ठित स्कूलों में अपनी प्रतिभा का परचम लहरा रहे हैं। आज हर वर्ग के बीच डॉ. डे के इस प्रयास की सराहना की जाती है। स्कूल का संचालन सामान्य शुल्क और सामाजिक सहयोग से होता है। डॉ. डे बताते हैं कि समय समय पर रामकृष्ण मिशन, सार्वजनिक उपक्रम सेल, मेकॉन,भारतीय स्टेट बैंक, हटिया शाखा, लायंस क्लब, रोटरी क्लब मिडटाउन, एच ई सी व एच ई सी महिला समिति सहित अन्य संस्थाओं की ओर से स्कूल को संसाधनों से लैस करने में सहयोग किया जाता है। वह बताते हैं कि शिक्षा के बिना समाज का विकास संभव नहीं है। बच्चे देश का भविष्य हैं। उन्हें शिक्षित होना जरूरी है। इस दिशा में सरकारी व गैर सरकारी दोनों स्तर पर प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। इसके अलावा नशा मुक्त समाज का होना भी जरूरी है। उन्होंने अपने संदेश में कहा कि लोगों को सादा जीवन और उच्च विचार के सिद्धांत को अपनाने की आवश्यकता है। इससे समाज और राष्ट्र सशक्त होगा।
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