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मंगलवार, 1 अक्तूबर 2019

समाज सेवा ही सदानंद होता के जीवन का एकमात्र लक्ष्य




* परिस्थितियां चाहे जैसी भी हो, हर हाल में खुश रहना और दूसरों को भी खुशी प्रदान करना इंसान की महानता कहलाता है। विपरीत परिस्थितियों में भी सीमित संसाधनों के बीच समाज सेवा और पीड़ित मानवता की सेवा का संकल्प लेकर आगे बढ़ते रहना व्यक्ति की विशेषता का परिचायक होता है। ऐसी ही एक शख्सियत हैं, चक्रधरपुर शहर स्थित पुरानी बस्ती निवासी लोकप्रिय समाजसेवी और पीड़ित मानवता के प्रति समर्पित व्यक्ति सदानंद होता। उन्होंने समाज सेवा को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया है। वह चक्रधरपुर में ही पले-बढ़े। उनकी शिक्षा-दीक्षा चक्रधरपुर शहर में ही हुई। उन्होंने महात्मा गांधी उच्च विद्यालय से मैट्रिक की परीक्षा पास की। तत्पश्चात जेएलएन कॉलेज से 12वीं तक की शिक्षा हासिल की। सदानंद होता के पिता स्व.अतुलचंद्र होता भी शहर के लोकप्रिय समाजसेवी रहे। उनकी माता इंदुमती होता उन्हें हर पल संस्कारित करती रहीं। बचपन से ही समाजसेवा का जज्बा लिए सदानंद समाज के पीड़ित व्यक्तियों के प्रति सहानुभूति रखते हैं। समाज सेवा के उद्देश्य से उन्होंने अपनी बहन स्व.सुनीता होता की स्मृति में सुनीता होता मेमोरियल फाउंडेशन की स्थापना की है। इसके माध्यम से वह पीड़ित मानवता की सेवा में लगे हैं। चिकित्सा व शिक्षा के क्षेत्र में सामाजिक कार्यों को श्री होता सदैव बढ़ावा देते रहे हैं। सुनीता होता मेमोरियल फाउंडेशन के तहत रक्तदान शिविर का आयोजन करना,कैंसर,हर्ट व अन्य  असाध्य रोगों से पीड़ित लोगों के सहायतार्थ स्वास्थ्य शिविर लगाकर नि:शुल्क सेवाएं उपलब्ध कराना,दिव्यांगों को अपने स्तर से सभी सुविधाएं दिलाना आदि कार्यों को उन्होंने अपनी दिनचर्या में शामिल कर लिया है। शहर के कई दिव्यांगों को उन्होंने कोलकाता स्थित फियरलेस अस्पताल और रायपुर स्थित सत्य साईं अस्पताल में चिकित्सा सुविधाएं दिलाई हैं। सुनीता होता मेमोरियल फाउंडेशन के बैनर तले नियमित रूप से विभिन्न क्षेत्रों में नेत्र रोगियों के लिए वह नि:शुल्क नेत्र जांच शिविर का आयोजन समय-समय पर करते रहते हैं। जिसके माध्यम से पीड़ितों का ऑपरेशन कराया जाता है, उन्हें चश्मा,दवाइयां आदि उपलब्ध कराई जाती है। जरूरतमंदों की सहायता करना वह सबसे बड़ा मानव धर्म मानते हैं। उनके नजर में कोई पीड़ित व्यक्ति दिख जाए, तो वह सब कुछ भुला कर पीड़ित की सहायता में जुड़ जाते हैं। सदानंद होता की पहचान शहर के एक सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में स्थापित हो चुकी है। दीन- दुखियों के प्रति उनका दयालु भाव सर्वविदित है। वह कहते हैं कि परोपकार और समाज सेवा से बढ़कर कोई धर्म नहीं है। इससे जीवन जीने का मकसद पूरा हो जाता है। पीड़ित मानवता की सेवा करने से अद्भुत और सुखद अनुभूति होती है। इससे सुकून मिलता है। यही नहीं, पीड़ितों की सेवा करके हम ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त करने में भी सफल होते हैं। युवाओं के प्रति अपने संदेश में श्री होता कहते हैं कि युवाओं को समाज की मुख्यधारा से जुड़ कर अपने कर्तव्यों के प्रति सजग रहते हुए अपनी ऊर्जा को सामाजिक नव निर्माण के लिए सकारात्मक कार्यों में लगाने की आवश्यकता है। इससे राष्ट्रीय सशक्तिकरण को बढ़ावा मिलता है और हमारा देश व समाज सशक्त होता है। इस दिशा में हम सबों को सतत प्रयासरत रहने की आवश्यकता है।
 प्रस्तुति : विनय मिश्रा

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