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शनिवार, 19 अक्तूबर 2019

संवैधानिक अधिकारों के लिए संघर्ष का पर्याय हैं राजेंद्र प्रसाद


जनता को उसका संविधान सम्मत अधिकार प्राप्त दिलाने के लिए सतत प्रयासरत रहना राजधानी रांची निवासी राजेंद्र प्रसाद का एकमात्र शगल है। श्री प्रसाद झारखंड के मूलवासियों और सदानों (गैर आदिवासी समुदाय) के हितों के संरक्षण के लिए विगत कई वर्षों से संघर्षरत हैं। श्री प्रसाद का पैतृक आवास सिमडेगा में है। उनकी प्रारंभिक शिक्षा- दीक्षा सिमडेगा में ही हुई। अपने माता-पिता व गुरुजनों के सानिध्य में पले- बढ़े और पढ़े। उनके माता-पिता ने उन्हें संस्कार युक्त शिक्षा दिलाने में कोई कोई कोर कसर बाकी नहीं रखा। श्री प्रसाद बचपन से ही अन्याय और अत्याचार के खिलाफ लड़ाई लड़ते रहे हैं। सिमडेगा से मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद श्री प्रसाद रांची आ गए। यहां रांची कॉलेज से उन्होंने इंटरमीडिएट और ग्रेजुएशन किया। छात्र जीवन में भी छात्र हित के लिए सदैव संघर्षरत रहे। हक और अधिकार पाने के प्रति उनके जज्बे और जुनून की बानगी देखें कि वह जब कक्षा सात में अध्ययनरत थे, उस समय झारखंड अलग राज्य बनाने का आंदोलन चरम पर था। श्री प्रसाद ने अल्प आयु में भी आंदोलनकारियों का समर्थन करना शुरू किया। आंदोलनकारियों के बताए गए दिशा-निर्देशों के अनुसार उन्होंने यथासंभव सहयोग करना भी शुरू कर दिया। स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद श्री  प्रसाद झारखंड में निवास कर रहे यहां के मूलवासी सदानों के हितों के संरक्षण के लिए प्रयास शुरू किया। इस दिशा में उन्हें समर्थन भी प्राप्त हुआ। उन्होंने मूलवासी सदान मोर्चा नामक एक गैर राजनीतिक संगठन की स्थापना की और इसके माध्यम से वह मूलवासी सदानों को उनका हक दिलाने की दिशा में प्रयासरत हैं। वह सर्व-धर्म, सम-भाव के आदर्शों को मानते हुए सभी धर्मों का समान आदर करते हैं। शहर में होने वाली सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना उनकी दिनचर्या में शुमार है। किसी भी धर्म व समुदाय का पर्व-त्यौहार हो, श्री प्रसाद उसमें बढ़-चढ़कर अपनी सहभागिता निभाते हैं। मृदुभाषी, सरल, सहज व व्यवहारकुशल श्री प्रसाद कहते हैं कि प्रसन्नता जीवन का अमूल्य उपहार है। सफलता और उपलब्धियां उसे ही हासिल होती है जो सदैव प्रसन्न चित्त रहकर अपने कर्तव्य पथ पर सदा अग्रसर रहते हैं। समाज के प्रति अपने संदेश में श्री प्रसाद कहते हैं  कि नागरिकों को अपने अधिकारों के प्रति सजग रहने की आवश्यकता है। वहीं, युवाओं को तनावमुक्त जीवन जीते हुए समाज की मुख्यधारा से जुड़े रहकर अपनी ऊर्जा सकारात्मक कार्यों में लगाने के लिए प्रेरित करते हैं। श्री प्रसाद कहते हैं कि शिक्षा के साथ-साथ संस्कार भी जरूरी है। इससे हमारा समाज सशक्त होता है। जब समाज मजबूत होगा तो देश भी शक्तिशाली और समृद्ध होगा।
प्रस्तुति : नवल किशोर सिंह

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