सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय का व्यापक दृष्टिकोण रखते हुए सामाजिक उत्थान और उत्कर्ष के लिए सतत प्रयत्नशील रहना व्यक्ति की महानता का परिचायक होता है। समाज को हमेशा सही दिशा दिखाने और रचनात्मक कार्यों में सहभागिता निभाते हुए अपने प्रशासनिक कार्यों को भी बखूबी निष्पादित करते रहना किसी भी अधिकारी की विशेषता कहलाता है। ऐसी ही एक शख्सियत हैं भारतीय प्रशासनिक सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी और वर्तमान में झारखंड राज्य खाद्य आयोग के सदस्य उपेंद्र नारायण उरांव। श्री उरांव मूल रूप से रांची के मांडर क्षेत्र के निवासी हैं। लेकिन काफी दिनों से बिहार के पूर्णिया में बस गए हैं। वह पढ़ाई-लिखाई में वह हमेशा अव्वल रहे। ग्रेजुएशन करने के बाद श्री उरांव बिहार लोक सेवा आयोग की परीक्षा में शामिल हुए और सफल रहे। उनकी पहली पदस्थापना बतौर प्रखंड विकास पदाधिकारी तांत नगर में हुई। वह गुमला जिले के चैनपुर में भी बीडीओ के पद पर कार्यरत रहे। श्री उरांव एकीकृत बिहार और झारखंड के एकमात्र ऐसे अधिकारी हैं, जिन्हें अपने सेवाकाल के दौरान सात अनुमंडल का पदाधिकारी रहने का गौरव प्राप्त है। वह बिहार के भभुआ, खड़गपुर,(मुंगेर),लखीसराय, झंझारपुर और झारखंड के धनबाद और चक्रधरपुर में अनुमंडल पदाधिकारी के पद पर रह चुके हैं। वह जहां भी पदस्थापित रहे, अपनी प्रशासनिक दक्षता और क्षमता का परिचय देते हुए एक कर्तव्यनिष्ठ और उत्कृष्ट अधिकारी की पहचान बनाने में सफल रहे। श्री उरांव जब चक्रधरपुर में अनुमंडल पदाधिकारी थे, उसी समय रांची जिले के बुंडू को नया अनुमंडल बनाया गया था। श्री उरांव को बुंडू के प्रथम अनुमंडल पदाधिकारी बनने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ। प्रशासनिक पद पर रहते हुए अपने सेवाकाल के दौरान उन्होंने जनहित में कई ऐसे उल्लेखनीय कार्य किए, जो मील का पत्थर साबित हुआ है। वह झारखंड प्रशासनिक सेवा संघ के भी पदधारी रहे हैं। इस दौरान प्रशासनिक अधिकारियों के हितों के संरक्षण के लिए सतत प्रयासरत रहे हैं। श्री उरांव दुमका में डीडीसी के पद पर भी कार्यरत रहे। झारखंड सरकार के खाद्य आपूर्ति विभाग में संयुक्त सचिव के पद पर भी उन्होंने अपनी सेवाएं दी। इस दौरान खाद्य सुरक्षा कानून के अनुपालन के प्रति वह काफी गंभीर रहे हैं। उनकी उत्कृष्ट कार्यशैली, अनुभव और प्रशासनिक दक्षता के आधार पर राज्य सरकार ने उन्हें सेवानिवृत्ति के बाद भी उनकी सेवाएं राज्य खाद्य आयोग में बतौर सदस्य के रूप में ले रही है। श्री उरांव जात-पात, धर्म-संप्रदाय की संकीर्णताओं से परे हैं। वह सभी धर्मों का समान आदर करते हैं। समाज के लिए सकारात्मक कार्यों में बढ़चढ़कर हिस्सा लेते हैं। वह एक शालीन, सरल और सहज व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति हैं। व्यस्त दिनचर्या के बावजूद उनकी सहभागिता सामाजिक कार्यों में भी होती है। राज्य खाद्य आयोग में सदस्य के रूप में जन शिकायतों के निवारण के लिए विभिन्न स्थानों पर शिविर लगाकर जनसुनवाई के माध्यम से लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने के लिए वह सतत प्रयासरत रहते हैं। श्री उरांव की विशेषता रही है कि वह अपने कार्यों के प्रति सदैव गंभीर रहे हैं। अपने उत्तरदायित्वों के निर्वहन के लिए वह सदैव प्रयासरत रहते हैं। प्रशासनिक पद पर रहते हुए सरकारी योजनाओं के कार्यान्वयन की दिशा में उन्होंने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए,जिसका लाभ जनता को मिलता रहा है। जनहित के कार्यों को तवज्जो देना उनकी प्राथमिकताओं में शुमार है। मृदुभाषी उपेंद्र नारायण उरांव का व्यवहार सबों के साथ मित्रवत होता है। उनका मानना है कि शालीनता और संस्कार जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है। इसके माध्यम से हम हर दिल अजीज बन सकते हैं। समाज के प्रति अपने संदेश में वह कहते हैं कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। व्यक्तिगत हितों से ऊपर उठकर समाज हित के प्रति भी हमें सजग रहने की आवश्यकता है। यह स्वस्थ और स्वच्छ समाज निर्माण में काफी सहायक होता है। वहीं, युवाओं के प्रति अपने संदेश में श्री उरांव कहते हैं कि युवाओं को अपनी ऊर्जा का इस्तेमाल सकारात्मक कार्यों में करना चाहिए। इससे हमारा देश और समाज सशक्त होगा और विश्व पटल पर भारत विकासशील देशों की श्रेणी में अग्रिम पंक्ति में खड़ा हो सकेगा।
प्रस्तुति : विनय मिश्रा
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