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गुरुवार, 26 सितंबर 2019

शालीनता की प्रतिमूर्ति हैं निशांत मोदी


समाज के प्रति सकारात्मक सोच ही निशांत मोदी का आभूषण है। निशांत युवा सशक्तिकरण के सशक्त हस्ताक्षर हैं। वह स्वच्छ और स्वस्थ समाज निर्माण के कर्मठ योद्धा हैं। समाज के नवनिर्माण में जुटे रहना उनकी दिनचर्या में शुमार है। पेशे से व्यवसायी निशांत राजधानी के रातू रोड क्षेत्र के निवासी हैं। उनके पिता गौतम मोदी और मां स्नेहा मोदी भी शहर के जाने-माने समाजसेवी हैं। लालजी हीरजी रोड में उनका व्यावसायिक प्रतिष्ठान है। निशांत का जन्म रांची में एक फरवरी 1990 को हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा शहर के प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान सुरेंद्रनाथ सैंटनरी स्कूल से हुई। उन्होंने 12वीं बोर्ड की परीक्षा डीएवी हेहल से पास की। तत्पश्चात संत जेवियर कॉलेज से उन्होंने वाणिज्य में स्नातक की डिग्री हासिल की। पढ़ाई पूरी करने के बाद निशांत ने अपने पिता के व्यवसाय में हाथ बंटाना शुरु किया। अपनी पारिवारिक और व्यावसायिक गतिविधियों से समय निकालकर अपने पिता के पद चिन्हों पर चलते हुए उन्होंने सामाजिक कार्यों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना शुरू किया। युवावस्था में ही व्यावसायिक जिम्मेदारियों को संभालने लगे। वहीं दूसरी तरफ नि:स्वार्थ भाव से समाज के प्रति भी समर्पण की भावना रखने लगे। सादगी और शालीनता की प्रतिमूर्ति निशांत में अहंकार लेशमात्र भी नहीं है। उनमें आत्मीयता व स्नेह का गुण कूट-कूट कर भरा है। उनके साथी-संगी भी उनकी काबिलियत के कायल हैं। निशांत इसी वर्ष 28 मई को दांपत्य सूत्र में बंधे। उनकी पत्नी रुचि सरायवाला की भी पारिवारिक पृष्ठभूमि गरिमामय रही है। विवाह के बाद निशांत को अपने पारिवारिक व व्यावसायिक जिम्मेदारियों को संभालने मे उनकी पत्नी रुचि भी उन्हें सहयोग करती रहती है। निशांत का मृदुभाषी व्यक्तित्व और सम्मोहक मुस्कान गैरों को भी अपना बना लेता है। स्वामी विवेकानंद की विचारधारा को आत्मसात कर सामाजिक परिवर्तन एवं नव निर्माण के कार्यों में जुटे रहना उनकी खासियत है। युवाओं को सशक्त समाज निर्माण के लिए सही दिशा दिखाने में भी वह प्रयासरत हैं। वह गरीब और असहाय बेटे-बेटियों की शादियां और शिक्षा के प्रति भी संवेदनशील रहा करते हैं। समाज की पीड़ा को अपनी पीड़ा समझ कर जीवन पथ पर सफल पथिक के रूप में अग्रसर है। निशांत कहते हैं कि मानवीय जीवन की सार्थकता इसीमें है कि अपने कल्याण की तरह दूसरों का भी कल्याण करें। यही सेवा भावना का मूल मंत्र भी है। वह कहते हैं कि बुद्ध, गांधी, लिंकन, मार्क्स, लेनिन, मार्टिन लूथर किंग जैसे अनगिनत नाम हैं, जो इस बात के सबूत हैं कि समय की नब्ज सदा युवा पीढ़ी के साथ रही है। युवाओं के ऊपर देश का भविष्य टिका होता है। युवा को सही मार्गदर्शन मिले,तभी सामाजिक विकास संभव होगा। निशांत कहते हैं कि माता-पिता व गुरुजनों के कहे गए एक-एक शब्द प्रेरणा स्रोत होते हैं। उनके बताए मार्ग पर चलते हुए शांति मिलती है। निशांत अंतरराष्ट्रीय संस्था जूनियर चेंबर इंटरनेशनल के निदेशक मंडल में शामिल हैं। इसके माध्यम से रक्तदान शिविर सहित अन्य कार्यक्रमों का संचालन कर सामाजिक कार्यों में सक्रिय रहते हैं। उन्हें गरीबों को भोजन कराने में आनंद की अनुभूति होती है। युवावस्था में ही परोपकार की भावना से ओतप्रोत निशांत नि:स्वार्थ भाव से समाज के प्रति समर्पित हैं। युवाओं के प्रति अपने संदेश में वह कहते हैं कि बुजुर्गों के अनुभव से हमें सीखने की आवश्यकता है। इससे अच्छे बुरे में फर्क का पता चलता है। किसी भी काम को सफलतापूर्वक करने के लिए लक्ष्य निर्धारित कर उसकी ओर अग्रसर रहें, अपने कर्तव्यों और दायित्वों के प्रति सजग रहें। वह कहते हैं कि युवाओं का हंसमुख, मृदुभाषी और शालीन होना जरूरी है। अपने कैरियर का निर्धारण कर लक्ष्य की ओर अग्रसर रहें। पर थोड़ा समय समाज के लिए भी जरूर निकालें। स्वस्थ और स्वच्छ समाज राष्ट्र के सशक्तिकरण के लिए जरूरी है। अपनी धुन के पक्के और कर्तव्य पथ पर सतत बढ़ते रहने के उनके जज्बे और जुनून को देखकर राष्ट्रकवि दिनकर की यह पंक्तियां याद आती है, " नींद कहां उनकी पलकों में जो धुन के मतवाले हैं, गति की तृशा और बढ़ती, पड़ती जब पग में छाले हैं " उक्त पंक्तियां निशांत पर पूर्णता चरितार्थ होती है।
प्रस्तुति : नवल किशोर सिंह

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