देवेंद्र गौतम
मोटर वाहन अधिनियम में भारी-भरकम जुर्माने के प्रावधान के पक्ष में
केंद्रीय परिवहन मंत्री का तर्क किसी के गले नहीं उतर पा रहा। यहां तक कि भाजपा
शासित राज्य भी उसे हू-ब-हू लागू करने को तैयार नहीं। सबसे पहले पीएम मोदी और
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के गृह प्रदेश गुजरात से ही इनकार के स्वर फूटे। गुजरात
सरकार ने जुर्माने की राशि में 90 फीसद कटौती कर दी। विपक्षी दलों के शासन वाले
प्रदेशों ने इसे लागू करने से पूरी तरह मना कर दिया। बिहार और झारखंड जैसे राज्यों
ने इसे लागू करने के लिए तीन माह का समय तय किया। एक सितंबर को इसे लागू किए जाने
के बाद देश के विभिन्न इलाकों में पुलिस और जनता के बीच हिंसक टकरावों की खबरें
आने लगीं। दिल्ली में बहुत से लोगों ने निजी वाहनों पर चलना बंद कर दिया। बसों और
मेट्रो में भीड़ बढ़ गई। स़ड़कों पर चालान का आतंक पसरने लगा। लेकिन गडकरी साहब
इसके बाद भी कहते रहे कि यह स़ड़क दुर्घटनाओं में कमी लाने और यातायात नियमों के
प्रति जागरूकता लाने के लिए किया गया है। राजस्व इकट्ठा करना सरकार का मकसद नहीं
है। यह अलग बात है कि झारखंड जैसे छोटे राज्य में 60 घंटे के अंदर 25 लाख का
जुर्माना वसूल लिया गया। देशभर में करोड़ों की वसूली हो गई।
यह पहला मौका है जब नितिन गडकरी की सोच पर सवालिया निशान लगा। वे उसी
जमात का हिस्सा नज़र आने लगे जो मोदी सरकार के मंत्रियों और उनके भक्तों की विशिष्टता
रही है। सत्ता का अहंकार गडकी के अंदर इससे पहले कभी परिलक्षित नहीं हा था। उनके
मंत्रालय में 2014 से लेकर अभी तक जितने काम हुए उन्हें सराहा गया। उनके मंत्रालय
के प्रदर्शन को मोदी सरकार की उपलब्धि माना गया। वे कभी किसी तरह के विवाद में
नहीं रहे। उटपटांग बयानबाजी से भी दूर रहे। लेकिन न्यू मोटर व्हेकिल एक्ट ने
उन्हें जनता की नज़र में नायक से खलनायक बना दिया। उन्होंने आर्थिक मंदी में आम
जनता की वित्तीय स्थिति पर सोचने की कोई जरूरत नहीं समझी। यदि तमाम राज्य सरकारें
उनके तर्क से सहमत होकर जबरिया चालान काटने में लगी रहतीं तो देश में गृहयुद्ध तक
की नौबत सकती थी। गडकरी जी इतने अमानवीय, जिद्दी और असंवेदनशील हो सकते हैं किसी
ने सपने में भी नहीं सोचा था। भारी जुर्माना लगाने से सड़क दुर्घटनाओं में कमी आ
जाएगी यह गडकरी की सोच हो सकती है। दुर्घटनाओं का कारण जर्जर सड़कें और ट्रैफिक
सिग्नलों की गड़बड़ी भी हो सकती है यह बात उनके जेहन में नहीं आई। उन्होंने
अमेरिका, जर्मनी और फ्रांस की नकल करनी चाही लेकिन उनकी सड़कों का अपनी सड़कों से
उनकी यातायात प्रणाली की अपनी प्रणाली से तुलना करके नहीं देखी। बड़े गर्व के साथ
उन्होंने कहा कि उनका भी चालान कटा है। तो क्या भारत का हर नागरिक उनकी तरह धनी है
कि लाख-पचास हजार से उसे फर्क नहीं पड़ता।
2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान जब भाजपा की ओर से नितिन गडकरी का
प्रधानमंत्री के वैकल्पिक उम्मीदवार के रूप में नाम आ रहा था तो लोग उत्साहित थे
कि एक सुलझे हुए नेता के हाथ में सत्ता की लगाम आ सकती है जो कम से कम बिना किसी
तैयारी नोटबंदी और जीएसटी जैसा पागलपन भरा निर्णय नहीं लेंगे। लेकिन अब लोगों को
लग रहा है कि अच्छा हुआ कि ऐसी नौबत नहीं आई अन्यथा सत्ता हाथ में आने पर गडकरी तो
इससे भी ज्यादा क्रूर और अमानवीय हो सकते थे।
भाजपा नेताओं के साथ समस्या यह है कि सत्ता में आने के बाद उनकी नजर
विकसित देशों पर लगी रही और वे भारत की मूलभूत समस्याओं को पूरी तरह भूल गए।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें