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बुधवार, 26 जून 2019

व्यंग्यः कहते हैं कि साहब का है अंदाज़े-बयां और


देवेंद्र गौतम
जावेद अख्तर को मोदी भक्तों ने ट्रोल किया तो हैरानी की क्या बात। मोदी जी मोदी जी हैं-उन्होंने राज्यसभा में  मिर्जा ग़ालिब के नाम पर एक बेवज़्न शेर पढ़ दिया तो क्या हुआ। कौन सा पहाड़ टूट पड़ा। सुना नहीं वे दुनिया के सबसे ताकतवर नेता बन गए हैं। वे ग़ज़ल के व्याकरण में जो चाहें संशोधन कर सकते हैं। कोई आपत्ति नहीं कर सकता। करेगा, तो सोशल मीडिया पर भक्तों का भजन सुनेगा। भक्तगणों के पास हमेशा नए-नए तैयार रहते हैं और उन्हें सुनाने के लिए मौके की ताक में रहते हैं। वैसे जावेद अख्तर साहब ने शायद गौर नहीं किया हो कि कुछ लोग ऐसे भी हैं जो शेर को ग़ालिब का समझते हैं। ग़ालिब जिंदा होते तो उन्हें अपनी लोकप्रियता का आभास होता।  अब प्रधानमंत्री जी ने ग़ालिब का शेर पढ़ा तो चाहे वह दीवाने-गालिब में हो या न हो उसे ग़ालिब का मान लेना चाहिए। जिस रूप में पढ़ा उसी रूप में स्वीकार कर लेना चाहिए। मोदी जी कोई दर्जी नहीं कि शेर का मीटर नापते चलें। शुक्र मनाइए कि उन्होंने पूरी ग़ज़ल नहीं पढ़ी वर्ना फिर काफिये और रदीफ का भी सवाल उठता और सोशल मीडिया पर भजनों की सुनामी आ जाती। दिमाग़ का इस्तेमाल करने वाले कभी सच्चे भक्त नहीं हो सकते। भक्ति के लिए अक्ल को ताख पर रख देना होता है। उनके आराध्य कभी गलती कर ही नहीं सकते। उनकी मानवीय भूलें उनकी लीला होती हैं। गैरभक्त क्या जानें भक्ति क्या होती है।    

जावेद अख्तर साहेब, जिस तरह मिर्जा असदुल्ला खां ग़ालिब अपने अंदाज़े-बयां के लिए जाने जाते थे उसी तरह मोदी जी भी अपने खास अंदाज़े के लिए जाने जाते हैं। वे जो भी बोलते हैं उसमें एक गूढ़ संदेश होता है। समझनेवाले उसे सहजता से समझ लेते हैं। जो नहीं समझते उन्हें अनाड़ी हीकहा जा सकता है। दरअसल मोदी जी ने इस शेर के जरिए साहित्य-कला-संस्कृति की दुनिया में विचरण करने वाले लोगों को आगाह किया है कि वे राजनीति में कत्तई दखलअंदाजी न करें। करेंगे तो उनका यही हश्र किया जाएगा। ग़ालिब के इतने शेर पढ़े जाएंगे कि अच्छे-अच्छे शायर शायरी से तौबा कर लेंगे।

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