देवेंद्र गौतम
रांची। हेथू में एक समुदाय के तीन युवकों और एकरा मस्जिद के पास दूसरे
समुदाय के दो युवकों पर किया गया जानलेवा हमला भीड़तंत्र की उन्मादजनित हिंसक
प्रवृति के बेकाबू होते जाने का परिचायक है। इसपर काबू पाने के लिए पुलिस-प्रशासन
को अत्यंत सतर्क और चुस्त-दुरुस्त रहना होगा। राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने
राज्यभर के पुलिस अधिकारियों को इस संबंध में आवश्यक निर्देश दिए हैं लेकिन इसकी एक
सुगठित रणनीति तथ कार्यनीति बनाने की
जरूरत है। आवश्यक होने पर विशेष सेल बनाने की पहल होनी चाहिए जिसमें किसी संवेदनशील
सूचना पर त्वरित कार्रवाई संभव हो।
भीड़ का बेकाबू हो जाना और हिंसक रूप धारण कर लेना कभी भी पूर्व
नियोजित नहीं होता। एक अफवाह हवा में तैरती है और लोग आपा खो बैठते हैं। पुलिस
घटना के बाद मुस्तैद होती है। कार्रवाई करती है। निश्चित रूप से आकस्मिक घटनाओं पर
नज़र रख पाना न व्यावहारिक है न संभव। इस तरह की घटनाओं का एक कारण कानून व्यवस्था
के प्रति भरोसा उठ जाना होता है और दूसरा किसी संवेदनशील सूचना को गंभीरता से नहीं
लेने की पुलिसिया कार्यशैली। आजादी के 70 साल बाद भी लोग थाने में जाने से परहेज़
करते हैं। पुलिस पैसों की उगाही के लिए किसी को परेशान करने लगती है। आम जनता को
प्रताड़ित करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझती है। हरे नोटों के लिए सच को झूठ और
झूठ को सच बनाने में जरा भी संकोच नहीं करती। प्राथमिकी दर्ज करने में आनाकानी की
शिकायतें तो आए दिन सुर्खियों में रहती है। संभव है सरकार द्वारा निर्धारित वेतन
से उनकी काम नहीं चल पाता हो। उनकी ड्यूटी 24 घंटे सात दिन की होती है। उन्हें
उनकी मेहनत के हिसाब से वेतन मिलना ही चाहिए। सरकार को इसपर ध्यान देना चाहिए।
पुलिस को पब्लिक फ्रेंडली बनाने की वर्षों से कोशिश की जा रही है। सेमिनार पर
सेमिनार आयोजित किए जाते हैं। पुलिस-पब्लिक मीट के आयोजन होते हैं लेकिन नतीजा वही
ढाक के तीन पात रहता है। पुलिस बल वर्दी की गर्मी और ब्रिटिश कालीन मानसिकता से
कैसे मुक्त हो, इसपर विचार करने की जरूरत है। कानून व्यवस्था का सतर्क प्रहरी होने
के नाते उनका सत्ता का आज्ञाकारी होने के साथ एक जिम्मेवार नागरिक होना जरूरी है।
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