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बुधवार, 27 जून 2018

इंटक के दो घड़ों का विलयः ट्रेड यूनियन की राजनीति की ऐतिहासिक घटना



देवेंद्र गौतम

रांची। इंटक के दो घड़ों का आपस में विलय भारत के ट्रेड यूनियन आंदोलन की एक ऐतिहासिक घटना है। दो दिग्गज श्रमिक नेता इंटक महासचिव राजेंद्र प्रसाद सिंह और दूसरे गुट के अध्यक्ष चंद्रशेखर दुबे उर्फ ददई दुबे के बीच वर्षों से चल रहे विवाद के कारण न सिर्फ मजदूरों के हितों पर आघात हो रहा था बल्कि देश के औद्योगिक प्रतिष्ठानों में भी असमंजस की स्थिति बनी हुई थी। मामला अदालत में लंबित था। दिल्ली हाई कोर्ट में ताऱिख पर तारिख पड़ रहा था इस बीच श्रम मंत्रालय ने इंटक को सभी कमेटियों से बाहर कर दिए जाने का निर्देश दिया था। इस विवाद को कारण जेबीसीसीआई-10 में इंटक की सीटें 10 से घटाकर 4 कर दी गई थीं। विवाद का निपटारा होने तक इंटक के रेड्डी गुट को बाहर कर दिया गया था। कोयला, इस्पात, रेल सहित निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के औद्योगिक प्रतिष्ठानों के वेतन समझौतों में इंटक की मुख्य भूमिका होती थी। दो नेताओं के अहं की टकराहट के कारण श्रमिक वर्ग का नुकसान हो रहा था। सरकार को भी मजदूर विरोधी नीतियां लागू करने की छूट मिली हुई थी।
इन सारी परिस्थितियों को देखते हुए दोनों नेताओं ने सारे गिले शिकवे दूर कर हाथ मिला लिया। यह उनकी समझदारी, दूरदर्शिता और मजदूर वर्ग के प्रति समर्पित भावना का परिचायक है। अब दोनों गुटों के विलय की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। केंद्र से लेकर राज्य तक इंटक से जुड़े तमाम संगठनों और कमेटियों का पुनर्गठन होगा। वेतन समझौतों में मजदूरों के हितों की रक्षा होगी। इस खबर के आने के बाद सभी औद्योगिक और संगठित, असंगठित क्षेत्र के मजदूरों में खुशी की लहर दौड़ गई है।
उल्लेख्य है कि दोनों श्रमिक नेता बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और इंटक के संस्थापकों मे एक स्व. बिंदेश्वरी दुबे के मुख्य सहयोगी रहे हैं। यह दो गुरुभाइयों के आपसी मनमुटाव का मामला था। सत्ता की राजनीति में भी इनकी गहरी पैठ रही है। राजेंद्र प्रसाद सिंह बेरमो से कई बार विधायक रह चुके हैं और कई मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। ददई दुबे भी विश्रामपुर से विधायक और धनबाद के सांसद रह चुके हैं। अब इंटक के एकीकरण के बाद सत्ता की राजनीति में भी इनका दबदबा बढ़ेगा। इसमें संदेह नहीं है।



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