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शुक्रवार, 29 जून 2018

"मध्यम वर्ग आखिर जाए तो जाए कहां?"





अर्पिता सिन्हा

 र्मै उनलोंगो से प्रश्न पूछना चाहती हूं, जो दावा करते हैं कि,मोदी सरकार 2रूपये किलो चावल दे रही है, एक रुपये किलो गेहूं दे रही है,3 करोड़ गैस कनेक्शन दिए गए,लाखों शौचालय बनाये गए, करोड़ों रुपये खर्च कर बच्चों को मुफ्त  शिक्षा दी जा रही है,मध्याह्न भोजन मुफ्त  में दिए जा रहे है।सस्ते में चीनी,सस्ते में केरोसिन उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
         त्रासदी यह है कि मोदी सरकार पर वो लोग उंगली उठा रहे हैं जो पंद्रह से बीस लाख की कार पर घूमते हैं, अपने बच्चों को महंगे स्कूलों में  पढ़ाते है । उन्हें दो दो लाख की बाइक खरीद कर  घूमने के लिए देते हैं।
          मैं भी मोदी समर्थक हूँ। लेकिन कुछ प्रश्न है जो मैं जानना चाहती हूँ और पूछना चाहती हूँ कि,2रूपये किलो चावल किसे मिल रहा है?1रूपये किलो गेंहू किसे मिल रहा है ? 20 रुपये किलो चीनी किसे मिल रहा है? सस्ते केरोसिन,मुफ्त गैस कनेक्शन,सस्ते घर किसे दिए जा रहे है? मुफ्त शिक्षा, मुफ्त मध्याह्न भोजन किसे मिल रहा है?ये सारी सुविधाएं उपलब्ध है गरीबी रेखा के नीचे जीने वाले प्रमाणपत्र धारको के लिए।लेकिन इन सुविधाओं का कितना लाभ इन्हें मिलता है यह एक यक्ष प्रश्न है।
        यह प्रश्न वो नही पूछते जिनके बच्चे लाखों की गाड़ियों पर घूमते है ,महंगे स्कूलों में पढते है ,जिनके पास दुनिया की हर सुख सुविधा उपलब्ध है। वे 80 रूपये तो क्या 800 रुपये लीटर पेट्रोल भी आराम से खरीद सकते है। महंगाई कितना भी बढ़े उन्हें कोई फर्क नही पड़ता।
                     भारत की इस धरती पर निम्न और उच्च के बीच एक मध्यम वर्ग रहता है।जो इन दो पाटों के बीच पिसता रहता है। इसी लिए सारे प्रश्न वही पूछता है क्योंकि, सरकार के सभी निर्णयों का सीधा असर उसी पर पड़ता है। क्योंकि, रोज बढ़ती  पेट्रोल की कीमत के कारण उसे अपना बाइक छोड़ साईकल का सहारा लेकर मिलों दूर  नौकरी करने जाना पड़ता है। अपना पेट काट बच्चों को पढ़ाता है। इलाज के लिए अपने भविष्य निधि से कर्ज लेता है।अपने बच्चों के साईकल खरीदने के लिए एकएक पैसा जोड़ता है। बेटी के व्याह के लिए घर जमीन सब बेच देता है।अपने परिवार के पालन-पोषण, बच्चो की पढ़ाई,बेटी की शादी,माँ-बाप के ईलाज और परिवार की अन्य जिम्मेवारियां निभाने में अपना सब कुछ खर्च  कर रिटायरमेंट के बाद पेंशन न मिलने की स्थिति मेंअपने भविष्य की चिंता में डूबता -उतराता रहता है। यह मध्यम वर्ग भी देश के नागरिक हैं।मतदाता है।ईमानदारी से टैक्स भरते हैं,30से40 वर्षों तक नौकरी कर देश की सेवा करते हैं।फिर, यह सौतेलापन क्यों है?सबका साथ सबका विकास का दावा करने वाले सरकार इनके लिए क्यों नही सोचती?
              किसी को पेंशन। किसी को नही।बहुत सारे परिवार हैं जिन्हें रिटायरमेंट के बाद कोई सहारा नही और उन्हें पेंशन भी नहीं।फिर कैसे जिये ये लोग?
         विकास के दावे हो रहे है कुछ झूठ और कुछ सच।चलिये अच्छी बात है।पर, ये भी जानना चाहेंगे कि,बुलेट ट्रेन किसके लिए चलाये जा रहे है?क्या एक आम आदमी उसका किराया देने योग्य है? यह सुविधा उच्च वर्ग के लिए ही लाभदायक होगा।सदियों से अमीर और गरीब के खाई को पाटने की दावा करने वाले राजनीतिज्ञ एवं सरकार अमीरों की सुख सुविधा का अच्छा खयाल रख रही है। मध्यम वर्ग टैक्स चुका कर साईकल तक ही सीमित रहे इसका पूरा ध्यान सरकार रख रही है।झोपड़ियों में गरीबों के बीच खाना खाने का तमाशा आज कल आम हो चला है।परंतु,गरीबों को फांसने के लिए नये नये पाशा फेंकने वाले नेतागण कभी गरीबो को भी बुलेट ट्रेन पे घुमाने का तमाशा दिखाओ। जो सच्चाई है उसे तो सामने लाना ही होगा।जो मूल बाते हैं उनपर तो चर्चा होनी ही चाहिए।
          दावा था कि,चौबीसो घंटे बिजली मिलेंगी ।परंतु,बिजली अठारह अठारह घंटे गायब रहती है।रोजगार की बातें खोखली साबित कर ,बेरोजगारी मुंह बाये  खड़ी है।आरक्षण का सांप पूरे देश मे जहर  फैला रहा है जिससे पूरा समाज विषाक्त हो रहा है और तथा कथित राजनीतिज्ञ इसे दूध पिला कर पाल रहे हैं।
                 इस बात से इनकार नहीं कि, बहुत सारे काम हुए हैं।विदेशों में अपनी साख बढ़ी है।नई टेक्नोलॉजी आ रही है।पड़ोसियों से अपनी संस्कृति एवं संस्कार के अनुसार सम्बन्ध सुधारने का प्रयाश हो रहा है। परंतु,लातों के भूत बातों से माने तब ना।
       सब के बीच मध्यम वर्ग की भी तो बात हो।सब के साथ मध्यम वर्ग का भी विकाश होना जरूरी है।मतदाता और ईमानदार कर दाता यही है।साथ ही बुद्धिजीवी भी है।इस का ध्यान सत्तारूढ़ एवं सत्ता लोलुप पार्टीयों को रखनी चाहिए।


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