सालखन की जल्दबाजी से
विपक्षी आंदोलन को झटका
रांची। आदिवासी सेंगल अभियान और झारखंड दिशोम पार्टी के भारत बंद का
कुछ खास असर नहीं पड़ा। भूमि अधिग्रहण विधेयक में संशोधन प्रस्ताव को राष्ट्रपति
की मंजूरी मिलने की खबर का सभी विपक्षी दल विरोध कर रहे हैं। उनकी बैठक सोमवार 18
जून को प्रतिपक्ष के नेता हेमंत सोरेन के आवास पर बुलाई गई है। उस बैठक में आंदोलन
का स्वरूप तय किया जाएगा और रणनीति बनेगी। लेकिन आदिवासी सेंगल अभियान तथा झारखंड
दिशोम पार्टी के नेता सालखन सोरेन ने बैठक में शामिल होने से पूर्व ही बंद का
आह्वान कर विपक्षी दलों से सहयोग का अनुरोध कर दिया। यह आंदोलन की अगुवाई का श्रेय
लेने के लिए जल्दबाजी में उठाया गया कदम था। उन्होंने सड़क जाम कर आह्वान को सफल
बनाने की कोशिश भी की लेकिन पुलिस-प्रशासन ने इनपर आसानी से काबू पा लिया। कई लोग
हिरासत में लिए गए। बोकारो जिला के जेरीडीह पंचायत के तुपकाडीह के पास उन्होंने
सड़क जाम करने का प्रयास किया लेकिन 20 लोगों के हिरासत में लिए जाने के बाद शांत
पड़ गए। इस आह्वान के निष्फल हो जाने से रघुवर दास सरकार के पास दो संदेश गए। पहला
यह कि उनके पास जनाधार का अभाव है। वे स्थानीय लोगों के स्वयंभू फौजदार बने बैठे
हैं। दूसरा संदेश यह गया कि संशोधन का विरोध करने वाले विपक्षी दलों के बीच अहं का
टकराव और नेतृत्व की होड़ है। सालखन सोरेन यदि विपक्षी दलों की बैठक में शामिल
होते और जल्दबाजी में एकला चलने का प्रयास नहीं करते तो उनकी प्रतिष्ठा रह जाती और
पार्टी की साख पर आंच नहीं आती। अब सरकार आसानी से यह दावा कर सकती है कि झारखंड
की आम जनता संशोधन के खिलाफ नहीं है। व्यवहारतः विपक्षी दलों के लोग अपनी
प्रस्तावित बैठक छोड़कर उनके पीछे नहीं आ सकते थे। यह आंदोलन की कमान सालखन मुर्मु
के हाथों में सौंप देने और सभी दलों के उनके पिछलग्गू होने का संदेश देने जैसा
होता। विपक्षी नेता इतने कमजोर या नासमझ भी नहीं हैं।
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