मोदी सरकार के पास 2019 में जनता के पास जाने के लिए एकमात्र कश्मीर मुद्दा ही बचा था। इसके लिए एक झटके की जरूरत थी। पीडीपी सरकार से समर्थन वापसी इसी रणनीति का हिस्सा है। वरना जम्मू-कश्मीर में ऐसा कुछ नहीं हुआ जो पहले नहीं हो रहा था। मोदी सरकार ने अपनी चार वर्षीय कार्यकाल की उपलब्धियों से देशवासियों को अवगत कराने के लिए अपने नुमाइंदों को छोड़ा जरूर लेकिन वे जनता पर कोई खास असर नहीं डाल पा रहे थे। मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों और प्रयोगों से जो जख्म लगे उपलब्धियों के दावे उसपर नमक छिड़कने का ही काम कर रहे थे। अब दो ही रास्ते बचे थे। महंगाई को नियंत्रित कर लोगों को राहत पहुंचाना या फिर लोगों का ध्यान दूसरी तरफ मोड़ देना।सरकार ने दूसरा रास्ता अपनाया। कश्मीर संवेदनशील मुद्दा है जो पूरे देश को प्रभावित करता है। वहां सैनिक कार्रवाई तेज़ कर लोगों को भावनात्मक डोज दिया जा सकता है। यह दावा किया जा सकता है कि दूसरी कोई भी सरकार कश्मीर में आतंकियों की नकेल नहीं कस सकती। जम्मू के हिन्दू बहुल लोगों की सहानुभूति भी प्राप्त की जा सकती है। इससे हिंदुत्व कार्ड को भी नये सिरे से भुनाने का अवसर मिल सकता है। महबूबा सरकार से समर्थन वापसी को चुनावी तैयारी के हिस्से के रूप में देखा जाना चाहिए। यह बहुत सोच समझ कर गंभीर मंथन के बाद लिया गया निर्णय है।
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